चूत की कसक

कथा रूपांतरण : डॉ. दलबीर सिंह
प्रेषक : करण
दोस्तो नमस्कार, मैं आपका दोस्त डॉ. दलबीर आपके सामने फिर से हाजिर हूँ। मेरी कहानियाँ पढ़ कर काफ़ी दोस्त बन रहे हैं और कहानियों को भी सराह रहे हैं, उसके लिए आप सबका धन्यवाद।
आपके विचारों से और सराहना और आलोचना से लेखक को आगे और कहानियाँ लिखने की प्रेरणा भी मिलती है और उत्साह भी आता है और हमेशा उसकी रचनाओं में और मौलिकता व सुधार की गुंजायश बनी रहती है।
मेरी पिछली कहानी ‘चुदक्कड़ आंटी से चुदाई-ट्रेनिंग’ के बाद काफ़ी सारी मेल आईं और कई सारे नए दोस्त भी बने, उन्हीं में से एक दोस्त बने करण, जो पंजाब से हैं। उन्होंने अपनी कहानी भेजी है, जो उन्हीं के शब्दों में पेश है।
मैं करण पंजाब से हूँ, मैं अन्तर्वासना का काफ़ी समय से पाठक हूँ। इसमें प्रकाशित कहानियाँ मेरी नस-नस में जोश ला देती हैं।
मैं 22 साल का हूँ, दिखने में ठीक ठाक हूँ। मैं एक इंजीनियर हूँ और एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हूँ।
यहाँ मैं अपनी जिंदगी का पहला अनुभव आपके सामने रखने जा रहा हूँ। यह घटना करीब तीन महीने पहले की है।
एक बार कंपनी के काम से मुझे चंडीगढ़ जाना था, तो मैंने चंडीगढ़ जाने के लिए सुबह की बस ली, बस में अधिक भीड़ नहीं थी, इसलिए मुझे बस में आसानी से सीट मिल गई, बस रवाना हुई। थोड़ी दूरी पर एक बस स्टॉप पर रुकी, वहाँ से एक खूबसूरत लड़की बस में चढ़ी और मेरी साथ वाली सीट पर आकर बैठ गई।
देखने में उस लड़की की उम्र लगभग 25 की रही होगी और उसका फिगर 34-30-34 होगा। उसका रंग बहुत ही गोरा, आँखें बड़ी-बड़ी, नाक एकदम तीखा और होंठ पतले थे और गुलाबी रंग की लिपस्टिक उसको और भी खूबसूरत बना रही थी।
उसे देखते ही मेरा लंड पूरा तन गया पर किसी तरह मैंने खुद पर काबू पा लिया।
ठंड का मौसम था, इसलिए उसने अपने ऊपर शॉल ओढ़ रखा था।
सफ़र लंबा था, तो मुझे ही वार्तालाप शुरु करना पड़ा।
पूछने पर पता चला कि वो भी चंडीगढ़ जा रही है। बात करते टाइम उसने बताया कि उसकी शादी हो चुकी है और उसके पति अमरीका में जॉब करते हैं। मुझे ठंड लग रही थी। जब उसने देखा तो उसने अपना शॉल मेरे ऊपर भी ओढ़ा दिया।
अब वो मेरे बारे में पूछने लगी, तो मैंने अपने बारे में सब कुछ सच-सच बता दिया।
बस चल रही थी तो बातों-बातों में शॉल के अन्दर उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया, तो मुझे अज़ीब सा लगा।
जब मैंने उसकी तरफ देखा, तो उसने हल्का सा मुस्करा दिया। तो मेरे अन्दर का राक्षस जाग गया और मैंने एक हाथ से उसके मम्मों को मसल दिया। उसके मुँह से सिसकारी निकल गई। तभी उसने मुझे रोका, मुझे होश आया कि मैं बस में हूँ। किसी तरह से मैंने खुद पर काबू पा लिया।
कुछ समय बाद चंडीगढ़ आ गया। उसने मेरा और मैंने उसका मोबाइल नंबर ले लिया।
बस में से उतर कर उससे विदा लेकर मैं कंपनी की तरफ चला गया और कंपनी का काम फिनिश करने के बाद मैंने शाम को उसे फोन किया।
उसने बताया कि उसके पति कल रात को अमरीका जाएंगे।
उसने मुझसे दस मिनट बात की और फोन काट दिया।
उस रात को मैंने होटल में रूम बुक करवा दिया और रात को उसे सोच-सोच कर उसके नाम की मुठ मारी और अगले दिन का इंतज़ार करने लगा।
अगले दिन सुबह मैं कंपनी में चला गया और शाम को जैसे ही मैं कंपनी के काम से फ्री हुआ उसका फोन आ गया।
उसने मुझको रात को दस बजे आने को कहा और उसने मुझे अपना पता मैसेज से भेज दिया।
शाम को चंडीगढ़ घूमने के बाद रात को दस बजे ऑटो पकड़ा और 20 मिनट में उसके घर तक पहुँच गया।
गेट पर पहुँच कर मैंने घंटी बजाई और उसने दरवाज़ा खोला।
उसे देखते ही मेरे होश उड़ गए। उसने काले रंग की नाइटी पहन रखी थी, जिसमें वो कयामत लग रही थी। क्योंकि काली नाईटी में उसका शरीर और भी ज़्यादा गोरा लग रहा था।
वो मुझे रूम में बैठा कर कॉफी बनाने के लिए रसोई में चली गई।
मुझसे रहा नहीं गया और मैं भी रसोई में चला गया। उसको पीछे से जाकर पकड़ लिया और उसकी गर्दन पर चुम्बन करने लगा।
उसने मुझे रोकते हुए कहा- सारी रात बाकी है..!
और मैं रूम में चला गया और वो कुछ समय में कॉफी बना कर रूम में ले आई।
कॉफी पीने के बाद वो बातें करने लगी। वो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी, तो मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, वो भी चुम्बन में मेरा पूरा साथ देने लगी।
15 मिनट तक एक-दूसरे के होंठ को चूसते रहे। उसने मुझे अलग किया और मेरी पैन्ट उतार कर मेरा लंड चूसने लगी।
उसने बहुत मज़े से मेरा लंड चूसा और 20 मिनट बाद मेरा वीर्य उसके मुँह के अन्दर ही निकल गया और उसने सारा वीर्य पी लिया।
अब मेरी बारी थी, मैंने भी उसके सारे कपड़े उतार दिए और उसकी भरी-भरी चूचियाँ देख कर मैं तो जैसे बौरा ही गया।
एकदम सख़्त और हिमालय की चोटियों की तरह से तनी हुई और किशमिश के आकार के गुलाबी निप्पल और उनके इर्द-गिर्द उसी रंग का गोल घेरा और चूचियाँ ऐसी थीं कि देखते ही मुँह में पानी भर आया।
मेरी नज़र छातियों से थोड़ी नीचे फिसली तो एकदम पतली सी कमर जैसे कि किसी कुशल कारीगर ने मेनका की मूर्ति अपने हाथों से बनाई हो और उसके नीचे बाहर को उभरे हुए कूल्हे और केले के तने जैसी बिल्कुल गोल और चिकनी जांघें और जांघों के जोड़ पर स्वर्ग का दरवाज़ा एक छोटी सी पतली चूत थोड़ी गीली होने के कारण चमकदार लग रही थी।
बालों का कहीं नामोनिशान नहीं था, शायद उसने अपने जंगल की सफाई आज ही की थी।
उसकी चूत देखने में इतनी सुंदर लग रही थी कि मैं अपने आप को उस पर अपना मुँह लगाने से ना रोक सका और उसे बड़े प्यार से चूसने लगा और साथ ही एक हाथ से मैंने उसके मम्मों को बारी-बारी से मसलना शुरू कर दिया, और इधर नीचे उसकी चूत को पूरी मुँह में भर लिया और एक चुस्का लगाया जैसे की कुल्फी में चुस्का लगाते हैं।
मेरी इस हरकत से वो एकदम से तड़प उठी और मचलने लगी और उसने खींच कर मुझे अपने ऊपर ले लिया और मेरे अर्ध-सुप्त लण्ड को अपने मुँह मेंभर कर वैसे ही चूसने लगी जैसे कि मैं उसकी चूत को चूस रहा था।
उसके चूसने के तरीके से मेरा लण्ड भी डेढ़ दो मिनट में ही पूरी तरह से तैयार हो गया और पूरे ज़ोश से फड़कने लगा।
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मेरी इन प्यार भारी हरकतों से वो भी पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी, वो बड़बड़ा रही थी- आह जानुउऊुउउ आआआहह करो ना अब नहीं रहा जा रहा…!
जोश तो मुझे भी पूरा आ चुका था, अब मैंने अपनी पोज़िशन बदली और उसके ऊपर आ गया।
जैसे ही मैं उसके ऊपर आया और अपना लण्ड उसकी योनि पर रखा, तो उसने अपने हाथ से पकड़ कर उसे सही रास्ता दिखा दिया।
मैंने धीरे-धीरे ज़ोर लगाना शुरू कर दिया और जैसे-जैसे मैं दबाव बढ़ा रहा था, मेरा लंड उसकी चूत में उतरता जा रहा था और जैसे-जैसे मेरा लंड उसकी चूत में उतर रहा था, वो मुझे कस कर अपनी बाहों मे भींच रही थी।
जैसे-जैसे वो मुझे भींच रही थी, मुझे और ज़्यादा जोश आ रहा था, अब मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए। एक हाथ उसकी कमर के नीचे था, दूसरा उसकी चूची और निप्पल को मसल रहा था और मेरे होंठ उसके होंठों से चिपके हुए थे। कभी मेरी जीभ उसके मुँह में जा रही थी और कभी उसकी जीभ मेरे मुँह में।
ज्यों-ज्यों समय गुज़र रहा था, हम दोनों का जोश भी बढ़ता जा रहा था और धक्कों की गति भी बढ़ रही थी।
करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद उसका जिस्म अकड़ने लगा और मेरा भी काम होने वाला था। उसने नीचे से अपने चूतड़ गोल-गोल घुमाने शुरू कर दिए और साथ ही बीच-बीच में बड़े ज़ोर से नीचे से ऊपर को धक्के भी मार रही थी और मेरे तो जोश का कोई ठिकाना ही नहीं था।
और अचानक उसने मुझे इतने ज़ोर से अपनी बाहों में भींच लिया कि जैसे मेरी हड्डियों का सुरमा बना देगी और साथ ही उसकी चूत में से काफ़ी सारा पानी भी निकला, जिससे कि चूत एकदम चिकनी हो गई और मेरा लंड फँस कर अन्दर तक जा रहा था।
मुश्किल से 10-12 धक्के मैंने और मारे होंगे कि मेरा भी शरीर एकदम अकड़ गया और मेरे लण्ड के टोपे पर एक अलग ही किस्म की गुदगुदी सी हुई और एकदम ‘छर्ररर’ की आवाज़ करते हुए मेरे लण्ड से भी खूब सारा वीर्य निकला और उसकी चूत पूरी तरह से उसके और मेरे माल से भर गई थी।
इसके साथ ही मैं एकदम निढाल सा हो गया और उसके सीने पर ही लेट कर हाँफने लगा।
उस रात उसको मैंने 3 बार चोदा और अगले दिन काम से छुटटी ले ली और उस दिन हमने 4 बार सेक्स किया और शाम को में अपने घर वापिस आ गया।
अब जब भी मुझे काम से छुट्टी मिलती है, तो उसे चोदने जाता हूँ।
आपको मेरी पहली कहानी कैसी लगी, जरूर बताएँ।
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