चूचियाँ कलमी आम-2

(Chuchiyan kalmi Aam-2)

This story is part of a series:

मैं- सब्ज़ी का तो काकी कुछ बोली नहीं…हाँ, कलमी आम चूसे बहुत दिन हो गए?

गौरी- लेकिन मेरे पास तो सब्जियाँ हैं, पहले कहते तो मंडी से ला देती।
अच्छा ज़रा टोकरी तो सर पर रखवा दे।
बड़े अनमने भाव से बोली- आज तो कुछ ग्राहकी भी नहीं थी।

मैंने सोचा कि यह तो गई, अब ऐसा मौका नहीं मिलेगा।
टोकरी उठाते हुए अपने सर पर रखते उसके दोनों हाथ टोकरी पर थे, झटके से टोकरी उठाने से आज गीले होने के कारण उसके उरोज उतने बाहर नहीं निकले जितने पहले चोली से निकल जाया करते थे।

मैं हिम्मत करके दोनों स्तनों को अपनी गिरफ्त में लेते हुए बोला- गौरी तू बड़ी झूठी है! नहीं खिलाना है तो मत खिला, यह तो मत बोल कि आम नहीं हैं…!!

मेरे अचानक हमले से घबरा कर उसने टोकरी पीछे लुढ़का दी और मुझ पर गिरती चली गई, सब्ज़ी औसारे में फ़ैल गई, उसके ऊँचे लुगड़े में पिंडली में टोकरी की फांस चुभ गई जिसे वो सी सी करके पकड़ कर बैठ गई, गुस्से से लाल पीले होते बोली- अभी तुम्हारी उमर कितनी है? ये सब तुमने कहाँ से सीखा? अपने फोन से? मैं ऐसी वैसी औरत नहीं हूँ… आने दे मौसी को!

मैंने उसकी गोरी गोरी पिंडली पर अपनी नज़र जमा दी जहाँ खून छलक आया था।
बिना सोचे समझे मैंने उसकी पिंडली उठाई और अपने दांतों से बांस की फांस निकाल दी।

गौरी ने मेरे बाल पकड़ लिये- मत कर बाबू!

मैंने फांस झटके से थूकी और छलछलाते खून पर पिंडली पर अपने होंठ रख दिये।
वो मुझे दूर हटाती, बाल खींचती, बड़बड़ाती रही।
अब उसकी उंगलियाँ बाल खींचने की जगह बालों में फिर रहीं थी।

मैंने धीर धीरे चूमते हुए होंठों का सफ़र पिंडली से घुटने और वहाँ से जांघों पर चुम्मे देने शुरू कर दिये।
जैसे जैसे मैं ऊपर बढ़ता, वो अपने लुगड़े से मुझे धकेलती और अपने को ढकने की कोशिश करती जाती और मैं उसके अन्दर के गोरे रंग से और ज्यादा अन्तर्वासना में जलता जाता।
अब यह आग उधर भी लगानी थी, मैंने अपना एक हाथ बढाकर उसके चूतड़ की बीच दरार में अंगूठा धंसा कर और हाथ से चूतड़ को सहलाना शुरू कर दिया।
उसने बिन पानी की मछली की तरह मचलना शुरु कर दिया।
इससे उसका तो कोई फायदा न हुआ, हाँ… मेरे हाथ में अब एक पूरा चूतड़ था और अंगूठा गांड के छेद पर पहुँच गया, अन्दर चड्डी या अंडरवियर जैसा कुछ नहीं था, अभी अभी मूतने और गीलेपन से वो जकड़ गई।

मेरे होंठों का सफ़र जारी रहा।

आखिर उसने शरीर ढीला छोड़ दिया, मैं समझा कि गौरी राजी हो गई, मैंने भी पकड़ ढीली की।

अचानक यह उठी और सब्ज़ी समेट कर जाने लगी, उसके झुकने से मुझे मौका मिला।

मैं उसे पीछे से पकड़ कर उसे लेता हुआ मुंडेर से टिकता बैठता चला गया।

अब वो मेरी गोद में थी, उसके चूतड़ों की दरार में मेरा बाबूराम कठोर होकर अपनी पैठ बना चुका था।
वो हिलती तो चूतड़ की दरारों में और गहरा हो जाता।

उसे जब कठोरता और आकार का अहसास हो गया तो बोली- छोड़ दे बाबू, कोई आ जाएगा तो मेरी बड़ी बदनामी होगी।

वही गाय बांधने वाली सांकल कीले से ठुकी थी, मैंने कमर का घेरा लेते चैन को उसके हुक को अटका दिया और दौड़ कर बड़ा दरवाज़ा बंद कर दिया।

अब शायद कुदरत भी मेरा साथ देने लगी थी, गड़गड़ाहट के साथ तेज़ बारिश होने लगी और अँधेरा छा गया।

वापस लौटा तो उससे, जैसा मैंने सोचा था, हुक नहीं खुल पाया वो उसी में उलझी थी।

यह कहानी आप अन्तर्वासना डाट काम पर पढ़ रहें हैं।

गौरी- बाबू मुझे जाने दे !

मैंने उसकी किसी भी बात का जवाब न देते उसकी सारी सब्ज़ी टोकरी में डाल ओसारे की टान्ड पर रख दिया जहाँ कई बार ज्यादा थकने या यहीं से कहीं और जाने पर वो अगले दिन ले जाने के लिए संभाल रख कर जाती थी।

उसकी चुनरी लेकर मैंने उसे क्लिप और हुक से मुक्त करके उसे पीछे वाले कमरे में उठा ले गया।

कमरे से पहले खुले ओसारे में ओलती का पानी गिर रहा था, साइड में ही बजरी (मोटी रेत) पड़ी थी मैंने आव देखा न ताव उठा कर उसे रेत पर पटक दिया और उसे अपने से ढक सा लिया।

अब मेरे सीने पर उसके कलमी आम का नर्म नर्म अहसास और सीने की धड़धड़ साफ़ महसूस हो रही थी।

मैंने अपने जलते होंठ कान के नीचे उसकी गर्दन पर रख दिये, इसका ऐसा असर हुआ कि उसकी टाँगें खुलती चली गईं और उसने अपने हाथों से मेरा सर पकड़ लिया।

अब जैसे जैसे मैं गर्दन पर चूमता आगे बढ़ता, उसके कानों में गर्म सांसें छोड़ता, वो और तड़पने लगती।

मैंने अपनी जीभ का कोना उसके कानों में डाल दिया तो वो मुझे धकाने लगी।

चूँकि मेरा मुंह भी उसके कान की कड़वाहट से भर गया था, उसे यह अह्सास न कराते कि कुछ गन्दा लगा है, जैसे मुंह में पानी चला गया हो, ऐसा जताते मैंने बाहर थूक दिया।

क्यूंकि गर्दन का चुम्मा और औरत की बगलों को, कान को चूम कर आप उन पर कोई अहसान नहीं करते, यह उन्हें अहसास दिलाता है की सेक्स में घिन नहीं होती और जब अपना लंड उनके मुंह में देते हो तो वो आपके इस व्यवहार से ख़ुशी ख़ुशी न सिर्फ मुंह में लेती हैं बल्कि आप के आंडुओं, गांड की छल्लों को भी इतने प्यार से चाटती चूमती हैं कि आपका यह मज़ा, उस स्वर्ग के से अभूतपूर्व अहसास और गुदगुदी के सामने थोड़ा कड़वापन या पसीने की बदबू तो कुछ भी नहीं, जो लंड में लीटरों खून पम्प करके लंड को मूसल में बदल देता है।

उसे न छोड़ते करवट लेते उसे अपने ऊपर लेते हुए मैं सीधा हो गया।
उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं।
मैंने गर्दन उठा कर उसके माथे पर अपना एक चुम्मा जड़ दिया उसके ललाट पर उसका सिन्दूर धुल चुका था और जुल्फों में फंसी पानी की बुँदे चुहचुहा रहीं थी।

उसने आँखे खोली जिनमें पूर्ण समर्पण का भाव था।

मैं उसे लेकर उठता चला गया, उसे खड़ा करने के बाद मैंने बाहर का जायजा लिया, उसकी सब्ज़ी की टोकरी में वैसे ही ढक कर रख आया जैसे अक्सर वो यहाँ छोड़ जाती थी।

आते आते दरवाज़ा बंद किया और उसकी चप्पलें हाथ में लेकर वापस आया तो वो मेरी और पीठ करे ऊपर ओलती से गिरते पानी में ऐसे खड़ी थी जैसे शावर ले रही हो!

मैंने उसका लुगड़े के नाड़े को खींचा तो गीला होने के कारण नहीं खुल पाया।

गौरी- बाबू, मुझे जाने दे कोई आ जायेगा।

मैंने घुटने के बल बैठकर उसे चूतड़ों से पकड़कर उसका उसका नाड़ा सेक्सी अहसास बढ़ाने के लिये अपने दांतों से खोला।

लुगड़ा नीचे गिरते ही उसकी चिकनी केले के तने जैसी जांघे मेरे सामने थीं उसने अपने पैरों को इतना सटा लिया कि उसकी मुनिया न दिखाई दी।

अचानक वो मेरी पीठ पर झुक गई, मैंने हाथ बढ़ाकर उसके ब्लाऊज़ को खींच उसे सीधा किया और आगे के बटन खोल दिये उसके कलमी आम फड़फड़ाते कबूतर की तरह आज़ाद हो गये।
‘होली-शिट! मेरे मुंह से अचानक निकला।
इसे अपनी तारीफ़ समझ उसने कुछ कहना चाहा, उसके थोड़े सुरमई से खुले होंठो में अन्दर की लालिमा देखते ही मुझे ख़ुद पर काबू नहीं रहा और मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये।
जैसे ही जीभ उसके मुंह में देने की कोशिश की, उसने दांतों को जकड़ कर मुंह भींच लिया।
अब वो मेरे सामने मादरज़ाद पूरी नंगी खड़ी थी, मेरा लंड तो पूरे शवाब पर था, अब उसने हिचकोले खाने शुरू कर दिये थे और उस लौडू
की कालर ट्यून बाबुराव मस्त मस्त है, बजने लगी थी, जैसे वाइब्रेशन मोड पर हो!

मैं उसकी तरफ बढ़ा तो वो हंस कर छिटकी और पहली बार वो बोली- कभी बचपन में आम नहीं खाए क्या? कपड़ों पर रस टपक जाएगा तो कपड़े खराब हो जायेंगे।

मेरी तो जैसे जान ही निकल गई- अरे ! तेरी बारह की ढेर!
मैंने आव देखा न ताव, अंडरवियर छोड़ पूरे कपड़े एक झटके में निकाल फेंके।

उसके भी कपड़े उठाकर कपड़ों की रेत झटकी और अपनी भी, कपड़ों की भी और ओलती में गिरते पानी से उसे खंगाल कर निचोड़ दिया कि बूंदे न टपके।
अब मैंने एक हाथ में कपड़े लपेट झटके से पीछे मुड़कर चूतड़ों के पीछे हाथ डाल उसे ऐसे उठा लिया जैसे बच्चों को गोद में लेते हैं।

उसने छुटने की भरसक कोशिश की लेकिन उसके कलमी आम मेरे कन्धों पर टकराते रहे!
गौरी ज्यादा हल्की भी न थी न भारी!

वैसे भी आदमी चौदने से पहले हथनी भी उठा सकता है और एक बार लंड बैठ जाये तो चिड़िया भी नहीं उड़ती।

लेकिन मेरे कसरती बदन से अकड़ने से बराबर ग्रिप पकड़ नहीं हो पा रही थी, मैंने उठाये उठाये ही एक झटका दिया उसकी जांघ का बाहरी किनारा मेरे लंड से टकराया और वो अमर-बेल सी मुझ से लिपटती चली गई।
मैंने उसे पीछे वाले अपने कमरे में जो बरामदे से होते हुए हाल से दो तीन सीढ़ियों ऊपर था, वहाँ ले गया।

अब मुझे भी अहसास हो गया था कि अब यह चुदने को पूरी तरह तैयार है जो उसके मेरे सीढ़ी चढ़ने पर कहे शब्दों से और सिद्ध हो गया- बाबू, चल तो रही हूँ।
कहानी जारी रहेगी।

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