सलहज की कसी चूत को दिया सन्तान सुख-1

(Salhaj Ki Kasi Chut Ko Diya Santan Sukh- Part 1)

संजय मलिक 2019-08-28 Comments

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मेरा नाम संजय मलिक (बदला हुआ) है. आज जो मैं कहानी आप लोगों को बताने जा रहा हूं वह मेरी पत्नी की भाभी यानि कि मेरी सलहज के बारे में है.

यह बात उस समय की है जब मेरी बीवी ने कहा कि मेरी भाभी को शहर से बुला कर ले आओ। अभी उसके स्कूल की छुट्टियां भी हैं चल रही हैं और वो इस बहाने हमारे यहां पर आकर कुछ दिन घूम जायेगी।
मेरी बीवी ने कहा कि उसने अपनी माँ से बात कर रखी है इस बारे में.

आगे की कहानी बताने से पहले मैं अपने पाठकों को अपने बारे में बता देना चाहता हूं. मेरी उम्र 28 साल है और मेरा शरीर भी काफी भरा हुआ है लेकिन शेप में है. मैं नियमित कसरत करता रहता हूं जिससे मेरे शरीर पर कहीं पर भी अतिरिक्त चर्बी जमा नहीं है.

मेरी शादी को पांच साल हो चुके हैं इसलिए पत्नी की चुदाई करने में मुझे कुछ खास मजा नहीं आता है. लंड किसी परायी चूत के सपने देखने लग जाता है. मगर अभी तक कोई कसी हुई चूत हाथ नहीं लगी थी जो मेरे लंड की प्यास को बुझा सके.

हां, कई बार काम पर आते-जाते लड़कियों की नजर मेरे शरीर को देख कर उन्हें मेरी तरफ आकर्षित कर देती थी लेकिन उनमें वो बात नहीं दिखाई पड़ती थी कि उनको चोदने के लिए लंड मचल उठे. मुझे एक सेक्सी सी शादीशुदा महिला की चूत की चुदाई करने का मन था. मेरी यह अभिलाषा काफी दिनों से मेरे मन में ही दबी हुई थी.

तो दोस्तो, पत्नी के कहने पर मैं अपनी सलहज को लेने के लिए चला गया. अब यहां पर मैं अपनी सलहज का परिचय देना चाहूंगा. उसका नाम अनीता है और उसकी उम्र 24 साल है. शादी को 2 साल हो गये थे लेकिन अभी तक उसको बच्चा नहीं हुआ था.

मैंने दुल्हन बनी अनीता को साले की शादी में भी देखा था लेकिन उस वक्त उसके शरीर के बारे में कुछ खास पता नहीं लग पाया था. शादी में बस उसका चेहरा देखा था. देखने में काफी सुंदर थी.

उसकी तुलना में मेरा साला काफी कम था. साले का वजन ज्यादा था और पेट भी निकला हुआ था. देखने में भी अनीता के मुकाबले उन्नीस था. मगर मेरी सास ने ही अनीता को उसके लिए चुना था. मैं तो साले से जलता था कि कहां ये मोटा सांड और कहां ये कच्ची कली.

पत्नी के मायके यानि अपनी ससुराल में पहुंच गया मैं. वहां जाने के बाद उन लोगों ने मेरी काफी खातिरदारी की. सास-ससुर और सब से बात हुई. मैंने पत्नी की मंशा अपनी सास को बताई तो वह भी अनीता को मेरे साथ भेजने के लिए राजी हो गई. मगर अभी साले साहब की परमिशन लेना भी बाकी था.

पहले तो साले ने मना कर दिया. कहने लगा कि यहां पर मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. लेकिन मैं उसके मन की बात जानता था क्योंकि उसकी मां यानि कि मेरी सास ने तो पहले ही मुझे इजाजत दे दी थी. मगर साले का मन मेरी सलहज की चूत में अटका हुआ था इसीलिये वो टाल-मटोल कर रहा था.

फिर मेरी पत्नी का फोन आ गया. जब उसने अपने भाई से सिफारिश लगाई तो वह मान गया. दो दिन तक सब लोगों के साथ खूब हंसी मजाक चला और फिर साले ने अपनी पत्नी अनीता (मेरी सलहज) को खुशी-खुशी मेरे साथ भेज दिया।

शादी के समय वाली अनीता अब काफी बदल गई थी. लगभग बारह-पंद्रह महीनों के बाद मैं उसको देख रहा था. इतने कम समय में ही उसके शरीर में अलग ही निखार आ गया था. पहले काफी शर्मीली सी थी और नजर उठाकर देखती भी नहीं थी.

अब तो वो खूब हंसी मजाक करने लगी थी. मगर मेरा इरादा तो उसके रसीले बदन को भोगने का था. उसके शरीर की बनावट देख कर मेरे मन में एक कसक सी उठ गई थी. उसके मोटे मोटे दूध उसके सूट में इस तरह से कसे हुए थे कि मन करने लगा था कि इनको बस दबाता ही रहूं दिन रात.

उसकी गांड का उठाव देख कर लंड से पानी छूटना शुरू हो जाता था. कमर एकदम पतली सी थी. पता नहीं कैसे उसने अपने आपको इस तरह से मेंटेन किया हुआ था. मेरी पत्नी तो उसके सामने कुछ नहीं रह गई थी अब. अनीता के चूचे मल्लिका शेरावत के जितने बड़े थे और बिल्कुल वैसे ही उसके सूट से बाहर झांकते रहते थे.

दो दिन मैं उनके घर पर रहा तो उसकी चुदाई के सुनहरे ख्वाब देखने लगा. सोच रहा था कि अगर इसे चोदने का मौका मिल जाये तो मैं दुनिया की सारी दौलत इस पर लुटा दूं. ऐसा फूल सा बदन बनाया था उसका कि देखते ही आंखों को सुकून के साथ साथ एक तड़प भी लगने लगती थी.

फिर उसको साथ लेकर मैं वहां से चल पड़ा. ट्रेन की रिजर्वेशन तत्काल करा ली इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई. स्टेशन पर पहुंच कर गाड़ी भी समय पर ही आ गई. हम दोनों ही सामान लेकर ट्रेन में चढ़ने लगे. चूंकि भीड़ काफी थी तो मैंने पहले अनीता को ऊपर कर दिया और पीछे से बैग उठाकर अपनी पीठ पर लाद कर मैं भी ट्रेन में घुसने लगा.

ऐ.सी. कोच में बुकिंग थी इसलिए लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे. अनीता के कोमल कसे हुए बदन से मेरा शरीर सटा तो लंड तुरंत तन गया. लंड एकदम से तन कर उसकी गांड की दरार पर जा सटा. बहुत कोशिश की पीछे हट कर खुद को रोकने की लेकिन उसके शरीर का वो पहला अहसास पाकर काबू रख पाना बहुत मुश्किल हो गया.

उसे भी शायद अपने जीजा के खड़े लंड का अहसास अपनी गांड पर हो गया था. वो एक बार पीछे पलट कर देखने लगी लेकिन बिना कुछ बोले फिर से आगे की तरफ देखती हुई रास्ता बनाने लगी. उसकी गोल गांड में मेरे लंड के झटके लग कर मेरा हाल बेहाल हुआ जा रहा था.

खैर, उसके बाद हम अपनी सीट पर पहुंच गये. सामान जमा दिया और ट्रेन चल पड़ी. पत्नी के मायके से मेरे घर पहुंचने में 18 घंटे का समय लगता था. इन 18 घंटों में मैं यही सोचता रहा कि अनीता की चुदाई का काम बने तो बने कैसे.

बार-बार अपनी सलहज की कातिल जवानी को देख कर मेरे दिल पर जैसे कटार चल रही थी. कई बार मन किया कि ट्रेन में ही कुछ चक्कर चलाऊं लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी और न ही कोई ऐसा मौका आया कि मुझे कुछ करने का अवसर मिल सके. बस तने हुए लौड़े के साथ मैंने किसी तरह उस दिन सफर काट लिया.

उसके बाद हम अपने घर आ गये. अपनी भाभी यानि मेरी पत्नी से मिल कर अनीता खुश हो गई. दोनों ही बातें करने लगीं. मैं अपने कमरे में चला गया. दो-तीन दिन ऐसे ही निकल गये. मगर चौथे दिन की बात है कि पड़ोस में ही एक भाभी को बच्चा होने वाला था.

उनका हमारे घर में भी खूब आना जाना था इसलिए मेरी पत्नी उसके घर चली गई. फिर उसको अस्पताल ले जाया गया. रात भर मेरी पत्नी को वहीं पर रुकना था. उसने अस्पताल से ही फोन कर दिया कि अनीता खाना बना देगी और मैं सुबह ही घर आऊंगी.

मुझे जब इस बात का अहसास हुआ कि अनीता मेरे साथ में अकेली रहने वाली है तो मेरे मन में हवस जाग उठी. बीवी की गैरमौजूदगी मुझे अपनी सलहज की चुदाई के लिए मजबूर करने लगी. सोचने लगा कि आज रात को किसी तरह इसकी चूत को चखने का मौका लग जाये तो बस मजा ही आ जाये.

किचन में जब वो खाना बना रही थी तो मैं पीछे से खड़ा होकर उसकी उठी हुई गांड को देख रहा था. उसको देख देख कर लंड बार-बार उछल रहा था. मैं वहीं पर खड़ा होकर लंड को मसल रहा था. एक बार तो मन किया कि जाकर अभी इसकी गांड पर लंड को लगा दूं.

मगर कुछ सोच कर वहीं खड़ा रहा. उसे पता नहीं कैसे आभास हो गया कि मैं उसके पीछे ही खड़ा हुआ हूं. उसने अचानक से पीछे मुड़ कर देख लिया. मेरा हाथ उस वक्त हौले हौले मेरे तने हुए लंड पर चल रहा था. अनीता के पलटते ही मैंने घबराहट में हाथ हटा लिया.

मैं ऐसे देखने लगा जैसे किसी चोर को चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया गया हो.
वो बोली- क्या बात है जीजा जी, कुछ चाहिए क्या आपको?
मैंने मन ही मन कहा- तुम्हारी चूत!
फिर उसके सवाल का जवाब देते हुए बोला- बस खाने का इंतजार कर रहा था. अभी कितनी देर और लगेगी खाना तैयार होने में? मुझे तो जोर से भूख लगी हुई है.

अनीता ने मेरी लोअर में तने हुए मेरे लौड़े की तरफ सरसरी निगाह से देखा और फिर मेरे चेहरे से टपक रही हवस को पढ़ने की कोशिश करते हुए कहने लगी- हां, बस खाना तैयार होने ही वाला है जीजा जी. आप बाहर जाकर बैठिये मैं अभी पांच मिनट में खाना लेकर आती हूं.

उसने मुंह फेर लिया और दोबारा से रोटी बेलने में लग गई. मैं जाकर बच्चों के साथ हॉल में टीवी देखने लगा. फिर अनीता खाना लेकर आ गई. टीवी देखते हुए ही सबने साथ में खाना खाया. मेरी नजर टीवी पर कम और अनीता के चूचों की क्लिवेज पर ज्यादा जा रही थी.

वो भी मेरे मन को पढ़ने की कोशिश कर रही थी शायद लेकिन दोनों में से ही कोई भी जाहिर नहीं होने देना चाह रहा था. खाने के बाद वो किचन में चली गई. बच्चे अभी टीवी देखने में मग्न थे. अनीता को किचन में गये हुए पांच मिनट हो गये थे.

मैं अपने जूठे बर्तन लेकर किचन की तरफ बढ़ने लगा तो मेरा लौड़ा बगैर मेरी इजाजत के ही तना जा रहा था. लोअर में तंबू बना दिया हरामी ने. मैंने किसी तरह शर्ट के नीचे उसको ढका और किचन में बर्तन रखने के लिए चला गया.

अंदर जाकर देखा तो अनीता बर्तन साफ कर रही थी. मैंने बर्तन रखने के बहाने से उसकी गांड पर अपने लौड़े से सहला दिया. वो थोड़ी सी हिचक कर एक तरफ सरक गई तो मेरी भी हवा टाइट हो गई. मैं चुपचाप बाहर आ गया.

कुछ देर तक मैंने बच्चों के साथ टीवी देखा और फिर उनको अपने साथ ही अपने बेडरूम में सुलाने के लिए ले गया. हमारे बेडरूम में से ही अन्दर वाले कमरे का दरवाजा बना हुआ था जिसमें अनीता सोती थी. कुछ देर के बाद वो अपने हाथ पौंछती हुई कमरे में आई और सामने से गुजरी.

उसकी मटकती हुई गांड को देख कर मेरे मन में टीस सी उठने लगी. वो अन्दर चली गई और मैंने लाइट बन्द कर ली. कमरे में अन्धेरा हो गया लेकिन अनीता के कमरे की हल्की रोशनी अभी भी इधर आ रही थी.

मेरा हाथ मेरे तने हुए लंड पर चला गया. सोचने लगा कि चुदाई का मौका मिलना तो मुश्किल है लेकिन मुठ मारे बिना ये लौड़ा मुझे सोने नहीं देगा. मैं अपनी लोअर के अन्दर से ही अन्डवियर में हाथ डाल कर अपने लंड को सहलाने और मसलने लगा.

सलहज की चूत और गांड के बारे में सोच कर लंड काफी देर पहले से ही तना हुआ था इसलिए उसने अंडरवियर में ही टोपे को चिकना कर रखा था. जब मैंने लंड के टोपे को अपने हाथ से ऊपर नीचे करना शुरू किया तो मेरी आंखें स्वत: ही बंद होने लगीं.

उस समय हाथ मेरे लंड पर चल रहे थे लेकिन मन ख्यालों ही ख्यालों में अनीता की मैक्सी को उठाकर उसके बदन के दर्शन करने की कामुक कल्पनाओं में गोते लगाने लगा था. हाय … इसकी गांड … इसके स्तन … कितने रसीले होंगे अनीता के स्तन … चूस-चूस कर पी लूंगा उनको. कुछ ऐसी ही कल्पनाओं में डूबा हुआ मैं अपने लंड पर तेजी से हाथ को चला रहा था.

मेरी आंखें बंद थीं और बच्चे बगल में ही सो रहे थे. अंधरे में मुठ मारने के पूरे मजे ले रहा था. मन तो कर रहा था कि लोअर को निकाल दूं लेकिन सोचा कि कहीं अगर बच्चे जाग गये तो उन पर गलत असर जायेगा. इसलिए अंडरवियर के अंदर ही लंड को दबोचे रहा.

तेजी से हाथ लंड को रगड़ रहा था कि अचानक ही कमरे की लाइट जल गई. मैंने हड़बड़ाहट में एकदम से हाथ को लोअर के अंदर से बाहर खींच लिया. सामने दूसरे कमरे के दरवाजे पर अनीता खड़ी हुई थी. मैंने सोचा कि आज तो इसने मुझे शायद मुठ मारते हुए देख ही लिया होगा. मगर उसके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे.

मैंने अपने लंड की तरफ देखा तो वो एक तरफ तन कर डंडे जैसा दिख रहा था. मैंने बनियान से उसको ढकने की नाकाम सी कोशिश की क्योंकि बनियान ढकने के बाद भी लौड़े का उठाव साफ दिखाई दे रहा था.

अब मैंने अनीता का ध्यान दूसरी तरफ हटाने के लिए पूछा- क्या बात है? तुम सोई नहीं अभी तक?
वो बोली- मुझे नींद नहीं आ रही है जीजा जी क्योंकि मेरी कमर में बहुत तेज दर्द हो रहा है.
मैं बोला- कोई बात नहीं, मैं बाम दे देता हूं, उसकी मालिश कर लो. आराम हो जायेगा.

मैंने बेड की दराज से बाम निकाल कर अनीता को ले जाने के लिए कहा. वो मेरे करीब आई और मेरे हाथ से बाम की शीशी लेकर अपनी उठी हुई गांड को मटकाती हुई वापस जाने लगी तो मेरे मन में उसकी गोल-गोल गांड की ठुमकती शेप को देख कर एक हवस भरी टीस सी कचोट गई.

मन मार कर बोला- अनीता, लाइट बंद कर दो. नहीं तो बच्चे जाग जायेंगे. वो लाइट बंद करके अपने कमरे में चली गई और मैंने उसके जाते ही दोबारा से अपने कच्छे में हाथ डाल लिया. फिर से लंड को मसलने लगा.

लेकिन पांच मिनट के बाद ही दोबारा से कमरे की लाइट जल उठी. मेरा हाथ मेरी लोअर में ही था. देखा तो अनीता बाम की शीशी लेकर खड़ी हुई थी. उसे देखते ही मैंने हाथ को फिर से बाहर खींच लिया.
वो बोली- मैंने बाम लगा ली है. ये लीजिए.
वो वापस आकर मेरे हाथ में बाम की शीशी देकर चली गई.

अब तो मेरा मन करने लगा था कि उसको जाकर चोद ही दूं. मगर उसकी तरफ से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने के कारण मेरी भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी. मैं चुपचाप लेटा रहा. बच्चे गहरी नींद में थे लेकिन मैं बेड पर पड़ा हुआ करवट बदल रहा था.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
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