मासूम यौवना-2

कमला भट्टी 2009-12-25 Comments

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मैंने दसवीं की परीक्षा दी और गर्मियों की छुट्टियों में फिर ससुराल जाना पड़ा। इस बार मेरे पति स्वाभाव कुछ बदला हुआ था, वो इतने बेदर्दी से पेश नहीं आये, शायद उन्हें यह पता चल गया कि यह मेरी ही पत्नी रहेगी।

मैं इस बार 4-5 दिन ससुराल में रुकी थी पर वे जब भी चोदते, मेरी हालत ख़राब हो जाती। पहली चुदाई में ही चूत में सूजन आ गई, बहुत ही ज्यादा दर्द होता, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आता।

वो रात में 7-8 बार मुझे चोदते पर उनकी चुदाई का समय 5-7 मिनट रहता। रात भर सोने नहीं देते, वो मुझे कहते- मैंने बहुत सारी लड़कियों से सेक्स किया है, उन्हें मज़ा आता है, तुम्हें क्यों नहीं आता?

मैं मन ही मन में डर गई कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है? कहीं मैं पूर्ण रूप से औरत हूँ भी या नहीं?

अब मैं किससे पूछती? मेरी सारी सहेलियाँ तो कुंवारी थी।

फिर मैं वापिस पीहर आ गई, पढ़ने लगी। मेरा काम यही था, गर्मी की छुट्टियों में ससुराल जाकर चुदना और फिर वापिस आकर पढ़ना। मेरे पति भी चेन्नई फेक्टरी में काम पर चले जाते, छुट्टियों में आ जाते।

अब मैं कॉलेज में प्राइवेट पढ़ने लग गई, तब मुझे पता चला कि मुझे आनन्द क्यूँ नहीं आता है। मेरे पति मुझे सेक्स के लिए तैयार करते नहीं थे, सीधे ही चोदने लग जाते थे और मुझे कुछ आनन्द आने लगता तब तक वो ढेर हो जाते। रात में सेक्स 5-7 बार करते, पर वही बात रहती।

फिर मैंने उनको समझाया- कुछ मेरा भी ख्याल करो, मेरे स्तन दबाओ, कुछ हाथ फिराओ !

अब तक मैंने कभी उनके लण्ड को कभी हाथ भी नहीं लगाया था, अब मैंने भी उनके लण्ड को हाथ में पकड़ा तो वो फुफकार उठा। उन्होंने मेरे स्तन दबाये पेट और जांघों पर चुम्बन दिए, चूत के तो नजदीक भी नहीं गए।

मैंने भी मेरी जिंदगी में कभी लण्ड के मुँह नहीं लगाया था, मुझे सोच के ही उबकाई आती थी, अबकी बार उन्होंने चोदने का आसन बदला, अब तक तो वो सीधे-सीधे ही चोदते थे, इस बार उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और लण्ड घुसा दिया और हचक-हचक कर चोदने लगे।

मेरी टांगें मेरे सर के ऊपर थी, मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी पर चमत्कार हो गया, मुझे आनन्द आ रहा था, उनका सुपारा सीधे मेरी बच्चेदानी पर ठोकर लगा रहा था, मुझे लग रही थी पर आनन्द बहुत आया।

इस बार जब उन्होंने अपने माल को मेरी चूत में भरा तो मैं संतुष्ट थी। फिर मैंने अपनी टांगें ऊपर करके ही चुदाया, मुझे मेरे आनन्द का पता चल चुका था। फिर मेरे गर्भ ठहर गया, सितम्बर, 2000 में मेरे बेटा हो गया।

बेटा होने के बाद कुछ विशेष नहीं हुआ ! मैं प्राइवेट पढ़ती रही, मेरे पति साल में एक बार आते तब मैं ससुराल चली जाती और मेरे पति महीने डेढ़ महीने तक रहते, मैं उनके साथ रहती और जब वे वापिस चेन्नई जाते तो मैं अपने पीहर आ जाती। इसका कारण था कई लोंगो की मेरे ऊपर पड़ती गन्दी नज़र !

मेरे ससुराल में खेती थी, जब फसल आती तो वे मुझे मेरा हिस्सा देने के लिए बुलाते थे। लेकिन ज्यादातर मैं शाम को मेरे पीहर आ जाती थी।

एक बार मुझे रात को रुकना पड़ा, मैं मेरे घर पर अकेली थी, मेरे जेठों के घर आस पास ही थे, मेरी जिठानी ने कहा- तू अकेली कैसे सोएगी? डर जाएगी तू ! मेरे बेटे को अपने घर ले जा !

मेरे जेठ का बेटा करीब 18-19 साल का था, मैं 27 की थी, मैंने सोचा बच्चा है, इसको साथ ले जाती हूँ !

खाना खाकर हम लेट गए, बिस्तर नीचे ही पास-पास लगाए हुए थे, थोड़ी देर बातें करने के बाद मुझे नींद आ गई !

आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गई, मेरे जेठ का बेटा मेरे पास सरक आया था और एक हाथ से मेरा एक वक्ष भींच रहा था और दूसरे वक्ष को अपने मुँह में ले रहा था, हालाँकि ब्लाउज मैंने पहना हुआ था।

मेरे गुस्से का पार नहीं रहा, मैं एक झटके में खड़ी हो गई, लाइट जलाई और उसे झंजोड़ कर उठा दिया !

मेरे गुस्से की वजह से मुंह से झाग निकल रहे थे, वो आँखें मलता हुआ पूछने लगा- क्या हुआ काकी?

मुझे और गुस्सा आया मैंने कहा- अभी तू क्या कर रहा था?

पठ्ठा बिल्कुल मुकर गया और कहा- मैं तो कुछ नहीं कर रहा था।

मैंने उसको कहा- अपने घर जा !

वो बोला- इतनी रात को?

मैंने कहा- हाँ !

उसका घर सामने ही था, वो तमक कर चला गया और मैं दरवाजा बंद करके सो गई।

सुबह मैंने अपनी जेठानी उसकी माँ को कहा तो वो हंस कर बात को टालने लगी, कहा- इसकी आदत है ! मेरे साथ सोता है तो भी नींद में मेरे स्तन पीता है।

मैंने कहा- अपने पिलाओ ! आइन्दा मेरे घर सुलाने की जरुरत नहीं है !

मुझे उसके कुटिल इरादों की कुछ जानकारी मिल गई थी। उसकी माँ चालू थी, गाँव वालों ने उसे मुझे पटाने के लिए लालच दिया था इसलिए वो अपने बेटे के जरिए मेरी टोह ले रही थी। उसे पता था उसके देवर को गए दस महीने हो गए थे, शायद यह पिंघल जाये पर मैं बहुत मजबूत थी अपनी इज्जत के मामले में !

इससे पहले कईयों ने मुझ पर डोरे डाले थे, मेरे घर के पास मंदिर था, उसमें आने का बहाना लेकर मुझे ताकते रहते थे। उनमें एक गाँव के धन्ना सेठ का लड़का भी था जिसने कहीं से मेरे मोबाइल नंबर प्राप्त कर लिए और मुझे बार बार फोन करता। पहले मिस कॉल करता, फिर फोन लगा कर बोलता नहीं ! मैं इधर से गालियाँ निकलती रहती।

फिर एक दिन हिम्मत कर उसने अपना परिचय दे दिया और कहा- मैं तुमको बहुत चाहता हूँ इसलिए बार बार मंदिर आता हूँ।

मैंने कहा- तुम्हारे बीवी, बच्चे हैं, शर्म नहीं आती !

फिर भी नहीं माना तो मैंने उसको कहा- शाम को मंदिर में आरती के समय लाऊडस्पीकर पर यह बात कह दो तो सोचूँगी।

तो उस समय तो हाँ कर दी फिर शाम को उसकी फट गई। फिर उसने कहा- मुझे आपकी आवाज बहुत पसंद है, आप सिर्फ फोन पर बात कर लिया करें। मैं कुछ गलत नहीं बोलूँगा। मैंने कहा- ठीक है ! जिस दिन गलत बोला, बातचीत कट ! और मेरा मूड होगा या समय होगा तो बात करुँगी।

यह सुनते ही वो मुझे धन्यवाद देने लगा और रोने लगा और कहने लगा- चलो मेरे लिए इतना ही बहुत है ! कम से कम आपकी आवाज तो सुनने को मिलेगी !

मैं बोर होने लगी और फोन काट दिया। उसके बाद वो दो चार दिनों के बाद फोन करता, मेरा मूड होता तो बात करती वर्ना नहीं ! वो भी कोई गलत बात नहीं करता, मेरी तारीफ

करता। इससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी।

मेरा पति चेन्नई से नौकरी छोड़ कर आ गया था। मेरा बी.ए. हो चुका था, मैंने गाँव में स्कूल ज्वाइन कर लिया, टीचर बन गई वहाँ भी और टीचर मुझ पर लाईन मारते, पर मैंने किसी को घास नहीं डाली।

फिर मेरे पति को वापिस चेन्नई बुला लिया तो चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़ दिया और पीहर आ गई !

पर मेरी असली कहानी तो बाकी है।

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