कमाल की हसीना हूँ मैं -8

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai-8)

शहनाज़ खान 2013-04-30 Comments

This story is part of a series:

मेरे जिस्म पर कपड़ों का होना और ना होना बराबर था। सलमान ने एक तस्वीर इस मुद्रा में खींची।
तभी बाहर से आवाज आई… ‘क्या हो रहा है तुम तीनों के बीच?’
मैं आपा की आवाज सुनकर खुश हो गई। मैं जावेद की बाँहों से फ़िसलकर निकल गई।
‘आपा… समीना आपा देखो ना ! ये दोनों मुझे परेशान कर रहे हैं।’

मैं शॉवर से बाहर आकर दरवाजे की तरफ़ बढ़ना चाहती थी, लेकिन जावेद ने मेरी बाँह पकड़ कर अपनी ओर खींचा और मैं वापस उनके सीने से लग गई।

तब तक आपा अंदर आ चुकी थी। अंदर का माहौल देख कर उनके होंठों पर शरारती हंसी आ गई।
‘क्यों परेशान कर रहे हैं आप?’ उन्होंने सलमान को झूठमूठ झिड़कते हुए कहा- मेरे भाई की दुल्हन को क्यों परेशान कर रहे हो?’

‘इसमें परेशानी की क्या बात है। जावेद इसके साथ एक इंटीमेट फोटो खींचना चाहता था, सो मैंने दोनों की एक फोटो खींच दी।’ उन्होंने पोलैरॉयड की फोटो दिखाते हुए कहा।
‘बड़ी सैक्सी लग रही हो !’ आपा ने अपनी आँख मेरी तरफ़ देख कर दबाई।
‘एक फोटो मेरा भी खींच दो ना इनके साथ।’ सलमान ने कहा।

‘हाँ हाँ आपा ! हम तीनों की एक फोटो खींच दो। आप भी अपने कपड़े उतारकर यहीं शॉवर के नीचे आ जाओ !’ जावेद ने कहा।

‘आपा आप भी इनकी बातों में आ गईं?’ मैंने विरोध करते हुए कहा। लेकिन वहाँ मेरा विरोध सुनने वाला था ही कौन।

सलमान ने फटाफट अपने सारे कपड़े उतार कर टॉवल स्टैंड पर रख दिये। अब उनके जिस्म पर सिर्फ एक छोटी सी फ्रेंची थी। फ्रेंची के बाहर से उनका पूरा उभार साफ़ साफ़ दिख रहा था। मेरी आँखें बस वहीं पर चिपक गई।

वो मेरे पास आकर मेरे दूसरी तरफ़ खड़े होकर मेरे जिस्म से चिपक गये। अब मैं दोनों के बीच में खड़ी थी। मेरी एक बाँह जावेद के गले में और दूसरी बाँह सलमान के गले पर लिपटी हुई थी। दोनों मेरे कंधे पर हाथ रखे हुए थे। सलमान ने अपने हाथ को मेरे कंधे पर रख कर सामने को झुला दी जिससे मेरा एक स्तन उनके हाथों में ठोकर मारने लगा।

जैसे ही आपा ने शटर दबाया सलमान जी ने मेरे स्तन को अपनी मुठ्ठी में भर लिया और मसल दिया। मैं जब तक संभलती तब तक तो हमारा ये पोज़ कैमरे में कैद हो चुका था।

इस फोटो को सलमान ने संभाल कर अपने पर्स में रख लिया। सलमान तो हम दोनों के चुदाई की भी तस्वीरें लेना चाहता था, लेकिन मैं एकदम से अड़ गई। मैंने इस बार उसकी बिल्कुल नहीं चलने दी।

इसी तरह मस्ती करते हुए कब चार दिन गुजर गये पता ही नहीं चला।

हनीमून पर सलमान को मेरे संग और चुदाई का मौका नहीं मिला। बेचारे अपना मन मसोस कर रह गये। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

हनीमून मना कर वापस लौटने के कुछ ही दिनों बाद मैं जावेद के साथ मथुरा चली आई। जावेद उस कंपनी के मथुरा विंग को संभालता था। मेरे ससुर जी दिल्ली के विंग को संभालते थे और मेरे जेठ जी उस कंपनी के रायबरेली के विंग के सी-ई-ओ थे।

दिल्ली में घर वापस आने के बाद सब तरह-तरह के सवाल पूछते थे। मुझे तरह-तरह से तंग करने के बहाने ढूँढते। मैं उन सबकी नोक-झोंक से शरमा जाती थी।

मैंने महसूस किया कि जावेद अपनी भाभी नसरीन से कुछ अधिक ही घुले मिले थे। दोनों एक-दूसरे से काफी मजाक करते और एक-दूसरे को छूने की या मसलने की कोशिश करते। मेरा शक यकीन में तब बदल गया जब मैंने उन दोनों को अकेले में एक कमरे में एक दूसरे के आगोश में देखा।

मैंने जब रात को जावेद से बात की तो पहले तो वो इंकार करता रहा लेकिन बार-बार जोर देने पर उसने स्वीकार किया कि उसके और उसकी भाभी के बीच में जिस्मानी ताल्लुकात भी हैं। दोनों अक्सर मौका ढूँढ कर सैक्स का लुत्फ़ उठाते हैं।

उसकी इस कबूलियत ने जैसे मेरे दिल पर रखा पत्थर हटा दिया। अब मुझे ये ग्लानि नहीं रही कि मैं छिप-छिप कर अपने शौहर को धोखा दे रही हूँ। अब मुझे यकीन हो गया कि जावेद को किसी दिन मेरे जिस्मानी ताल्लुकातों के बारे में पता भी लग गया तो कुछ नहीं बोलेंगे। मैंने थोड़ा बहुत दिखावे का रूठने का नाटक किया तो जावेद ने मुझे पुचकारते हुए वो मंज़ूरी भी दे दी। उन्होंने कहा कि अगर मैं भी किसी से जिस्मानी ताल्लुकात रखूँगी तो वो कुछ नहीं बोलेंगे।

अब मैंने लोगों की नजरों का ज्यादा ख्याल रखना शुरू किया। मैं देखना चाहती थी कि कौन-कौन मुझे चाहत भरी नजरों से देखते हैं। मैंने पाया कि घर के तीनों मर्द मुझे कामुक निगाहों से देखते हैं। ननदोई और ससुर जी के अलावा मेरे जेठ जी भी अक्सर मुझे निहारते रहते थे।

मैंने उनकी इच्छाओं को हवा देना शुरू किया। मैं अपने कपड़ों और अपने पहनावे में काफी खुलापन रखती थी। अंदरूनी कपड़ों को मैंने पहनना छोड़ दिया। मैं सारे मर्दों को अपने जिस्म के भरपूर जलवे करवाती। जब मेरे कपड़ों के अंदर से झाँकते मेरे नंगे जिस्म को देख कर उनके कपड़ों के अंदर से लंड का उभार दिखने लगता तो ये देख कर मैं भी गीली होने लगती और मेरे निप्पल खड़े हो जाते। लेकिन मैं इन रिश्तों का लिहाज करके अपनी तरफ़ से चुदाई की हालत तक उन्हें आने नहीं देती।

एक चीज़ जो दिल्ली आने के बाद पता नहीं कहाँ और कैसे गायब हो गई पता ही नहीं चला। वो थी हम दोनों की शॉवर के नीचे खींची हुई फोटो। मैंने मथुरा रवाना होने से पहले जावेद से पूछा मगर वो भी पूरे घर में कहीं भी नहीं ढूँढ पाया।

मुझे जावेद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। पता नहीं उस नंगी तस्वीर को कहाँ रख दिया था। अगर गलती से भी किसी और के हाथ पड़ जाये तो?

खैर हम वहाँ से मथुरा आ गये। वहाँ हमारा एक शानदार मकान था। मकान के सामने गार्डन और उसमें लगे तरह-तरह के फूल एक दिलकश तस्वीर पेश करते थे। दो नौकर हर वक्त घर के काम-काज में लगे रहते थे और एक माली भी था।

तीनों गार्डन के दूसरी तरफ़ बने क्वार्टर्स में रहते थे। शाम होते ही काम निबटा कर उन्हें जाने को कह देती क्योंकि जावेद के आने से पहले मैं उनके लिये बन संवर कर तैयार रहती थी।

मेरे वहाँ पहुँचने के बाद जावेद के काफी सब-ऑर्डीनेट्स मिलने के लिये आये। उसके कुछ दोस्त भी थे। जावेद ने मुझे खास-खास कॉन्ट्रेक्टरों से भी मिलवाया। वो मुझे हमेशा एकदम बनठन के रहने के लिये कहते थे। मुझे सैक्सी और एक्सपोज़िंग कपड़ों में रहने के लिये कहते थे। वहाँ पार्टियों और गेट-टूगेदर में सब औरतें एकदम सैक्सी कपड़ों में आती थी।

जावेद वहाँ दो क्लबों का मेम्बर था, जो सिर्फ बड़े लोगों के लिये थे। बड़े लोगों की पार्टियाँ देर रात तक चलती थीं और पार्टनर्स बदल-बदल कर डाँस करना, शराब पीना, उलटे-सीधे मजाक करना और एक दूसरे के जिस्म को छूना आम बात थी।

शुरू शुरू में तो मुझे बहुत शर्म आती थी। लेकिन धीरे-धीरे मैं इस माहौल में ढल गई। कुछ तो मैं पहले से ही चंचल थी और पहले गैर मर्द, मेरे ननदोई ने मेरे शर्म के पर्दे को तार-तार कर दिया था। अब मुझे किसी भी गैर मर्द की बाँहों में जाने में ज्यादा झिझक महसूस नहीं होती थी।

जावेद भी तो यही चाहता था। जावेद चाहता था कि मुझे सब एक कामुक उत्तेजनाजनक औरत के रूप में जानें।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
3568

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top