चूची से जीजाजी की गाण्ड मारी-1

अलीशा सुधा 2014-05-28 Comments

सुधा
हैलो दोस्तो, मेरा नाम वही है जो भारत की कुमारी कन्याओं का होता है। सुविधा के लिए चुदासी सहेलियाँ मुझे सुधारस की ख़ान बुला सकती हैं !
मेरी दीदी रेखा की शादी बुरहानपुर में अभी तीन महीने पहले हुई थी। मेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी हैं।
शादी के बाद पहली बार मेरे मदन जीजाजी दीदी को विदा कराने महीने भर पहले आए थे, उस समय वो केवल एक दिन ही रुके थे।
उस समय उनसे बहुत बातें तो नहीं हुईं लेकिन मेरी भोली-भाली दीदी अपने पति के बारे में वह सब बता गई, जो नई-नई ब्याहता नहीं बता पातीं।
उसने बताया कि वे बड़े सेक्सी हैं और कामकला में पारंगत हैं, उनका ‘वो’(लौड़ा) बड़ा मोटा है। पहली बार बहुत दर्द हुआ था।
उस समय दीदी की बातें सुनकर ना जाने क्यों जीजाजी के प्रति मेरी उत्सुकता बहुत बढ़ गई थी। मैं सोचती उनका लौड़ा न ज़ाने कितना बड़ा और लंबा होगा..!
बात-बात में मैंने बड़े अंतरंग क्षणों में जीजाजी की यह बात अपनी सहेली कामिनी को बता दिया।
उसको तो सेक्स के सिवा कुछ सूझता ही नहीं था। उस बुर-चोदी ने मेरे साथ लैस्बो चुदाई का खेल खेलते हुए मुझे जीजाजी से चुदवाने के सभी गुर सिखाना शुरू कर दिए।
वह खुद भी अपने जीजाजी से फँसी है और उनसे चुदवाने का कोई अवसर नहीं छोड़ती है, उसने अपने ट्यूशन के टीचर को भी पटा रखा है, जिससे वह अपनी खुजली मिटवाती रहती है।
उससे मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। वह बहुत ही मिलनसार और हँस-मुख लड़की है लेकिन सम्भोग उसकी कमजोरी है और उसको वह बुरा नहीं मानती है।
उसका मानना है कि ईश्वर ने स्त्री-पुरुष को इसीलिए अलग-अलग बनाया है कि वे आपस में चुदाई का खेल खेलें; सेक्स करने के लिए ही तो नर और मादा को अलग-अलग बनाया है।
उसका यह भी मानना है कि यह सब करते हुए कुंवारी कन्या को बहुत चालाक होना चाहिए, नहीं तो वह कभी भी फंस सकती है और बदनाम भी हो सकती है।
कल मेरी मम्मी ने बताया कि रेखा का फोन आया था कि मदन एक हफ्ते के लिए ऑफिस के काम से यहाँ शुक्रवार को आ रहे हैं। रेखा उनके साथ नहीं आ पाएगी, उसके यहाँ कुछ काम है।
उन्होंने हिदायत देते हुए कहा- तेरे पापा तो दौरे पर गए हुए हैं, अब तुझे ही उनका ख्याल रखना होगा। रेखा का ऊपर वाला कमरा ठीक कर देना, परसों से मैं भी जल्दी कथा सुन कर आ जाया करूँगी। वैसे वह दिन में तो ऑफिस में ही रहेगा, सुबह-शाम मैं देख लूंगी।
जीजाजी परसों आ रहे हैं यह जानकर मन अनजानी ख़ुशी से भर उठा, मेरा बदन बार-बार बेचैन हो रहा था और पहली बार उनसे कैसे चुदवाऊँगी इसका ख्वाब देखने लगी।
दीदी से तो मैं यह जान ही चुकी थी कि वे बड़े चुदक्कड़ हैं।
मैं आपको बता दूँ कि मेरे पापा जो इंजीनियर हैं, उन्होंने मेरा और दीदी का कमरा ऊपर बनवाया है। ग्राउंड-फ्लोर पर मम्मी-पापा का बड़ा बेडरूम, ड्राइंग-रूम, रसोई, स्टोर, गेस्ट-रूम, बरामदा, लॉन तथा पीछे छोटा सा बगीचा है।
ऊपर और कमरे हैं जो लगभग खाली ही रहते हैं क्योंकि मेरे बड़े भैया-भाभी अमेरिका में रहते हैं और बहुत कम ही दिनों के लिए ही यहाँ आ पाते हैं।
वे जब भी आते हैं, अपने साथ बहुत सी चीज़ें ले आते हैं। इसलिए कंप्यूटर, टीवी, डीवीडी प्लेयर, हैंडी-कैम इत्यादि सभी चीज़ें हैं।
मेरी भाभी भी बड़े खुले विचारों की हैं और अमेरिका जाते समय अपने अलमारी की चाभी देते हुए बता गईं थीं कि देखो, अलमारी में कुछ एडल्ट सीडी, डीवीडी और एल्बम रखे हैं, पर तुम उन्हें देखना नहीं.. और उन्होंने मुस्कराते हुए चाभी मुझे पकड़ा दी थी।
जीजाजी शुक्रवार को सुबह 8 बजे आ गए, जल्दी-जल्दी तैयार हुए नाश्ता किया और अपने ऑफिस चले गए।
दोपहर ढाई बजे वे ऑफिस से लौटे, खाना खाकर ऊपर दीदी के कमरे में जाकर सो गए।
उसके बाद मम्मी मुझसे बोलीं- बबुआ जी सो रहे हैं, मैं सोचती हूँ कि जाकर कथा सुन आऊँ… चमेली आती ही होगी, तुम उससे बर्तन धुलवा लेना।
बबुआ जी सो कर उठ जाएँ, तो चाय पिला देना और अल्मारी से नास्ता निकाल कर करवा देना।
मुझे ये सब निर्देश देकर वो कथा सुनने चली गईं।
मेरी बर्तन मांजने वाली चमेली मेरी हम-उम्र है और हमेशा हँसती-बोलती रहती है।
मम्मी के जाते ही मैं ऊपर गई, देखा जीजाजी अस्त-व्यस्त से सो रहे हैं, उनकी लुंगी से उनका लण्ड झाँक रहा था। शायद सपने में वे ज़रूर बुर का दीदार कर रहे होंगे, तभी तो उनका लौड़ा खड़ा था।
मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी सी फ़ैल गई। मैं कमरे से निकल कर बारजे में आ गई। सामने पार्क में एक कुत्ता-कुतिया की बुर चाट रहा था। फिर थोड़ी देर बाद वह कुतिया के ऊपर चढ़ गया और अपना लौड़ा उसकी बुर में अन्दर-बाहर करने लगा।
ओह क्या चुदाई थी..!
उनकी चुदाई देख कर मेरी बुर पनिया गई और मैं अपनी बुर को सहलाने लगी।
थोड़ी देर बाद कुत्ता के लण्ड को कुतिया ने अपनी बुर में फँसा लिया। कुत्ता उससे छूटने का प्रयास करने लगा। इस प्रयास में वह उलट गया। वह छूटने का प्रयत्न कर रहा था, लेकिन कुतिया उसके लौड़े को छोड़ नहीं रही थी। यह सब देख कर मन बहुत खराब हो गया। फिर जीजाजी की तरफ ध्यान गया और मैं जीजाजी के कमरे में आ गई।
जीजाजी जाग चुके थे, मैंने पूछा- चाय ले आऊँ..!
“नहीं..! अभी नहीं… सर दर्द कर रहा है, थोड़ी देर बाद..लाना..!” फिर मुस्करा कर बोले- साली के रहते हुए चाय की क्या ज़रूरत?”
“हटिए भी..! लाइए आप का सर दबा दूँ.!” मैं उनका सर अपनी गोद में लेकर धीरे-धीरे दबाने लगी।
फिर उनके गाल को सहलाते हुए बोली- क्या साली चाय होती है कि उसको पी जाएँगे?
जीजाजी मेरी आँखों मे आँखें डाल कर बोले- गर्म हो तो पीने में क्या हर्ज है?
और उन्होंने मुझे थोड़ा झुका कर कपड़े के ऊपर से मेरे चूचियों को चूम लिया।
मैंने शरमा कर उनके सीने पर सिर छुपा लिया।
उस समय मैं शर्ट व स्कर्ट पहनी थी और अन्दर कुछ भी नहीं। उनके सीने पर सर रखते ही मेरे मम्मे उनके मुँह के पास आ गए और उन्होंने कोई चूक नहीं की, उन्होंने शर्ट के बटन खोल कर मेरी करारी चूचियों के चूचुकों को मुँह में ले लिया।
मेरी सहेलियों मैं आप को बता दूँ कि मेरी सहेली कामिनी ने कई बार मेरी चूचियों को मुँह में लेकर चूसा है, लेकिन जीजाजी से चुसवाने से मेरे शरीर में एक तूफान उठ खड़ा हुआ।
मैंने जीजा जी को चूची ठीक से चुसवाने के उद्देश्य से अपना बदन उठाया तो पाया कि जीजाजी का लण्ड लुंगी हटा कर खड़ा होकर हिल रहा था, जैसे वह मुझे बुला रहा हो ..कि आओ मुझे प्यार करो..!
ओह माँ..! कितना मोटा और कड़क लौड़ा था। मैंने उसे अपने हाथों में ले लिया।
मेरे हाथ लगाते ही वह मचल गया कि मुझे अपने होंठों में लेकर प्यार करो।
मैं क्या करती, उसकी तरफ बढ़ना पड़ा क्योंकि मेरी मुनिया भी जीजाजी का प्यार चाह रही थी। जैसे ही मैंने लौड़े तक पहुँचने के लिए गोद से जीजाजी का सर हटाया और ऊपर आई, जीजाजी ने स्कर्ट हटा कर मेरी बुर पर हाथ लगा दिया और चूम कर उसे जीभ से सहलाने लगे।
ओह.. जीजाजी का लौड़ा कितना प्यारा लग रहा था, उसके छोटे से होंठ पर चमक रही प्री-कम की बूँदें कितनी अच्छी लग रही थीं कि मैं बता नहीं सकती। लौड़ा इतना गर्म था कि जैसे वह लावा फेंकने ही वाला हो।
उसे ठण्डा करने के लिए मैंने उसे अपने मुँह में ले लिया। लौड़ा लंबा और मोटा था इसलिए हाथ में लेकर मैं पूरे सुपारे को चूसने लगी। जीजाजी बुर की चुसाई बड़े मन से कर रहे थे और मैं जीजाजी के लौड़े को ज़्यादा से ज़्यादा अपने मुँह में लेने की कोशिश कर रही थी, पर वह मेरे मुँह मे समा नहीं रहा था।
मैंने जीजाजी के लौड़े को मुँह से निकाल कर कहा- हाय जीजाजी..! यह तो बहुत ही लंबा और मोटा है..!
“तुम्हें उससे क्या करना है?” जीजाजी चूत से जीभ हटा कर बोले।
अब मैं अपने आपे में ना रह सकी, उठी और बोली- अभी बताती हूँ चोदू लाल, मुझे क्या करना है..!
मैं अब तक चुदवाने के लिए पागला चुकी थी। मैंने उनको पूरी तरह नंगा कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर उनके ऊपर आ गई। बुर को उनके लौड़े के सीध में करके अपने यौवन-द्वार पर लगा कर नीचे धक्का लगा बैठी लेकिन चीख मेरे मुँह से निकली- ओह माँ..! मैं मरी…!”
जीजाजी ने झट मेरे चूतड़ दोनों हाथों से दबोच लिए, जिससे उनका आधा लण्ड मेरी बुर में फंसा रह गया और वे मेरी चूची को मुँह में डालकर चूसने लगे।
चूची चूसे जाने से मुझे कुछ राहत मिली और मेरी चूत चुदाई के लिए फिर से कुलबुलाने लगी एवं चूतड़ हरकत करने लगे।
तब तो चुदवाने के जोश में इतना सब कुछ कर गई लेकिन लेकिन अब आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन मुनिया चुदवाने के लिए लगातार मचल रही थी।
मैं जीजाजी के होंठ चूम कर बोली- जीजाजी ऊपर आ जाओ न..!
“क्या छोड़ोगी नहीं..?”
“नहीं छोडूँगी अपने चुदक्कड़ राजा को..!”
बिना बुर से लौड़ा निकाले वे बड़ी सफाई से पलटे और मैं नीचे और वे ऊपर और लण्ड मेरी बुर में…, जो अब थोड़ी नरम हो गई थी। उन्होंने मेरे होंठ अपने होंठ में ले लिए और बुर से लौड़ा निकाल कर एक जबरदस्त शॉट लगा दिया।
उनका पूरा लौड़ा सरसराते हुए मेरी बुर में घुस गया।

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दर्द से मैं बेहाल हो गई..!
मेरी आवाज़ मेरे मुँह में ही घुट कर रह गई, क्योंकि मेरे होंठ तो जीजाजी के होंठ में फंसे थे।
होंठ चूसने के साथ वे मेरी चूचियों को प्यार से सहला रहे थे। फिर वे चूचियों को एक-एक करके चूसने लगे, जिससे मेरी बुर का दर्द कम होने लगा।
प्यार से उनके गाल को चूमते हुए मैं बोली- तुमने अपनी साली के बुर का कबाड़ा कर दिया ना..!
“क्या करता साली साहिबा अपनी बुर की झांट को साफ कर चुदवाने के लिए तैयार हुई जो बैठी थी..!”
“जीजाजी आप को ग़लतफहमी हो गई मेरे बुर पर बाल है ही नहीं !”
प्रिय पाठकों आपकी मदमस्त सुधा की रसभरी कहानी जारी है। आपके ईमेल की प्रतीक्षा में आपकी सुधा बैठी है।
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