बेशर्म साली-2

(Besharam Saali- Part 2)

चूतेश 2018-07-14 Comments

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मेरी सेक्सी कहानी में आपने अभी तक पढ़ा कि ससुराल की रिश्तेदारी में एक शादी थी, वहां मेरी बड़ी साली रेखा आई हुई थी, बहुत खूबसूरत चोदने लायक माल… वो भी चुदासी ही दिख रही थी. मैंने उसे अगले दिन के किसी होटल में जाकर बात करने के लिए बोला तो उसने कोई जवाब नहीं दिया, मतलब वो तैयार थी.
अब आगे:

अगली सुबह मैं तो 8 बजे ही जूसी रानी को सोता छोड़कर होटल की तलाश में चल दिया. फरवरी की मीठी मीठी सर्दी में रात को शादी के माहौल में सब लोग देर से ही सोये थे, इसलिए कोई भी जगा हुआ नहीं मिला. लॉन में जाकर पहले तो दो कप चाय पी और फिर बाहर निकल के एक रिक्शा पकड़ा. रिक्शा वाले से पूछा कि यहाँ नज़दीक कोई अच्छा सा होटल है क्या. वो बोला कि हाँ साहिब पास में ही बेगम पुल पर होटल विजय बार है वहां ले चलूँ? मैंने कहा कि चल देखूं कैसा होटल है. 

विजय बार एंड होटल उसका नाम था. जहाँ हम ठहरे हुए थे, वहां से रिक्शा से पांच मिनट से भी कम के फासले पर था. बहुमंज़िला इमारत थी. रिसेप्शन पर जाकर पता किया तो रूम मिल सकते थे. किराया भी कोई ज़्यादा महंगा नहीं था. मैंने रूम देखने को कहा तो उन्होंने एक रूम खोल कर दिखा दिया. रूम काफी अच्छा था. साफ सुथरा, अच्छा साफ़ बाथरूम और अच्छे साफ़ सफ़ेद तौलिये. मैंने रूम बुक करवा दिया, मिस्टर एंड मिसेज़ राज कुमार के नाम से, और बोला कि ग्यारह बजे के करीब चेक-इन करेंगे. वह अच्छा ज़माना था, होटल बुक करने के लिए आजकल की तरह कोई आइडेंटिटी प्रूफ, कोई एड्रेस प्रूफ नहीं देना पड़ता था. बस नाम लिखो, कुछ एडवांस पेमेंट करो और रूम आपका. 

वापिस आया तो साढ़े आठ बजे थे. कमरे में आया तो जूसी रानी गहरी नींद में थी. यह बहुत महत्वपूर्ण था. अगर जगी हुई होती तो वह ज़रूर पूछती कि इतनी सुबह सर्दी में कहाँ और क्यों जा रहे हो. 

10 बजे तक लोग तैयार होकर नाश्ते के लिए आने लगे थे. मैं तो तैयार पहले ही हो गया था. जूसी रानी भी तकरीबन तैयार हो ही चुकी थी. नाश्ता बाहर लॉन में बढ़िया धूप में लगा था.

रेखा और वो कुत्ता शशि कांत भी वहां मिल गए. रेखा बहुत ही कामुक लग रही थी. एकदम सेक्स बम. हरामज़ादी ने बड़े भड़कीले मैरून रंग की प्रिंट वाली पटियाला सलवार और हल्की गुलाबी शमीज़ डाल रखी थी. गले में गहरे गुलाबी रंग का दुपट्टा और पैरों में बेल बूटेदार, सुर्ख जयपुरी जूतियां. मौका मिलते ही मैंने उसको बोल दिया कि होटल विजय बार बिलकुल पास में है वहां ग्यारह बजे मिलेंगे, दिल खोल के बहुत सी बातें करेंगे.
मैंने कहा- बाहर निकल के रिक्शा ले लेना, चार पांच मिनट में होटल आ जायगा. उसने सिर हिला दिया किन्तु बोली कुछ नहीं.

नाश्ते के दौरान जैसे ही उसने मौका देखा तो मेरे पास आयी और बोली- तुम लोग कितना हल्ला गुल्ला करते हो… रात भर सोने नहीं दिया तुम दोनों के शोर ने… सारी दुनिया को पता लग गया होगा कि आप किरण को जूसी रानी कहते हैं.

मैंने हंसकर कहा- रेखा जी, आप क्यों जाग रही थी उस टाइम… आपको भी शायद शशिकांत जी सोने नहीं दे रहे होंगे. अगर आप सोई होती तो शोर आपको कहाँ सुनाई पड़ता… और पता चल गया जूसी रानी का नाम तो चलने दो क्या फर्क पड़ता है.
रेखा के चेहरे पर दुःख की एक गहरी छाया दौड़ गई. शायद मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था. 

नाश्ते के बाद मैंने जूसी रानी से कहा कि मेरठ में मेरा एक दोस्त रहता है प्रदीप, मैं उससे मिलने जा रहा हूँ. वैसे भी शाम तक तो कुछ काम है नहीं. बारात आएगी 8 बजे, उसके पहले ही आ जाऊंगा. तू आराम से अपनी चचेरी ममेरी बहनों से गप्पें मार.
जूसी रानी ने कहा- ठीक है तू जा अपने दोस्त के पास. मैं तो सोने जा रही हूँ… तूने बहुत ही ज़्यादा तंग किया था रात भर… सारा बदन दुःख रहा है. दो चार घंटे नींद लूंगी तो ठीक रहेगा.

करीब पौने ग्यारह बजे मैं होटल जा पहुंचा और लॉबी में बैठ कर रेखा का इंतज़ार करने लगा. पंद्रह बीस मिनट के बाद रेखा आ गई.         

मैं उठकर उसके पास चला गया और उसको रूम में साथ ले चलने लगा. रेखा ने कहा- अरे आपने तो रूम ले लिया… मैं तो समझी थी हम रेस्टोरेंट में बैठ कर बातचीत करेंगे.’

मैंने कहा- रेखा जी जो बातचीत करनी है वह रेस्टोरेंट में नहीं हो सकती… उसके लिए तो कमरा ही चाहिए… रेस्टोरेंट में करनी होती तो वहीं कर लेते न… यहाँ क्यों आपको आने की तकलीफ देता. आइये रूम में चलिए.’

हम रूम की तरफ चल दिए जो कि फर्स्ट फ्लोर पर था. रास्ते में मैंने रेखा से पूछा- आप क्या बहाना लगा के आईं होटल में? मैंने तो जूसी रानी से कहा कि एक दोस्त से मिलने जा रहा हूँ.
रेखा ने हँसते हुए कहा- मैंने भी इनसे यही कहा कि मेरी स्कूल में साथ पढ़ी एक सहेली है जो मेरठ में रहती है… उसको मिलना चाहती हूँ.

हम दोनों अपनी बहानेबाज़ी पर हँसते हुए रूम तक पहुँच गए. रूम नंबर 102 का लॉक खोल कर मैं अंदर घुसा फिर रेखा को अंदर आने का इशारा किया.

रेखा जैसे ही अंदर घुसी मैंने बिजली की तेज़ी से दरवाज़ा बंद करके उसको ज़ोर से आलिंगन में बांध लिया और अपने तपते होंठ उसके होंठों से लगा दिए. मैंने इतना कस के भींचा था और इतने ज़ोर से होंठ से होंठ चिपकाए थे कि रेखा को शायद साँस घुटती महसूस हुई क्यूंकि थोड़ी देर मचलने के बाद उसको खांसी आ गयी. मैंने थोड़ी पकड़ ढीली की और होंठ हटा लिए. उसने जल्दी जल्दी गहरी गहरी साँसें लीं और फिर बोली- यहाँ बातचीत करने बुलाया था या मेरा दम घोंटने को… और यह क्या हरकत की? अगर किसी को भनक भी पड़ गई तो क्या हशर होगा कुछ ध्यान भी है आपको… मेरी तो इज़्ज़त का जनाज़ा निकल जायगा… बताइये क्यों बुलाया था… और हाँ ज़रा दूर से.

मैंने हँसते हुए कहा- रेखा तू इतनी भोली तो न बन… तू दूध पीती बच्ची नहीं है… यहाँ होटल में बुलाया था तो इतनी तुझ में भी समझ तो है कि होटल में रामायण का पाठ तो नहीं करेंगे… पाठ तो होगा ज़रूर लेकिन कामदेव का.
इतना बोल के मैंने फिर से उसको दबोच लिया और होंठ चूसने लगा.

उसको बाँहों में बांधे बांधे सरकता हुआ मैं बिस्तर तक जा पहुंचा और उसको लिए लिए बेड पर आ गया. अब तक उसने भी प्रतिरोध करने का नाटक बंद कर दिया था और अपनी सुलगती हुई चूत की बात मान कर मज़े से होंठ चुसवाने लगी. अपनी टांग उसने मेरी टांग के ऊपर लपेट ली और उसके नाख़ून मेरी पीठ में चुभने लगे. अब वो भी मुझे कस के लिपटी हुई थी. 

थोड़ी देर चुम्बन के बाद अचानक रेखा ने अलग किया और खड़ी होकर बोली- रुकिए ज़रा… सारी कमीज़ मुस मुसा जायेगी… थोड़ी सी तो मुस भी गयी.
उसने अपने कपड़ों को हाथ से तह करके ठीक करना शुरू किया. मैंने उसके कन्धों पर हाथ रख कर उसको बिस्तर पर बिठा दिया और नीचे बैठ कर उसकी जयपुरी जूतियां उतार दीं.

जूतियों की गिरफ्त से आज़ाद होते ही उसके खूबसूरत पैरों ने मेरा मन मोह लिया. पहले मैंने जूतियां सूंघी जिनमें उसके पांवों की नशीली महक आ रही थी. आआ आआआह! 
रेखा बोली- यह क्या कर रहे हैं आप… छोड़िये इन जूतियों को.
मैं बोला- आपके इन हद से ज़्यादह सुन्दर पैरों की खुशबू ले रहा हूँ इन जूतियों में… काश मैं ये जूती होता तो आपके इन मादक चरणों से लिपटा तो रहता हर समय!

रेखा ख़ुशी से झूम उठी और बोली- अच्छा महाराज… डायलॉग बहुत हो गए अब बताइये कौनसा पाठ पढ़वाने को बुलाया था?
उसकी शराबी सी आँखों में हवस के लाल लाल डोरे तैर रहे थे. जो मैंने उसकी जूतियां सूंघ कर उसके पांवों की प्रशंसा की उससे उसकी कामेच्छा और भी अधिक भड़क उठी थी.             

लौड़े ने पूरी तरह अकड़ के चार पांच तुनके मार कर सूचना दी कि हाँ उसको भी जूतियों से आयी हुई रेखा के पैरों की सुगंध से मज़ा आया. लेकिन रेखा की बात से और उसकी आँखों से यह साफ़ लग रहा था कि वो चुदने के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना चाहती. तभी तो पाठ पढ़ने की बात शुरू की थी कुलटा ने. माँ की लौड़ी को अभी अच्छे से पढ़ाऊंगा कामदेवता का मस्त पाठ. हरामज़ादी बाकी के सब पाठ भूल जायगी.   

मैंने उठकर रूम की बत्तियां बुझा दीं, केवल बेड की साइड में रखा हुआ टेबल लैंप जलने दिया. टेबल लैंप की रोशनी वासना को बहुत तीव्र करने वाली होती है इसलिए होटलों में बेड की दोनों तरफ टेबल लैंप रखे जाते हैं. यह मद्धम रोशनी वासना तो भड़काती ही है, आँखों को भी सुहाती है. 

मैं फिर फर्श पर लगे गलीचे पर बैठ गया और रेखा की पटियाला सलवार का कमरबंद खोल दिया. रेखा अपनी कुहनियों के बल अधलेटी सी थी. आराम से उसने सलवार खोल लेने दीं. कुछ देर तक मैं स्तब्ध सा उसकी रेशम जैसी चिकनी मुलायम टांगों की सुंदरता आँखों में बसाता रहा, फिर रेखा को हौले से उठाकर उसकी शमीज़ भी उतार डाली. रेखा ने शर्म से आँखें बंद कर रखी थीं परन्तु ज़रा सा भी प्रतिरोध नहीं कर रही थी. उसके बदन में कंपकंपी छूट रही थी. अब वह सिर्फ ब्रा और चड्डी में थी.

वाह! वाह! वाह! माशाअल्लाह… क्या बदन था हरामज़ादी का. एकदम परफेक्ट! उसकी नाभि अधिकतर नाभियों के भांति भीतर घुसी हुई नहीं थी बल्कि बाहर उभरी हुई थी. ऐसा लगता था किसी नवजात शिशु की नन्ही सी लुल्ली हो. 

मेरे मुंह से खुद ब खुद इस गीत की कुछ पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए निकल गयीं. यह गाना लड़की की कामुक सौंदर्य का बखान करने के लिए सबसे उत्तम है. पाठकों को सलाह है कि यह पूरा गीत यू ट्यूब पर ज़रूर देखें अपनी माशूका के साथ नंगे लेट कर और उसे कहें कि यह गाना मैं तेरे लिए गाना चाहता था लेकिन मेरी आवाज़ इतनी अच्छी नहीं है, इसलिए मोहम्मद रफ़ी की मस्त आवाज़ में यह तेरी नज़र करता हूँ. फिर देखिये क्या ज़बरदस्त, भेजा उड़ा देने वाला मज़ा वो आपकी लौंडिया चुदाई में देगी.
 
चेहरा है जैसे झील में हँसता हुआ कमल.
         या ज़िन्दगी के साज़ पे छेड़ी हुई ग़ज़ल.  
जान ए बहार तुम किसी शायर का ख्वाब हो 
        चौदहवीं का चाँद हो, या आफताब हो 
जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो!

रेखा मुनमुनाई- झूठे कहीं के. शायरी के साथ झूठ बोल रहे हैं.
किन्तु उसके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि वो ख़ुशी से फूली नहीं समां रही थी. मादरचोद जानती तो थी ही कि वह एक बहुत सुन्दर लौंडिया है.

मैं बोला- ना ना रेखा, झूठ ज़रा भी नहीं. सच तो यह है कि मैंने तेरी पूरी जनम कुंडली जान ली है और इसी लिए वह गाना तेरे लिए एकदम सही बैठता है.

रेखा ने आँखें खोल लीं, और उचक के बैठ गयी. ‘अच्छा जी… आप क्या ज्योतिषी भी हैं? अभी परखती हूँ आपको… बताइये क्या हैं मेरी जनम कुंडली?

आशा है यह वृतांत आपको अच्छा लग होगा. अपनी राय लिखना न भूलियेगा.
धन्यवाद
चूतेश

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