बेशर्म साली-1

(Besharam Saali- Part 1)

चूतेश 2018-07-13 Comments

This story is part of a series:

अन्तर्वासना पढ़ने वालों की सेवा में चूतेश के लंड के इकतीस तुनकों की सलामी!

यह कहानी जो मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, वह मेरी सगी वाली साली रेखा से मेरे शारीरिक सम्बन्ध जुड़ने की दास्तान है. रेखा को लेकर दो कहानियां पहले भी अन्तर्वासना में छप चुकी हैं. पहली थी
एक लौड़े से दो चूतों की चुदाई
जो 01-10-2015 को छपी थी और दूसरी थी
सगी बहन की सौतन रेखा रानी
जो 20-09-2017 को प्रकाशित हुई थी.
पाठकों पाठिकाओं से निवेदन है कि वो दोनों कहानियां भी पढ़ लें तो रेखा रानी वाला किस्सा बेहतर समझ पायंगे और उसका बेहतर आनन्द भी ले पायंगे.

यह बात काफी साल पहले की है. मेरी और जूसी रानी की शादी के करीब तीन या चार महीने के बाद की. शादी के दौरान जूसी रानी की बहन रेखा और उसके पति शशिकांत से एक बार परिचय तो हुआ था लेकिन शादी की भागमभाग में सब दिमाग से निकल गया था. सिर्फ यह याद था कि जूसी रानी की एक उसके जैसी ही सुन्दर सी, सेक्सी सी बहन है. तब तो सिर्फ जूसी रानी के पेटीकोट में मैं हर वक़्त घुसा रहता था और उसकी बुर के जूस के फुव्वारों में डूबा रहता था. 

हमारी शादी के तीन चार महीने बाद इन दोनों की चचेरी बहन की शादी भी थी मेरठ में. जूसी रानी ने हुक्म दे दिया था कि हमें शादी में जाना है, हर फंक्शन में अटेंड करना है और वापिस लौटने की कोई जल्दी नहीं मचानी है. इसलिए मैंने दस दिन की छुट्टी ले ली और शादी से दो दिन पहले और दो दिन बाद तक वहां रहने का प्लान बना लिया. यह तय हुआ कि शादी की बाद हम लोग बाकी की छुट्टी अपने अपने साले रितेश के घर पर बिताएंगे.
पाठकों को याद दिला दूँ कि यह वही रितेश है जिसकी बेटी रीना रानी है, जिसकी चूत का उद्घाटन मैंने ही किया था.   

खैर शादी से दो दिन पहले मैं और जूसी रानी मेरठ पहुँच गए शाम के चार साढ़े चार बजे. उन्होंने ठहरने का अच्छा इंतज़ाम कर रखा था. शहर के बाहरी इलाके में एक मैरिज हाल में सब घर वालों के रुकने का था और वहीं शादी के सभी रस्मो रिवाज़ होने थे.
बारातियों के रुकने के लिए नज़दीक के ही एक होटल में किया गया था.

मैरिज हाल एक काफी बड़े लॉन में था. उसमें दो बैंक्वेट हाल थे: एक छोटा, एक बड़ा और 16 कमरे थे. शादी के लिए बड़ा वाला बैंक्वेट तय किया गया था और भोजन बाहर लॉन में. कमरे तो परिवार वाले मेहमानों को दे दिए गए. बुड्ढे लोग, बिन ब्याहे लड़के और लड़कियों के लिए छोटे वाले बैंक्वेट में फर्श पर बिस्तर बिछा दिए गए थे. एक तरफ लड़के लोग, दूसरी तरफ लड़कियां और हा हा हा हा दोनों के बीच में बुज़ुर्ग लोग, ताकि कोई भी कुछ गड़बड़ न कर सके. उस ज़माने में आजकल जैसा खुलापन नहीं था. 

रेखा और शशिकांत हमसे पहले आ चुके थे. वो अपने दोनों बच्चे अपनी सास के पास छोड़ के दोनों मियां बीवी ही आए थे. तो हमको एक कमरा दे दिया गया, जो रेखा वाले कमरे के बगल वाला था. तब मैंने रेखा को भली भांति देखा. कम्बख्त क्या गज़ब की क़ातिल जवानी थी. पटियाला कट सलवार और प्रिंट की शमीज़, पांव में जूतियाँ. हल्का सा मेकअप, गले में सोने की चैन, कलाइयों में गुलाबी चूड़ियां और एक एक सोने का कंगन. पैरों में चांदी की खन खन की आवाज़ करने वाली पायजेब.  

जूसी रानी और रेखा दोनों बहनें बेहद सुन्दर तो थी हीं, कामुक भी बहुत थीं. एक सी कद काठी, एक सी हसीन बाहें, एक से खूबसूरत हाथ और पैर. रेखा बहुत गोरी चिट्टी थी परन्तु जूसी रानी जैसी अँगरेज़ सरीखी गोरी नहीं. जूसी रानी के सामने तो वो काली दिखती थी. उसके चूचे जूसी रानी के चूचों से काफी बड़े और भारी थे.

जैसे ही उससे आँखें चार हुईं, मुझे फ़ौरन मालूम हो गया कि इस क़यामत को चोदना तो पड़ेगा ही, वर्ना चैन नहीं मिलेगा. उसकी आँखों में मैंने तैरती हुई जो नंगी वासना देखी उससे यह भी पक्का हो गया कि उसको पटाने में ज़्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी. 

उसका महा चूतिया पति शशिकांत. मेरे सामने कहीं से कहीं ठहरता ही नहीं था. साला पांच फुट पांच इंच का मरियल सा आदमी. औरतों जैसी पतली आवाज़. हाथ मिलाया तो पिलपिला सा हाथ. बहन का लंड एक मरदाना छिपकली सा लगता था. उधर मैं घाट घाट का पानी पिया हुआ पांच फुट ग्यारह इंच का हट्टा कट्टा, हैंडसम आदमी जिसके बदन से ताकत फूटी पड़ती थी. कोई तुलना थी ही नहीं. यह तो पक्का था कि रेखा जैसी कामुक पटाखे को झेलना शशि कांत के बस का रोग तो था नहीं. इसका अर्थ यह हुआ कि जूसी रानी की यह बहन एक ज़ोरदार मर्दानी चुदाई के लिए तरसती रहती होगी.

शाम को ज़्यादातर मेहमान छोटे वाले बैंक्वेट में जमा हो गए. चाय पकोड़ों के दौर चलने लगे, जैसा शादियों में हुआ करता है. जूसी रानी अपने रिश्तेदारों से गप्पे मरने में व्यस्त हो गई. रेखा मेरे आस पास मंडराती रही. दो तीन बार चाय लाकर भी दी. शशिकांत भी साथ बैठा था और कुछ कुछ बोले जा रहा था. मैं भी उस चूतिये को झेलता हुआ हूँ हाँ हूँ हाँ किये जा रहा था जबकि मेरा पूरा ध्यान रेखा पर केंद्रित था. उसके एक एक हाव भाव को, उसकी चाल को, उसके बदन के हर एक अंग को बड़े गौर से देख रहा था और अपने बेसाख्ता अकड़े हुए लौड़े को गहरी गहरी साँसें लेकर बिठाने की चेष्टा कर रहा था. 

बार बार मैं उसे अपनी तरफ देखता हुआ पाता. जब भी आँखें मिलतीं तो वह निगाह पलट लेती. कभी माथे पर आयी हुई अपने बालों की लट को वापिस सिर तक ले जाती, नाज़ुक से सुन्दर से हाथों से. कभी अपने कानों के बुंदों को कुछ करती, तो कभी बैठ के अपने पैरों के बिछुओं के साथ कुछ घसर पसर करती. मैं उसकी नज़रों में भयंकर काम वासना बिजली की तरह कौंधती हुई देख रहा था.

कई बार मैंने उसको अपने लौड़े वाली जगह पर ताकते हुए पाया जैसे अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही हो कि मेरी पैंट के पीछे जो औज़ार छुपा है वो कैसा है, कितना लम्बा है, कितना मोटा है. इसमें तो कोई संदेह था ही नहीं कि ये हरामज़ादी चुदने को बेक़रार थी. सवाल ये था कि कहाँ और कैसे. और दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये था कि पहल कैसे की जाए. उसने तो सब संकेत दे दिए थे तो अब यह जिम्मेदारी मेरी थी कि पहला क़दम उठाऊँ और चुदाई के लिए कोई जगह का इंतज़ाम भी करूं. 

किस्मत से यह मौका जल्दी ही मिल गया. हुआ यह कि डिनर से पहले सबने कहा कि एक ग्रुप फोटो हो जाए. सब लोग ग्रुप फोटो के लिए फोटोग्राफर की सुझाई हुई जगह पर इकट्ठे होने लगे. बच्चे लोग बैठ गए. उनके पीछे बुज़ुर्ग लोग कुर्सियों पर बिठा दिए गए. उनके पीछे बचे हुए लोग खड़े हो गए. जूसी रानी और रेखा साथ साथ खड़ी थीं लेकिन मैं उन दोनों के बीच घुस गया. शशिकांत भी मेरी देखा देखी रेखा की दूसरी तरफ खड़ा हो गया. फोटोग्राफर ने सबको दाएं बाएं सरका कर एडजस्ट किया ताकि सबकी फोटो आ जाए.

जब तक वो यह सेटिंग जमा रहा था, मैंने एक हाथ जूसी रानी के नितम्बों पर फेरना शुरू किया और दूसरे हाथ से रेखा के नितम्ब सहलाने लगा. जूसी रानी ने ज़ोर से मेरी बांह पर नोचा. मैंने और ज़ोर से उसके चूतड़ दबाये. जूसी रानी ने दो तीन बार नोच कर हथियार डाल दिए. वह जानती थी कि मैं रुकने वाला नहीं तो मज़े से चूतड़ दबवाने का मज़ा क्यों न लिया जाए. वैसे भी उसको मेरी छेड़ छाड़ में, चूतड़ या चुची या जांघें सहलवाने में बड़ा आनन्द आता है, जबकि सब लड़कियों की तरह ऊपर से नक़ली गुस्सा दिखाती है.
रेखा ने कुछ नहीं कहा, न ही मेरा हाथ हटाने की कोशिश की, वो चुपचाप नितम्ब पर हाथ फिरवाती रही. 

मैं उसके मुलायम नितम्ब सहला रहा था और उसके शरीर में बार बार एक तेज़ झुरझुरी आ रही थी. मैं समझ गया था कि उसकी चूत बुरी तरह से सुलगने लगी है. परन्तु चुदाई के लिए तो अभी प्रबंध करना बाकी था. मैं दिमाग दौड़ा रहा था कि क्या किया जाए.

खैर फोटो सेशन पूरा हुआ और सब लोग डिनर के लिए चल दिए. डिनर बाहर लॉन में लगाया गया था. वहां जाते हुए जूसी रानी ने फिर से मेरी बांह पर चुटकी काट कर फुसफुसाते हुए कहा- ये क्या बदमाशी कर रहा था तू… हैं? बहनचोद आराम से फोटो नहीं खिंचवा सकता था?
मैंने कहा- डार्लिंग जूसी रानी, तेरे साथ तो हर वक़्त ऐसी बदमाशी करने का मन करता रहता है, तो बोल क्या करूँ?

“चुप रह कमीने… लोग देख लेते तो क्या सोचते… कुछ तो ध्यान रखा कर कि कहाँ है, किसके सामने है!”
मैंने कहा- जूसी रानी…. जूसीरानी… कौन देखता… या तो शादीशुदा मर्द देखते तो उनको भी अकल आ जाती कि अपनी पत्नियों को कैसे प्यार करना चाहिए… अगर शादीशुदा लड़कियां देखती तो वो अपने पतियों को डांटती कि कमीने ऐसे प्यार किया जाता है… और अगर कुंवारे लड़के या लड़कियां देख लेती तो उनको पता चल जाता कि कैसे इश्क़ लड़ाना चाहिए… इसमें प्रॉब्लम क्या है सबके फायदे का दृश्य होता न.

जूसी रानी ने नक़ली गुस्से से कहा- और बुड्ढे लोग देखते तो?
मैंने हँसते हुए कहा- बहनचोद अगर बुड्ढे लोग देखते तो साले अफ़सोस करते कि क्यों ज़िन्दगी में अच्छे से प्यार नहीं किया… कसमें खाते कि अगले जनम में बेहिसाब प्यार करेंगे. जवानी बर्बाद नहीं होने देंगे.

जूसी रानी ने आँखें तरेर के कहा- हरामी, तुझ से बातों में आज तक कोई जीता है जो मैं अपना दिमाग ख़राब करूँ… मैं जा रही हूँ उर्मिल दीदी से बातें करने… तू चुपचाप अच्छा बच्चे की तरह यहाँ बैठ… मैं थोड़ी देर में आती हूँ फिर खाना साथ खाएंगे… और हाँ फिर कोई बदमाशी नहीं करियो…समझ गया न?
मैंने कहा- जी हाँ मैडम जूसी रानी जी, अच्छा बच्चा बन के बैठा रहूंगा आपके आने तक. और कोई हुकुम रानी जी का?

लॉन में पहुँच कर जूसी रानी उर्मिल दीदी से बातचीत में लग गयी. इधर रेखा मेरे पास आयी और बोली- वहां क्या गड़बड़ कर रहे थे आप… कितने सारे लोग थे… देख लेते तो कितनी बदनामी होती न!
मैं बोला- मैंने कुछ नहीं किया… आपके पति शशिकांत ने किया होगा.
रेखा की हंसी छूट गई, बोली- वो तो अकेले में भी ऐसा नहीं करते तो सबके सामने क्या करेंगे… दूसरे आप यह बताइये कि अगर अपने कुछ नहीं किया तो आपको क्या पता कि मैं किस गड़बड़ की बात कर रही हूँ.

मैंने कहा- रेखा जी, कान पकड़ता हूँ कि आगे से ऐसी गड़बड़ किसी के सामने नहीं करूँगा.
रेखा- अच्छा जी… मतलब यह कि गड़बड़ करनी ज़रूर है… यही हुआ न आपकी बात का मतलब?
मैं- अच्छा अब खाना खा लें या गड़बड़ पुराण ही चलता रहेगा… रेखा जी आपसे बहुत सी बातें करनी हैं… यहाँ इतनी भीड़ भाड़ में तो हो नहीं पायँगी… कल दिन में तो कुछ काम है नहीं… क्यों न किसी होटल में मिल लें और तसल्ली से बातें करें.
रेखा ने इठलाते हुए कहा- राज जी, कल की कल देखी जायगी.

इतना बोल के वह भी जूसी रानी की तरह इधर उधर सरक ली किसी से गप्पें चोदने. बहनचोद इन लड़कियों को गपास्टिक चोदने में कितना आनन्द आता है. घंटों बिना थके गप्पें लगा सकती हैं.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उसने यह नहीं कहा कि होटल में क्यों जाना है… यहीं बात क्यों नहीं हो सकती… ऐसी क्या बातें हैं जिसके लिए होटल में जाना ज़रूरी है… वग़ैरा, वग़ैरा.

मेरा पहला क़दम बिल्कुल सही था, तीर निशाने पर लगा था. वो तैयार थी होटल में चलने के लिए. तैयार न होती तो यह न कहती कि कल की कल देखेंगे बल्कि साफ़ साफ़ मना कर देती.
अब मुझे होटल का इंतज़ाम करना था. सुबह सबसे पहले यही करने का फैसला कर लिया. अभी अगर रात के साढ़े दस न बज गए होते तो इसी वक़्त कोई होटल तलाश कर लेता. 

खैर कुछ समय के बाद जूसी रानी उर्मिल दीदी से फ्री होकर आ गयी और हम लोग खाना खाने बैठ गए. डिनर के बाद जैसे ही कमरे में गए तो मैंने तीन चार घंटों से अकड़े लौड़े की वजह से टट्टों में होते हुए दर्द से विचलित होकर जूसी रानी की जम के चुदाई की. बहन की लौड़ी को तीन बार चोदा.

उसकी चूत से हमेशा की भांति जूस की ज़बरदस्त बरसात हुई. रोज़ की तरह खूब दिल खोल के पिया वह अलौकिक रस. यारों तभी तो उसका नाम जूसी रानी रखा है. सोचा कि अगर इसकी बहन रेखा भी रस निकालने की ऐसी ही चैंपियन हुई तो बहनचोद मज़ा आ जायगा. लंड ने भी फ़ौरन फुदक के अपनी सहमति जताई. 

वैसे तो वह चुदाई के बाद सोना चाहती है लेकिन रेखा को चोदने, भोगने, चूसने के ख्यालों के कारण मैं बहुत अधिक भड़का हुआ था, तो मैंने उसको सोने नहीं दिया. पहली चुदाई के बाद जैसे ही उसको आंख लगी तो मैंने उसके घुटनों के पीछे जीभ फिराई. कूँ कूँ कूँ करके जग गई और झट से चुदाई को तैयार.
दूसरी चुदाई के बाद उसकी नींद लगते ही मैंने उसकी नाभि में जीभ फिराई तो उसका भी वही नतीजा निकला जो पहले निकला था. ऊँऊँऊँऊँऊँ… जूसी रानी फिर से मचल गई चुदने के लिए.
चुदाई में वह शोर भी बहुत मचाती है. ज़ोर ज़ोर से किलकारियां मारना, चोदन सुख में मदमस्त होकर आहें भरना और चीखें निकालना, बार बार मेरा नाम लेकर चिल्लाना, ज़ोर ज़ोर से धक्के ठोकने की गुहार लगाना उसकी आदत है. जब वह इतनी आवाज़ करती है तो मैं भी उत्तेजना से भर के जूसी रानी… जूसी रानी चिल्लाता हूँ, खासकर झड़ते समय तो और भी ज़्यादा.  

अगले दिन क्या और कैसे हुआ, मेरी साली की चुत चुदाई की कहानी के अगले भाग में पढ़ें!

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