तेरा साथ है कितना प्यारा-4

(Tera Sath Hai Kitna Pyara -4)

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अपनी योनि को अच्छी तरह धोने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आई तो देखा आशीष अपना नाईट सूट पहनकर टीवी देखने लगे।

मैं भी अब पहले से बहुत अच्छा अनुभव कर रही थी, आते ही आशीष की बगल में लेटकर टीवी देखने लगी। पता ही नहीं लगा कि कब मुझे नींद आ गई।

सुबह जब मैं जगी तो बिल्कुल फ्रेश थी आज का दिन मुझे अपनी ससुराल में सबसे अच्छा लग रहा था।
आशीष फैक्ट्री चले गये, मैं अपने रोजमर्रा के कामों से फ्री होकर दिन में फिर से सो गई।

आज उम्मीद थी कि फिर से कुछ नया होगा।

मैंने शाम को फ्री होते ही नहा धोकर मेकअप किया, अच्छी साड़ी पहनकर तैयार हुई, लिप्स्टिक, आई लाइनर और पता नहीं क्या-क्या रगड़ डाला चेहरे पर।आखिर आशीष को आकर्षित जो करना था।

हुआ भी वही, आशीष शाम को फैक्ट्री से घर आये जैसे ही मुझे देखा एकदम बोले- नयना… आज तो सच में पटाखा लग रही हो। लगता है घायल करने के मूड में हो…

मैं मन ही मन बहुत खुश थी, रात को मिलने वाले सुख की आशा में रोमाँचित भी।

रात का खाना खाकर मैं जल्दी से कमरे में आई और नाइट गाऊन पहन कर आशीष का इंतजार करने लगी।कुछ देर मम्मी पापा के साथ समय बिताने के बाद आखिर आशीष भी कमरे में आ ही गये।

मैंने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया, पर आज कमरे में आते ही उन्होंने दरवाजा बंद किया और मुझे गले से लगाते हुए बोले- तुम इतनी सुन्दर हो मुझे तो अंदाजा ही नहीं था। मैं भी आने वाले सुखद पलों को सोचते सोचते उनकी बाहों में सिमट गई, उन्होंने अपने होंठ मेरे तपते हुए होंठों पर रख दिये।

हालांकि मैं भी यही चाहती थी परन्तु आशीष की तरफ से इस तरह के अप्रत्याक्षित हमले के लिये मैं तैयार नहीं थी, मैं बिदककर उनसे दूर हट गई।

आशीष किसी शिकारी की तरह मुझे पर झपटे, और मुझे बाहों में लेकर बिस्तर पर गिर गये।

हाययय… आशीष तो पागलों की तरह मुझे चूमने लगे, मेरा नाइट गाउन उन्होंने उतार फेंका, अब तो मैं भी इस कामानन्‍द के लिये तैयार हो चुकी थी, मैं भी आशीष की शर्ट के बटन खोलने लगी।

आशीष ने मेरी मदद की और शर्ट उतार फेंकी, बनियान उन्होंने खुद ही उतार दी।
मेरे सामने आशीष ऊपर से नंगे थे, मैं भी उनके सामने सिर्फ पैंटी में थी।

पिछली रात वाला खेल हम दोनों के बीच फिर से शुरू हो गया, आज मैं भी थोड़ा थोड़ा साथ देने लगी।

फिर आज भी वो ही हुआ आशीष ने मेरे पूरे बदन को इतना चूमा और चाटा कि मेरा योनि रस टपकने लगा, मैं उठी बाथरूम में जाकर फ्रैश हुई, वापस आकर देखा आशीष बिल्कुल नार्मल मूड में नाइट सूट पहनकर टीवी देख रहे थे। मैं भी उनके साथ टीवी देखते देखते सो गई।

अब तो यही हम दोनों की रतिचर्या बन गई।

आशीष रोज रात को मेरे बदन का भरपूर मर्दन करके मुझे डिस्चार्ज कर देते और मैं संतुष्ट होकर सो जाती।

धीरे धीरे ऐसे ही कुछ महीने बीत गये, अब मैं भी आशीष से खुलकर बात करने लगी।

आखिर अब मैं इस घर में नई नहीं थी, अपना अधिकार समझने लगी थी, अब आशीष का यह व्यवहार मुझे कुछ अजीब लगने लगा था, आशीष का सैक्स करने का तरीका मेरे ज्ञान से कुछ अजीब था पर मैं बहुत चाहकर भी आशीष से इस बारे में बात नहीं कर पा रही थी।

हाँ यह जरूर था कि आशीष के साथ रोज रात को मैं खुलकर खेल लेती थी और शायद मैं उससे संतुष्ट भी थी पर अब ज्यादा पाने की चाहत होने लगी थी।एक दिन मैंने खुद ही एक मजबूत निर्णय लिया, मैंने दिन भर कुछ सोचा और रात को उस पर अमल करने का निर्णय लिया।

उस रात को मैं रोज की तरह नहा धोकर अच्छे से तैयार होकर आशीष का इंतजार करने लगी। आशीष की अपनी नित्यचर्या को पूरा करके रात को 10 बजे अपने कमरे में आये।

अन्दर आते ही उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे होंठों पर एक प्यारी सी चुम्मी दी। मैंने भी बढ़कर उनका स्वागत किया और बदले में उससे भी प्यारी चुम्मी उनके होंठों पर दी।

हम लोग बिस्तर पर बैठकर बातें करते करते टी वी देख रहे थे। धीरे से आशीष से एक हाथ आगे बढ़ाकर मेरी गोलाइयों को सहलाना शुरू कर दिया।

मुझे आशीष का यों सहलाना सदा से बहुत पसन्द है, मैं आशीष की ओर थोड़ा झुक गई ताकि उनको आसानी हो, हुआ भी यही… अब आशीष को आसानी हुई और उन्होंने मेरे गाऊन को आगे से खोलकर अपने दोनों हाथों में मेरे दुग्धकलश थाम लिये।आहह… हहहहहह… क्या अहसास थाॽ

मैंने कस कर आशीष को पकड़ लिया और अपने होंठ आशीष को होंठों से सटा दिये।

आशीष मेरे होंठों का कामुक रस पीने लगे और दोनों हाथों से मेरे गोरे और बड़े स्तनों की घुंडियों को सहला रहे थे। माँऽऽऽऽ…रे… क्या सुखद अनुभूति थी ! उसको बयान करना भी मुश्किल था।

आशीष से मेरे गाऊन के बचे हुए बटन भी खोल दिये और गाऊन को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। आशीष मेरे बांयें कान के नीचे लगातार चूमते जा रहे थे।

मेरे पूरे बदन में गुदगुदी होने लगी।
आशीष को मेरा गोरा बदन चाटना बहुत पसन्द था और मुझे चटवाना।

मैंने भी धीरे धीरे-आशीष की कमीज के बटन खोलकर उनके बदन से अलग कर दिया, बनियान आशीष ने खुद ही उतार दी।

अब वो भी सिर्फ एक पायजामा और अंडरवीयर में थे। आशीष मेरी गर्दन को चूमते और चाटते जा रहे थे, धीरे धीरे उनके होंठों ने मेरे बांये चुचुक पर कब्जा जमा लिया दायाँ चुचुक अभी भी उनकी ऊँगलियों के बीच में मचल रहा था।ऊफ्फ्फ… क्या कामुक अहसास था… आशीष का दांया हाथ मेरी पैंटी के अन्दर जा चुका था।

मैंने आज सुबह ही खास आशीष के लिये अपनी योनि के चारों ओर के बालों को हटाकर उसको बिल्कुल मक्खन जैसी चिकनी बनाया था मैं चाहती थी कि आज आशीष पूरा ध्यान मेरी इस चिकनी चमेली पर ही हो।

आशीष अपने एक हाथ से मेरी इस चिकनी चमेली को सहला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों से खेल रहे थे, उनके होंठों का रस लगातार मेरे चुचूकों पर गिर रहा था।

आशीष ने पता नहीं कब मेरी पैंटी भी निकाल दी। अब मैं पूरी नंगी होकर अपना रूप यौवन आशीष की नजरो में परोसने लगी।

आशीष मुझे अति कामुक नजरों से देख रहे थे जिसका असीम आनन्द मैं लगातार अनुभव कर रही थी।

मेरा पूरा बदन कांप रहा था, मैं अपने हाथों से आशीष को सहला रही थी। आज मैं आशीष को इतना गरम कर देना चाहती थी कि वो आज मेरे काम जीवन के अधूरेपन को खुद ही पूरा कर दें।

मैंने आशीष को बिस्तर पर गिरा लिया, अब मैं आशीष के ऊपर आ गई, मैंने आशीष के होंठों को अपने होंठों में लेकर ऐसे ही चूसना शुरू कर दिया जैसे आशीष कल तक मेरे होंठों को चूसते थे।

उनके होंठों का कामुक रस जैसे मेरे बदन में आग लगा रहा था मैं तो खुद ही इस आग में जलने को तैयार थी। मैंने आशीष की गर्दन और छाती को चूमना शुरू कर दिया।

जिस तरह आशीष मेरे बदन तो सिर से पैर तब चूमते थे आज वो ही मैं करने लगी उनके साथ। आहहहह… इस बार सिसकारी आशीष ने ली।

मुझे आशीष को ऐसे प्यार करना अच्छा लग रहा था। मैंने अपनी दोनों चूचियों को आशीष के बदन पर रगड़ना शुरू कर दिया। सीईईईईई… मैं तो जैसे जन्नत में थी।

आज सब उल्टा हो रहा था आशीष ने अति उत्तेजना में बिस्तर की चादर को पकड़ लिया। मैं तो आशीष के ऊपर चढ़कर बैठ गई। अपने स्तनों को आशीष के बदन पर रगड़ते रगड़ते मैं आशीष की छाती से होते हुए पेट पर आ गई और बड़ी अदा के साथ आशीष के पायजामे को नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

आशीष भी नितम्ब उठाकर मेरा साथ देने लगे। आशीष के नितम्ब ऊपर होते ही मैंने तेजी आशीष का पायजामा निकाल कर फेंक दिया।

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