सुहागरात- एक लंड की चाहत-2

(Suhagraat Ek Lund Ki Chahat-2)

शालू 2012-04-08 Comments

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मैं अपनी ही चूत को देखकर शर्म से पानी हो गई… और भाभी के गले लग गई, उनको चूमने लग गई और साथ साथ बोले ज़ा रही थी- यू आर ग्रेट… यू हव डन अ वंडरफुल जॉब…

फ़िर मेरा विवाह बहुत धूमधाम से हुआ, विवाह में निशी की पहचान अजय सी हो गई थी। मैं विदा हुई और ससुराल आ गई।

हमारे यहाँ रिवाज़ है कि पहली रात को देवताओं की पूजा होती है इसलिए सुहागरात उससे अगली रात को मनाई ज़ाती है।

अगली रात को मुझे अजय के कज़न की पत्नी ने सजाया, मुझे लाल रंग का लहंगा-चोली पहनाया और फ़िर मुझे हमारे कमरे में छोड़ आई… तभी गर्म दूध का एक लोटा और मेवों की प्लेट भी रख गई।

भाभी ने अजय को आँख मारी- दुल्हन बहुत नाज़ुक है… सारी रात है तुम दोनों के पास… बस थोड़ा धीरे धीरे…

अजय ने भाभी के चरण छूकर आशीर्वाद लिया और भाभी खिलखिलाती हुई कमरे से बाहर चली गई और बाहर से कुण्डी भी बंद करती गई।

अजय ने मेरा स्वागत किया और मुँह दिखाई में मुझे घड़ी दी। कुछ देर तक वो मेरी घर परिवार की बातें करते रहे, मैंने पाया कि वो बहुत अच्छे स्वभाव के व्यक्ति हैं। फ़िर उन्होंने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखा तो मेरे शरीर में एक करेंट सा दौड़ गया।

फ़िर उन्होंने मेरी ज्वेलरी उतारने में मदद की और मुझे अपने बहुपाश में कस लिया। मैं तो इस बाहों के बंधन में ही बहुत उल्लासित हो गई।

अजय ने उठकर लाइट बंद कर दी और नीले रंग का एक छोटा नाइट लैम्प जला दिया, उससे माहौल एकदम सेक्सी बन गया।

हमने लोटे से ही एक बार अजय और एक बार मैंने दूध पिया, ड्राइ फ्रूट भी प्यार वाले तरीके से खाए। अजय मेरे होंठों के बीच बादाम देते थे, मैं उसका आधा हिस्सा कुतर लेती थी, बाकी आधा हिस्सा वो मेरे होंठों से खुद ले लेते थे और खा लेते थे।

अब मैं और अजय एक दूसरे से काफ़ी खुल गए थे, अजय ने मेरी चोली और लहंगा उतार दिया और खुद भी अपना कुर्ता और पाजामा भी…

मुझे बहुत शर्म आ रही थी क्योंकि मेरे नीचे के दोनों वस्त्र बहुत छोटे और पारभासक थे। मेरे बहुत विरोध करने के बावजूद भी इतनी छोटी और आरपार दिखने वाले अन्तःवस्त्र लेने पड़े मुझे… निशी की जिद पर!

गुलाबी रंग की पैंटी थी, जो मेरी चूत को भी शायद नहीं ढक पा रही थी… और लाल रंग की लेस वाली जालीदार ब्रा… जिसमें मेरी सुडौल चूचियाँ आधी से ज़्यादा बाहर दिख रही थी।

मैंने अजय के कसरती बदन देखा… और यह भी देखा कि उनका लंड अब तक कुछ तन गया था… अजय ने मेरे गोल मटोल बूब्स की तारीफ़ की, कहा- वाह, तुम तो ज़न्नत की हूर हो!

अब ड्राइ फ्रूट प्लेट में सिर्फ़ तीन छुहारे बचे थे… अजय ने एक छुहारा मेरे मुँह में आधा दिया, मैंने उसको अपने दांतों से कस कर पकड़ लिया… अजय अपना मुँह मेरे होंठों के नज़दीक लाए और बाकी का आधा अपने मुँह से पकड़ लिया… मैं उनके मुँह का अपनी मुँह से स्पर्श पाकर सिहर उठी थी…

उन्होंने उस छुहारे को काटने के लिए बहुत ज़ोर से अपना मुँह पीछे किया, मैं उस अप्रत्याशित झटके के लिए तैयार नहीं थी, मैं धड़ाम से जाकर अजय की गोदी में गिर गई… मेरे बूब्स जो अब तक नुकीले हो चुके थे… पहली अजय के चौड़ सीने से टकराए और फ़िर गोदी से…

इस छीना झपटी में दोनों के मुँह से वो छुहारा निकल गया और सीधा अजय के अण्डरवीयर पर लिंग के उभार पर टिक गया। यह देख कर हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े… अजय ने फट से मेरा चेहरा अपने अंडरवीयर पर झुकाया मुझे होंठों से उस छुहारे को मुंह में लेने को कहा।

मेरा नाक सीधे इनके लण्ड से टकराया और लौड़े की एक मादक सी गन्ध मेरे नथुनों में घुस गई। मैंने अपने होंठों से छुहारे को उठाया और झट से उसको चबा लिया और ऐसा इशारा किया कि मैं आधा छुहारा अजय के लिए मुँह से निकाल रही हूँ…

अजय बोले- डियर, तुम खाओ इस छुहारे को! मेरे पास अब भी दो हैं प्लेट में! मैं उन दोनों को खाऊँगा पर यहाँ रख कर!

मेरे बूब्स को छूते हुए और मेरी चूत पर ऊँगली रखते हुए बोले वो!

शालिनी- धत्त… बहुत बदमाश हो… मुझे शर्म लगती है ये सब करते हुए!

अजय अपने लण्ड को छूते हुए बोले- मेरे यहाँ से खाते हुए तो कोई शर्म नहीं आई?

और तुरंत एक छुहारा मेरी ब्रा की अंदर कसे हुए बूब्स के बीच में डाल दिया… मेरे दोनों उरोजों को अपने दोनों हाथों से कस कर एक दूसरे के नज़दीक मिला दिया और फ़िर चूहारे को जैसे मेरे दोनों स्तनों से पीस देंगे, इस तरह मसलने लग गए…

और मैं शर्म सी दोहरी हुए ज़ा रही थी… मेरे अपने हाथों से उनके हाथ हटाने की कोशिश कर रही थी और उस कोशिश में मेरे दोनों हाथों में पहनी हुई चूड़ियाँ एक मधुर और मादक ख़न… खन्न… तन्न्न… की आवाज़ वाला संगीत पैदा कर रही थी…

मुझे निशी ने एक बार एक सेक्स फिल्म दिखाई थी जिसमें हीरो अपना लंड हिरोईन के मोटे चूचों के बीच डाल कर घिस रहा था और दोनों को बहुत आनन्द आ रहा था। मेरे दिमाग़ वो नजारा याद आ गया और मुझे भी मेरे बूब्स के दो पाटों वाली चक्की से पिसते हुए छुहारे में बहुत आनन्द आ रहा था। और छुहारा तो कुछ खुरदुरा होता ही है… तो उसका खुरदरापन मुझे बहुत आनन्दित कर रहा था।

अजय ने मेरे ब्रा में हाथ डाला छुहारा निकाला और गप्प से अपने मुँह में रख लिया…

तभी मेरे फ़ोन की घण्टी बज़ी, मैंने देखा कि निशी का फ़ोन था… मैंने काट दिया…
अजय ने मुझे कहा- किस यार का फोन है? उठा लो ना! शायद बेचारे को पता नहीं होगा कि तुम्हारी शादी हो गई है…

मैंने अपनी आँखें अजय की तरफ तरेरी ही थी कि फोन फ़िर से बजने लग गया…

मैंने बहुत गुस्से से कहा- निशी, तुझे मालूम है ना कि आज़ हमारी सुहागरात है, तुझे शर्म नहीं आती हमें तंग करते हुए?

तब तक अजय ने फ़ोन मेरे हाथ से छीन लिया और बोले- साली साहिबा, क्या साढू भाई घर पर नहीं हैं जो नींद नहीं आ रही?

यह कहते हुए अजय ने सेल स्पीकर मोड पर कर दिया।

निशी- वो आज़ कुछ ज्यदा थके हुए हैं, फटाफट काम निपटाया और सो गए… आप सुनाओ कहाँ तक पहुँची आपकी सुहागरात…? मुझे एक शेर याद आ रहा था तो मैंने फोन लगाया कि तुम दोनों को सुना दूँ…

ऐ ग़ालिब तू गोरों पर ही क्यों मरता है… मंजिले मक़सूद तो सबकी काली है…

कहानी जारी रहेगी।
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