पति की सहमति से परपुरुष सहवास-2

(Pati Ki Sahmati Se Par Purush Sahvas- Part 2)

टी पी एल 2016-08-21 Comments

This story is part of a series:

लेखिका: लीना वर्मा
संपादक एवं प्रेषक: तृष्णा प्रताप लूथरा

अंकल दरवाज़े के पास खड़े होकर कुछ देर तक सोचते रहे और फिर मुझसे बोले- लीना तुम्हा क्या विचार है? क्या तुम भी वही चाहती हो जो रवि कह कर गया है?

जब मैंने अपने सिर को हिलाते हुए सकारात्मक उत्तर दिया तब अंकल सीढ़ियों का दरवाज़ा बंद करके सोफे पर आकर बैठ गए।

अंकल के सोफे पर बैठते ही मैं उन्हें अपने शरीर की गर्मी से उन्हें अवगत कराने के लिए थोड़ा सरक कर उनके शरीर से सट कर बैठ गई।

मुझे ऐसा करते देख कर अंकल मेरी मंशा को समझ गए और मुझसे पूछा- लीना, क्या तुम आज से ही मेरे साथ सम्भोग शुरू करना चाहती हो या फिर किसी और दिन से शुरू करने का इरादा है?

मैंने अंकल की आँखों में झांकते हुए कहा- मेरा तो मानना है कि किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने में कभी भी देर नहीं करनी चाहिए। अगर आप अभी नहीं करना चाहते तो फिर जब आप कहेंगे तब से शुरू कर लेंगे?

लगभग पांच मिनट चुपचाप बैठने के बाद अंकल ने कहा- लीना, रात बहुत हो रही है और तुम सहवास शुरू करना चाहती हो तो फिर हमें ऐसे खाली बैठ कर समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। तुम ही बताओ कि कैसे शुरू किया जाए?

मैंने कहा- अंकल, मैं क्या कहूँ? जैसा आप कहते हैं, वैसा ही शुरू कर लेते हैं।

मेरी बात सुनते ही अंकल ने पहले मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और फिर मुझे उठा कर अपने बैडरूम में ले गए।

हम दोनों के बैड पर बैठते ही अंकल ने मुझे अपनी ओर खींच कर अपनी छाती से चिपका लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ पर रख कर उन्हें चूमने लगे।
मैं भी उनका साथ देने लगी और उन्हें चूमती हुई उनके मुँह में अपनी जीभ डाल दी।

अंकल ने मेरी जीभ चूसी और फिर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी जिसे मैंने बहुत ही प्यार और मस्ती से काफी देर तक चूसती रही।

जब हम अलग हुए तब अंकल बोले- तुमने चुम्बन तो बहुत अच्छी तरह से किया लेकिन एक गलती भी की थी क्योंकि चुम्बन मैंने शुरू किया था इसलिए तुम्हें मेरी जीभ की प्रतीक्षा करनी चाहिए थी। जब मैं तुम्हारे मुँह में अपनी जीभ डालता तब तुम उसे चूसती और उसके बाद ही अपनी जीभ मेरे मुँह में डालनी थी। तुमने मेरे मुँह में जीभ डालने की जल्दी करी।

मैंने कहा- अंकल, मुझे नहीं पता था कि ऐसा करना होता है। मैंने तो सोचा कि आपका साथ देने के लिए मुझे भी कुछ पहल करनी चाहिए, इसलिए मैंने ऐसा कर दिया था।

तब अंकल बोले- एक बार फिर से करते हैं तब देखते हैं कि तुम क्या करती हो?

फिर अंकल ने मुझे दुबारा अपनी छाती के साथ चिपका कर मेर होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूसने लगे।

पहले उन्होंने मेरे नीचे वाले होंठ को चूसा और फिर ऊपर वाले होंठ चूसने के बाद वह कुछ क्षणों के लिए रुके। तब मैं उनके ऊपर का होंठ चूसने लगी और उसके बाद मैंने उनके नीचे का होंठ अपने मुँह में ले लिया।

जब मैं अंकल के होंठ चूस रही थी तब उन्होंने चुम्बन के साथ साथ मेरी दोनों चूचियों को अपने हाथों से मसलना शुरू कर दिया।
उनकी इस क्रिया से मुझे उत्तेजना शुरू होने लगी थी और मुझसे भी रहा नहीं गया, तब मैंने अंकल की आँखों में झाँक कर देखा तो मुझे वहाँ भी उतेजना की झलक दिखी।

तब मैं अपना एक हाथ नीच ले जा कर उनकी पैंट के ऊपर से ही उनके लिंग को सहलाने लगी।

तभी अंकल ने मेरे मुँह में अपनी जीभ डाल दी और मैं उसे चूसने में मग्न हो गई और लगभग पांच मिनट के बाद मेरी जीभ उनके मुँह में थी और वे उसे चूस रहे थे।

जब तक हम एक दूसरे की जीभ चूस कर अलग हुए, तब मैंने देखा कि अंकल की पैंट को उनके लिंग ने उसे एक तम्बू बना दिया था।
इस बीच में उत्तेजनावश मेरी योनि से रिसने वाले पानी से मेरी पैंटी बिल्कुल गीली हो गई थी जिसके कारण मैं बहुत असहज महसूस कर रही थी।

तभी अंकल ने कहा- लीना, इन कपड़ों के कारण हम दोनों ही कुछ असहज महसूस कर रहे हैं। अगर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं हो तो क्यों न हम दोनों इन कपड़ों को उतार दें?

उनकी बात सुन कर मुझे लगा कि मेरे मन की मुराद पूरी हो गई हो इसलिए मैंने ख़ुशी ख़ुशी हाँ कह दी और तुरंत अपने कपड़े उतरने लगी।

तभी अंकल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- तुम एक एक कर के मेरे सारे कपड़े उतारो और मैं तुम्हारे सारे कपड़े उतारता हूँ।
उनकी बात मानते हुए मैंने उनकी टी-शर्ट के बटन खोल कर ऊपर करी तो उन्होंने अपने हाथ उठा कर मुझे उसे उतारने दी।

टी-शर्ट के उतारते ही उन्होंने मेरी कमीज़ को पकड़ कर ऊँचा किया और मेरे शरीर से अलग कर दी।

इसके बाद मैंने जब उनकी जीन्स के बटन खोल कर उसे नीचे सरका दिया तब अंकल ने बारी बारी अपने पाऊँ उठा कर जीन्स से अलग हो कर बनियान और अंडरवियर में मेरे सामने खड़े हो गए।

मैं उनके अंडरवियर तने हुए लिंग का उभार देख रही थी तभी अंकल ने मेरी सलवार का नाड़ा खींच कर खोला और उसे ज़मीन पर गिरने के लिए छोड़ दिया।
दूसरे क्षण मैं अंकल के सामने सिर्फ ब्रा और योनि-रस से भीगी हुई पैंटी पहने हुए खड़ी थी।

जब मैंने देखा कि उनका तना हुआ लिंग उनके अंडरवियर को फाड़ कर बाहर निकलना चाहता था तब मैंने उनके लिंग को उस बंधन से आज़ाद कराने के लिए उनके अंडरवियर को नीचे सरकाते हुए उनके पैरों तक गिरने दिया।

अंकल ने जब मुझे ऐसा करते देखा तो उन्होंने भी मेरी योनि को ताज़ी हवा लगवाने के लिए मेरी गीली पैंटी को नीचे की ओर सरका दिया।
मेरी सफाचट चिकनी योनि को देख कर अंकल का मन ललचा गया और उन्होंने नीचे झुक कर उसे चूम लिया।

जब वे ऊपर उठ रहे थे तब मैंने उनके शरीर पर पहना एकमात्र वस्त्र उनकी बनियान को भी उतार कर उन्हें नग्न कर दिया।

अंकल ने भी खड़े होते ही मुझे बाहुपाश में लिया और पीछे से मेरी ब्रा का हुक खोल कर उसे मेरे शरीर से अलग करते हुए मुझे भी अपनी तरह बिल्कुल नग्न कर दिया।

अगले ही क्षण अंकल ने आगे बढ़ कर मुझे अपने बाहुपाश में भींच लिया जिसके कारण उनका तना हुआ लिंग मेरी नाभि को चुभने लगा।

जब मैंने उनके लिंग को अपने हाथ से पकड़ कर थोड़ा अलग किया तब मुझे अनुमान हुआ कि उनके लिंग की लम्बाई रवि के लिंग के बराबर ही थी लेकिन उसकी मोटाई रवि के लिंग से बहुत ज्यादा थी।

जब मैंने अंकल से उनके लिंग के नाप के बारे में पूछा तब उन्होंने बताया- मेरा लिंग सात इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा है तथा जब यह योनि के अन्दर जाता है तब इसका मुंड फूल कर तीन इंच मोटा हो जाता है।।

उनके लिंग का पैमाना सुन कर मेरे पसीने छूटने लगे क्योंकि रवि का लिंग भी सात इंच लम्बा था लेकिन लिंग मुंड सहित वह सिर्फ डेढ़ इंच मोटा ही था।

मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें और माथे के पसीने को देख कर अंकल बोले- क्या हुआ लीना, तुम्हें पसीना क्यों आ रहा है।

मैंने कहा- कुछ नहीं अंकल, आपके लिंग की मोटाई देख कर कुछ घबराहट हो रही है। मैंने तो आज तक इतना मोटा लिंग देखा ही नहीं है इसलिए सोच रही थी कि क्या आपका इतना मोटा लिंग मेरी योनि में चला जायेगा? कहीं ऐसा नहीं हो कि यह मेरी योनि को फाड़ कर उसके चीथड़े कर दे?

तब अंकल ने कहा- लीना, कहते है सभी औरतों का मुँह और उसकी योनि का नाप एक जैसा ही होता है। तुम मेरे लिंग को अपने मुँह में डाल कर देखो अगर यह तुम्हारे मुँह में चला गया तो फिर यह तुम्हारी योनि के अंदर भी बिना कोई दिक्कत किये आराम से चला जाएगा।

अंकल की बात सुन कर मैं नीचे बैठ गई और बिना कोई देर किये उनके लिंग को अपने मुँह में डाल लिया।

जब उसे पूरा अपने गले के अन्दर तक उतार देने में मुझे कोई भी दिक्कत नहीं हुई तब मुझे तसल्ली हो गई कि अंकल से संसर्ग के समय मेरी योनि को भी उस लिंग की मोटाई से कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी।

इस ख़ुशी के कारण मैं अपने को सम्भाल नहीं सकी और अंकल के लिंग को बहुत कस कर तेज़ी से चूसने लगी।

तभी अंकल ने मुझे रोका और अपना लिंग मेरे मुँह से बाहर निकाल कर बोले- लीना, तुम फिर गलती कर रही हो। इतनी कस कर तेजी से चूसने से तुम्हें कोई आनन्द नहीं मिलेगा और तुम्हारे दांतों से मेरा लिंग भी घायल हो जाएगा। अपना पूरा मुँह खोल कर मेरे लिंग को बिना दांतों से छूए अपने मुँह को आगे पीछे करो। जोर से चूसने से मेरा रस जल्दी नहीं निकलने वाला और जब रस निकलेगा तब तुम उसके स्वाद का आनन्द भी नहीं उठा पाओगी। आहिस्ता आहिस्ता चूसोगी तो अधिक आनन्द मिलेगा।

अंकल की बात सुन कर मैं एक बार फिर नीचे बैठ कर उनके लिंग को अपने मुँह में ले कर धीरे धीरे चूसने एवं मुँह के अंदर बाहर करने लगी।

जब मैं अंकल द्वारा बताये गए तरीके से अपने मुख में उनका लिंग ले कर हिलाने लगी तब महसूस हुआ कि उन्होंने बिल्कुल ठीक कहा था।

अगले कुछ मिनट तक अंकल मुझे प्रोत्साहित करते रहे और खुद भी अपनी कमर को आगे पीछे कर के मेरा मुख मैथुन करने लगे।

लगभग दस मिनट के बाद अकस्मात् ही अंकल का लिंग फूलने लगा और उन्होंने मेरे सिर को पकड़ कर हिलने से रोक दिया तथा अपने लिंग के रस की बौछार से मेरा मुँह भर दिया।

मैंने अंकल के उस स्वादिष्ट नमकीन रस को जल्दी से पीने के बाद उनके लिंग को एक बार कस का चूसा और उसकी नाली के अन्दर का बचा-खुचा सारा रस भी गटक गई।

अंकल के लिंग का रस निकलने के बावजूद भी उसे तने हुए देखा मुझे बहुत हैरानी हुई और मेरे पूछने पर उन्होंने बताया किब उनका लिंग जब तक किसी की योनि के अन्दर जा कर स्खलित नहीं होता तब तक नीचे नहीं बैठता।

मैं अंकल के लिंग को एक बार फिर से चूसने की सोच रही थी, तभी उन्होंने मुझे अपने बाहुपाश में ले लिया और गर्दन झुका कर मेरे दायें स्तन को अपने मुँह में ले कर उसके चूचुक को चूसने लगे।

पांच मिनट तक मेरी दाईं चूचुक को चूसने के बाद उन्होंने अगले पांच मिनट तक मेरे बाएँ स्तन की चूचुक को मुँह में लेकर चूसा।

वे इतने आराम और प्यार से मेरे चूचुक चूस रहे थे कि मुझे उन दस मिनट में एक बार भी अपनी चूचुक पर उनके दांत का स्पर्श महसूस नहीं हुआ लगा।
उनके द्वारा मेरी चूचुक को इतने आराम एवं प्यार से चूसने का असर इतना हुआ कि मेरी योनि में हलचल होने लगी।

दस मिनट बीतते ही अंकल ने अपना मुँह मेरी चूचुक से हटा कर मेरी जाँघों के बीच में डाल दिया और मेरी योनि को चाटने एवं चूसने लगे तथा भगान्कुर को अपनी जीभ से सहलाने लगे।

लगभग पांच मिनट तक यह क्रिया करते रहने के कारण मेरी उत्तेजित योनि में से रस बहने लगा और मेरी उत्तेजना बहुत ही अधिक बढ़ गई।

तब अंकल मेरी योनि को अधिक तेज़ी से चाटने एवं चूसने लगे और अपनी जीभ एवं होंठों से मेरे भगान्कुर को सहलाने तथा मसलने लगे।

दो मिनट व्यतीत होते ही उत्तेजना की अत्याधिक वृद्धि के कारण मेरी योनि में से रस का स्राव होने लगा तब मैंने महसूस किया कि अंकल उस रस को बहुत मजे से चाट एवं पी रहे थे।

जब मैं उस अत्याधिक उत्तेजना को बर्दाश्त नहीं कर पाई तब मैंने अंकल को अपनी स्थिति बता कर उनसे जल्दी से संसर्ग शुरू करने के लिए कहा।

मेरी बात सुनते ही अंकल उसी समय मेरी योनि को छोड़ कर उठ खड़े हुए और मुझे बिस्तर पर सीधा लिटा कर मेरी दोनों टाँगें चौड़ी करी तथा उनके बीच में बैठ कर अपने लिंग-मुंड को मेरे भगान्कुर पर रगड़ने लगे।

पहले से ही उत्तेजित मेरी योनि के भगान्कुर पर रगड़ लगने से उसकी उत्तेजना में बहुत ही वृद्धि हो गई जिस कारण मेरे मुख से तेज़ सिसकारियाँ निकलने लगी।

मेरी सिसकारियों को सुन कर अंकल ने अपनी उँगलियों से मेरी योनि के मुँह को खोल कर अपने लिंग को उसके होंठों के बीच में रख कर एक धक्का दिया।

उस धक्के से जैसे ही उनका लिंग-मुंड मेरी योनि में प्रवेश किये मेरे मुँह से एक जोर की चीख निकल गई।
अंकल ने मेरे मुँह पर हाथ रखते हुए पूछा- क्या हुआ? इतना चीख क्यों रही हो?

मैं मेरी योनि में हो रहे बहुत तीव्र दर्द से कहराते हुए बोली- हाय… हाय मर गई मैं! मेरी योनि में बहुत दर्द हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि इसके द्वार की त्वचा फट गई है।

मेरी बात सुन कर मेरे होंठों के चूमते हुए अंकल बोले- अरे, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। क्योंकि तुम्हारी योनि में आज तक इतना मोटा लिंग प्रवेश नहीं किया है इसलिए तुम्हें थोड़ा दर्द हो रहा है। बस कुछ ही क्षणों में सब ठीक हो जाएगा और तुम्हें आनन्द की अनुभूति होने लगेगी।

इसके बाद अंकल कुछ देर के लिए रुके और फिर मेरा चुम्बन लेते हुए मेरी जीभ को अपने मुँह में लेकर चूसने लगे।

मैं भी उस चुम्बन का उत्तर देने में मग्न हो गई तभी अंकल ने जोर का धक्का लगा कर अपना पूरा लिंग मेरी योनि में उतार दिया।

मुझे योनि में बहुत ही तीव पीड़ा हुई और बहुत जोर से चिल्लाई लेकिन मेरी वह आवाज़ अंकल के मुँह में ही दब गई।
मेरी टांगें अकड़ गई और मेरा शरीर कांपने लगा तथा मेरी आँखों में से आंसुओं की धारा बह निकली।

तभी अंकल ने मुझ पर लेटते हुए अपना पूरा बोझ मेरे उपर डाल दिया तथा मेरे शरीर को अपने शरीर के नीचे दबा दिया।

उस बोझ के कारण उनका लोहे जैसा कठोर लिंग मेरी योनि के अंदर मेरे गर्भाशय की दीवारों से टकरा गया जिस कारण मेरे शरीर में उत्तेजना की तरंगें फैलने लगी।
मेरे उरोज कठोर हो गए, मेरी चुचुकों ने कड़ा हो कर अपना सिर उठा लिया, मेरी नाभि और जघन-स्थल में गुदगुदी होने लगी तथा योनि के अंदर भी सिकुड़न होने लगी।

मुझे आज तक ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ था इसलिए मैं सोच में पड़ गई कि मेरे साथ क्या हो रहा है।

तभी अंकल ने अपने होंठ मेरे होंठों से हटाये और अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर बाहर करने लगे।
पहले दस मिनट तो वह बहुत धीरे धीरे करते रहे लेकिन जैसे ही मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी, तब वे तेज़ी से हिलने लगे।

मेरी उत्तेजना बहुत ही तीव्र हो गई और मैं भी ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ लेते हुए अपने चूतड़ उठा कर उनका साथ देने लगी तथा पांच मिनट के बाद मेरी योनि में से रस का रिसाव शुरू हो गया।

उस रिसाव के कारण मेरी योनि में काफी फिसलन हो गई थी जिससे अंकल का लिंग बहुत ही सरलता से अन्दर बाहर जाना शुरू हो गया और उनके अंडकोष जब भी मेरी योनि से टकराते तो फच फच की ध्वनि पैदा करते।

कुछ समय बीतते ही मुझे भी संसर्ग के आनन्द की अनुभूति होने लगी और मेरी योनि में लगातार सिकुड़न एवं खिंचाव होने लगा तथा टांगें अकड़ने लगी।

तभी अंकल बहुत ही तीव्र गति से धक्के देने लगे जिससे मेरी योनि में बहुत रगड़ लगने लगी और देखते ही देखते मेरी टांगें अकड़ गई, शरीर ऐंठ गया और योनि सिकुड़ गई।

मैं अपने पर नियंत्रण खो बैठी और बहुत ही ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ भरने लगी।

तभी मुझे महसूस हुआ की मेरी योनि में अंकल का लिंग मुंड फूल गया था। उसके बाद अंकल ने दो-तीन बहुत ही तेज़ झटके लगा दिए जिससे मेरी योनि ने अपने रस का विसर्जन करते हुए अंकल के लिंग को जकड़ लिया।

उसी क्षण अंकल के लिंग में से गर्मागर्म वीर्य रस की पिचकारी निकली जो सीधा मेरे गर्भाशय से टकराई और वहाँ आग लगा दी।

उस आग की गर्मी से मुझे वह आनन्द और संतुष्टि मिली जिसके लिए मैं तरस रही थी और जिसे देने के लिए रवि ने कभी चेष्टा ही नहीं करी थी।

इस आनन्द से अभिभूत होते ही मैंने अपनी टांगों और बाहों से अंकल के शरीर को लपेट लिया और जब तक मेरी योनि में हो रही खिंचावट तथा हम दोनों का रस विसर्जन समाप्त नहीं हुआ तब तक मैंने उन्हें वैसे ही जकड़े रखा।

पांच मिनट के बाद जब सब कुछ समान्य होने लगा तब मैंने अपनी टांगें और बाहों की जकड़न ढीली करी और पसीने से भीगी हुई निढाल हो कर लेट गई।

अगले दस मिनट तक पसीने से भीगे अंकल भी अपने निढाल शरीर से लम्बी सांसें लेते हुए मेरे ऊपर लेटे रहे।

उसके अंकल सामान्य होकर उठे और मुझे गोदी में उठा कर बाथरूम में ले गए जहाँ हम दोनों ने एक दूसरे के अंगों को साफ़ किया।

जब वापिस कमरे में आये तो मैंने देखा की रात के बारह बज चुके थे तब एक बार तो मेरे मस्तिष्क में अपने घर जाने का विचार आया लेकिन अंकल से दोबारा संसर्ग की लालसा में ऐसा नहीं होने दिया।

हम दोनों एक दूसरे के नग्न शरीर से चिपक कर लेट गये और जल्दी ही गहरी निद्रा के आगोश में पहुँच गए।

सुबह छह बजे जब नींद खुली तब मैंने अंकल के तने हुए कठोर लिंग को देखा तो मेरा मन बेईमान हो गया और मैं घर जाने के बजाए उसे पकड़ कर हिलाने लगी।

उस समय मुझे न तो अपने घर जाने की कोई चिंता थी और न ही रवि को स्टोर भेजने की क्योंकि मुझे बहुत दिनों से वंचित यौन आनन्द एवं संतुष्टि को प्राप्त करने की लालसा थी।

कुछ देर अंकल के लिंग को हिलाने के बाद जब मैंने उसे चूसना शुरू किया तब उन्होंने मेरी टांगों को अपने ओर खींच कर 69 की स्तिथि में कर लिया और मेरी योनि को चाटने एवं चूसने लगे।

दस मिनट के बाद जब हम दोनों का पूर्व-रस निकलने लगा तब हम अलग हुए और मैं तुरंत उठ कर अंकल को सीधा लिटा कर के ऊपर चढ़ कर बैठ गई।

मेरे ऊपर आते ही अंकल ने मुझे कमर से पकड़ कर ऊँचा किया और मैंने तुरंत उनके लिंग को पकड कर अपनी योनि के मुँह की सीध में किया और उसके ऊपर बैठ गई।

मेरे बैठते ही उनका तना एवं फूला हुआ लिंग मेरी योनि की अंदरूनी दीवारों को रगड़ता हुआ उसमे समां गया।

अंकल के लिंग द्वारा की गई उस रगड़ से मेरी उत्तेजना में वृद्धि हो गई और मैं उछल उछल कर उनके लिंग को अपनी योनि के अंदर बाहर करने लगी।

जब कुछ देर तक अंकल के ऊपर उछल उछल कर संसर्ग करने से मेरी साँसें फूलने लगी और मैं थक कर बिस्तर पर सीधा लेट गई तब अंकल मेरे ऊपर आ कर अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर बाहर करने लगे।

अगले कुछ मिनट में अंकल ने अपनी धीमी गति को बढ़ाते हुए तीव्र और फिर अत्यंत तीव्र करते हुए संसर्ग किया और मेरी योनि में से दो बार रस का स्खलन करवा दिया।

जब मेरी योनि में से तीसरी बार रस विसर्जन होने वाला था तब अंकल ने बहुत ही जोर से तीन चार धक्के मारे जिन्हें मैं सहन नहीं कर सकी और मेरे मुँह से बहुत ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ निकल पड़ी।

तभी हम दोनों के शरीर ऐंठने लगे तथा टांगें अकड़ने लगी और हमारे कूल्हों ने कुछ झटके मारते हुए अपने अपने रस का विसर्जन कर दिया।

हम दोनों के उस विसर्जन के उपरान्त मेरी योनि में उत्पन हुई गर्मी से मुझे अत्यंत आनन्द एवं संतुष्टि मिली और मैं अंकल के साथ चिपक कर लेटी रही।

लगभग दस मिनट के बाद जब मैंने अपने को सामान्य पाया तब मैं उठ कर बाथरूम में गई और अपने को साफ़ करके कपड़े पहने तथा सात बजे अपने घर गई।

घर पहुँचने पर देखा की रवि बिना कुछ खाए पिए स्टोर पर चला गया था इसलिए मैंने तुरंत उसके और अपने लिए चाय नाश्ता बना कर स्टोर ले गई।

नाश्ता करते समय जब रवि ने मुझसे रात में अंकल से आनन्द एवं संतुष्टि मिलने क बारे में पूछा तो मैंने उसे विस्तार से सब कुछ बता दिया।

बहुत समय से अपनी प्यासी लालसा को शांत करने के लिए जब मैंने रवि से अगले कुछ दिनों के लिए अंकल के साथ सोने की अनुमति मांगी तो उसने सहर्ष अपनी सहमति दे दी।

उस रात के बाद की अगली दस रातें भी मैं अंकल के साथ ही सोई और हर रात उनके साथ दो दो बार संसर्ग करके यौन आनन्द और संतुष्टि को प्राप्त किया।

पिछले तीन वर्षों में मैंने हर सप्ताह में एक बार अंकल के साथ संसर्ग किया है और उनकी एवं अपनी वासना को शांत करके पूर्ण यौन आनन्द एवं संतुष्टि प्राप्त कर रही हूँ।

सप्ताह के अन्य दिनों में जब भी रवि संसर्ग के लिए मान जाता है तब मैं उसकी वासना को भी शांत कर देती हूँ।

मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगले कई वर्षों तक मैं अंकल से यह सुखद यौन आनन्द और संतुष्टि प्राप्त करती रहूँगी।

मेरे जीवन के यौन सुख में आए अभाव को अपनी सूझ-बूझ दूर करने के लिए मैं अपने पति की जीवन भर ऋणी रहूंगी, मुझे पर-पुरुष सहवास से यौन आनन्द एवं संतुष्टि प्राप्त करने के लिए अपनी सहमति तथा सहायता देने के लिए भी मैं अपने पति की जीवन भर बहुत ही आभारी रहूंगी।

पिछले तीन वर्ष से मेरे साथ संसर्ग कर के मुझे यौन सुख, आनन्द एवं संतुष्टि प्रदान करने के लिए मैं अंकल के योगदान के लिए उनकी भी बहुत आभारी हूँ।

श्रीमती तृष्णा द्वारा मेरी इस रचना को सम्पादित करने एवं अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने में दिए गये सहयोग के लिए मैं उनका धन्यवाद एवं आभार प्रकट करती हूँ।

*****

अन्तर्वासना की पाठिकाओं एवं पाठकों को मैं अवगत करना चाहती हूँ कि इस रचना के सभी पात्रों की गोपनीयता एवं सुरक्षा के हेतु लेखिका ने उनके नाम एवं स्थान बदल कर लिखे हैं।

इस रचना को पढ़ने के लिए आप सब का बहुत धन्यवाद और मुझे विश्वास है कि आप सबका परिपूर्ण मनोरंजन भी हुआ होगा।
इस रचना के संधर्भ में आप अपने विचार एवं टिप्पणी हमें [email protected] पर भेज सकते हैं।

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