मेरी लवलीन कामुक है कामान्ध नहीं-1

(Meri Lavleen Kamuk Hai Kamandh Nahi- Part 1)

This story is part of a series:

लेखक: नामित जैन
सम्पादक: सिद्धार्थ वर्मा
अन्तर्वासना के आदरणीय सभी श्रोताओं को सिद्धार्थ वर्मा का प्रणाम।
मेरी पिछली रचना
पत्नी के आदेश पर सासू माँ को दी यौन संतुष्टि
को पढ़ने एवं उस पर अपने विचार लिख कर भेजने के लिए बहुत धन्यवाद।
मेरी उस रचना के प्रकाशित होने के बाद कुछ निजी कारणों से मैं आप सब के लिए कोई नई रचना पेश नहीं कर पाया।

आज आप सब के लिए जो रचना मैं ले कर आया हूँ वह मेरे एक अति प्रिय मित्र नामित जैन की है जिसे मैं लगभग पिछले चार वर्षों से जानता हूँ।
नामित एक बहुत ही सुशील एवं संस्कारी तथा सामान्य स्वभाव का पुरुष है जो अपने काम के इलावा किसी और चीज़ से कोई वास्ता नहीं रखता। वह भोपाल में स्थित एक बहुत बड़ी कम्पनी में नौकरी करता है और अपनी पत्नी लवलीन उर्फ़ लीनू उर्फ़ लीना के साथ उसी कम्पनी की आवास कॉलोनी में रहता है।

इस वर्ष के जनवरी माह की पहली तारीख को जब नामित मुझे नववर्ष की शुभकामनाएँ देने आया तब मैंने उसके ही चेहरे पर कुछ चिंता की रेखाएं देखीं।
बातों ही बातों में जब मैंने उससे पूछा- नामित क्या बात है तुम्हारे चेहरे पर बारह क्यों बजे हुए हैं? तुम कुछ चिंतित दिखाई दे रहे हो?
फिर मैंने हँसते हुए कहा- मुझे लगता है की नये वर्ष की सुबह सुबह तुम्हारा और भाभी का झगड़ा हुआ है और तुम उनसे मार खाकर आ रहे हो।

मेरी बात सुन कर वह थोड़ा मुस्कराया और बोला- नहीं सिद्धार्थ, ऐसी कोई बात नहीं है और तुम्हारा अनुमान बिल्कुल गलत है। मुझे एक विषय पर तुमसे कुछ परामर्श करना है और उसके बारे में बात कैसे शुरू करूँ इसी उलझन में हूँ।

मैंने उत्तर में कहा- नामित, अगर तुम मुझे अपना मित्र मानते हो तो फिर तुम्हें मेरे साथ कोई भी बात साझा करने में कोई उलझन नहीं होनी चाहिए। जिस विषय पर तुम परामर्श करना चाहते हो उस बात को एक मित्र से सीधा सीधा बोलने में तुम्हें कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए।

मेरी बात सुन कर वह कुछ पल के लिए चुप रहा और फिर मेरे पास आ कर बोला- मैं तुमसे जिस विषय में चर्चा करना चाहता हूँ उसका सम्बन्ध मेरी पत्नी के साथ है इसलिए थोड़ी दुविधा में हूँ।
मैंने कहा- तुम जो चर्चा करना चाहते हो वह निश्चिन्त हो करो और मुझसे जो अपेक्षा है वह भी खुल कर बोल दो।

मेरी बात सुन कर जब नामित थोड़ा आश्वस्त हुआ तब वह बोला- मेरे घर पर मेरा एक निजी कंप्यूटर है जिसे अधिकतर मेरी पत्नी ही प्रयोग करती है। लगभग एक सप्ताह पहले उसमे वायरस आ जाने के कारण उसने कार्य करना बंद कर दिया था।

उसने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा- जब मैंने कंप्यूटर में से वायरस निकाला तथा उस वायरस का कंप्यूटर में प्रवेश करने के मूल स्रोत की खोज करी। तब पता चला की वह इन्टरनेट पर सेक्स सम्बन्धी विज्ञापन से आया था।

मैंने उसकी बात सुन कर उससे पूछा- हाँ, ऐसी साइटों से अक्सर कंप्यूटर में वायरस घुस आता है। क्या तुम सेक्स साइट्स पर जाते हो?
उसने तुरंत उत्तर दिया- नहीं, ऐसी साइटों पर जाने के लिए मेरे पास अतिरिक्त समय नहीं होता। लेकिन मेरी पत्नी अवश्य ऐसी साइटों पर जाती है।

मैंने अपनी उत्सुकता को छुपाते हुए बोला- तुम यह कैसे कह सकते हो? बिना प्रमाण के तुम भाभी पर ऐसा आरोप नहीं लगा सकते।
मेरी बात सुन कर उसने कहा- मैं कोई आरोप नहीं लगा रहा हूँ लेकिन जो कुछ मैंने कंप्यूटर की हिस्टरी की फ़ाइलों से ज्ञात किया है उसके आधार पर ही मैं यह कह रहा हूँ।

मैंने ऊँचे स्वर में कहा- अरे, भाभी दिन भर घर पर अकेली रहती है इसलिए अपना समय व्यतीत करने के लिए वह ऐसी साइटस देख लेती होंगी। वह विवाहित है और यौन संसर्ग एवं सम्बन्धों के बारे में सब कुछ जानती हैं इसलिए अपना मन बहलाने के लिए उनके ऐसा करने पर तुम्हें कोई आपत्ति है?

नामित ने धीरे से कहा- नहीं, मुझे अपनी पत्नी द्वारा ऐसी रचनाएं पढ़ने पर कोई आपति नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैंने शादी के चार वर्ष बाद भी उसे माँ नहीं बना सका इसलिए मैं उसके ऐसे व्यवहार को भली भांति समझ सकता हूँ।

दोस्त की बात सुन कर मैं बोला- मित्र, तुमसे ऐसे ऊँचे स्वर में बोलने के लिए माफ़ करना। मैं कुछ अधिक आवेश में आ गया था। मुझे आशा है कि तुम मेरी बात का बुरा नहीं मानोगे। लेकिन तुम यह सब मुझे क्यों बता रहे हो?

तब नामित बोला- कंप्यूटर से वायरस साफ़ करने के बाद कौतुहल वश मैंने मेरी पत्नी द्वारा अन्तर्वासना के कई लेखिकाओं एवं लेखकों से करी गई अनगिनित ई-मेल वार्ताएं पढ़ीं। उन वार्ताओं एवं अन्तर्वासना पर उनसे सम्बंधित रचनाओं को पढ़ने के बाद मुझे कुछ विस्मय हुआ। लेकिन मैं सब से अधिक अचम्भित तब हुआ जब मैंने अन्तर्वासना पर नवम्बर 2016 में प्रकाशित एक रचना
कामान्ध लीनू और लंड की लालसा
को पढ़ा।

नामित की बात सुन कर मैंने उससे पूछा- ऐसा क्या था उस रचना में जिससे तुम अचम्भित हो गए?
उसने उत्तर दिया- वह रचना मेरी पत्नी के नाम से प्रकाशित हुई और उसमें वह खुद ही उसकी नायिका भी है।

मैं अचम्भित होते हुए बोला- अच्छा! इसका अर्थ है कि भाभी एक लेखिका भी हैं। क्या तुमने भाभी से बात करी और उन्हें बधाई दी?तुमने तो वह रचना पढ़ी तो होगी, तुम्हें कैसी लगी?

नामित ने कहा- नहीं, अभी मैंने अपनी पत्नी से ना तो कुछ कहा और ना ही कुछ पूछा है क्योंकि उसने अभी तक इस बारे में मुझसे अपनी ओर से कोई भी बात नहीं करी है। अगर मैं उससे से कुछ पूछता हूँ तो वह समझेगी कि मैं उसके चरित्र पर संदेह करता हूँ इसलिए उसकी जासूसी करी है।

थोड़ा रुक कर नामित ने आगे कहा- मैंने वह रचना पढ़ी और जब उसका विश्लेषण किया तो वह भाषा एवं विवरण के हिसाब से बहुत अच्छी लगी। उसकी हिंदी भाषा इतनी अच्छी है इसका मुझे ज्ञान नहीं था। उसके लेखन में उस लेखक का हाथ भी होगा जिसने उस रचना को सम्पादित किया है। मैं मेरी पत्नी लवलीन उर्फ़ लीना उर्फ़ लीनू को बहुत ही अच्छे से जानता हूँ क्योंकि हमारी जन पहचान लगभग आठ वर्ष पहले हुई थी और पिछले चार वर्ष से हम पति पत्नी हैं। उस रचना में मेरी पत्नी ने अपने आप को बहुत ही अधिक कामुक एवं कामान्ध दिखाया है जबकि वास्तविक में वह ऐसी नहीं है। पिछले चार वर्ष के विवाहित जीवन में मैंने उसे कभी भी इतना आतुर नहीं देखा जितना कि उसने रचना में लिखा है।

मैंने नामित से पूछा- क्या तुमने अपनी पत्नी से यौन संसर्ग के बाद कभी आनन्द एवं संतुष्टि के बारे में पूछा या कोई बात की?
नामित बोला- हाँ, मैंने हर संसर्ग के बाद उससे यौन आनन्द एवं संतुष्टि के बारे में पूछा और कई बार इस बारे में खुल कर बात भी करी लेकिन उसने कभी भी शिकायत नहीं की है।

उसकी बात सुन कर मैं बोला- फिर तुम चिंतित किस बात पर हो? तुम्हें तो ख़ुशी होनी चाहिए की तुम्हारी पत्नी एक लेखिका बन गई है।
मेरी बात से नामित के चेहरे के भाव में कोई अंतर नहीं आया और वह गम्भीर स्वर में बोला- अगर लीना ने उस काल्पनिक रचना में अपने स्थान पर किसी युवती को नायिका बनाया होता तो मैं उसके लेखन से बिल्कुल भी चिंतित नहीं होता। उसकी काल्पनिक रचना पढ़ने के बाद अन्तर्वासना के कई पाठकों ने उसे ई-मेल द्वारा बहुत ही अभद्र सन्देश भेजें हैं। उनमें से 90% पाठकों के संदेशों की भाषा से तो ऐसा प्रतीत होता था कि वे सब लीना को एक पेशेवर वेश्या समझते हैं।

मैंने नामित को समझाने की कोशिश करते हुए कहा- अगर वह पाठक ऐसा समझते हैं तो उनकी अभद्र सोच का तुम क्या कर सकते हो? क्या तुम्हारा उनसे झगड़ा करने का इरादा तो नहीं है?

नामित ने तुरंत उत्तर दिया- मैं झगड़ा तो अवश्य करूँगा लेकिन दूसरी तरह का। मैं लीना के जीवन में घटी एक सत्य घटना पर आधारित रचना लिख कर उन पाठकों के मन में लीना के प्रति गलत धारणा को बदल दूँगा। मुझे विश्वास है कि मेरी रचना पढ़ने के बाद पाठक मेरी पत्नी को कामान्ध लीनू नहीं बल्कि सिर्फ कामुक लीना की तरह जानेगें।

नामित के इरादे को जान कर मैंने कहा- क्या तुमने पहले कभी कोई रचना लिखी है? क्या तुम अपनी व्यस्त दिनचर्या में से ऐसी रचना लिखने के लिए समय निकल पाओगे?

वह बोला- कॉलेज की मासिक पत्रिका के कभी कभी कुछ लिखता था लेकिन उसे पत्रिका का संपादक ठीक कर के प्रकाशित करता था। मैं घटना के विवरण को तो ऑफिस में शाम को एक घंटा अतिरिक्त रुक कर लिख दूंगा। तुमने एक बार बताया था कि तुम कुछ रचना लिख कर प्रकाशित कर चुके हो तो क्या तुम मेरे रचना को सम्पादित करके प्रकाशित करवा दोगे?

नामित का अनुरोध सुन कर मैंने कहा- तुम ऑफिस में रुकने के बजाये जब भी समय हो मेरे घर पर मेरे कंप्यूटर पर उस रचना को लिख देना। मुझे जब भी समय मिलेगा मैं उसे अंश को सम्पादित कर दिया करूंगा।

मेरा सुझाव सुन कर नामित खुश हो गया और अगले दिन से उसने अपनी रचना लिखनी तथा मैंने सम्पादित करनी शुरू कर दी। तीन सप्ताह के परिश्रम से नामित द्वारा लिखित एवं मेरे द्वारा सम्पादित उस रचना विवरण आप सब के लिए नामित के ही शब्दों में नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ:
***

अन्तर्वासना के आदरणीय पाठकों एवं पाठिकाओं को सदर प्रणाम!
मेरा नाम नामित जैन है, मेरी उम्र सताईस वर्ष है, मेरा कद पांच फुट दस इंच है, मैं दिखने मैं आकर्षक हूँ और एक हृष्ट-पुष्ट शरीर का मालिक भी हूँ।

मैं भोपाल में स्थित एक बहुत बड़ी कम्पनी में नौकरी करता हूँ और अपनी पत्नी लवलीन, जिसे मैं लीना कहता हूँ और आप सब उसे लीनू के नाम से जानते होंगे, के साथ उसी कम्पनी की आवास कॉलोनी में रहता हूँ।

आज से आठ वर्ष पहले मैं अपने जीवन के उस मुकाम पर था जब वह लड़कियां जो अपनी जवानी की देहलीज पर होती थी मुझे हमेशा बहुत आकर्षित करती थी।
उनका अल्हड़पन तथा कामुकता मुझे अनायास ही उनकी ओर खींच लेती थी क्योंकि उन लड़कियों के शरीर मैं आते हुए भराव के साथ साथ उनकी हर अदा प्राकृतिक होती थी और मैं उसे ही लड़की की असली जवानी मानता था।

मेरे संपर्क में आई अनेक लड़कियों में से लीना ही ऐसी लड़की थी जो उन दिनों मेरे बहुत करीब होते हुए भी अपनी बुद्धिमत्ता के कारण मुझसे बहुत दूर हो गई थी।

आज मैं आप सबको लीना एवं मेरे जीवन में घटी एक सच्ची घटना पर आधारित वह विवरण बताने जा रहा हूँ जो आठ वर्ष पहले घटा था।
उस समय मैं उन्नीस वर्ष का हुआ था तथा ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियाँ थी, मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था।

तब एक दिन जब मैं अपने कमरे मैं बैठा पढ़ाई कर रहा था तभी बाहर के दरवाजे की घंटी बजी और एक व्यक्ति ने पापा का नाम ले कर पुकारा।
मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा की बाहर पापा के एक बहुत ही पुराने मित्र रमन जी खड़े थे और उनके साथ काले रंग की तंग जीन्स तथा सफ़ेद रंग की तंग टी-शर्ट पहने एक दुबली पतली लड़की थी।

मैंने उन दोनों का अभिनन्दन किया तथा उन्हें घर के अन्दर आने के लिए कहा, तब वह दोनों मेरे साथ बैठक में आ गए। मैंने उन्हें वहाँ बिठा कर अपनी मम्मी को उनके आने की सूचना दी तथा उनके लिए पानी लेने चला गया।

जब मैं पानी ले कर आया और उनको दिया तब रमन जी मम्मी को बता रहे थे कि उनका स्थानांतरण भी हमारे ही शहर में हो गया था।
फिर रमन जी ने बताया कि दो माह के बाद वह वहां के कार्य से भार-मुक्त हो कर पूरे परिवार सहित इसी शहर में आ जाएँगे इसीलिए अभी वह अपनी बेटी लीना को कॉलेज में प्रवेश दिलाने के लिए आये थे।

रमन जी और मम्मी के बीच में तो बातें चल रही थी और मैं मम्मी के पीछे खड़ा लीना की ओर मुख किये उसे निहारता रहा।
लीना का टी-शर्ट इतना तंग था कि उसके सीने के सामने का कपड़ा पूरा खिंचा जा रहा था और वक्ष पर वह एक सीधी रेखा की तरह नज़र आ रहा था।
मैंने जब लीना के चेहरे को गौर से देखा तो पाया की वह हरे रंग की आँखों तथा एक लम्बे चेहरे वाली, बहुत ही गोरी रंग की, पतले शरीर की बहुत ही सुंदर लड़की थी।, उसका वक्ष उभरा हुआ था लेकिन उसकी कमर बहुत ही पतली थी तथा कुहले सामान्य ही थे।
मेरे अनुमान से उस अठारह वर्ष की कामुकता से भरी लड़की के शरीर का आकार 34-26-34 था।

उसका बदन उसकी उम्र की लड़कियों के मुकाबले कुछ अधिक तंदरुस्त लग रहा था तथा उसकी टाँगें पतली और जांघें काफी सुडौल एवं शक्तिशाली लग रही थी।
उसकी चूचियां उठी हुई और बाहर की ओर उभरी हुई थी तथा इतनी मस्त लग रही थी कि मैं चाह कर भी अपनी नज़रें उनसे नहीं हटा पा रहा था।
उसकी प्यारी सी चूचियों को देख कर मेरा मन कह कर रहा था कि मैं उसके पास जा कर उसकी टी-शर्ट खींच कर उतार दूँ और उसके आमों का रस अच्छी तरह से चूस लूँ।

उसके नितम्ब थोड़े से बाहर को निकले हुए थे जो उसके शरीर की कामुकता को और भी अधिक प्रदर्शित कर रहे थे।

क्योंकि वे दोपहर के बाद आये थे इसलिए थोड़ी देर बाद रमन जी तो आराम करने के लिए आतिथि कक्ष में जा कर सो गये लेकिन लीना मेरी बहन अंजलि के साथ बातें करने लगी।
जून माह का प्रथम सप्ताह था और काफी गर्मी थी तथा मुझे भी नींद आ रही थी इसलिए मैं भी अपने कमरे में सोने चला गया।

शाम को जब सोकर उठा तब मैंने देखा की लीना अंजलि के शयनकक्ष में बैठी अपने कॉलेज का प्रवेश पत्र भर रही थी लेकिन अंजलि अपने कक्ष में नहीं थी।
उस समय लीना के सिर के बाल खुले हुए थे और उसके गीले बालों को देख कर मैंने अनुमान लगाया की की वह अभी अभी नहा कर आई थी।
उसके बाल बहुत लम्बे लग रहे थे लेकिन क्योंकि वह बैठी हुई थी इसलिए यह मेरा केवल अनुमान ही था।

अगर वह खड़ी होती तो बालों की लम्बाई का सही में पता लगता लेकिन अनुमान के हिसाब से लीना के बाल उसके नितम्बों तक तो ज़रूर आते होंगे।

क्योंकि उस समय कक्ष का वातानुकूलक चल रहा था और उसे ठंडक महसूस हो रही होगी इसलिए उसने एक चादर ओढ़ी हुई थी।

मैंने उसकी ओर देखा और बाथरूम की तरफ चलने को मुड़ा ही था तभी उसने अपनी चादर हटाई और मैंने तब देखा कि उसने एक सफ़ेद रंग की स्कर्ट पहनी हुई थी। वह स्कर्ट उसके घुटनों तक ही आ रही थी और जैसे ही वह बैड से उठने लगी तब उसकी स्कर्ट खिंच कर उसकी जाँघों तक उठ गई थी।

इतनी गोरी जांघें तो मैंने उस दिन तक किसी की भी नहीं देखी थी इसलिए मेरी तो हालत खराब होने लगी उम्म्ह… अहह… हय… याह… और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था।
उसकी बाईं जांघ पर एक तिल भी था जो उसकी जाँघों की खूबसूरती पर चार चाँद लगा रहा था।

उस समय मेरा दिल तेज़ी से धड़क कर रहा था और मेरा मन कह रहा था कि मैं उसकी जाँघों पर शहद गिरा कर उन्हें चाटना शुरू कर दूँ।
स्कर्ट के ऊपर उसने गुलाबी रंग का एक ढीला सा टॉप पहन रखा था और वह कुछ सोच रही थी।

थोड़ी देर खड़े रह कर कुछ सोचते हुए वह फिर बैड पर बैठ गई और अपने सिर को पीछे की ओर करते हुए आँखें बंद कर ली तथा अपने पैरों को लटका कर बैड पर लेट गई।
लेटे लेटे वह अपनी टांगों को हवा मैं ऊपर नीचे कर रही थी और यह सब मैं दरवाज़े की ओट से चुपचाप देख रहा था।
जब भी वह टाँगे ऊपर करती तब उसकी स्कर्ट टांगों से थोड़ी ऊपर की ओर सरक जाती और मुझे उसकी ब्लैक पैंटी और उसके गोल गोल नितम्ब दिख जाते।
उसकी त्वचा एक बच्ची की त्वचा जैसी मुलायम दिख रही थी और उसके नितम्ब एकदम गुलाबी थे।

इस मनमोहक दृश्य को देख कर मेरा लिंग पूरे तनाव में आ गया था और मुझे ऐसा लगने लगा था की अगर मैं कुछ देर और लीना को देखता रहा तो अत्यधिक तनाव तथा उत्तेजना के कारण मेरे लिंग की नसें फट जायेंगी।
मेरी इस उत्तेजना को उसने तब और बढ़ा दिया जब उसने करवट ली तथा दरवाज़े की ओर अपने नितम्ब करके पेट के बल पट होकर लेट गई।
अब उसकी स्कर्ट उसके आधे नितम्बों को ही ढक पाने में ही सक्षम थी इसलिए उसके बाकी के आधे नितम्ब मेरे दर्शन के लिए आज़ाद हो गये थे।

यह नज़ारा देख कर मैं पागल हो उठा और मुझसे सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था।
मेरा मन तो कर रहा था कि मैं दरवाजा खोल कर कमरे में घुस जाऊं और अपने लिंग को अपनी पैंट में निकाल कर उसके पीछे से ही उसकी योनि में घुसेड़ दूं।
यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

मैंने जैसे तैसे अपने आप को नियंत्रण में किया क्योंकि मेरा यह मानना है कि जब तक दोनों तरफ से बराबर की आग न लगी हो तब तक यौन संसर्ग में कुछ भी आनन्द नहीं आता है।
इसलिए मैंने अपनी उत्तेजित वासना की शांति के लिए बाथरूम में जाकर हस्तमैथुन किया और लालसा की पूर्ति के लिए एक योजना बनाने एवं उसे कार्यान्वित करने के बारे में सोचने लगा।

रात को खाना खाने के बाद रमन जी और पापा बैठक में बैठे बातें कर रहे थे तथा लीना दीदी के कमरे में चली गई थी। मुझे पूरा विश्वास था कि उस समय अंजलि कमरे में नहीं होगी क्योंकि रात के समय वह छत पर अपने बॉयफ्रेंड से फ़ोन पर घंटों बातें किया करती थी।

मैंने कमरे के दरवाजे की ओट से छुप कर देखा कि लीना दीदी के साथ वाले बैड पर कुछ पढ़ने में व्यस्त थी।
अच्छा अवसर देख कर मैं कमरे में एक बहाने से घुसा और घुसते ही बोला- दीदी, आपने मेरी नीले रंग की कमीज़ देखी है क्या? मुझे कल कोचिंग क्लास में पहन कर जानी है।

क्योंकि दरवाज़ा भिड़ा हुआ था इसलिए मैंने उसे खोलते वक़्त ही जल्दी से ऐसा बोला था ताकि लीना को लगे कि मुझे मालूम नहीं था कि दीदी शयनकक्ष मैं है या नहीं।
मेरी आवाज़ सुन कर लीना उठ कर बैठ गई और उसने मेरी ओर देखते हुए बोली- दीदी तो कहीं गई हुई हैं, शायद ऊपर छत पर गई होगी।

मैं जब ओके कह कर मुड़ा और अपने कमरे की ओर जाने लगा तभी लीना ने मुझसे पूछा- आप कौन से स्कूल में पढ़ते हैं?
मुझे तो ऐसे ही मौके की तलाश थी जिससे मुझे उसके साथ बात करने का मौका मिले इसलिए मैं वहीं रुक गया और उसे उत्तर दिया- मैंने स्कूल की पढ़ाई समाप्त कर ली है और अब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा हूँ।

उस समय लीना दीदी के बैड के साथ वाले बिस्तर पर आलथी-पालथी मार कर बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी।
उसने हलके गुलाबी रंग की नाइटी पहने हुए थी जिस के किनारों पर बहुत ही खूबसूरत फूलों की बेल की कढ़ाई की हुई थी।
उस बैड के बगल में ही दीदी की पढ़ने की मेज एवं कुर्सी थी जिस पर कुछ और पत्रिकाएं भी पड़ी थी।

क्योंकि मेरे मन में लीना से कुछ देर बात करने की मंशा थी इसलिए मैंने उन पत्रिकाओं को उठाते हुए उससे पूछा- क्या तुमने ये सब पढ़ ली हैं?
लीना ने मेरी ओर देखते हुए कहा- नहीं, मैंने तो अभी इनको हाथ भी नहीं लगाया है, दीदी इन्हें मेरे पढ़ने के लिए अभी अभी यहाँ पर रख कर गई है।

तब मैंने उन पत्रिकाओं को मेज पर कुछ इस तरह से पटका कि वह मेज पर रखे पेन-स्टैंड से टकरा गई और उसे गिरा दिया तथा उसमें रखे सभी पेन-पेंसिल नीचे फर्श पर बिखर गए।
इससे पहले कि मैं उनको उठाने के लिए झुकता, लीना फुर्ती से आगे झुकी और उन पेन-पेंसिलों को बटोरने लगी।

क्योंकि उसकी नाइटी का गला काफी ढीला था इसलिए उसके आगे झुकने के कारण नाइटी का गला नीचे की ओर लटक गया और मुझे उसमे से उसके शरीर की सुन्दरता का एक अदभुत दृश्य देखने को मिला।
कमरे में लगी टयूब-लाईट की दूधिया रोशनी में मुझे उसकी नाइटी के लटके हुए गले में से उसकी दोनों उभरी हुई, कोमल लेकिन दृढ़ और सख्त चूचियां तथा उन पर लगी बादामी रंग की नुकीली एवं कड़क चूचुक दिखाई दी।

लीना उस समय नाइटी के नीचे ब्रा नहीं पहनी हुई थी इसलिए मुझे उसकी चूचियों के खुले दर्शन हो गए थे। उन चूचियों को और भी नज़दीक से देखने के लिए मैं भी उसके पास नीचे फर्श पर बैठ कर पेन पेंसिलें बटोरने में मदद करने लगा। मेरा ध्यान सामान बटोरने में कम था और लीना की बहुत ही गोरी चूचियों को देखने में अधिक केन्द्रित था, इसलिए बार बार मेरा हाथ उसके हाथ से टकरा जाता था।

उन कुंवारी गोरी चूचियों को इतने नज़दीक से देख कर मेरा मन डोलने लगा था और मेरी इच्छा हुई की मैं उसी समय उन्हें पकड़ कर मसल दूँ तथा उनका सारा रस चूस लूँ।
लेकिन किसी तरह मैं अपने को नियंत्रण में रखते हुए वहां से उठ खड़ा हुआ और मन ही मन दृढ निश्चय कर लिया था कि मैं जल्द ही उन चूचियों को चूस चूस कर उनका सारा रस निचोड़ कर अवश्य ही पियूँगा।

इधर मेरा लिंग एक झंडे के खम्बे की तरह खड़ा हो कर मेरे पजामे को तम्बू की तरह बना दिया था।
अब मेरे उस साढ़े छह इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे खम्बे को लीना की उस गुफा की तलाश थी जिसमें वह अपना झंडा गाड़ सके।

मैं उस उत्तेजित हालत में अपने कड़क लिंग को छुपाता हुआ वहां से तुरंत अपने कक्ष की ओर भागा और गुसलखाने में जा कर ही सांस ली।
वहाँ मैंने आँखें बंद करके लीना के उरोजों की छवि को देखते हुए अपने लिंग को शांत करने के लिए हस्त-मैथुन किया।

जब मैं गुसलखाने से बाहर निकला तब मैंने लीना को अपने कक्ष से बाहर जाते हुए देखा तो मैं अपने कक्ष में बैठ कर उसके वापिस आने की प्रतीक्षा करने लगा।
काफी देर हो जाने पर जब लीना नहीं लौटी तब मैंने सोचा कि उसे देख कर आता हूँ कि वह कहाँ चली गई थी।

मैंने बाहर गलियारे में देखा लेकिन वहां पर कोई भी दिखाई नहीं दिया, तब मुझे लगा कि शायद वह छत पर चली गईं होगी।

क्योंकि दीदी पहले से ही छत पर थी इसलिए मैंने ऊपर जाना ठीक नहीं समझा और लीना की तलाश छोड़ कर अपने कमरे में सोने चला गया।

मुझे कोचिंग क्लास के लिए जाना था इसलिए मैं सुबह सात बजे उठ कर तैयार हुआ और कोचिंग सेंटर चला गया।
दोपहर एक बजे जब घर वापिस आया तब मुझे लीना की याद आई और मैंने उसे पूरे घर में घूम कर ढूंढा पर वह कहीं भी दिखाई नहीं दी।

जब मुझे घर में रमन जी भी दिखाई नहीं दिए तब मैंने अनुमान लगाया की शायद वह दोनों कॉलेज में लीना के प्रवेश की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए गए हुए होंगे।

क्योंकि माँ और दीदी से लीना के बारे कुछ भी पूछना मुझे ठीक नहीं लगा इसलिए मैं चुपचाप अपने कमरे में जा कर बैठ गया।
दो बजे बाहर के दरवाज़े की घंटी बजी तब मैंने दौड़ कर दरवाज़ा खोला तो वहां रमन जी और लीना को खड़े पाया।

वे दोनों अन्दर आये और सीधा अतिथि-कक्ष में चले गए और मैं मम्मी को उनके आने की सूचना देने चला गया।
मम्मी ने तुरंत उठ कर उन दोनों को पानी पिलाया और फिर उन्हें खाने के लिए भोजनकक्ष में आने के लिए कह कर रसोई में चली गई।
जब मैं उन दोनों को खाने के लिए बुलाने के लिए अतिथि-कक्ष में गया तब देखा की रमन जी अपना सामान बाँध रहे थे।
मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की जिस काम के लिए आये थे वह तो हो गया था अब बाकी की सारी प्रक्रिया के लिए उनकी आवश्यकता नहीं थी तथा उसे लीना खुद पूरी कर लेगी।

मैंने मम्मी की सहायता के लिए खाने की मेज़ पर प्लेटें सजा दी तथा हम सब ने साथ बैठ कर खाना खाया।
खाना खाते समय रमन जी ने बताया कि वे शाम की साढ़े पांच बजे की गाड़ी से वापिस अपने घर चले जायेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि लीना को कुछ दिनों के लिए हमारे घर पर ही छोड़ जायेंगे क्योंकि उसके कॉलेज के प्रवेश का परिणाम एक सप्ताह बाद ही पता चलेगा।

उन्होंने कहा- भाभी जी, मैंने भाई साहिब से बात करी थी की लीना को जिस किसी कॉलेज में प्रवेश मिलेगा उसके दाखिले की सभी प्रक्रिया पूरी करने तक तो उसे आपके घर रहना पड़ेगा। मुझे आशा है कि इसमें आपको कोई आपत्ति नहीं होगी। दाखिले की प्रक्रिया समाप्ति के बाद मैं आ कर उसे वापिस अपने घर ले जाऊँगा।

माँ ने तुरंत उत्तर दिया- नहीं भाई साहब, इसमें परेशानी की क्या बात है। मेरे लिए जैसी अंजलि है, वैसी ही लीना है।

रमण जी के मुख से यह सुखद समाचार सुन कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि मुझे पूरी आशा थी कि इन कुछ दिनों में मुझे लीना के कामुक जिस्म के खुले दर्शन का मौका ज़रूर मिल जाएगा।

शाम पांच बजे मैं रमन जी को अपनी बाईक पर बैठा कर स्टेशन ले गया और उन्हें साढ़े पांच बजे की गाड़ी पर चढ़ा कर वापिस घर आया।
कहानी जारी रहेगी।
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