पिया संग पीहर में !

(Piya Sang Peehar mein)

बरखा 2008-08-25 Comments

मेरी सच्ची कहानी मसक कली मौसी

अब तक मेरे बताए अनुसार गुरुजी ने आपके सामने प्रस्तुत की। पहले तीन भागों में आपने पढ़ा कि कैसे मेरी मौसी भ्रामरी देवी ने मुझे समलैंगिक यौन सुख प्रदान किया।

अब मसक कली मौसी से आगे !

वादे के अनुसार अपनी सुहागरात की कहानी अपनी जुबानी बता रही हूँ।

शायद यह जानकर आपको थोड़ी हैरानी होगी कि हमारे समाज में रिवाज़ है कि लड़की की सुहागरात मायके में ही ससुराक जाने से पहले हो जाती है।

मेरी शादी की सभी रस्में शाम चार बजे तक हो गई थी और सुहागरात की रस्म रात को थी।

मेरी सहेलियों ने मिल कर मेरी सुहाग-सेज़ सजा दी। मौका देख कर मुझे मौसी ने काफ़ी सीख दी कि ऐसे करना, वैसे करना, क्या बात करनी है और क्या नहीं करनी है।

लेकिन मैं घबराई हुई थी। मेरे मन में डर का चोर था क्योंकि मेरा योनि-भेदन मौसी पहले ही कर चुकी थी और मुझे डर था कि मेरे पति अजय पाल सिंह को आभास हो गया कि मेरी योनि कुंवारी नहीं है तो पता नहीं मुझे स्वीकार करेंगे भी या नहीं। मौसी मुझे पहले ही समझा चुकी थी कि लिंग-प्रवेश के समय तो अपनी टांगें भींच लेना ताकि लिंग आसानी से अन्दर ना जा पाए और पति को शक ना होने पाए।

रात को मैं अपनी सुहाग-सेज़ पर बैठी अपने पति की प्रतीक्षा कर रही थी। मैंने तो कभी इनसे बात भी नहीं की थी, मुझे कुछ पता ही नहीं था इनके स्वभाव के बारे में !

जैसे ही ये कमरे में आए, मेरा दिल धक धक करने लगा। मेरी ननद रागिनी ने कमरे का दरवाज़ा बन्द कर दिया और शायद बाहर से कुण्डी भी लगा दी थी।

ये आकर मेरे पास बैठे, मेरे कन्धे पर हाथ रखा और बोले- बरखा !

मैं तो बस काम्प कर रह गई और अपने में सिमट गई। कभी लगता मेरा गला सूख रहा है तो कभी लगता कि मेरे गले में आवाज़ ही नहीं है।

इन्होंने मेरे दोनों कन्धे पकड़ लिए और बोले- बरखा, इतना क्यों घबरा रही हो?

मेरे सिर-मुख पर चुनरी का आवरण था, मैंने नज़र उठा कर इन्हें देखा तो चुनरी में से इनका चेहरा साफ़ दिख रहा था। मैं चुप ही रही।

इन्होंने मुझे अपनी और झुकाते हुए अपने सीने से लगाया और बोले- घबराओ मत !

फ़िर एक हाथ से मेरे चेहरे से चुनरी हटाने लगे तो अनायास ही मेरे दोनों हाथ मेरे चेहरे पर आ गए और मैंने अपना चेहरा छिपा लिया। इन्होंने मुझे सीधा किया और अपने होंठ मेरे हाथों के पृष्ठ भाग पर रख दिए। मैं सिहर उठी। यह मेरा प्रथम पुरुष स्पर्श था।

फ़िर अपने हाथों से मेरे हाथ हटाते हुए बोले- अब तो इस सलोने मुखड़े के दीदार करा दो ! छः महीने से तड़प रहा हूँ !

हमारी सगाई विवाह से छः महीने पहले हो गई थी और तब भी ये मेरा चेहरा नहीं देख पाए थे। हमारे यहाँ के रिवाज़ ही कुछ ऐसे हैं।

जैसे ही मेरे हाथ हटे मेरी आँखें बन्द हो गई। इन्होंने एक एक करके मेरी दोनों आँखों पर चूमा और मुझे गले लगा लिया।

इनका प्यार देख कर मैं तृप्त हो गई मगर एक भय फ़िर मेरे मन में घर करने लगा- अगर इनको मेरे कौमार्य पर शक हो गया तो ? तो क्या मैं इनका इतना प्यार प्राप्त कर पाऊँगी? मेरी आँखों से आंसू बह निकले !

ये भी मेरी घबराहट को महसूस कर रहे थे और मेरी पीठ सहला कर मुझे शान्त करने की कोशिश कर रहे थे। इसी क्रम में मेरी चुनरी मेरे सिर पर से हट चुकी थी। इन्होंने मेरी पीठ से चुनरी हटानी चाही तो मेरे बोल निकले- दरवाजे की कुण्डी तो लगा लो !

ओह ! अच्छा !

ये उठे और मैं फ़िर से चुनरी औढ़ कर ठीक से बैठ गई।

अजय वापिस आए तो मुस्कुरा उठे। चुनरी की आड़ से मैं इन्हें देख रही थी।

ये कुछ नहीं बोले और बस मेरी गोद में अपना सिर रख कर लेट गए। अब तो मैं और फ़ंस गई। अब ये मेरे घूंघट से मेरा चेहरा स्पष्ट देख पा रहे थे। मेरे वक्ष इनके माथे को स्पर्श कर रहे थे और शर्म के मारे मेरी आँखें बन्द हुई जा रही थी।

मैं करूँ तो क्या ?

इनके होंठों पर मधुर मुस्कान थी। ये मेरे मन पर छा गए। अचानक इन्होंने मेरे चेहरे को झुका मेरे मेरे होंठ चूम लिए। मैं सिहर कर रह गई !

मन ही मन मैं सोचने लगी कि आने वाले पल कैसे होंगे? क्या होगा आगे? अगर मेरी चोरी पकड़ी गई तो? क्या होगा जब इन्हें पता चलेगा मेरी असलियत का? किसी तरह आज की रात टल जाए बस !

मैंने सोचा कि कैसे भी हो आज की रात टल जाए ! बाद की बाद में देखी जाएगी।

मैंने चुनरी खींच कर अपने चेहरे पर लपेट सी ली तो इनके और मेरे चेहरे के बीच एक पर्दा हो गया। इन्हें शरारत सूझी और अपना चेहरा मेरे वक्ष पर दबाने लगे। मुझे लगा कि आज मैं नहीं बचूँगी, ये तो उतावले हो रहे हैं।

मैं इनको बातों में लगाने के लिए बोली- बाहर सब जाग रहे हैं ! आज ये सब रहने दो, कुछ बात करो ना !

शायद अजय को मेरी बात ठीक लगी और ये मुझसे बातें करने लगे ! मुझे बताने लगे कि हम लोग हनीमून के लिए शिमला जा रहे हैं लेकिन हिसार पहुँचने के 4-5 दिन बाद।

इसी तरह की बातें करते करते हम दोनों कब सो गए पता ही लगा।

जी हाँ ! हम दोनों सुहागरात को भी सो गए थे।

मुझे सुबह जल्दी उठने की आदत थी तो मैं छः बजे के करीब जाग गई तो अपने को इनकी बाहों में पाया। ये सो रहे थे, मैंने धीरे से अपने को इनसे छुड़ाया और उठ कर बाथरूम जाकर हाथ-मुँह धोए।

दरवाजा खोल कर बाहर गई तो वहीं पर मौसी और मम्मी सो रही थी।

धीरे से मौसी को जगाने की कोशिश की लेकिन मम्मी जैसे जाग ही रही थी।

मम्मी ने पूछा- इतनी जल्दी जाग गई तू? कुंवर सा सो रहे हैं? उनको छोड़ कर क्यों आ गई तू? कोई परेशानी तो नहीं हुई रात को?

मम्मी का आशय मैं समझ गई थी पर अनजान बनते हुए बोली- कैसी परेशानी? ये सो रहे हैं! मैं क्या करूँ?

हमारी खुसर-फ़ुसर से मौसी भी जाग गई थी और हमारी बातें सुन रही थी। मौसी और मम्मी दोनों मेरी ओर से चिन्तित थी, मैं जानती थी, यह भी जानती थी कि दोनों की परेशानी का कारण अलग अलग है। मौसी को तो वही मेरे वाला डर सता रहा था जबकि मम्मी शायद मेरे प्रथम सहवास को लेकर परेशान थी कि पता नहीं कैसे क्या हुआ होगा, कोई परेशानी या तकलीफ़ वगैरा वगैरा !

मौसी ने मम्मी को चाय बनाने को कह कर रसोई में भेज दिया और अधीर होकर मुझसे पूछ्ने लगी- ठीक रहा?

मैं गर्व से बोली- मैंने कुछ होने ही नहीं दिया।

मौसी आश्चर्य से बोली- क्या?

हाँ मौसी ! हमने कुछ ऐसा किया ही नहीं ! अभी तक तो बच गई ! आगे पता नहीं क्या होगा?

मौसी थोड़ी संतुष्ट भी दिखी और थोड़ी बेचैन भी ! बोली- जंवाई सा नै कोसिस बी ना करी?

मैंने उत्तर दिया- शायद इनका मन तो था कुछ करने का पर मैंने टाल दिया, कहा कि जब हनीमून पर जाएंगे तब करेंगे !

मौसी बोली- इब जिज्जी नै के बतावैगी?

मैं बोली- मैं क्या बताऊंगी?

कहानी जारी रहेगी !

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