ससुर और बहू की कामवासना और चुदाई-7

(Sasur Bahu Ki Kamvasna Aur Chudai- Part 7)

अभी तक की इस कामवासना से भरपूर बहु की चुदाई कहानी में आपने पढ़ा कि हम ससुर बहू अपने केबिन के बाहर की दुनिया से बेपरवाह अपनी ही दुनिया में खोये हुए सेक्स का मजा कर रहे थे.

अब शाम हो चुकी थी, तभी कूपे के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया, मैंने खोल कर देखा था पेंट्री कार का स्टाफ चाय नाश्ता लिए खड़ा था.
चाय से निबट के बहूरानी बोली- पापा जी, अब मैं कुछ देर सोना चाहती हूँ.
और वो ऊपर की बर्थ पर चली गयी.
मैं भी अलसाया सा लेट गया.

जब हम लोग जागे तो चारों ओर अँधेरा घिर चुका था. बहूरानी टॉयलेट जाकर फ्रेश हो आयी फिर उसने अपने उलझे बाल सँवारे और हल्का सा मेकअप किया. इसी बीच मैं भी फ्रेश हो आया; अब कुछ ताजगी महसूस होने लगी थी. फिर हम दोनों कूपे से बाहर निकले और कम्पार्टमेंट के तीन चार चक्कर लगा डाले ताकि टहलना हो जाय और हाथ पैर खुल जायें.

ट्रेन साढ़े नौ के करीब भोपाल जा पहुंची. हम लोगों का डिनर हो चुका था और अब हमारी जर्नी लास्ट लैप में थी. सुबह छह बजे हमें निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन (दिल्ली में कई रेलवे स्टेशनों में से एक) पहुंच जाना था. अब कोई सात आठ घंटे ही हमारे पास थे.

“अदिति बेटा!”
“हां जी पापा जी?”
“दस बजने वाले हैं सवेरे छह बजे हम दिल्ली पहुंच जायेंगे. बस यही रात है हमारे पास!” मैंने कुछ दुखी होकर कहा.
“हां पापा जी, फिर न जाने कब ऐसा मौका मिले!” बहूरानी जी भी कुछ मायूस होकर बोली.
“चलो बेटा, बत्ती बुझा दो, फिर सोते हैं!” मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और लेटते हुए कहा.
“ओ के पापा जी!” बहूरानी बोली और फिर लाइट्स ऑफ हो गयीं, कूपे में घुप्प अँधेरा छा गया.

मुझे बहूरानी के कपड़े उतरने की सरसराहट सुनाई दी और फिर उसका नंगा जिस्म मुझसे लिपट गया और उसका एक हाथ मेरे बालों में कंघी करने लगा. मैंने भी उसे अपने से चिपटा लिया और उसके स्तनों से खेलने लगा.
बहूरानी मेरी छाती को सहलाने लगी, उसका हाथ मेरे सीने पर पेट पर सब जगह फिरने लगा, फिर उसने मेरी छाती चूमना शुरू कर दी. बार बार लगातार… ऐसा वो पहली बार कर रही थी.

“क्या बात है बहूरानी, आज यूं मेरी छाती ही चूमे जा रही हो; चूमना ही है तो लंड है नीचे की तरफ!” मैंने मजाक किया.
“पापा जी, जो बात इस सीने में है वो लंड में कहां!” वो मेरे बायें निप्पल को मसलते हुए बोली.
“क्या मतलब? मेरी छाती में कौन से मम्में लगे हैं… हहहहा” मैंने हँसते हुए कहा.
“पापा जी, ये राज की बातें हैं. हम लेडीज को पुरुष की चौड़ी छाती ही सबसे ज्यादा अटरेक्ट करती है, आदमी की चौड़ी छाती हमें एक सिक्योर फीलिंग देती है फिर आपके इस चौड़े चकले सीने के तले पिसते हुए आपके लम्बे मोटे लंड की ठोकरें चूत को वो मजा देती हैं कि आत्मा तक तृप्त हो जाती है.”

“अच्छा? अगर चौड़े सीने वाले आदमी का लंड छोटा सा पतला सा हुआ तो?” मैंने हँसते हुए कहा.
“पापा जी, वो बाद की बात है. मैंने तो ये कहा कि पहला इम्प्रेशन इस सीने का ही होता है हम लड़कियों पर; मर्द का चौड़ा मजबूत सीना हम फीमेलज़ को सेक्सुअली अपील करता है.” बहूरानी बोली और मेरे ऊपर मेरे सीने पर लेट गयी; उसके मम्में मेरी छाती में पिसने लगे.
उधर मेरा लंड चूत में घुसने की आशा में झट से खड़ा हो गया.

फिर बहूरानी ने मुझ पर बैठ के मेरा सुपारा अपनी चूत के छेद पर सेट किया और लंड को दबाने लगी. उसकी गीली रसीली चूत मेरे लंड को कुछ ही पलों में समूचा लील गयी. फिर बहूरानी जी मेरा लंड यूं अपनी चूत में घुसाये हुए मेरे ऊपर शांत लेट गयी. मेरे हाथ उसके नितम्बों पर जा पहुंचे, उसके गोल गोल गुदाज नितम्बों को मुट्ठी में भर भर के मसलने दबाने का मजा ही अलग आया.
फिर मेरी कमर धक्के लगाने को उछलने लगी.

“पापा जी, धक्के नहीं लगाओ… बस चुपचाप यूं ही लेटे रहो रात भर!” बहूरानी बोली और मेरा निचला होंठ चूसने लगी.
“ठीक है अदिति बेटा… एज यू लाइक!” मैंने कहा और अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया.

रात के सन्नाटे को चीरती हुई बंगलौर दिल्ली राजधानी अपने पूरे वेग से आंधी तूफ़ान की तरह अपने गंतव्य की ओर भागी दौड़ी चली जा रही थी. मेरे ऊपर जैसे कोई सुगन्धित रेशम का ढेर हो वैसी ही फीलिंग देता बहूरानी का नंगा जिस्म मुझसे लिपटा हुआ था. उसकी चूत से कल कल बहता रस मेरी जांघों को भिगोने लगा था.

“पापा जी…” बहूरानी मेरे कान में फुसफुसायी.
“हां बेटा?”
“जब ट्रेन किसी छोटे स्टेशन पर पटरियाँ चेंज करती है तो कितनी मस्त आवाजें आती हैं न…” बहूरानी जी अपनी चूत मेरे लंड पर धीरे से घिसते हुए बोली.
“अबकी छोटा स्टेशन आये, तो आप ध्यान से सुनना!” वो फिर बोली.
“हां बेटा, इन पटरियों का भी अपना संगीत है.” मैं बोला.

“आधी रात बीतने को थी; कभी कभी विपरीत दिशा से आती कोई ट्रेन हमें क्रॉस करती हुई निकल जाती. बहूरानी से मिलन का ये अलौकिक आनन्द अलग ही अनुभूति दे रहा था. चुदाई और सम्भोग का फर्क अब महसूस होने लगा था. नीरव अन्धकार में संभोगरत दो जिस्म आपस में कम्युनिकेट कर रहे थे जहां शब्दों की आवश्यकता ही नहीं थी. न कुछ देखने की जरूरत थी न कुछ सुनने की… योनि और लिंग के मिलन की वो अलौकिक अनुभूति जिसे शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं. चूत में घुस के आनन्द लूटता और लुटाता लंड का आनन्द देखने की चीज नहीं महसूस करने वाली बात है.

तभी किसी छोटे स्टेशन से ट्रेन गुजरने लगी. मेन लाइन से लूप लाइन पर जाती ट्रेन फिर वापिस मेन लाइन पर आती हुई… पटरियों की खटर पटर सच में एक मीठा उन्माद भरा संगीत सुनाने लगी.

“पापा जी… अब आप ऊपर आ जाओ, थक गई मैं तो!” बहूरानी बोली और मेरे ऊपर से हट गयी.
मैं भी उठ के अलग हो गया.
फिर वो बर्थ पर लेट गयीं.

“बहूरानी बेटा… अपनी चूत खोल न!” मैं उस पर झुकते हुए बोला.
“वो तो मैंने पहले ही अपने हाथों से खोल रखी है पूरी… आ जाओ आप जल्दी से!” वो बेचैन स्वर में बोली.

मैं उसके ऊपर झुका और उसने खुद ही मेरा लंड पकड़ कर सही जगह पर रख कर उसे ज़न्नत का रास्ता दिखा दिया. मैंने भी देर न करते हुए लंड से एक करारा शॉट लगा दिया; लंड फचाक से बहूरानी की चूत में जड़ तक समा गया.

बहूरानी ने मुझे अपने आलिंगन में भर कर प्यार से चूमा और अपनी कमर ऊपर तक उठा के मेरे लंड का सत्कार किया- बस पापाजी, ऐसे ही लेटे रहिये मेरे ऊपर चुपचाप!
वो बोली और अपने घुटने मोड़ के ऊपर उठा लिए; अब उसकी चूत का खांचा अपने पूरे आकार में आ चुका था; मैंने अपने लंड को और दबाया तो लगभग एक अंगुल के करीब लंड और सरक गया चूत में.
यूं लंड घुसाये हुए चुपचाप शांत पड़े रहने का भी एक अलग ही मजा है; जी तो कर रहा था कि ताबड़तोड़ धक्के लगाऊं उसकी चूत में; बहूरानी का दिल भी पक्का कर रहा होगा लंड उसकी चूत में सटासट अन्दर बाहर होने लगे तो उसे चैन आये.

हम दोनों को ही मिसमिसी छूट रही थी लेकिन खुद पे काबू किये हुए जैसे तैसे एक दूसरे की हथेलियों में हथेली फंसाए होंठों को चूस रहे थे.
ये सब कोई आधा घंटा चलता रहा.

“पापा जी… अब नहीं रहा जाता, नहीं सहा जाता मुझसे… मेरी चूत में चीटियाँ सी रेंग रहीं है बहुत देर से!”
“तो क्या करूं बता?” मैंने उसका गाल काटते हुए कहा.
“अब तो आप मुझे जल्दी से चोद डालो पापा!”
“अभी तो तू कह रही थी कि चुपचाप पड़े रहना है… अब क्या हुआ?”
“पापा, मेरी चूत में बहुत तेज खुजली मच रही है… ये आपके लंड से ही मिट सकती है… फक मी हार्ड पापा डार्लिंग!” बहूरानी अधीरता से अपनी चूत ऊपर उचकाते हुए बोली.

लंड तो मेरा भी कब से तड़प रहा था उसकी चूत में उछलने के लिए तो मैंने पहले बहूरानी के निप्पल जो सख्त हो चुके थे, उन्हें मसल कर बारी बारी से चूसा, साथ में अपनी कमर को उसकी चूत के दाने पर घिसा.
“हाय राजा… मार ही डालो आज तो!” बहू रानी के मुंह से आनन्द भरी किलकारी सी निकली.
“ये लो मेरी रानी…” मैंने भी कहा और लंड को बाहर तक निकाल कर पूरी दम से पेल दिया चूत में!
“हाय राजा जी… ऐसे ही चोदो अपनी बहूरानी को!” बहूरानी कामुक स्वर में बोली और मेरे धक्के का जवाब उसने अपनी चूत को उछाल कर दिया.

“हाय… कितनी मस्त कसी हुई टाइट चूत है मेरी अदिति बिटिया की!” मैंने जोश में बोला और फुल स्पीड से अपनी बहू को चोदने लगा.
“हां पापा.‍ऽऽऽ… ऐसे ही… अपनी अदिति बिटिया की चूत बेदर्दी से चोदो, इस राजधानी से भी तेज तेज चोदिये… आःह! कितना मस्त लंड है आपका… पापा खोद डालो मेरी चूत… अब आप ही मालिक हो इस चूत के!” बहूरानी जी ऐसे ही वासना के नशे में बोलती चली जा रही थी.

मैं भी अपने पूरे दम से लंड चला रहा था बहूरानी की चूत में; उसकी चूत से आती चुदाई की आवाजें पूरे कूपे में गूँज रहीं थीं. चूत की फचफच और ट्रेन चलने की आवाज एक दूसरे में मिल कर मस्त समां बांध रहीं थीं.

“पापा जी अब डॉगी पोज में चोद दो मुझे अच्छे से!” बहूरानी ने फरमाइश की.
“ओके बेटा जी… चल डॉगी बन जा जल्दी से!” मैं बोला और उसके ऊपर से हट गया.

बहूरानी ने बर्थ से उतर कर कूपे की लाइट जला दी; रोशनी में उसका किसी चुदासी औरत जैसा रूप लिए उसका हुस्न दमक उठा… कन्धों पर बिखरे बाल… गुलाबी प्यासी आँखें… तनी हुई चूचियाँ… चूचियों की घुन्डियाँ फूल कर अंगूर जैसी हो रहीं थीं और उसकी चूत से बहता रस जांघों को भिगोता हुआ घुटनों तक बह रहा था.

फिर बहूरानी शीशे के सामने जा खड़ी हुयी, कुछ पलों के लिये उसने खुद को शीशे में निहारा, फिर झुक गयीं और सामान रखने वाले काउंटर का सहारा लेकर डॉगी बन गयी. उसके गीले चमकते हुए गोल गुलाबी नितम्बों का जोड़ा मेरे सामने था जिनके बीच बसी चूत का छेद किसी अंधेरी गुफा के प्रवेश द्वार की तरह लग रहा था.

मैंने नेपकिन से अपने लंड को पौंछा, फिर उसकी चूत और जांघें पौंछ डाली और लंड को चूत के छेद पर टिका के सुपारा भीतर धकेल दिया. उसकी चूत अभी भी भीतर से बहुत गीली थी जिससे समूचा लंड एक ही बार में सरसराता हुआ घुस गया और मैंने नीचे हाथ ले जाकर दोनों मम्में पकड़ लिए और चूत में धक्के मारने लगा.

“लव यू पापा… यू फक सो वेल!” बहूरानी चुदाई से आनन्दित होती हुई चहकी.

“या अदिति बेटा… यू आर आल्सो ए रियल जेम… सच ए नाईस टाइट कंट यू हैव इन बिटवीन योर थाइस!” मैं भी मस्ती में था.
“सब कुछ आपके लिए ही है पापा… आप जैसे चाहो वैसे भोगो मेरे जवान जिस्म को!” बहूरानी समर्पित भाव से बोली.

अब मैंने उसके सिर के बाल पकड़ कर अपने हाथों में लपेट कर खींच लिए जिससे उसका चेहरा ऊपर उठ गया और मैं इसी तरह उसकी चूत मारने लगा; बीच बीच में मैं उसके नितम्बों पर चांटे मारता हुआ उसे बेरहमी से चोदने लगा. बहूरानी भी पूरे आनन्द से अपनी चूत आगे पीछे करते हुए लंड का मजा लूटने लगी. हमारी जांघें आपस में टकरा टकरा के पट पट आवाजें करने लगी.

और चुदाई का यह सनातन खेल कोई दस बारह मिनट और चला और फिर मेरा लंड फूलने लगा झड़ने के करीब हो गया.
“बहूरानी, अब मैं झड़ने वाला हूं तुम्हारी चूत में!”
“झड़ जाइए पापा जी; मेरा तो दो बार हो भी चुका और तीसरी बार भी बस होने ही वाला है…”

फिर मैंने आखिरी पंद्रह बीस धक्के और मारे, फिर बहू की पीठ पर झुक गया और मम्मे थाम लिये. मेरे लंड से रस की फुहारें छूट छूट कर बहूरानी की चूत को तृप्त करने लगीं. उसकी चूत भी संकुचित हो हो कर मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी.
अंत में मेरा लंड वीरगति को प्राप्त होता हुआ चूत से बाहर निकल आया और उसकी चूत से मेरे वीर्य और उसके रज का मिश्रण बह बह कर टपकने लगा.

जब हम अलग हुए हुए तो सवा बारह बजने ही वाले थे.
“चल बेटा अब सोते हैं, छह बजे ट्रेन निजामुद्दीन पहुंच जायेगी. हमें पांच सवा पांच तक उठना पड़ेगा.”

“ओके पापा जी!” बहूरानी बोली और उसने अपनी ब्रा पैंटी पहन ली और बर्थ पर जा लेटी. मैं भी अपने पूरे कपड़े पहन कर बत्ती बुझा कर उसके बगल में जा पहुंचा.
“गुड नाईट पापा जी!” बहूरानी मेरी तरफ करवट लेकर बोली और अपना एक पैर मेरे ऊपर रख लिया.
“गुड नाईट बेटा जी!” मैंने भी कहा और उसका सिर अपने सीने से सटा लिया और उसे थपकी देने लगा जैसे किसी छोटे बच्चे को सुलाते हैं.

सुबह पांच बजकर दस मिनट पर हम उठ गये. तैयार होकर बहूरानी ने वही साड़ी पहन ली जो वो बंगलौर से पहन कर निकली थी और एक संस्कारवान बहू की तरह अपना सिर ढक आंचल से ढक लिया.

ट्रेन हजरत निजामुद्दीन समय से पहुंच गयी. बहूरानी के मायके वाले हमें रिसीव करने आये थे, सब लोगों से बड़ी आत्मीयता से हाय हेलो हुई और हम लोग अपने ठहरने की जगह की ओर निकल लिए.

तो मित्रो ‘ससुर और बहू की कामवासना’ यहीं समाप्त होती है. विश्वास है कि मेरी पिछली कहानियों की तरह यह भी आप सब को पसंद आई होगी. निवेदन है कि सभी पाठक गण अपनी अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव इत्यादि नीचे लिखी मेरी ई मेल आई डी पर जरूर भेजें.
धन्यवाद.
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