कामना की कामवासना -4

(Kamna Ki Kaamvasna-4)

टी पी एल 2015-02-28 Comments

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मेरे खुले मुख को देख कर ससुरजी मुस्करा पड़े और उन्होंने बड़े ही आराम से अपने लिंग को उसके अंदर धकेल दिया तथा आहिस्ता आहिस्ता धक्के देकर अंदर बाहर करने लगे।

मुख-मैथुन की क्रिया करते हुए लगभग पांच मिनट ही हुए थे जब मुझे उनके लिंग में से नमकीन पूर्व-रस निकलने का स्वाद आया तब मैंने उन्हें रुकने का संकेत दिया और अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी।

मेरा संकेत समझ कर वे तुरंत मेरी टांगों के बीच में बैठ गए और मेरी गीली योनि को चूसने एवं चाटने लगे।

कभी वे मेरी योनि के होंटों को अपने मुहं में ले कर चूसते, तो कभी वे मेरे भगनासा को अपने होंटों एवं जीभ से मसलते और कभी अपनी जीभ के योनि के अन्दर डाल कर मेरे जी स्पॉट को भी रगड़ देते।

दस मिनट तक उनकी इस तिकोणी क्रिया के कारण मैं इतनी उत्तेजित हो गई कि मैंने कई बार अपने कूल्हे उछाल कर उनका साथ दिया और दो बार तो उनके मुख पर योनि-रस की बौछार भी कर दी।

मेरे द्वारा दूसरी बार रस की बौछार होते ही वह उठ बैठ गए और अपने लिंग को मेरी योनि के मुख पर स्थिर करके मेरे ऊपर लेट गए तथा हल्का सा धक्का लगा कर अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर सरका दिया।

कुछ क्षणों के बाद ससुरजी ने एक धक्का और लगा कर अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि में घुसेड़ दिया और आहिस्ता आहिस्ता उसे अन्दर बाहर करने लगे।

एक माह के बाद लिंग का स्वाद मिलने पर मेरी योनि के अंदर हलचल होने लगी और वह आवेश में आ कर लिंग को जकड़ कर आलिंगन करने लगी।

जब ससुरजी अगले दस मिनट तक योनि की इस जकड़न में फसे अपने लिंग को आहिस्ता आहिस्ता अंदर बाहर करते रहे तब मैंने उन्हें गति को बढ़ाने के लिए कहा।

मेरी बात सुन कर जब ससुरजी ने अपनी गति बढ़ा दी तब मैंने भी उनकी गति के अनुसार अपने चूतड़ उछाल कर उनका साथ देने लगी।

पांच मिनट के बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मेरी योनि के अंदर सभी मांस-पेशियाँ सिकुड़ने लगी तथा योनि ने ससुरजी के लिंग को जकड़ लिया।

ऐसी हालत में ससुरजी ने अपनी गति को बहुत ही तीव्र कर लिया और खूब जोर लगा कर लिंग को मेरी योनि के अंदर बाहर करने लगे जिससे हम दोनों के गुप्तांगों को बहुत तेज़ रगड़ लगने लगी।

इस तीव्र गति से सम्भोग करते हुए पांच मिनट ही हुए थे कि मैंने बड़े ऊँचे स्वर में सिसकारी ली और तभी ससुरजी भी जोर से चिल्ला उठे तथा हम दोनों ने एक साथ ही अपने अपने रस को स्खलित कर दिया!

हम दोनों के अकड़े हुए शरीर एक दूसरे से चिपके हुए थे और हम उस समय उतेजित कामवासना की चरम-सीमा पर मिलने वाली संतुष्टि का आनन्द उठा रहे थे।

उसके तुरंत बाद हम पसीने से भीगे शरीर लिए और हाँफते हुए निढाल हो कर अगले पांच मिनट के लिए मैं नीचे तथा ससुरजी मेरे ऊपर लेट रहे।

फिर ससुर जी मेरे ऊपर से हटे और अपने सिकुड़े हुए लिंग को मेरी योनि में से बाहर निकाल कर मेरे स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर मेरी बगल में मुझ से लिपट कर सो गए।

कुछ देर के बाद मुझे भी नींद आ गई और सुबह पांच बजे जैसे ही ससुरजी उठ कर जाने लगे तभी मेरी भी नींद खुल गई।

मुझे जागे हुए देख कर ससुरजी ने झुक कर मेरे होंठों को चूमा और मुस्कराते हुए पूछा- कामना, तुम्हारी गर्मी का इलाज़ हो गया या फिर अभी भी गर्मी लग रही है?

मैंने मुस्कराते हुए उन्हें चूमा और उत्तर दिया- पापाजी, किसी भी स्त्री की इस गर्मी का कोइ स्थायी उपचार नहीं होता है। हाँ आपने कुछ समय के लिए मेरी इस गर्मी का अस्थायी इलाज़ तो कर दिया है लेकिन देखते हैं कि इसका असर कितनी देर तक रहता है। कहीं ऐसा ना हो कि दिन में भी यह गर्मी मुझे फिर सताने लगे और इसके इलाज़ के लिए मुझे आपको ऑफिस से बुलाना पड़े।

मेरी बात सुन कर ससुरजी हंस पड़े और मेरे स्तनों को मसलते हुए मुझे एक बार फिर चूमा और मेरी योनि पर हाथ हुए बोले- कामना, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे अभी एक बार फिर से वही आनन्द और संतुष्टि देने को तैयार हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि दिन भर तुम्हें इस गर्मी के कारण कोई परेशानी हो।

ससुरजी की बात सुन कर और उनके तने हुए लिंग को देख कर मैंने उन्हें उत्तर दिया- पापाजी, मुझे दिखाई दे रहा है कि आपकी कामवासना जागृत हो चुकी है और आप एक बार फिर से रात जैसा आनन्द लेना चाहते है। इस बारे में आपको पूछने की ज़रूरत नहीं है। जब तक मैं अमेरिका नहीं चली जाती तब तक आप को जब भी यह आनन्द उठाना हो आप बिना झिझक आनन्द उठा सकते हैं।

मेरी बात सुन कर ससुरजी बोले- कामना, सच कहूँ तो तुमने मेरी सोई हुई कामवासना जगा दी है। तुमने जितना आनन्द मुझे रात को दिया था उतना ही आनन्द तुम्हारी स्वर्गीय सास भी मुझे दिया करती थी। तुमने बिल्कुल ठीक कहा है कि मेरी बहुत इच्छा कर रही है कि हम दोनों अभी इसी समय एक बार फिर से उसी आनन्द और संतुष्टि को प्राप्त करें।

उनकी बात सुन कर मेरी भी कामवासना जाग उठी इसलिए मैंने कहा- पापाजी, मैं भी आप को बताना चाहूँगी कि रात को मुझे भी उतना ही आनन्द और संतुष्टि प्राप्त हुई है जितनी आपका बेटा अजय मुझे देता है। मैं तो उस समय भी यही समझ रही थी कि अजय ही मेरी कामवासना को शांत कर रहा है।

फिर मैंने अपनी टाँगे चौड़ी करते हुए उन्हें कहा- पापाजी, नेकी और पूछ पूछ किस लिए? लीजिये मैं आप की कामवासना को शांत करने और आप को पूर्ण आनन्द देने के लिए तैयार हूँ। आइये जल्दी से आ जाइए, क्योंकि छह बजे कामवाली आ जाएगी।

मेरी बात सुन कर ससुरजी ने झुक कर मुझे होंठों पर चूमना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे स्तनों एवं चुचूकों को मसलना तथा अपने दूसरे हाथ की बड़ी उंगली को मेरी योनि में डाल कर घुमाने लगे।

पांच मिनट के बाद ससुरजी ने मेरे होंठों को छोड़ दिया और मेरे स्तनों को मसलने एवं चूसने लगे तथा मेरी योनि के अंदर मेरे जी-स्पॉट को अपनी उंगली से रगड़ने लगे।

उनकी इस हरकत के कारण मैं शीघ्र ही उत्तेजित हो उठी और अपने चूतड़ उठा कर उनका साथ देने लगी तथा मुँह से ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ भरने लगी।

मेरी सिसकारियां सुन कर ससुरजी बहुत ही उत्तेजित हो उठे और अगले ही क्षण वह मेरे ऊपर चढ़ गए और अपने पूर्व-रस से भीगे हुए लिंग को मेरी गीली योनि में डाल कर आहिस्ता आहिस्ता अन्दर बाहर करने लगे।

उनके लिंग के मेरी योनि के अंदर जाते ही योनि में झनझनाहट होने लगी और उसने सिकुड़ कर ससुरजी के लिंग को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।

लगभग दस मिनट तक इस संघर्ष के बाद जब मैं और भी अधिक उत्तेजित हो उठी तब उन्होंने मेरे कहने पर तेज़ी से धक्के मारने शुरू कर दिए।

उनके तेज़ धक्कों से मेरी योनि के अंदर हलचल बढ़ गई और कुछ ही क्षणों में उसमें से योनि-रस की धारा निकल पड़ी।

मेरे रस के कारण योनि में फिसलन बढ़ गई जिसकी वजह से ससुरजी को धक्के मारने में आसानी हो गई और उन्होंने अपने धक्कों की गति को बहुत ही तीव्र कर दिया।

अब पूरे कमरे में मेरी सिसकारियों के साथ साथ मेरी योनि में से निकलने वाली ‘फच फच’ की आवाजों का संगीत गूंजने लगा।

उस मधुर संगीत के रोमांचकारी मौहौल में हम दोनों इतने उत्तेजित हो उठे की अगले पांच मिनट के बाद मेरा पूरा जिस्म अकड़ गया और मेरी योनि के अंदर अति-अधिक खिंचावट होने के कारण ससुरजी के लिंग पर बहुत तेज़ रगड़ लगी।

उस रगड़ के कारण ससुरजी का शरीर भी अकड़ गया और मुझे मेरी योनि के अंदर उनके लिंग के फूलने का एहसास होने लगा।

अगले ही क्षण दो या तीन धक्कों के बाद ससुरजी एवं मेरे मुँह से बहुत ही ज़ोरदार चिंघाड़ एवं सिसकारी निकली और उसके साथ ही दोनों के गुप्तांगों में से उनके रसों की बौछार हो गई।

हम दोनों के गुप्तांगों ने इतना अधिक रस छोड़ा कि मेरी योनि पूरी भर गई और उसमें से रस बाहर भी निकलने लगा था।

हम दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे और दोनों के बदन पसीने से भीगे हुए थे और ससुरजी मेरे ऊपर लेटे हुए अपनी साँसों को नियंत्रण कर रहे थे।

दस मिनट तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद ससुर जी बिस्तर से उठे और मुझे भी उठा कर बाथरूम में ले जाकर उन्होंने मेरी योनि और अपने लिंग को अच्छे से साफ़ किया और मुझे नाइटी पहना कर बिस्तर पर लिटा दिया।

फिर वह बनियान और लुंगी पहन कर नीचे झुक कर मेरा चुम्बन ले रहे थे तभी मुख्य द्वार की घंटी ने बज कर कामवाली के आने की घोषणा कर दी।

एक माह के बाद जब मेरे हाथों का प्लास्टर उतर गया तब मैं अपनी कामवासना की संतुष्टि के लिए हर रात ससुरजी के कमरे में जाती और दोनों अलग अलग आसनों में क्रिया को करते हुए आनन्द उठाते।

उसके बाद मैंने कामवाली को हटा दिया और मेरा अमेरिका का वीसा आने तक लगभग अगले साढ़े तीन माह तक ससुरजी और मैंने अपनी कामवासना के आनन्द और संतुष्टि के लिए जब भी इच्छा होती, सम्भोग करते थे।

हमने अपने घर की बैठक, बैडरूम, बाथरूम, रसोई, स्टोर, आँगन तथा हर कोने में किसी न किसी आसन में सम्भोग किया और संतुष्टि पाई।

जिस दिन मैंने अमेरिका की फ्लाइट पकड़नी थी उससे सात दिन पहले ही ससुरजी ने छुट्टियाँ ले ली थी और दिन हो या रात वह रोजाना चार चार बार मेरे साथ सम्भोग कर के मेरी और अपनी कामवासना को शांत करते थे।

मेरे अमेरिका आने के बाद ससुरजी अकेले रह गए थे और मुझे बहुत याद करते रहते थे तथा वह अकसर मेरे साथ स्काइपी पर वीडियो चैट करते समय अपना लिंग निकाल कर हस्त-मैथुन कर के दिखाते थे।

ससुरजी हर वर्ष तीन माह के लिए हमारे पास रहने के लिए अमेरिका आते हैं और उन तीन माह में मेरी कामवासना की संतुष्टि दिन के समय तो ससुरजी और रात के समय अजय करते हैं।

अगले माह ससुरजी तीन माह के लिए हमारे पास रहने आ रहे है और मुझे आशा है कि पिछले चार वर्षों की तरह इस बार भी उनके साथ कामवासना संतुष्टि का अत्यंत मनोरंजक कार्यक्रम चलेगा।

अन्तर्वासना के पाठको, मुझे आशा है की मेरी यह रचना पढ़ कर आप को बहुत आनन्द आया होगा।

मैं अपनी बाल-सखी टी पी एल का मेरी रचना को सम्पादित करके उसे अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने में मेरी सहायता करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ।
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अन्तर्वासना के पाठको, मुझे आशा है कि इस रचना में मेरी सखी कामना रस्तोगी के जीवन की घटना का विवरण पढ़ कर आपकी कामवासना में भी वृद्धि हुई होगी।

आप इस रचना के बारे में अपने विचार एवं टिपण्णी मेरी आई डी tpl@ mail.com पर भेज सकते हैं, मैं उन्हें कामना को अग्रसर कर दूंगी।
धन्यवाद।

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