जन्म-स्थली के दर्शन और बहन द्वारा हस्त-मैथुन

(Janam Sthali Ke Darshan Aur Bahan Dvara Hast Maithun)

अन्तर्वासना के प्रिय पाठकों को मेरा प्रणाम!
मेरा नाम प्रणव है, मैं बाईस वर्ष का हूँ और मैं शहर के एक प्रसिद्ध कॉलेज इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हूँ।

पिछले दो वर्षों से अन्तर्वासना पर प्रकाशित रचनाएं पढ़ कर मुझे भी अपने जीवन में घटी की कुछ घटनाओं को अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने की इच्छा हुई। लेकिन मेरे साथ घटित उन घटनाओं का विवरण प्रकाशित करवाने से मैं संकोच करता रहा क्योंकि उन घटनाओं में यौन क्रिया का उल्लेख अधिक नहीं था।
लगभग तीन माह से अन्तर्वासना के एक लेखक सिद्धार्थ वर्मा से पत्राचार करने और उनके सहयोग एवम् समर्थन से मैं उस रचना को आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ।

***

भारत की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड़े हुए एक छोटे से शहर में हमारा एक छोटा सा घर है, जिसको मेरे पापा ने बड़े ही प्यार से बनवाया था।
पिछले दस वर्षों से हमारे परिवार के तीन सदस्य मेरी माँ मृदुला, मेरी बहन ऋषिता और मैं इसी घर की ऊपर वाली मंजिल में रह रहे हैं।

हमें आज भी इस बात का बहुत अफ़सोस रहता है कि मेरे पापा इस घर में ज्यादा दिन नहीं रह सके, क्योंकि नए घर में शिफ्ट होने के छः माह के अंदर ही उनका एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था।
पापा के देहांत के समय मैं दस वर्ष का था, मेरी बहन ऋषिता बारह वर्ष की थी और मेरी माँ तैंतीस वर्ष की थी।

उस समय हम दोनों भाई बहन स्कूल में पढ़ते थे और हमारी पढ़ाई लिखाई में धन के अभाव से कोई विघ्न न आये इसलिए माँ ने एक ऑफिस में नौकरी कर ली थी।
हमने अपने घर के नीचे वाली मंजिल को भी किराए पर चढ़ा रखा है जिससे मिलने वाले किराए एवम् माँ के वेतन से हमारा गुजारा बहुत अच्छे से हो जाता है।

हमारे तीन कमरे वाले छोटे से घर के बड़े कमरे को हमने बैठक बना दिया है। दूसरे कमरे में माँ और ऋषिता रहती है और तीसरे कमरे में मैं रहता हूँ।

मेरी माँ बहुत ही सुंदर है, उसका रंग बहुत सफ़ेद, नैन नक्श बहुत ही तीखे, शरीर छरहरा, गर्दन पतली, वक्ष उभरा हुआ है।
तैंतीस वर्ष की उम्र में अपने पति को खोने के बाद उसके जीवन के कुछ क्षेत्रों में काफी ठहराव आ गया है जिसका अधिक प्रभाव उसके बर्ताव पर पड़ा है। वह पहले से कुछ ज्यादा गंभीर हो गई है और उसे हमारी पढ़ाई को ले कर हमेशा चिंतित रहती है।
इसीलिए वह आज भी सिर्फ मेरे और मेरी ऋषिता के अतिरिक्त सभी से एक उचित दूरी ही बना कर रखती है।

उसकी वेशभूषा में भी बदलाव आ गया था लेकिन उसके चेहरे के रंग रूप और जिस्म की बनावट में कोई भी अंतर नहीं आया था और न ही आज तक आया है। लगभग तैंतालीस वर्ष की उम्र होने के बावजूद भी वह आज भी तीस वर्ष से कम की कमसिन नवयुवती ही लगती है। कोई भी इंसान उनके इस सादे और शालीन रूप को देख कर उन्हें दो बच्चों की माँ तो मानने को तैयार ही नहीं होता।
पापा की मृत्यु के दस वर्ष बाद भी माँ की सुन्दरता एवम् उसके के चेहरे का तेज तथा उसके कार्य करने के कौशल, तत्परता और क्षमता को देख कर हर कोई उसकी ओर आकर्षित हो जाता है।
जो इंसान मेरी माँ के साथ एक बार भी बात कर लेता है, वह उसकी सरल भाषा और मधुर आवाज़ की तारीफ़ करते नहीं थकता है।
यहाँ तक कि उसके ऑफिस के अधिकारी एवम् सहकर्मी भी उसकी कार्य कुशलता की बहुत तारीफ़ करते हैं और उसके करीब आने की कोशिश करते है लेकिन मेरी माँ किसी को भाव नहीं देती।

लगभग तैंतालीस वर्ष की उम्र होने के बावजूद माँ की सुंदरता और यौवनता का व्याख्यान करना किसी मामूली लेखक के बस की बात नहीं है।
मेरी माँ का शरीर गोरा और बहुत गठा हुआ है तथा उसके गोल उरोज़ काफी बड़े, सख्त एवम् उठे हुए हैं, उनका पेट समतल एवम् सपाट है, कूल्हे गोल और थोड़े बाहर निकले हुए हैं और उसकी पतली कमर और नाभि एक तराशी हुई मूर्ति की तरह है।
उनकी टाँगें लम्बी तथा जांघें गोरी एवम् सुडौल हैं और उनकी बाजुएँ पतली मगर ताकतवर हैं।
उनके सिर के बाल बहुत घने और काले हैं लेकिन उनकी बगल के तथा जघन-स्थल के बाल हलके और गहरे भूरे रंग के है।

मुझे यह सब कुछ इसलिए मालूम है क्योंकि मैंने इन्हें देखा है लेकिन कब, कहाँ और कैसे देखा यह मैं आपको उपयुक्त समय पर ही बताऊंगा।

मेरी बहन ऋषिता भी माँ की तरह बहुत ही सुंदर है, उसका रंग भी बहुत गोरा है और नैन नक्श माँ की तरह बहुत ही तीखे हैं।

आज लगभग बाईस वर्ष की आयु में उसका गोरा शरीर बहुत गठा हुआ है और उसकी गोल चूचियाँ सख्त तथा उठी हुई हैं लेकिन माँ के उरोज़ों से अवश्य छोटी हैं।
उसकी पतली मगर ताकतवर बाजुएँ, पतली एवम् बल खाती कमसिन कमर और छोटी मगर गहरी नाभि तथा गोरी सुडौल जांघें सब को उसे ही निहारते रहने के लिए विवश कर देती हैं।
माँ की तरह उसके सिर के बाल भी बहुत घने तथा काले है लेकिन उसकी बगल के और जघन-स्थल के बाल सुनहरी भूरे रंग के हैं।

आप आश्चर्यचकित हो रहे होंगे कि मेरी माँ मुझ से दूरी क्यों नहीं बना कर रखती और मुझे ऋषिता तथा माँ के शरीर बारे में इतना सब कुछ कैसे मालूम है?
मैं आपको बताना चाहूँगा कि मैंने इन दोनों के हर अंग को बहुत ही नजदीक से तरह देखा हुआ है इसलिए मुझे यह सब कुछ मालूम है।
मैंने यह सब कब, कहाँ और कैसे देखा इसके लिए आप सब को मेरे जीवन में घटित कुछ घटनाओं का निम्नलिखित वर्णन पढ़ना पड़ेगा।
***

मेरे साथ घटी पहली घटना मेरी बहन ऋषिता के साथ कुछ इस प्रकार हुई थी:

पापा के देहांत हुए लगभग एक वर्ष से उपर ही हुआ था और मेरी तथा ऋषिता की गर्मियों की छुट्टियाँ थी। माँ सुबह खाना बना कर ऑफिस चली जाती थी और शाम को ही घर वापिस लौटती थी। दिन भर मैं और ऋषिता अकेले ही घर पर रहते थे।
कभी जब बहुत बोर हो जाते थे तो मैं वीडियो लाइब्रेरी से फिल्म की सी-डी ले आता था और हम लोग फिल्म देख कर अपना समय व्यतीत कर लेते थे।

एक दिन जब मैं फिल्म की सी-डी ले कर घर वापिस लौटा ही था तभी ऋषिता ने मुझसे कहा कि उसे व्हिस्पर के सैनिटरी पैड्स चाहिए और उन्हें लेने के लिए मुझे दोबारा धूप में बाजार जाना पड़ा।
सैनिटरी पैड्स ले कर वापसी में मैं सारे रास्ते यही सोचता रहा कि ये क्या होते हैं और किस काम आते हैं। एक और बात मुझे समझ नहीं आ रही थी कि लड़कियों और औरतों को ही इन सैनिटरी पैड्स की ज़रूरत क्यों पड़ती है।
मैंने मन ही मन निश्चय किया कि घर जा कर मैं ऋषिता से ही इसके बारे में अवश्य पूछूँगा।

घर पहुँच कर जैसे ही मैंने सैनिटरी पैड्स का पैकेट ऋषिता को दिया और पूछा कि उसे यह किस लिए चाहिए तो वह गुस्से से बोली- यह तेरे मतलब की बात नहीं है।
उसके बाद वह उठी और सैनिटरी पैड्स का पैकेट ले कर बाथरूम में घुस गई।
यह देखने के लिए कि वह उनका क्या करती है मैं उसके पीछे बाथरूम तक चला गया।
बाथरूम के दरवाज़े को भिड़ा हुआ देख कर मैंने उसे थोड़ा खोल कर दरवाज़े पर ही खड़ा हो कर अंदर देखने लगा कि ऋषिता क्या कर रही थी।

उस समय दरवाज़े की ओर पीठ किये वह अपनी सलवार और पेंटी उतार कर अपनी योनि पर लगे हुए खून को धो रही थी। अपनी योनि धोने के बाद ऋषिता ने एक सैनिटरी पैड को अपनी जाँघों के बीच में योनि पर रख कर बाँध लिया और उसके ऊपर नई पेंटी पहन ली। फिर उसने उतारी हुई पेंटी पर से खून के दाग धो कर जैसे ही मुड़ी और मुझे देखा तो पहले थोड़ा घबराई लेकिन फिर गुस्से से भड़क उठी और गालियाँ देने एवम् बुरा भला कहने लगी।

मैंने आगे बढ़ कर अपने हाथों से उसका मुहँ बंद किया और बोला- इसमें नाराज़ होने की क्या बात है, बचपन से ही हम दोनों माँ अनुपस्थिति में कई बार एक दूसरे के साथ नहाते भी थे और हमेशा एक दूसरे के सामने ही कपड़े भी बदलते थे। अगर आज मैंने तुझे ऐसी हालत में देख लिया तो कौन सी गलत बात हो गई।
मेरी बात सुन कर वह कुछ शांत हो कर बोली- अब मैं बड़ी हो गई हूँ, इसलिए अब हमें ऐसी हरकतें नहीं करनी चाहिये और आपस में कुछ तो पर्दा रखना चाहिए।
उसकी बात सुन कर मैंने पूछा- तुम कैसे कहती हो की तुम बड़ी हो गई हैं? मुझे तो तुम उतनी की उतनी ही लगती हो।

उसने जवाब में कहा- माँ कहती है कि जब किसी लड़की के बदन से खून निकलना शुरू हो जाता है तो वह बड़ी हो जाती है। आज मेरे बदन से खून निकल रहा है इसका मतलब यह है कि मैं बड़ी हो गई हूँ इसलिए अब मुझे कुछ तो पर्दा रखना पड़ेगा।
यह सुनते ही मैंने पूछा- यह खून कहाँ से निकल रहा है?
उसने बताया- यह खून मेरी योनि में से निकल रहा है।
मैंने असमंजस से पूछा- यह योनि क्या है और कहाँ होती है?
तब ऋषिता ने कहा- योनि जाँघों के बीच में मूत्र करने वाले स्थान में होती है।

उसका उत्तर सुन कर मैंने पूछा- क्या यह खून अब सदा ही निकलता रहेगा?
मेरा प्रश्न सुन कर वह थोड़ा मुस्कराई और बोली- धीरे धीरे यह खून निकलना कम हो जायेगा तथा लगभग पांच दिन में बंद भी हो जाएगा।”

ऋषिता की बात सुन कर मैं असमंजस में पड़ गया और उससे पूछ बैठा कि मेरा खून कब और कहाँ से निकलेगा ताकि मैं भी कह सकूं कि मैं भी बड़ा हो गया हूँ।
यह सुन कर ऋषिता बहुत जोर से हँसने लगी और बोली- मुझे यह तो मालूम है कि लड़कों के बदन से खून नहीं निकलता है, लेकिन लड़कों के बड़े होने के संकेत कैसे होते है यह मुझे मालूम नहीं है। इसके बारे में मुझे भी बहुत जिज्ञासा है इसलिए आज रात को जब माँ को अपने खून निकलने के बारे में बताऊंगी तब उनसे पूछूंगी।

शाम को जब माँ घर आई और हाथ मुंह धो कर चाय लेकर बैठक में गई तब सोफे पर लगे खून के दाग देखते ही पुकार कर हमसे पूछा- सोफे पर यह खून कहाँ से लगा है?
मेरे कुछ बोलने से पहले ही ऋषिता ने कहा- माँ, यह खून मुझसे लगा है।
माँ ने चिंतित होते हुए पूछा- क्या हुआ था? कोई चोट लगी है क्या?
ऋषिता ने उत्तर दिया- नहीं माँ कोई चोट नहीं लगी है। मैं टीवी देख रही थी तब अकस्मात् मेरी कमर के नीचे दर्द हुआ और जहां से आपने बताया था वहां से खून निकलने लगा था। मुझे जल्दी से बाथरूम जाना पड़ा और मैं उसे साफ़ करना भूल गई थी।
इसके बाद ऋषिता ने एक पुराने कपड़े को पानी से भिगो कर सोफे पर लगे उस दाग को साफ़ कर के माँ के साथ अपने कमरे में चली गईं।

मुझ से रहा नहीं गया और मैं भी उनके कमरे के बाहर जा कर दरवाजे की ओट से उनकी बातें सुनने लगा।
कमरे में पहुँचते ही ऋषिता ने माँ से पूछा- माँ, क्या यह खून इस बात का संकेत है कि अब मैं बड़ी हो गई हूँ?
माँ ने उत्तर में कहा- हाँ, यह खून निकलना इसी बात का संकेत है कि तुम अब बड़ी हो कर बच्ची से युवती बन गई हो।

उसके बाद माँ ने जब ऋषिता से पूछा कि यह कब हुआ, तब ऋषिता ने बताया कि दोपहर को अचानक ही हो गया था।
इस पर माँ ने पूछा उसने खून को कैसे संभाला, तो ऋषिता ने माँ को बताया कि उसने मुझसे सैनिटरी पैड्स मंगा कर लगा लिया है।

माँ ने जब ऋषिता से बार बार पूछा की उसने सैनिटरी पैड ठीक से लगाया है या नहीं तब ऋषिता ने सलवार और पेंटी नीचे कर के माँ को दिखाया कि उसने पैड कैसे लगाया है।
सैनिटरी पैड को हाथ लगा कर माँ ने जांच करी तथा उसे ठीक से लगा देख संतुष्ट हो कर ऋषिता को सलवार और पेंटी ठीक करने के कहा और रसोई में रात का खाना बनाने लगी।

सुबह जब माँ ऑफिस चली गई तब मैंने ऋषिता से पूछा कि उसने माँ से मेरे बड़े होने के बारे में पूछा या नहीं?
ऋषिता ने बताया कि इस बात का पता लगाने के लिए माँ ने उसे एक तरीका तो बताया है लेकिन शायद उस तरीके के लिए मैं राज़ी नहीं होऊंगा।
जब मैंने बार बार उसे वह तरीका बताने पर जोर दिया तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बाथरूम में ले जा कर मुझे मेरा पाजामा और अंडरवियर उतारने को कहा।
मैंने आनाकानी करने पर ऋषिता ने कुछ भी बताने से मना कर दिया और बाथरूम से बाहर जाने लगी।

हार कर मैंने उसके सामने अपने सारे कपड़े उतार दिए और उसे कहा कि अब बता कि माँ ने क्या बताया है।
तब उसने नीचे बैठ कर मेरे लिंग को बड़े गौर से देखा और कहा- अभी यहाँ एक दो बाल और कुछ रोयें ही आने शुरू हुए है जिसका मतलब है कि अभी तुम पूर्ण बड़े नहीं हुए हो।
फिर वह वहीं बैठे हुए ही बोली- तुम पूर्ण बड़े हुए हो या नहीं इसकी पुष्टि करने के लिए एक और क्रिया से जाँच कर के देखना पड़ेगा।

मैं बहुत उत्सुक हो गया था इसलिए मैंने झट से कह दिया कि उसे जो भी जाँच करनी है वह जल्दी से कर के उसका परिणाम तुरंत बता दे।
मेरी सहमति मिलने पर उसने मेरे लिंग को अपने हाथ में पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया तब मेरे लिंग-मुंड के ऊपर की त्वचा पीछे हट गई और वह बाहर आ गया।
लिंग-मुंड के त्वचा में से बाहर आते ही मेरा लिंग सख्त तथा बड़ा होने लगा।
यह देख कर वह मुस्कराने तो लगी लेकिन इतना ही बोली कि अब उसका हाथ दुःख रहा है इसलिए अब मैं अपने लिंग को खुद हिलाऊं।

अगले दस मिनट तक लिंग को हिलाने पर भी जब मुझे कुछ नहीं हुआ तब वह बोली कि मैं अभी पूरा बड़ा नहीं हुआ हूँ।
फिर ऋषिता ने मुझे समझाया कि मैं बड़ा होना शुरू तो हो गया हूँ।

इसके बाद उसने भी अपने सभी कपड़े उतार दिए और हम दोनों एक साथ ही नहाने लगे।
नहाते समय उसने मुझे अपनी योनि में से खून निकलने वाली जगह भी दिखाई और अपनी योनि और उसके आस पास लगे हुए खून को भी मुझ से साफ़ कराया।
नहाने के बाद ऋषिता ने अपनी योनि पर सैनिटरी पैड बाँधा और फिर हम दोनों ने कपड़े पहन कर अपनी रोज की दिनचर्या में लग गए।

ऊपर वाली घटना के लगभग एक वर्ष बीतने पर मेरे जन्म-दिन वाले दिन सुबह उठते ही मेरी ऋषिता ने सदा की तरह मेरे गालों को चूमते हुए मुझे जन्म दिन की बधाई दी।
जब मैं स्कूल के लिए तैयार हो कर जाने लगा तब उसने निर्देश दिया कि उस दिन मैं स्कूल से सीधा घर आऊँ और रास्ते में किसी दोस्त के घर नहीं जाऊं।
मैंने जब उससे ऐसा कहने का कारण पूछा तब बताया कि माँ के आने से पहले वह मेरे बड़े होने की जांच करना चाहेगी।
यह सुन कर मुझे उसकी स्मरण शक्ति पर बहुत विस्मय हुआ लेकिन मैंने मुस्कराते हुए उसे हाँ कह दी।

दोपहर को जब मैं स्कूल से घर पहुँच तो ऋषिता को घर में ही देख कर मेरे यह पूछने पर की वह स्कूल से जल्दी कैसे आ गई, तो उसने बताया कि वह मेरी जांच के करने के लिए ही अपना अंतिम पीरियड छोड़ कर आई थी।

वह मेरे साथ ही मेरे कमरे के अंदर आ गई और मुझे जल्दी से कपड़े उतार कर बाथरूम में चलने को कहा।
मैं भी जांच के लिए उत्सुक था इस लिए बिना कोई देर किये उसी समय सारे कपड़े उतार कर उसके सामने नग्न खड़ा हो गया।
ऋषिता ने मुझे गौर से देखा और कहा तेरे नीचे तो काफी घने बाल घने आ गए हैं तथा बहुत सुंदर भी लगन रहे हैं।
फिर उसने मेरे लिंग को पकड़ा और मुझे खींचती हुई बाथरूम में ले गई जहां उसने मेरे लिंग-मुंड को त्वचा से बाहर निकाल कर लिंग को हिलाने लगी।

मेरा लिंग एक दम खड़ा हो गया और देखते ही देखते लोहे कि तरह कठोर हो कर पाँच इंच लंबा एवम् डेढ़ इंच मोटा हो गया।
मेरे लिंग की लम्बाई एवम् मोटाई को देख कर ऋषिता अचंभित हो कर बोली- पिछले एक वर्ष में यह काफी लंबा हो गया है इसलिए मुझे विश्वास होने लगा है कि तुम अब बड़े हो गये होगे।
उसके बाद दस मिनट तक जब ऋषिता ने मेरे लिंग को हिलाया तब मुझे अपने अंदर एक झनझनाहट सी महसूस हुई और मेरे मुहँ से उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाज़ निकली।

तब ऋषिता ने मेरे लिंग को अधिक तेज़ी से हिलाते हुए पूछा- क्या हो रहा जो आह.. आह.. कर रहे हो?
मैंने कहा- मुझे नहीं समझ आ रहा कि क्या हो रहा है। ऐसा लगता है कि मेरे लिंग के अंदर हलचल हो रही है और इस में से कुछ बाहर निकलने को हो रहा है।
मेरा उत्तर सुन कर ऋषिता ने कहा- कोई बात नहीं, जो निकलता है उसे निकलने दो। तभी तो उससे पता चलेगा कि तुम कितने बड़े हो गए हो।

इसके बाद ऋषिता ने मेरे लिंग को अत्यंत तेजी से हिलाना शुरू कर दिया और मेरे मुख से खूब आवाजें निकलने लगी।
कुछ हो क्षणों के बाद मेरे बहुत रोकने की कोशिश के बावजूद भी एक दम से मेरे लिंग में से दूधिया सफ़ेद पानी कि तेज धार निकल कर ऋषिता की सलवार पर जा गिरी।
उसके बाद तो मेरे लिंग से उस दूधिया सफ़ेद पानी की छह-सात तेज धार निकली और मैंने निढाल हो कर सहारे के लिए ऋषिता को पकड़ लिया।

ऋषिता ने सहारा दे कर मुझे बैड तक ले जा कर बिठाया और गीले कपड़े से मेरे लिंग तथा अपने हाथ एवम् सलवार को साफ़ किया।
इसके बाद ऋषिता ने मेरे दोनों गालों को चूमा और कहा की मैं पूरी तरह बड़ा तथा जवान हो गया हूँ और फिर भाग कर फ्रिज में से मिठाई ला कर मुझे खिलाई तथा खुद भी खाई।

कुछ देर मेरे पास बैठे रहने के बाद ऋषिता बोली- तुम्हारे बड़े होने की खुशी में मैं भी तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूँ।
वह उठ कर खड़ी हुई और झट से अपनी कमीज़ और बनियान उतार कर मुझे अपनी चूचियाँ दिखने लगी जो अब बड़ी हो कर 30 इंच के उरोज़ बन चुके थे।
उन गोल, गोरे और मुलायम उरोज़ों को देख कर मैं अपने आप को रोक नहीं सका और ऋषिता को अपने गले लगाया तथा उसके के दोनों गालों तथा उरोज़ों को चूम लिया।

उसके बाद बहुत देर तक हम दोनों अर्ध-नग्न अवस्था में एक दूसरे पास बैठे कर एक दूसरे के शरीर को गौर से निहारते हुए हाथ फेरते रहे।
हम उसी प्रकार अर्ध-नग्न अवस्था में ही एक दूसरे से बातें कर रहे थे तभी माँ के डांटने का स्वर सुनाई दिया।

दोनों ने जब कमरे के द्वार की ओर पलट कर देखा तो वहां गुस्से से गुर्राती एवम् लाल आँखें दिखाती हुई माँ का चेहरा देख कर हमारी सिटी-पिटी गुम हो गई।
माँ ने हमें ऐसी हालत में देख कर आवेश में आ कर दोनों को तीन चार थप्पड़ जड़ दिए और बहुत डांटा तथा तुरंत कपड़े पहनने को कहा।
उस दिन मेरा जन्म-दिवस होने के कारण माँ ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी ले कर जल्दी घर आ आई थी लेकिन हमें देख कर उनकी मनोदशा खराब हो गई और हमें मारने डांटने के बाद वह अपने कमरे में चली गई।

हम दोनों बातों में इतने तल्लीन थे कि हमें पता ही नहीं चला की माँ कब अपनी चाबी से बाहर का दरवाज़ा खोल कर घर आ गई थी।

मेरे कमरे से माँ के जाने के बाद हम दोनों ने तुरंत कपड़े पहने और भाग कर माँ के कमरे में गए तो देखा की वह बैड पर उल्टा लेट कर रो रही थी। वह दबे स्वर में सिसकियाँ भर कर रो रही थी और उसका पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था।
यह देख कर हम दोनों को भी रोना आ गया और हम माँ से क्षमा मांगते हुए उसे चुप कराने की चेष्टा करने लगे।

कुछ समय के बाद वह चुप हो गई और बैड पर बैठ कर हमें अपने बगल में बिठा कर पूछा कि हम अर्ध-नग्न हो कर क्या कर रहे थे तब मैंने और ऋषिता ने सब कुछ सच सच बता दिया।
यह सुन कर माँ ने हमें समझाया कि हम दोनों बहन और भाई हैं इसलिए हमें इस प्रकार न तो एक दूसरे के सामने नग्न होना चाहिए और ना ही एक दूसरे के गुप्तांगों को देखना या छूना चाहिए।

इसके बाद माँ ने हम दोनों का हाथ अपने सिर पर रख कर प्रतिज्ञा करवाई की आगे से हम ऐसी कोई भी हरकत नहीं करेंगे।
हमारे द्वारा प्रतिज्ञा लेने के बाद माँ ने हम दोनों के अपने गले लगाया, प्यार किया और शाम को मेरे लिए लाये गए केक को कटवाया तथा मुझे उपहार दे कर मेरा जन्म-दिवस मनाया।

इसके बाद सब सामान्य हो गया और आज तक मैंने और ऋषिता ने कभी भी एक दूसरे के सामने न तो कपड़े उतारे या बदले हैं और हमने आपस में भी किसी के गुप्तांग के बारे में कभी कोई बात नहीं करी है।

इस प्रकार मुझे मेरी बहन ऋषिता के शरीर के हर अंग को देखने एवम् छूने तथा एक बार तो उसके उरोज़ों को चूसने का अवसर मिला था।
***

मेरे साथ घटी दूसरी घटना मेरी माँ के साथ कुछ इस प्रकार हुई थी:
मेरे जीवन की उपरोक्त पहली घटना को बीते जब चार वर्ष बीत गए थे।
उन दिनों मैं बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा से पहले हमें तैयारी करने के लिए स्कूल से छुट्टियाँ मिली थी और मैं घर पर ही रहता था। कॉलेज खुले होने के कारण ऋषिता तो सुबह आठ बजे ही चली जाती थी और माँ घर का काम निपटा कर साढ़े नौ बजे ऑफिस के लिए निकल जाती थी।

मैं अधिकतर अपने घर पर रह कर पढ़ाई करता रहता था लेकिन कभी कभी किसी विषय में स्पष्टीकरण के लिए स्कूल के अध्यापक अथवा मित्र के पास जाता था।
उन्हीं छुट्टियों में एक सुबह मैं एक विषय के स्पष्टीकरण के लिए मित्र के घर गया था और जब घर वापिस आया तब देखा कि माँ घर पर ही थी।

घर के अंदर घुसते ही जब मैंने बाथरूम में से माँ के कराहने की आवाज़ सुनी तब भाग कर वहाँ गया तो देखा की माँ दोनों हाथ एक बाल्टी में ठन्डे पानी में डाल कर बैठी थी।
मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की वह रसोई से नहाने के लिए गर्म पानी का पतीला ले कर बाथरूम जा रही थी तभी अचानक उनके पाऊँ को ठोकर लगी जिससे वह पानी उछल कर उनके दोनों हाथों पर गिर गया।
उनकी चोट एवम् तकलीफ को देख कर जब मैंने उन्हें डॉक्टर के पास चलने के लिए कहा तब वह आनाकानी करने लगी लेकिन मेरे जोर देने पर मान गई।
क्योंकि उस समय उन्होंने सिर्फ नाइटी पहनी हुई थी इसलिए मुझे कमरे से बाहर जाने के लिए कहा ताकि वह कपड़े बदल सकें।

मैं उनके कमरे से बाहर निकला ही था की उन्होंने आवाज़ लगा कर वापिस बुलाया और कहा- बेटे, इस हालत में मैं ना तो इस नाइटी को उतार सकती हूँ और ना ही दूसरे कपड़े पहन सकती हूँ। कपड़े बदलने में क्या तुम मेरी कुछ सहायता कर सकते हो?”
मैंने उनकी विवशता को देखते हुए कहा- आपको जो सहायता चाहिए आप बोलते जाइये और मैं वैसे ही करता जाता हूँ।

तब वह मुझे अपनी अलमारी के पास ले जा कर उनकी एक पेंटी, एक ब्रा और एक सलवार सूट की ओर संकेत करके निकालने के लिए कहा।
जब मैंने वह सब निकाल कर बैड पर रख दिए तब वह मेरे सामने बैड पर बैठते हुए कहा- तुम मेरी पेंटी को मेरे पाँव में डाल कर मेरे घुटनों तक कर दो।
मैंने जब उनके कहे अनुसार पेंटी को उनके घुटनों तक कर दिया तब वह खड़ी हो कर बोली- मेरी नाइटी के अंदर हाथ डाल कर मेरी पेंटी को पकड़ कर ऊपर चढ़ा कर पहना दो।
मेरे वैसा करने पर उन्होंने मुड़ कर पीठ मेरी ओर करी और अपनी दोनों बाजू ऊपर करते हुए कहा- अब तुम मेरी नाइटी को नीचे से पकड़ कर ऊपर करके उतार दो।
मैंने झुक कर उनकी नाइटी को नीचे से पकड़ कर ऊपर किया और उनके सिर के ऊपर से निकाल दी तब उन्होंने उसे अपने बाजुओं एवम् हाथों के ऊपर से फिसल कर नीचे गिरने दिया।

तभी मेरी नज़र माँ के सामने की दीवार पर लगे आईने पर पड़ी और मैंने माँ का अर्ध-नग्न शरीर के सामने के भाग की सुन्दरता देख कर स्तब्ध रह गया।
मैं उनके सफ़ेद उरोज़ों पर लगी काले रंग की चूचुक को निहार रहा था जब उन्होंने मुझे उनके पीछे से ही उनकी ब्रा को पहनाने को कहा।
मैंने ब्रा को उसके स्ट्रैप्स से पकड़ कर उन्हें अपनी दोनों बाजुओं के घेरे में ले कर ब्रा को उनके आगे की ओर कर दी।

जब उन्होंने अपनी दोनों बाजू उन स्ट्रैप्स में डाल दी तब मैंने उन स्ट्रैप्स को उनके कन्धों पर डालने के बाद उस ब्रा के लटकते हुए दोनों सिरों को पकड़ कर पीछे की ओर खींच कर हुक लगा दिया।
ब्रा में हुक लगते ही माँ ने मुड़ मेरी ओर मुहं कर के कहा- अब तुम मुझे पहले सलवार और उसके बाद कमीज़ पहना दो।”
उनकी बात सुन कर मैं उनकी सलवार ले कर नीचे बैठ गया और उसे फैला कर माँ को उसमें अपनी टाँगे डालने के लिए कहा।

तभी मेरी नजर उनकी पेंटी पर पड़ी और मैंने देखा की वह पूरी तरह ऊपर नहीं हुई थी तथा उसके ऊपर के भाग में से माँ के जघन-स्थल के बहुत सारे बाल बाहर निकल कर दिखाई दे रहे थे।
माँ ने पहली टाँग सलवार में डालते समय जब उन बालों को देखा तो बोली- मुझे लगता है की पेंटी पूरी तरह ऊपर नहीं हुई है। पहले इसे खींच कर थोड़ा ऊपर कर दो फिर सलवार पहनना।
माँ के कहने पर मैंने सलवार को वैसे ही छोड़ कर खड़ा हुआ और उनकी कमर के दोनों ओर से उनकी पेंटी को पकड़ ऊपर किया लेकिन वह आगे से वैसे ही रही।
तब मैंने उनकी पेंटी के इलास्टिक को अपने ओर खींच कर उसे ऊपर किया तब मुझे उस पेंटी के खींचे हुए भाग में से माँ के जघन-स्थल पर उगे हुए भूरे रंग के बालों का घना जंगल दिखाई दिया।

पेंटी ठीक कर के मैं फिर नीचे बैठ गया और जब माँ ने अपनी दूसरी टाँग भी सलवार में डाल दी तब मैं उसे ऊँचा कर रहा था तभी मेरी निगाह उनकी बाईं टाँग पर गई।
मैंने रुक कर जब ध्यान से देखा तब मुझे वहाँ की त्वचा भी गर्म पानी से जली हुई लगी तथा मेरे पूछने पर माँ ने उस जगह के जलने की भी पुष्टि करी।
तब मैंने बिना देर किये सलवार को ऊँचा कर के उनकी कमर पर बाँध दी।

उसके बाद जब मैंने माँ की कमीज़ उठा कर उन्हें पहनाने लगा तब माँ ने कहा- बेटा, तूमने हुक को सबसे आखिर वाले लूप में डाल दिया है इसलिए मेरा दम घुट रहा है। तुम उस हुक लो बीच वाले लूप में डाल दो तथा आगे से भी ब्रा को नीचे से खींच कर ठीक कर दो।
मैंने माँ की कमीज़ को फिर बैड पर रख कर उनके पीछे जा कर ब्रा के हुक को खोल कर बीच वाले लूप में डाला दिया।
फिर मैंने माँ के सामने आ कर जब देखा तो पाया कि माँ के उरोज़ों का नीचे का एक इंच भाग ब्रा में से बाहर निकला हुआ था।

मैंने माँ की ब्रा के बीच में से पकड़ कर नीचे की ओर खींचा लेकिन कुछ भी नहीं हुआ तब मैंने अपने दोनों हाथों से माँ के बाहर आये हुए उरोज़ों वाले भाग के नीचे से ब्रा को पकड़ कर जब नीचे की ओर खींचा तब उनके दोनों उरोज़ एक झटके में ही ब्रा के कप में बैठ गए।
उसके बाद मैंने माँ की कमीज़ को उनके सिर पर से निकल कर उन्हें अपने बाजू उसमें डालने दिया और फिर कमीज़ को नीचे खींच कर पहना दिया।

तैयार हो कर हम डॉक्टर के पास गए और उसने माँ के हाथ और कलाइयों की जांच करने के बाद कुछ खाने की दवाइयाँ तथा लगाने के लिए एक मरहम लिख कर दी और जले हुए स्थान को पतले सूती कपड़े से ढक कर रखने को कहा।
वापसी में हमने रास्ते की एक दवाई की दुकान से दवाइयाँ एवम् मरहम ले कर लगभग एक बजे घर पहुंचे।

मैं माँ को उनके कमरे में छोड़ कर बाहर निकल रहा था तब माँ ने कहा- बेटा, मुझे बाथरूम जाना है इसलिए पहले तुम मेरे कपड़े बदलवा दो फिर बाहर जाना।
जब मैं माँ के पास गया तब वह दोनों बाजू ऊँची करके खड़ी हो गई और मैंने उनकी कमीज़ उतार कर पास रखी कुर्सी पर रख दी।
उसके बाद जब मैंने माँ की सलवार को खोल कर उतार कर नीचे कर दी तब उन्होंने उसमें से अपनी टाँगे निकाल ली और घूम कर मेरी ओर पीठ करते हुए बोली- बेटा, ज़रा मेरी ब्रा भी उतार दो।
मैंने उनकी ब्रा का हुक खोल दिया और स्ट्रैप्स को उनके कन्धों से नीचे सरका कर उनके सामने की ओर जा कर उसे उतार दिया।

कमीज़ के उतारते ही मेरी अर्ध-नग्न माँ एकदम से घूम कर तेज कदम रखती हुए बाथरूम में चली गई।
बैड और ज़मीन पर पड़े माँ के कपड़े उठाने के लिए मैं जैसे झुका तभी बाथरूम में से उन्होंने पुकारा- बेटा, जरा इधर आना।
मैं अच्छा कहता हुआ बाथरूम में घुसा तो देखा की मेरी अर्ध नग्न माँ कम्बोड के पास खड़ी थी।

मुझे देखते ही उन्होंने कहा- बेटा, जरा मेरी पेंटी तो उतरवा दो।
मैं आगे बढ़ा और नीचे बैठ कर उनकी पेंटी को पकड़ कर नीचे की ओर खींचते हुए उसे उनके पाँव के पास तक कर दिया तथा उनके जघन-स्थल के जंगल में छुपी उनकी योनि को ढूँढने की चेष्टा करने लगा।
जब माँ ने मुझे ऐसा करते हुए देखा तब झट से कम्बोड पर बैठ कर मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए बोली- नहीं बेटे, घर की महिलाओं के शरीर और उनके गुप्तांगों को ऐसे घूर कर नहीं देखते। अब जाओ और मेरी नाइटी ला कर मुझे पहना दो।

बिना कुछ बोले मैं उठ कर बैडरूम में गया और वहाँ से जब उनकी नाइटी ले कर आया तब तक वह सुसु कर के वह खड़ी हो चुकी थी। मैंने उनके सिर के ऊपर से गले तक उनको नाइटी पहना कर उन्हें बाजू पहनने में सहायता करी और फिर नाइटी को नीचे करके उनके पूर्ण नग्न शरीर को ढक दिया।
उसके बाद मैंने माँ को बैडरूम ले जा कर दवाई खिलाई और बैड पर लिटा कर उनके हाथों एवम् कलाइयों पर मरहम लगाई तथा उन्हें माँ की एक सूती चुन्नी से ढक दिया उनके पास ही बैठ गया।

मुझे माँ के पास बैठ कर उनसे बातें करते हुए पाँच मिनट ही हुए थे तभी मुझे उनकी जांघ पर हुए घाव के बारे में याद आया।
तब मैंने माँ से पूछा- “माँ, आपकी जांघ पर जो घाव है वहाँ भी जलन एवम् दर्द हो रहा होगा, अगर आप कहें तो मैं वहाँ पर भी मरहम लगा दूँ?
माँ ने उत्तर दिया- हाँ बेटे वहां भी बहुत जलन एवम् दर्द हो रही है, तुम वहाँ पर भी मरहम लगा दोगे तो कुछ आराम मिल जाएगा।

मैंने बैड पर माँ की बगल में ही बैठ कर उनकी नाइटी को कमर तक ऊँचा कर दिया और उनकी बाईं जांघ पर हुए घाव पर मरहम लगाने लगा।
क्योंकि वह घाव जांघ के सामने के भाग से अंदर की ओर तक लम्बाई में था इसलिए मुझे माँ की टाँगें को चौड़ी कर के मरहम लगानी पड़ी।
माँ की टांगें चौड़ी होते ही मुझे उनके जघन-स्थल के बालों के बीच में छिपे मेरे जन्म-स्थल यानि की उनकी योनि के दर्शन हो गए।
कहीं माँ मुझे उनकी योनि को घूरते हुए न देख ले इसलिए मैंने वहाँ से अपनी नज़रें हटा कर घाव की ओर कर ली लेकिन बीच बीच में अपनी कनखियों से उसे निहार लेता था।

मरहम लगाने के बाद मैंने माँ की जाँघों के ढकने के लिए जब अलमारी में से एक पतली सूती चुन्नी निकाल रहा था तभी ऋषिता ने कमरे में कदम रखे।
माँ को ऐसे लेटे देख कर वह घबरा गई और पूछा- माँ ऐसे क्यों लेटी हुई हो? यह हाथों और जांघ पर क्या हुआ है?
फिर मुझे घूरते हुए बोली- यह सब कैसे हो गया और तुम कहाँ थे? क्या डॉक्टर को दिखाया है?

इससे पहले मैं कुछ बोलता माँ ने ऋषिता को अपने पास बिठा कर शांत होने एवम् धैर्य रखने को कहा तथा सारी बात विस्तार से बताई।
माँ के घाव पर से चुन्नी हटा कर देखने के बाद संतुष्ट हो कर ही ऋषिता ने रसोई में जा खाना बनाया और माँ को खिलाने के बाद हम दोनों ने खाया।

अगले पाँच दिनों तक जब तक ऋषिता घर पर होती थी तब तक तो वह ही माँ की देख रेख करती और जब वह कॉलेज गई हुई होती तब मैं माँ का ध्यान रखता था।
इसलिए उन पाँच दिनों में मुझे अपनी माँ के शरीर के हर अंग एवम् मेरी जन्म-स्थली को बहुत नजदीक से देखने के कई अवसर मिले।
***

अन्तर्वासना के पाठकों आप के साथ साझा की गई ऊपर लिखी घटनाओं के कारण ही मुझे अपनी बहन और माँ के विभिन्न शारीरिक छिपे अंगों के रंग-रूप, बनावट तथा अन्य रहस्यों के बारे में मालूम पड़ी थी।
मेरी रचना को पढ़ने के बाद कोई मुझे सन्देश भेजेगा ऐसी आशा कदापि नहीं है इसीलिए मैं अपना मेल आई डी नहीं लिख रहा हूँ।
फिर भी अगर किसी महानुभाव को मुझे से कुछ जानने के लिए सन्देश भेजने की इच्छा हो तो वह उसे [email protected] पर भेज सकता है।

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