होली के बाद की रंगोली-5

(Holi Ke Baad Behan Ke Sath Rangoli- Part 5)

This story is part of a series:

अब तक आपने पढ़ा कि पंकज, सोनाली और रूपा ने सचिन को अपनी पारिवारिक चुदाई के खेल में शामिल करने की पूरी योजना बना ली थी। तैयारी भी पूरी थी और सचिन आते ही सबके साथ घुल मिल भी गया था।
अब आगे…

यूँ ही चुहलबाज़ी करते हुए दिन कब बीत गया पता ही नहीं चला। शाम को जब पंकज वापस आया तो तीनों सोफे पर बैठे सनी लिओनी की जिस्म-2 देख रहे थे। सचिन बीच में बैठा था और उसने अपनी दोनों बाँहें सोनाली और रूपा के गले में डाल रखीं थीं। अपनी उंगलियों से वो उनके कंधे सहला रहा था। पंकज को ये देख कर ख़ुशी हुई कि सचिन जल्दी ही इतना घुल मिल गया था। उसने सोचा, चलो अच्छा है, अब आगे ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी। लेकिन सचिन ने जैसे ही देखा कि जीजाजी आ गए हैं उसने अपने दोनों हाथ झट से हटा लिए।

पंकज- अरे इतना टेंशन न ले यार, इस घर में हम शर्म लिहाज़ नाम का जीव पालते ही नहीं हैं। हा हा हा…
रूपा- हाँ भैया, यही बात हम इसको दिन भर से सिखा रहे हैं लेकिन ये पता नहीं कहाँ कहाँ की तहजीब और अपेक्षाएं पाल कर बैठा है।
सचिन- अच्छा बाबा गलती हो गई। अब यार, हमारे घर में हमारे माँ-बाप ने जैसा माहौल बना कर रखा था वैसा ही सीख गए।

पंकज- यार, माहौल तो हमारे घर भी वही था लेकिन अब हम माँ-बाप से दूर यहाँ अकेले रह रहे हैं, तो अब तो खुल कर रह ही सकते हैं न। इसीलिए यहाँ तो सब खुलेआम होता है। तुमको कोई समस्या हो तो बता देना, हम वैसा एडजस्ट कर लेंगे।
सचिन- अरे नहीं नहीं, मुझे तो अच्छा लग रहा है। ज़्यादा सोचने की ज़रुरत नहीं पड़ रही। जैसे नदी की धारा में बहते चले जा रहा हूँ।
रूपा- क्या बात है, सचिन तो एक ही दिन में कवि बन गया।

ऐसे ही बातों बातों में समय कब निकल गया पता ही नहीं चला। सबने खाना भी खा लिया और रूपा ने घोषणा भी कर दी कि वो सोने जा रही है।

सोनाली- तू हमारे कमरे में ही सो जा, सचिन और पंकज तेरे कमरे में सो जाएंगे।
सचिन- अरे दीदी, रहने दो मैं यहीं सोफे पर सो जाऊंगा।
रूपा- भाभी! भैया को क्यों वनवास दे रही हो। मुझे कोई दिक्कत नहीं है सचिन चाहे तो मेरे कमरे में ही सो सकता है।
सोनाली- सचिन, तुम रूपा के कमरे में जाओ। पंकज को जहाँ सोना होगा वो अपने हिसाब से देख लेगा। दोनों ही बेड काफी बड़े हैं।

सोनाली ने हाथ पकड़ कर रूपा को अपने साथ ले जाते हुए धीरे से कहा- सचिन अभी इतना बोल्ड भी नहीं हुआ है। वो तुम्हारे साथ सोने को तैयार नहीं होगा और यहीं सो जाएगा फिर हमको प्लान आगे बढ़ाना और मुश्किल होगा।
रूपा- हम्म… ठीक है अभी आपके साथ ही चलती हूँ, फिर बाद में देखेंगे।

सोनाली और रूपा बैडरूम में चले गए। उधर पंकज बाथरूम से हाथ-मुँह धो कर वापस आया तो सचिन रूपा के रूम में जा रहा था।

पंकज- अच्छा तुम रूपा के रूम में सोने जा रहे हो?
सचिन- हाँ, रूपा दीदी के साथ सोने गई है।
पंकज- ओह्ह तो मुझे तुम्हारे साथ सोना है।
सचिन- अरे नहीं आप चाहो तो रूपा को वापस भेज दो, मैंने तो कहा था मैं सोफे पर सो जाऊंगा।
पंकज- अरे नहीं नहीं… ऐसा कैसे? तुम आराम से बेड पर ही सोओ मैं देख लूँगा जो भी होगा।

पंकज के ज़ोर देने पर सचिन रूपा के बेड पर ही सो गया। ये डबल-बेड ज़रूर था लेकिन उतना बड़ा भी नहीं जितना बैडरूम वाला बेड था। पंकज भी दूसरा कोना पकड़ कर लेट गया। कुछ देर तक दोनों ने इधर उधर की बातें कीं और फिर सो गए। सचिन को तो अभी नींद नहीं आ रही थी। एक तो वो अपने घर से बाहर कम ही जाता था तो किसी नई जगह पर नींद मुश्किल से ही आती थी, उस पर आज दिन भर में जो कुछ भी हुआ था वो सब उसके दिमाग में घूम रहा था.
अधिकतर वो रूपा के बारे में ही सोच रहा था ‘रूपा कितनी बोल्ड लड़की है न, दीदी भी इतनी बोल्ड होतीं तो पता नहीं शायद हमारे बीच कुछ हो गया होता। जीजाजी बोल रहे थे कि वो कोई लिहाज़ नहीं मानते, कहीं सच में उनका कोई चक्कर तो नहीं हो रूपा के साथ? अरे नहीं, ये सब मेरे गंदे दिमाग की उपज है। सब मेरे जैसे अपनी ही बहन पर लट्टू थोड़े ही होते हैं। लेकिन रूपा का मेरे साथ तो चक्कर चल ही सकता है। इसमें तो कोई बुराई नहीं है।’

सचिन इसी सब सोच में डूबा हुआ था कि उसने देखा की पंकज धीरे से उठा और कमरे से बहार चला गया। पहले तो उसे लगा कि शायद पेशाब करने गए होंगे लेकिन जब कुछ देर तक कोई हलचल नहीं हुई तो वो समझ गया कि जीजाजी बैडरूम में चले गए हैं। सचिन फिर सोच में पड़ गया कि कहीं उसका शक सही तो नहीं था। कहीं जीजाजी और रूपा… अरे नहीं, वो तो दीदी के लिए गए होंगे। लेकिन रूपा भी तो वहीं है, तो क्या जीजाजी अपनी बहन के सामने ही दीदी के साथ वो सब करने लग जाएंगे?

सचिन की उधेड़बुन अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि उसने किसी को कमरे में आते देखा। लेकिन ये तो साफ़ था की वो उसके जीजाजी नहीं थे। सचिन की उलझन तुरंत दूर हो गई जैसे ही रूपा बेड पर आ कर बैठी। उसने एक लम्बा टी-शर्ट पहना हुआ था जिसके नीचे कुछ भी नहीं था। शायद पैंटी होगी लेकिन वो दिख नहीं रही थी क्योंकि वो टी-शर्ट इतना लम्बा था कि घुटनो से थोड़ा ही ऊपर तक आ रहा था।

सचिन- क्या हुआ रूपा तुम यहाँ?
रूपा लेटते हुए- हाँ यार मुझे तो पहले ही पता था कि भैया, भाभी की बिना नहीं रह पाएंगे।
सचिन- तो मैं बाहर चला जाता हूँ सोफे पर!
रूपा- मैं क्या तुमको ड्रैक्युला जैसी दिखती हूँ?
सचिन- नहीं तो!
रूपा- तो फिर सोए रहो न यार, वैसे भी मुझे तुम्हारे जैसे संस्कारी लड़के से कैसा डर?

सचिन को लगा जैसे किसी ने उसकी शराफत को चुनौती दे दी हो। वैसे उसको पता था कि वो कोई शरीफ नहीं है। जो लड़का अपनी बहन और माँ को नंगी नहाते हुए देख कर मुठ मारता रहा हो वो शरीफ कैसे हो सकता है लेकिन फिर भी जो शराफत की उसकी छवि सब लोगों के मन में बनी हुई थी वो उसको बने रहने देना चाहता था। एक सोनाली ही थी जिसके सामने वो सच में नंगा था क्योकि उसके आलावा बाकी सब उसे शरीफ ही समझते थे।

आखिर अपनी शराफत की चादर ओढ़ कर सचिन सो गया। नींद में जैसे उसने कोई सपना देखा हो और उसे लगा कि कोई बिल्ली अचानक उछल कर उसकी कमर पर बैठ गई है। इसी हड़बड़ी में उसकी नींद खुली और उसने देखा कि रूपा करवट बदलते बदलते उसके बिल्कुल पास आ चुकी थी और उसने अपना एक पैर मोड़ कर सचिन की कमर पर रख दिया था।

पैर के मुड़ने से उसका लम्बा टी-शर्ट काफी ऊपर तक सरक गया था और उसकी जांघें यहाँ तक कि उसके कूल्हों का निचला भाग तक नंगा हो गया था। लेकिन यहाँ तक भी पैंटी का कोई नामोनिशान नहीं था।
सचिन का ईमान डगमगा गया और उसने उसकी जाँघों पर अपना हाथ रख दिया। कुछ देर तक जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो सचिन ने रूपा की नंगी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया। इतनी चिकनी और मुलायम त्वचा का अनुभव उसने शायद अपनी कल्पना में ही किया होगा, या फिर बचपन में कभी, जो वो भूल चूका था।

इस अनुभव ने उसकी हिम्मत को और बढ़ा दिया और उसने हाथ आगे बढ़ा कर रूपा के नितम्बों तक ले गया। भरे मुलायम गोल नितम्बों को हलके से मसलते हुए जब उसने हाथ टी-शर्ट के अंदर तक डाला तो उसे लगा कि वहां कोई पैंटी नहीं थी। इस बात की पुष्टि जैसे ही हुई उसकी धड़कन और तेज़ हो गई और लंड ने एक और अंगड़ाई झटके के साथ ली। कुछ देर तक वो दोनों नितम्बों को अपने हाथ से सहलाता रहा लेकिन फिर जब हिम्मत करके उसने अपन हाथ दोनों के बीच की घाटी में डाला तब समझ आया कि उसने जी-स्ट्रिंग पहनी हुई थी जिसमे केवल योनि के ऊपर एक तिकोना कपड़ा होता है, जिसके तीनों छोर पर डोरियां लगी होती हैं।

सचिन ने हिम्मत नहीं हारी, आखिर ये पहली बार था जब वो किसी लड़की के गुप्तांग के इतने करीब तक पहुंच पाया था। उसने जी-स्ट्रिंग के बाजू से दो उँगलियाँ अंदर सरका कर रूपा के भग-प्रदेश को छुआ ही था कि अचानक रूपा ने करवट बदल ली और अपना टी-शर्ट नीचे करके चादर ओढ़ कर सो गई। सचिन की धड़कन अभी भी रेलगाड़ी की तरह तेज़ दौड़ रही थी। उसकी उँगलियों ने जिस अहसास को अभी अभी अनुभव किया था वो अभी भी ताज़ा था। पूरी रात वो करवटें बदलता रहा लेकिन नींद नहीं आई।

आखिर भोर के पहले पहर ने उसे सुला ही दिया।

अगली सुबह वो काफी देर से उठा तब तक पंकज जा चुका था और सोनाली व रूपा फ्रेश हो कर चाय-नाश्ता भी कर चुकी थीं। जाने कहाँ से रूपा को पता चल गया और वो उसके लिए कॉफ़ी लेकर आ गई। उसके व्यवहार से ये बिल्कुल नहीं लग रहा था कि उसे रात के बारे में कुछ भी याद है।
सचिन को इस बात से सुकून मिला कि रूपा को कुछ याद नहीं था, वरना वो तो इसी बात से चिंतित था कि कहीं उसे कुछ याद रह गया तो ये जो उनके रिश्ते में थोड़ी नज़दीकियां बनी हैं ये भी कहीं हाथ से निकल न जाएं।

कॉफी पीकर सचिन बहार आया तो सोनाली ने कहा- सचिन, नाश्ता लगा दिया है, लेकिन थोड़ा कम ही लेना क्योंकि इतना देर से उठे हो कि खाने का समय भी बस हो ही गया है। नाश्ता करके नहा लेना, फिर सब साथ में खाना खाएंगे।
सचिन- जी दीदी!

नाश्ता करके सचिन घर में इधर उधर टहलने लगा। रूपा ने अब एक दूसरी ड्रेस पहन ली थी जो उस रात वाले टी-शर्ट से कोई बहुत अलग नहीं थी। फर्क इतना था कि ये थोड़ी कसी हुई थी और इस पर ऊपर से नीचे तक काली और सफ़ेद पट्टियां थीं।

एक बात और, ये घुटनों से काफी ऊपर भी थी और इसकी बाँहें कलाइयों तक पूरी ढकी हुई थीं। रूपा बहुत सेक्सी लग रही थी इसमें। सचिन ने तो ऐसी ड्रेस पहने केवल 1-2 लड़कियों को ही देखा था वो भी कॉलेज की पार्टी में। सचिन की तो उनसे कभी बात तक करने की हिम्मत नहीं हुई थी।

खाना लगभग तैयार था इसलिए सोनाली ने सचिन को जल्दी से जा कर नहाने के लिए कहा तो वो नहाने चला गया।
अभी ठीक से नहाना शुरू भी नहीं किया था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी।

रूपा- बड़ी जल्दी सारा सिस्टम समझ गए सचिन! मैं तो डर गई थी कि कहीं आज भी घंटा भर रोक के न रखना पड़े।

सचिन को कमोड का ढक्कन खोलने की आवाज़ आई और साथ में ये ख्याल भी कि पर्दा तो शावर में लगा है कमोड तो खुले में है। तब तक रूपा के पेशाब करने की आवाज़ भी आने लगी थी। शस्स्स्सऽऽऽ…
उसने हिम्मत करके स्लाइडिंग दरवाज़े को थोड़ा खोला और परदे के किनारे से आँख लगा कर बाहर देखा। ठीक सामने रूपा कमोड पर बैठ कर पेशाब करती हुई दिखाई दी। उसकी ड्रेस नाभि से ऊपर तक उठी हुई थी, ज़ाहिर है कोई पैंटी नहीं थी और चूत बिल्कुल चिकनी… सचिन के मन में रात वाली कोमल अनुभूति ताज़ा हो गई। लेकिन छूने और देखने दोनों की अपनी अलग अनुभूति होती है।

वो डबलरोटी के बन की तरह फूले और आपस में चिपके दो चिकने भगोष्ठ, उनके बीच से बाहर झांकती छोटी सी भगनासा (क्लिट)। उसके नीचे से निकलती पानी की धार… हाँ वो पीली बिल्कुल नहीं थी। बिल्कुल पानी की तरह साफ पेशाब की धार जो सीधा कमोड में गिर रही थी।

सचिन ने सोचा था कि पैंटी शायद नीचे पैरों में फंसी होगी लेकिन वो वहां भी नहीं थी। मतलब आज रूपा ने कोई पैंटी पहनी ही नहीं थी?

इसका जवाब भी जल्दी ही मिल गया। रूपा ने बाजू से एक टिश्यू लेकर अपनी चूत को साफ़ किया और खड़ी हो गई। कमोड को बंद करके वो सिंक के पास गई और वहां से अपनी पैंटी (जी-स्ट्रिंग) उठाई। वो उसे पहनने के लिए झुकी लेकिन फिर रुक गई, वापस खड़े हो कर उसने उसे सूंघा और फिर वहीं प्लेटफॉर्म पर रख दिया और खुद को आइने में निहारने लगी।
उसकी वो ड्रेस जो अब तक उसकी नाभि के ऊपर तक चढ़ी हुई थी, उसे नीचे करने की बजाए उसने उसे अब बाहों तक ऊपर चढ़ा लिया। उसके ऐसा करते ही उसके दोनों कबूतर आज़ाद पंछी की तरह फड़फड़ा कर बाहर आ गए।

रूपा ने अपने स्तनों को दोनों हाथों में भर कर सहलाया, थोड़ा दबाया और खेल खेल में उनके चुचूक उमेठ कर खींचे भी। इसी बीच वो अपनी कमर भी हल्के से लहराने लगी जैसे किसी हल्की सी धुन पर नाच रही हो और इससे सचिन का ध्यान अपने आप ही उसके नितम्बों की ओर चला गया, ऐसे लग रहे थे जैसे रेगिस्तान में तूफ़ान के बाद रेत के स्तूप बन गए हों, एकदम सुडौल और बेदाग।

अचानक उसकी कमर पेंडुलम की तरह दाएं-बाएं हिलते हिलते, एक ओर रुक गई और जब सचिन की नज़र ऊपर गई तो उसे लगा जैसे रूपा दर्पण में से उसी की तरफ देख रही थी। रूपा ने एक आँख मारी और मुस्कुरा दी।
सचिन घबरा कर जल्दी से पर्दा छोड़ दिया और स्लाइडर बंद कर लिया।

इस घटना से सचिन बहुत उत्तेजित हो गया था और रात वाली बात उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने रूपा की कल्पना करते हुआ मुठ मारना शुरू कर दिया। उसे पक्का यकीन नहीं था कि रूपा ने वो आँख उसे देख कर ही मारी थी या वो दर्पण में खुद को देख कर ऐसा कर रही थी लेकिन फिर भी उसका दिल यही चाहता था कि काश वो इशारा उस ही के लिए हो। आज बहुत दिनों के बाद मुठ मारने में उसे इतना मजा आया था।

दोस्तो, आपको यह कुंवारे लड़के के पहले सेक्स अनुभवों की कहानी कैसी लगी आप मुझे ज़रूर बताइयेगा।
आपका क्षत्रपति
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