हसीन गुनाह की लज़्ज़त-4

(Haseen Gunaah Ki Lajjat- Part 4)

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अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।
शाम को लगभग 4 बज़े A.C वाले का फ़ोन आया कि A.C ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि A.C वापिस फ़िट किया जा सके।
मैंने उसे इतवार शाम को आकर A.C फिट करने को बोला।

अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था। शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया।
सुधा को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी।

चार गोलियां पीस कर में पुड़ी में अपने पास रख ली।

अगली रात डिनर के टाइम डिनर टेबल पर प्रिया डिनर सर्व कर रही थी, आमतौर पर सुधा डिनर सर्व करती थी लेकिन उस दिन प्रिया डिनर सर्व कर रही थी, आते-जाते बहाने बहाने से मुझे यहां वहां छू रही थी।

डिनर हुआ, आईस क्रीम मैंने खुद सबको सर्व की। बच्चों की और सुधा वाली प्लेट में मैंने वो पीसी हुईं नींद की गोलियां मिला दी। सब ने आईसक्रीम खाई और करीब 9:30 बजे मैं एक दोहरी मनस्थिति में अपने बैडरूम में आ गया।
नींद की गोलियों का असर सुधा पर एक से डेढ़ घंटे बाद होना था।
ब्रश करने के बाद मैंने हस्तमैथुन किया और अपना अंडरवियर पहने बिना ही पजामा पहन लिया और एक नावेल लेकर वापिस अपने बिस्तर पर आ जमा। मैं अपने बिस्तर पर दो तकियों के साथ पीठ टिका कर, पेट तक चादर ले कर ओढ़ कर और घुटने मोड़ कर नॉवल पढ़ने लगा।

सब काम निपटा कर, करीब सवा दस बजे प्रिया और सुधा दोनों बैडरूम में आईं। तब तक बैडरूम में चलते A.C की बड़ी सुखद सी ठंडक फ़ैल चुकी थी।
आते सुधा बोली- आज तो मैं बहुत थक सी गई हूँ, बहुत नींद आ रही है!
‘मुझे भी!’ प्रिया ने भी हामी भरी।

‘तो सो जाओ, किसने रोका है।’ मैंने कहा।
‘और आप?’ सुधा ने पूछा।
‘मैं थोड़ा पढ़ कर सोऊंगा, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है।’ मैंने कहा।
‘ठीक है… पर आप ट्यूब लाइट बंद करके टेबललैम्प जला लें!’ सुधा ने मुझ से कहा।

मैंने सिरहाने फिक्स टेबल-लैम्प जला कर ट्यूब लाइट बंद कर दी।

अब स्थिति यूं थी कि मेरे सर के ऊपर थोड़ा बाएं तरफ टेबल-लैम्प जल रहा था और प्रिया मेरे दाईं तरफ क़दरतन अंधेरे में थी और मेरे दाईं ओर से, मतलब सुधा की ओर से प्रिया को साफ़ साफ़ देख पाना मुश्किल था क्योंकि बीच में मैं था और प्रिया मेरी परछाई में थी।
बीस-पच्चीस मिनट बिना किसी हरकत के बीते। वैसे तो मेरी नज़र नॉवेल के पन्नों पर थी लेकिन दिमाग प्रिया की ओर था।
कनखियों से प्रिया की ओर देखा तो पाया कि प्रिया बाईं करवट लेटी हुई मेरी ओर ही देख रही थी।

फिर प्रिया ने आँखों ही आँखों में मुझे लाइट बंद करने का इशारा किया लेकिन मैंने उसे अभी रुक जाने का इशारा किया। जबाब में प्रिया ने मुझे ठेंगा दिखा कर मुंह बिचकाया, ऊपर चादर ले कर उलटी तरफ करवट ली और मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई।

मुझे हंसी आ गई और मैंने हाथ बढ़ा कर प्रिया का कंधा छूआ तो उसने मेरा हाथ झटक दिया। मैंने दोबारा वही हाथ उस की कमर पर रखा तो प्रिया ने दुबारा मेरा हाथ अपनी कमर से झटक दिया।
लड़की सचमुच रूठ गई थी।

अब के मैंने अपना हाथ हौले से प्रिया के ऊपर वाले नितम्ब पर रख दिया, इस बार प्रिया ने मेरा हाथ नहीं झटका। मैं धीरे-धीरे कोमलता से प्रिया का पूरा नितम्ब सहलाने लगा।

अचानक मुझे महसूस हुआ कि आज प्रिया ने लोअर के नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी। वही हाथ प्रिया की पीठ पर फिराने से पता चला कि ब्रा भी नदारद थी। इन सब का सामूहिक मतलब तो ये था कि मेरी प्रेयसी अभिसार के लिए आज पूरी तरह से तैयार थी।
ऐसा सोचते ही मेरा लिंग अपनी पूरी भयंकरता के साथ मेरे पजामे में फुंफ़कारने लगा।

अपना वही हाथ प्रिया के कंधे तक ला कर मैंने प्रिया का कंधा हलके से अपनी ओर खींचा तो प्रिया सीधी हो कर लेट गई और आँख के इशारे से मुझे टेबल-लैम्प बुझाने को कहा।

मैंने पहले सुधा की ओर घूम कर देखा, अपना चेहरा परली तरफ घुमा कर हल्क़े से कंबल में चित लेटी सुधा गहरी निद्रा में थी। मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद किया और अंधेरा होते ही झुक कर प्रिया के होंठों पर होंठ रख दिए।
प्रिया ने फ़ौरन अपनी बाजुएं मेरे गले में डाल दी और बड़ी शिद्दत से मेरे होंठ चूसने लगी।

थोड़ी देर बाद मैं सीधा हुआ और फ़ौरन दोबारा प्रिया की ओर झुक कर मैंने प्रिया के माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, सैंकड़ों चुम्बन जड़ दिए।
प्रिया के दाएं कान की लौ चुभलाते समय मैं प्रिया के मुंह से, आनंद के मारे निकलने वाली ‘सी…सी… सीई… सीई… सीई… ई…ई…ई’ की सिसकारियाँ साफ़ साफ़ सुन रहा था।

मैंने प्रिया के नाईट सूट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना हाथ अंदर सरकाया। रुई के समान नरम और कोमल दो गोलों ने जिन के सिरों पर अलग अलग दो निप्पलों के ताज़ सजे थे, मेरे हाथ की उँगलियों का खड़े होकर स्वागत किया।
क्या भावनात्मक क्षण थे!
मेरा दिल करे कि दोनों कबूतरों को अपने सीने से लगा कर चुम्बनों से भर दूं, निप्पलों को इतना चूसूं… इतना चूसूं कि प्रिया के मुंह से आहें निकल जाएँ।
यूं तो प्रिया के मुंह से आहें तो मेरे उसके उरोजों को छूने से पहले ही निकलना शुरू हो गई थी।

उधर प्रिया का बायां हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से ही मेरा लिंग ढूंढ रहा था। प्रिया ने मेरे पजामे का कपड़ा खींच कर मुझे मेरे लिंग को पजामे की कैद से छुड़ाने का इशारा किया, मैंने तत्क्षण अपना पजामा अपनी जाँघों तक नीचे खींच लिया।

प्रिया ने बेसब्री से मेरे तपते, कड़े-खड़े लिंग को अपने हाथ में लिया और उसके शिश्नमुण्ड पर अपनी उंगलियां फेरने लगी।
मेरे लिंग से उत्तेजनावश बहुत प्री-कम निकल रहा था और उससे प्रिया का सारा हाथ सन गया।

अचानक प्रिया ने वही हाथ अपने मुंह की ओर किया और अपने हाथ की मेरे प्री-कम से सनी उंगलियां अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी।

मैंने तभी प्रिया के नाईट सूट के बाकी बटन भी खोल दिए और उसकी इनर उठा कर दोनों उरोज़ नग्न कर के अपनी जीभ से यहां-वहां चाटने लगा।
इससे प्रिया बिस्तर पर मछली की तरह तड़फने लगी, प्रिया जोर जोर से मेरा लिंग हिला दबा रही थी और मैं प्रिया के उरोजों का, निप्पलों का स्वाद चेक कर रहा था।

प्रिया पर झुके झुके मैंने अपना बायाँ हाथ प्रिया के पेट की ओर बढ़ाया, नाभि पर एक-आध मिनट हाथ की उंगलियां गोल गोल घुमाने के बाद अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर हौले से प्रिया के नाईट सूट का नाड़ा खोल दिया।
सरप्राइज ! आज प्रिया ने मुझे ऐसा करने से नहीं रोका।

मैंने जैसे ही अपना हाथ और नीचे करके प्रिया की पेंटी विहीन योनि पर रखा, एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, आज प्रिया की योनि एकदम साफ़-सुथरी और चिकनी थी, योनि पर बालों का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था, लगता था कि प्रिया ने शाम को ही योनि के बाल साफ़ किये थे।
छोटी सी योनि ज्यादा से ज्यादा साढ़े चार से पांच इन्च की जिस पर ढाई इंच से तीन इंच की दरार थी, दरार के ऊपर वाले सिरे पर छोटे मटर के साइज़ का भगनासा और प्रिया की योनि रस से इतनी सराबोर कि दरार में से रस बह-बह जांघों की अंदर वाली साइडों को भिगो रहा था।

मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार पर ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फेरनी शुरू की, प्रिया के शरीर में रह रह कर काम तरंगें उठ रही थी जो मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था।

इधर प्रिया मेरे लिंग का भुरता बनाने पर तुली हुई थी, जोर जोर से लिंग दबा रही थी, चुटकियां काट रही थी और लिंग के शिश्नमुण्ड को अपनी उँगलियों में दबा दबा कर रस निकालने की कोशिश कर रही थी और बदले में मैं प्रिया के दोनों उरोज़ चूम रहा था, यहाँ-वहाँ चाट रहा था, निप्पल्स चूस रहा था।

निःसंदेह, हम दोनों जन्नत में थे।

प्रिया की योनि पर अपनी उंगलियां चलाते-चलाते मैंने अपने हाथ की बीच वाली उ।गली दरार में घुसा दी और अंगूठे और पहली उ।बगली से प्रिय का भगनासा हल्का हल्का मींजने लगा।
इस पर प्रिया ने उत्तेज़नावश अपनी दोनों टाँगें और चौड़ी कर दी ताकि मेरी बीच वाली उंगली थोड़ी और योनि में प्रवेश पा सके।

मुझे पता था कि प्रिया पूर्णतः कँवारी थी और मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं था, बस इक वही रात थी और जिंदगी में दोबारा ऐसी रात आनी मुश्किल थी। मैंने प्रिया की योनि में धँसी अपनी उंगली को योनि के अंदर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया।

इस का नतीजा फ़ौरन सामने आया, प्रिया बार बार रिदम में अपने नितम्ब बिस्तर से ऐसे ऊपर उठाने लगी जैसे चाहती हो कि मेरी पूरी उंगली उसकी योनि के अंदर चली जाए।

प्रिया की योनि से बेशुमार रस बह रहा था। मेरे लिंग पर उस की पकड़ और मज़बूत हो गई थी। मैं अपनी उंगली को हर गोल घेरे के बाद थोड़ा और अंदर की ओर धँसा देता था।

धीरे धीरे गोल गोल घूमती मेरी करीब पूरी उंगली प्रिया की योनि में उतर गई।
अब मैंने अपनी उंगली को बाहर निकाला और बीच वाली और तर्जनी उंगली को भी योनि में गोल गोल घुमाते घुमाते डालना शुरू कर दिया।

रस से सरोबार प्रिया की योनि में मेरी दोनों उंगलियां प्रविष्ट हो गई।
अब ठीक था, अपनी प्रेयसी को प्रेम-जीवन के और इस सृष्टि के एक अनुपम और गृहतम रहस्य से परिचित करवाने का समय आ गया था।

मैंने टाइम देखा, सवा बारह बज रहे थे, मतलब कि नींद की गोलियों का जादू पूरी तरह सुधा पर चल चुका था और अब मेरे लिए ‘वन्स इन आ लाइफ टाइम’ जैसा मौका था।
मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और पहले अपना पजामा संभाला। परली तरफ जाकर, इससे पहले प्रिया कुछ समझ पाती, प्रिया को अपनी गोद में उठा कर और अपने से लिपटा कर बाहर ड्राइंग रूम में आ गया।

ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था।
नीम अँधेरे में प्रिया मेरी बाहों में छटपटा रही थी- मैं नहीं… मैं नहीं… मौसी उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे!
ऐसे ऊटपटाँग बोल रही थी।

कुंवारी चूत की कहानी जारी रहेगी।
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