मेरी परीक्षा और मेरी चूत चुदाई-1

(Meri Pariksha Aur Meri Chut Chudai-1)

This story is part of a series:

यह कहानी उस समय की है जब मैं बारहवीं की परीक्षा देने के बाद इंजीनियरिंग के टैस्ट देने के लिए इलाहबाद अपनी मौसी के घर गई थी। वैसे मेरी मौसी के घर सिर्फ दो लोग रहते हैं, मेरी मौसी और उनका लड़का सौरभ… मेरे मौसा की मौत दो साल पहले कैंसर की वजह से हो गई थी इसलिए मेरी मौसी को जॉब करनी पड़ती है… वो बैंक में कैशियर हैं, उनका पूरा दिन बैंक के काम में बीत जाता है… और सौरभ जो मुझसे एक साल छोटा है वो अभी गयारहवीं पास करके बारहवीं में आया है।

मेरी मौसी का घर बहुत छोटा है, दो कमरे, एक रसोई और कमरे से ही जुड़ा बाथरूम है।

मैं पिछले साल वहाँ आई आई टी की परीक्षा देने गई थी मैं तीन दिन पहले ही वहाँ पहुँच गई थी।

तब मौसी ऑफिस के काम से आउट ऑफ़ स्टेशन थी और अगले दिन रात तक आने वाली थी। घर में सिर्फ सौरभ था। मैं सुबह सुबह वह पहुँच गई थी।

मौसी के कमरे में ही मैंने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी… दोपहर में खाना खाने के बाद मैं और सौरभ थोड़ा घूमने चले गई और फिर रात का खाना बाहर ही खाकर आए। हमें वापस आने में रात के दस बज गए थे। मैं मौसी के कमरे में पढ़ाई करने चली गई और पढ़ाई करते करते सुबह के चार बज गए…

मुझे जोरों की प्यास लगी थी, मैं पानी पीने के लिए रसोई में गई, वापस आते समय देखा कि सौरभ के कमरे की लाइट जल रही थी और दरवाजा भी थोड़ा खुला था। मैं दरवाजे की तरफ बढ़ी और मैंने अंदर की तरफ देखा तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था जो मैंने देखा। मानो कि आसमान नीचे और ज़मीन ऊपर चली गई हो !

मैंने देखा कि सौरभ अंदर बैठ कर ब्लू फिल्म देख रहा था.. इतना छोटा लड़का और ऐसी हरकतें.. और मैं भी बाहर से खड़े होकर उसकी हरकतें देखने लगी।लगभग आधा घंटा ब्लू फिल्म देखने के बाद वो उठकर बाथरूम में चला गया और उसने बाथरूम का दरवाज़ा नहीं बंद किया था, शायद वो ब्लू फिल्म देखने के बाद जोश में आ गया था और अपने अंदर की वासना को शांत करने गया था…

मैंने बाथरूम के अंदर देखना चाहा पर मैं अचानक दरवाजे पर बहक सी गई… और दरवाज़ा पूरा खुल गया, मैं वहाँ से जोर से भागी पर दरवाज़ा खुलने के शोर से सौरभ बाहर आ गया और शायद उसने मुझे वहाँ से जाते हुए देख लिया…

मैं अपने कमरे में चली गई और वहाँ से देख रही थी। सौरभ परेशान दिख रहा था, शायद उसे डर था कि मैंने जो देखा है वो मैं किसी को बता न दूँ। वह बेचारा डर के मारे एकदम पसीने-पसीने हुआ जा रहा था, मानो कि उसने शर्ट पानी में भिगो कर पहनी हो… उसकी इस हालत को देख कर मेरे भी अंदर आग लग रही थी और उसके ऊपर दया आ रही थी…

मैंने सौरभ को बुलाया, वह मेरे कमरे में आया, मैंने पूछा- क्या हुआ?

उसने कहा- कुछ नहीं…
‘तो फिर इतने परेशान क्यों हो? क्या बात है?’

उसने फिर बोला- कुछ नहीं दीदी…
मैंने कहा- शर्माओ मत, बोलो…

उसने सर झुकाते हुए कहा- सॉरी दीदी..
‘पर किस लिए?’
‘प्लीज, जो भी आपने देखा, किसी को मत बताइएगा…’
‘अरे पगले, यह भी कोई कहने की बात है क्या?’

उसने मुस्कुराते हुए कहा- मैं डर गया था…
मैंने उसके गाल पर हाथ फेरते हुए कहा- अब ठीक है न?

उसकी मुस्कराहट और बढ़ गई !
‘कब से कर रहे हो ये सब?’
‘दीदी आप भी ना !’
‘अरे तू इतना शर्माता क्यों है? बता ना !’
‘अरे छोड़िए इस बात को !
‘ठीक है, पर ज्यादा मत कर ये सब ! तेरी सेहत पर असर पड़ेगा…’

वो मुस्कुराते हुए वहाँ से उठ कर नहाने चला गया।

मैंने पीछे से आवाज़ लगाई- अपना अधूरा काम पूरा कर लेना…

सब सोच सोच कर मेरे तन बदन में आग लग रही थी।

मैं उठी और उसके कमरे से उसकी वो पसीने से भीगी शर्ट ले आई जिसकी महक मेरी कामुकता को बढ़ाए जा रही थी… मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और उसकी शर्ट पहन ली।

उस भीगी शर्ट में मैं बहुत सेक्सी दिख रही थी, मेरी पूरे तन बदन में आग लग चुकी थी, मैंने अपनी एक उंगली अपनी चूत में डाल दी और अंदर-बाहर करने लगी। मुझे बहुत मजा आ रहा था। ऐसा ही करते करते मैं बिस्तर में ही झड़ गई… और न जाने कब वहीं सो गई। जब आँख खुली तो सुबह के दस बज चुके थे।

मैं उठी और बाथरूम में नहाने चली गई। जब नहा कर निकली और अपने कपड़े निकालने के लिए बैग खोला तो देखा कि मैं जल्दी जल्दी में अपनी ब्रा लाना भूल गई थी…

मैंने बिना ब्रा और पैंटी के बिना कपड़े पहन लिए। मैं सौरभ के पास गई और उसे बताया कि मैं अपनी ब्रा लाना भूल गई हूँ।

तो उसने कहा- चलो खरीद लाते हैं।

और हम दोनों उसकी बाइक पर बैठ कर बाज़ार चले गए। मैं पीछे बैठ कर अपनी छाती का दबाव उसकी पीठ पर दे रही थी जिसकी वजह से वो जोश में आ रहा था और वैसा ही मैं चाहती थी…

और ऐसा ही करते करते हमने ब्रा खरीद ली, मैंने घर आ कर ब्रा पहनी तो वो कुछ तंग थी पर एकदम फिट थी वो काले रंग की ब्रा !

मैंने ब्लू जीन्स के ऊपर एक चिकन का सफ़ेद टॉप पहन लिया जिसका गला बहुत गहरा था और वह चिकन का था जिसकी वजह से मेरे अंदर के पूरे सामान के दर्शन हो जाते थे।

टॉप पहनना सिर्फ एक दिखावा था, उसके पहनने और न पहनने से कुछ फर्क नहीं था…

मुझे सौरभ ने देखा तो वह मुह खोल कर देखता ही रह गया।

मैंने पूछा- क्या हुआ?
उसने कहा- आप बहुत अच्छी लग रही हैं…

मैंने उसके खड़े लंड को देखते हुए कहा- अच्छी लग रही हूँ या फिर सेक्सी…?
उसने कहा- सेक्सी भी छोटा पड़ रहा है…
मैं हंस पड़ी…

हम फिर खाना खाने बैठे…
उसने पूछा- दीदी, आपका कोई बॉयफ़्रेन्ड नहीं है?
मैंने कहा- नहीं…
‘क्यों?’
मैंने कहा- लड़के पागल होते हैं, उनको समझ नहीं आता कि एक लड़की क्या चाहती है..!
‘मतलब..?’

‘मतलब कोई अच्छा मिला नहीं अभी तक…! सौरभ, मैंने कुछ पूछा था कल, तुमने बताया नहीं?’

‘क्या?’
‘यही कि कब से कर रहे हो?’
‘यही कुछ एक साल से…’

‘कभी असली में किया है… मतलब किसी लड़की के साथ?’

‘नहीं दीदी ! और आपने?’
‘मैंने भी कभी नहीं किया…’

तभी दरवाजे की घण्टी बजी, शायद मौसी आ गई थी। सौरभ दरवाज़ा खोलने के लिए उठा। मैंने कहा- एक मिनट रुको !

मैंने फट से अपना पारदर्शी टॉप उतार कर सुशील लडकियों वाला एक कपड़ा पहन लिया।

सौरभ ने कहा- यह क्या?

मैंने अपनी चूचियों को हाथ में लेते हुए कहा- ये मेरे मम्मे हैं, सबको नहीं दिखाती ! सिर्फ कुछ ख़ास लोग को दिखाती हूँ जैसे तुम…

वह मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोलने चला गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मौसी आ गई थी, मुझे लगा कि मेरा काम अधूरा ही रह गया। वैसे तो मेरा और मौसी का रिश्ता दो सहेलियों की तरह है लेकिन है तो वो मेरी मौसी…

मौसी ने मुझे प्यार से गले लगाते हुए कहा- कैसी हो पूजा बेटी !

फिर मौसी ने भी खाना खा लिया और मुझसे इधर उधर की बात करने लगी।

कहानी जारी रहेगी।
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