कमाल की हसीना हूँ मैं-28

(Kamaal Ki Haseena Hun Mai- Part 28)

शहनाज़ खान 2013-05-20 Comments

This story is part of a series:

लाँग स्कर्ट्स के बाद माइक्रो स्कर्ट्स की बारी आई। मैंने एक पहना तो मुझे काफी शर्म आई। स्कर्ट्स की लम्बाई पैंटी के दो अंगुल नीचे तक थी। टॉप भी मेरी गोलाइयों के ठीक नीचे ही खत्म हो रही थी। टॉप्स के गले भी काफी डीप थे। मेरे आधे बूब्स सामने नज़र आ रहे थे। मैंने ब्रा और पैंटी के ऊपर ही उन्हें पहना और एक बार अपने जिस्म को सामने लगे फुल लेंथ आइने में देख कर शरमाती हुई उनके सामने पहुँची।

“नो नो… तुम्हें पूरे ड्रेस-कोड को निभाना पड़ेगा।” उन्होंने अपने गिलास से सिप करते हुए कहा, “नो अंडरगार्मेंट्स !”

“मैं वहाँ उसी तरह पहन लूँगी… यहाँ मुझे शर्म आ रही है।” मैंने शरमाते हुए कहा।

“यहाँ मैं अकेला हूँ तो शर्म आ रही है… वहाँ तो सैंकड़ों लोग देखेंगे फिर?”

“अब्बू वहाँ तो सारी लड़कियाँ इसी ड्रेस में होंगीं… इसलिये शर्म नहीं लगेगी।”

“नहीं-नहीं ! तुम तो उसी तरह आओ ! नहीं तो पता कैसे चलेगा इन कपड़ों में तुम कैसी लगोगी?”

उन्होंने कहा तो मैं चुपचाप लौट आई और अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर हाई-हील सैंडलों में धीरे-धीरे चलते हुए वापस पहुँची। उनके सामने जाकर जैसे ही मैंने अपने हाथ कमर पर रखे तो उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हो गईं।

उन्होंने शॉर्ट्स पहन रखी थी और उसमें से उनके लंड का उभार साफ़ दिखने लगा। उनका लंड मेरे एक्सपोज़र का मान करते हुए तन कर खड़ा हो गया। शॉर्ट्स के ऊपर से तंबू की तरह उभार नज़र आने लगा।

“सामने की ओर थोड़ा झुको !” उन्होंने मुझे कहा तो मैं सामने की ओर झुकी। मेरे टॉप के गले से मेरे पूरे उभार बाहर झाँकने लगे। पूरे मम्मे उनकी नजरों के सामने थे।

“पीछे घूमो !” उन्होंने फिर कहा।

मैं धीरे-धीरे पीछे घूमी। मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे झुके होने के कारण पीछे घूमने पर छोटे से स्कर्ट के अंदर से मेरी चूत उनको नज़र आ गई होगी।

उन्होंने मेरी तारीफ़ करते हुए कहा, “बाय गॉड ! तुम आग लगा दोगी सारे पैरिस में !”

मुस्कुराते हुए मैं वापस बेडरूम में चली गई। कुछ देर बाद एक के बाद एक, सारे स्कर्ट और टॉप ट्राई कर लिये। अब सिर्फ बिकिनी बची थी।

“अब्बू सारे कपड़े खत्म हो गये… अब सिर्फ बिकिनियाँ ही बची हैं।” मैंने कहा।

“तो क्या ! उन्हें भी पहन कर दिखाओ !” उन्होंने कसमसाते हुए अपने तने हुए लंड को सेट किया।

इस तरह की हरकत करते हुए उनको मेरे सामने किसी तरह की शर्म महसूस नहीं हो रही थी। काश कि मैंने भी उनकी तरह दो-तीन पैग व्हिस्की के पिये होते तो मैं भी और खुलकर और बेशर्म होकर यह शो एन्जॉय करती।

मैंने वापस कमरे में जाकर पहली बिकिनी उठाई और उसे अपने जिस्म पर पहन कर देखा। बिकिनी सिर्फ ब्रा और पैंटी की तरह टू पीस थी, बाकी सारा जिस्म नंगा था। हर बिकिनी के रंग के साथ मेल खाते सैंडल भी थे। मैं वो बिकिनी और उसके साथ के हाई-हील सैंडल पहन कर चलती हुई ताहिर अज़ीज़ खान जी के पास आई।

मेरे लगभग नंगे जिस्म को देख कर ताहिर खान जी की जीभ होंठों पर फिरने लगी।

“मुझे तो अपने बेटे की किस्मत पर जलन हो रही है। ऐसी खूबसूरत हूर तो बस किस्मत वालों को ही नसीब होती है।”

उन्होंने मेरी तारीफ़ की। मैंने उनके सामने आकर उसी तरह झुक कर अपने मम्मों को उनकी आँखों के सामने किया और फिर एक हल्के झटके से मम्मों को हिलाया और घूम कर अपने नितम्बों पर चिपकी पैंटी के भरपूर जलवे दिखाये। फिर मैं अंदर चली गई।

एक के बाद एक बिकिनी ट्राई करने लगी। हर बिकिनी पहले वाली बिकिनी से ज्यादा छोटी थी। आखिरी बिकिनी तो बस निप्पल को ढकने के लिये दो इंच घेर के दो गोल आकर के कपड़े के टुकड़े थे। दोनों एक दूसरे से पतली डोर से बंधे थे।

उन्हें निप्पल के ऊपर सेट करके मैंने डोर अपने पीछे बाँध ली। पैंटी के नाम पर एक छोटा सा एक ही रंग का तिकोना कपड़ा चूत को ढकने के लिये इलास्टिक से बंधा हुआ था। मैंने आइने में देखा। मैं पूरी तरह नंगी नज़र आ रही थी। हाइ-हील सैंडलों में मेरी नंगी गाँड ऊपर की ओर उघड़ रही थी।

मैं वो पहन कर जब चलते हुए उनके सामने पहुँची तो उनके हाथ का गिलास फ़िसल कर कालीन पर गिर पड़ा। मैं उनकी हालत देख कर हँस पड़ी। लेकिन तुरंत ही शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया।

मैंने अब तक कई गैर मर्दों के साथ में सब कुछ किया था मगर फिरोज़ भाईजान के साथ ही सैक्स को एन्जॉय किया था। उनकी तरह इनके साथ भी मैं एन्जॉय कर रही थी।

मैं इस बार उनके कुछ ज्यादा ही पास पहुँच गई। उनके सामने जाकर मैं अपना एक पैर सोफे पर उनकी टाँगों के बीच में रख कर मैं झुकी तो मेरे बड़े-बड़े उरोज उनकी आँखों के सामने नाचने लगे। मेरे दोनों मम्मे उनसे बस एक हाथ की दूरी पर थे।

वो अपने हाथों को उठा कर उन्हें छू सकते थे। मेरे सैंडल की आगे की टिप उनके शॉर्ट्स के ऊपर से उनके लंड को छू रही थी। मैंने अपने जिस्म को एक झटका दिया जिससे मेरे मम्मे बुरी तरह उछल उठे। फिर मैं पीछे मुड़कर अपने कमरे में जाने को हुई तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी गोद में खींचा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं लहरा कर उनकी गोद में गिर गई। उनके होंठ मेरे होंठों से चिपक गये। उनके हाथ मेरी गोलाइयों को मसलने लगे। एक हाथ मेरे नंगे जिस्म पर फिरता हुआ नीचे टाँगों के जोड़ तक पहुँचा। उन्होंने मेरी चूत के ऊपर अपना हाथ रख कर पैंटी के ऊपर से ही उस जगह को मुठ्ठी में भर कर मसला। अब उनके हाथ मेरी ब्रा को मेरे जिस्म से अलग करना चाहते थे।

वो कुछ और करते कि उनका मोबाइल बज उठा। उनके ऑफिस के किसी आदमी का फोन था। वो किसी ऑफीशियल काम के बारे में बात कर रहा था। मैं मौका देख कर उन कपड़ों को समेट कर वहाँ से भाग गई। मैंने अपने कपड़े उतार कर वापस सलवार कमीज़ पहनी और सारे कपड़ों को समेट कर बॉक्स में रख दिया।

मैं पूरी तरह तैयार होकर दस मिनट बाद बाहर आई। तब तक ताहिर अज़ीज़ खान जी जा चुके थे। मैं मेज से ड्रिंक्स का सारा सामान उठाने को झुकी तो मुझे सोफ़े पर एक गीला, गोल धब्बा नज़र आया। वो धब्बा उनके वीर्य से बना था। मैं सब समझ कर मुस्कुरा उठी।

मैंने अपने लिये एक डबल नीट पैग बनाया और उसे पीने के बाद मैं अपने कमरे में जाकर सो गई। आज मेरे ससुर जी की रात खराब होनी थी और मैं आने वाले दिनों के बारे सोचती हुई सो गई जब हफ़्ते भर के लिये पैरिस जैसी रंगीन जगह में हम दोनों को एक साथ रहना था।

हम तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से फ्राँस के लिये निकल पड़े। पैरिस में हमारी तरह तकरीबन सौ कम्पनियों के रिप्रेजेन्टेटिव्स आये थे।

हमें एक शानदार रिसोर्ट-होटल में ठहराया गया। उस दिन शाम को कोई प्रोग्राम नहीं था तो हमें साईट-सीइंग के लिये ले जाया गया। वहाँ ऐफिल टॉवर के नीचे खड़े होकर हम दोनों कई फोटो खिंचवाये। फोटोग्राफर्स ने हम दोनों को शौहर और बीवी समझा। वो हम दोनों को कुछ इंटीमेट फोटो के लिये उकसाने लगे।

ससुर जी ने मुझे देखा और मेरी राय माँगी। मैंने कुछ कहे बिना उनके सीने से लिपट कर अपनी रज़ामंदी जाता दी। हम दोनों ने एक-दूसरे को चूमते हुए और लिपटे हुए कईं फोटो खिंचवाये। मैंने उनकी गोद में बैठ कर भी कईं फोटो खिंचवाये।

ये सब फोटो उन्होंने छिपा कर रखने की मुझे तसल्ली दी। यह रिश्ता किसी भी तरह से हिन्दुस्तानी तहजीब में मान्य नहीं था।

अगले दिन सुबह से बहुत व्यस्त प्रोग्राम था। सुबह से ही मैं सैमिनार में व्यस्त रही। ताहिर अज़ीज़ खान जी, यानि मेरे ससुर जी, एक ब्लैक सूट जिस पर गोल्डन लाईनिंग थी, उसमें बहुत जँच रहे थे। उन्हें देख कर किसी को अंदाज़ लगाना मुश्किल हो जाये कि उनके बेटों की निकाह भी हो चुके होंगे।

वो खुद 40 साल से ज्यादा के नहीं लगते थे। जैसा कि मैंने पहले लिखा था कि निकाह से पहले से ही मैं उन पर मर मिटी थी। अगर मेरा जावेद से निकाह नहीं हुआ होता तो मैं तो उनकी मिस्ट्रैस बनकर रहने को भी तैयार थी। जावेद से मुलाकात कुछ और दिनों के बाद भी होती तो मैं अपना कुंवारापन ताहिर अज़ीज़ खान जी पर निसार कर चुकी होती।

खैर वापस घटनाओं पर लौटा जाये। सुबह, ड्रेस कोड के अनुसार मैंने स्कर्ट-ब्लाऊज़ और साढ़े चार इंच ऊँची हील के सैंडल पहन रखे थे। बारह बजे के आस-पास दो घण्टे का ब्रेक मिलता था, जिसमें स्विमिंग और लंच करते थे। सब कुछ स्ट्रिक्ट टाईम-टेबल के अनुसार किया जा रहा था। सुबह उठने से लेकर कब-कब क्या-क्या करना है, सब कुछ पहले से ही तय था।

हमें अपने-अपने कमरे में जाकर तैयार होकर स्विमिंग पूल पर मिलने के लिये कहा गया। मैंने एक छोटी सी टू-पीस बिकिनी पहनी हुई थी। बिकिनी काफी छोटी सी थी। इसलिये मैंने उसके ऊपर एक शर्ट पहन ली थी। फिर उस बिकनी के साथ के हाई-हील सैंडल पहन कर मैं कमरे से बाहर निकल कर बगल वाले कमरे में, जिसमें ससुर जी रह रहे थे, उसमें चली गई।

ससुर जी कमरे में नहीं थे, मैंने इधर उधर नज़र दौड़ाई।

कहानी जारी रहेगी।

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