चुपके-चुपके चोरी-चोरी

छोटू 1985 2006-06-18 Comments

प्रेषक : छोटू

हेलो पाठको, मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। मैं अपनी कहानी आप सभी को बताना चाहता हूँ। यह करीब पाँच साल पुरानी बात है, जब मैं स्नातिकी के प्रथम वर्ष में था। कॉलेज की छुट्टियों में मेरे घर के सभी सदस्य गाँव चले गए थे। मेरा रहने का प्रबंध मेरी चाची के यहाँ कर दिया था। मैं बहुत खुश था।

मैं सुबह जल्दी से तैयार होके चाची के यहाँ चला गया। चाची ने दरवाजा खोला, वो बहुत ही अलग लग रही थी। उन्होंने साड़ी पहनी थी। साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। मेरा मन बदलने लगा, मैं कभी कभी चाची के बारे में सोचता था और मुठ मारता था।

उन्होंने मुझसे बैठने को कहा और अन्दर रसोई में चली गई, कुछ देर बाद चाची कुछ खाने को लाई। मैंने उनसे चाचा और बच्चों के बारे में पूछा, तो पता चला कि चाचा सुबह ही गाँव गए हैं और बच्चे अपनी नानी माँ के पास गए हैं, दो दिन बाद लौटेंगे।

मैं यह सोच कर सोचता ही रह गया कि आज के बाद के आठ दिन मुझे उनके साथ रहना है, और दो दिन हम दोनों को अकेले ही रहना है। वैसे तो मुझे चाची पसंद ही नहीं, बल्कि वो तो मेरी ड्रीम गर्ल थी। उनको जब पहली बार देखा था तो वो बहुत ही सादगीपूर्ण थी। उन्होंने कभी मुझे अपने बच्चों से अलग नहीं समझा था। कुछ साल पहले जब मैं उनके घर गया था तो उन्होंने मुझे छोटा समझ के मेरे सामने अपनी साड़ी बदली थी, तब मैं सातवीं कक्षा में था। तभी से आज तक मैं उनके बारे में सोचता और अपने मन को शांत करता था। उनके उस सादे रूप में और अ़ब दो बच्चों को जन्म देने के बाद बहुत बदलाव हुए हैं, वो और भी सुन्दर होती जा रही हैं।

उस दिन तो वो गजब लग रही थी। मैं उनको चोरी से देखता हूँ, यह बात उन्हें पता चल चुकी थी। मगर उन्होंने इस बात का जिक्र कभी किसी से नहीं किया था और आज मैं उनके साथ अकेला था। उन्होंने मेरी कॉलेज-लाइफ के बारे में पूछना शुरु किया। वैसे तो मैं उनसे ज्यादा बात तो करता ही था, मैंने भी उनसे उनकी कॉलेज-लाइफ के बारे में पूछा और हम बातों में इतने घुल मिल गये कि हमें वक्त का लिहाज भी नहीं रहा। कोई एक बजे हमने खाना खाया। उन्हें मदद करने के बहाने (देखने के लिए) रसोई में चला गया। वहाँ बरतन मांजते समय मैंने एक दो बार उन्हें छू भी लिया था। उन्होंने कुछ भी नहीं कहते हुए सब अनदेखा कर दिया। यह देख कर मैं और भी उनकी तरफ आकर्षित हुआ।

काम निपटा के हम दोनों बाहर आ गये। टीवी उनके बेडरूम में होने के कारण हम दोनों बेडरूम में चले गए। वो बेड पर बैठी और मैं ठीक उनके सामने बेड से नीचे बैठा था।

टीवी पर कोई होरर फ़िल्म चल रही थी। बेडरूम में हम दोनों के अलावा कोई नहीं था और होम- थियेटर होने के कारण आवाज कमरे में गूंज रही थी। डर के कारण उनके पैर मुझे छू रहे थे, यह देखकर मैंने उन्हें महसूस करना शुरु किया। चाची फ़िल्म के मज़े ले रही थी और मैं उनके स्पर्श का अनुभव कर रहा था। अचानक मरे कंधों को चाची ने दबोचा, मैं अपने गहरे सपने से जाग गया तो देखा कि चाची के दोनों पैर मेरे दोनों कंधों के बगल में थे। अगर मैं घूम जाता तो चाची की मांसल पिंडलियों में मैं अपने आपको खो देता। मैं उनके शरीर को महसूस करने लगा।

अचानक डर के मारे चाची ने अपना चेहरा मेरे सर और दाएं कंधे के बीच दबाया। उनके गदराये शरीर ने मानो मुझे पागल कर दिया। उनकी दोनों टांगों के बीच मेरा सर उनकी जांघों से और उनके रसीले मादक आमों से टकरा रहा था। अचानक वो फ़िल्म के माहौल से बाहर आ गई और अपने आपको मुझसे इतना चिपके देख हड़बड़ा गई। मैं उनके दोनों पैरों के बीच फंसा था, यह देख उन्हें मुझ पर हंसी आ रही थी, मगर मेरी होने वाली हलचल से उन्हें कुछ और महसूस होने लगा था। मैं उनके मम्मों के और चूत के इतने करीब था कि उनकी चूत पानी छोड़ रही थी और मेरे बाल भीगी चूत के कारण गीले हो रहे थे। मेरी हालत पतली हो गई थी और यह देख कर वो वापिस फ़िल्म देखने लगी मगर उनके मन में कुछ और ही चल रहा था।

कुछ देर बाद मुझे महसूस हुआ कि उनका बायाँ हाथ मेरे कंधे से मेरे गले तक आ गया था और उनकी चुचियाँ मेरे सर को चुभ रही थी। एकाएक उन्होंने अपने बायें हाथ से मेरे सर को अपनी ओर घुमाया और मेरी आँखों में आँखें डालकर अपने रसीले होंटों को मेरे होंटों से लगाकर चूमना शुरु किया। मेरे लिए ये सब नया था, मैं पहले डर गया मगर थोड़ी देर बाद मैंने भी साथ देना शुरु किया। अ़ब मेरे हाथ चाची को टटोल रहे थे। मैंने उनके स्तनों को ऊपर से सहलाना शुरु किया वह भी यही चाहती थी। उनके हाथ मेरी पीठ और बालों में घूम रहे थे। उन्होंने मुझे अपने ऊपर खींच लिया।

मैं अब बेड पर आ गया। मैं उनके ऊपर और वो मेरे नीचे थी। मैं अपने हाथों से उनके वक्ष सहला रहा था। एक एक करके उनके दोनों मम्मों को बारी-बारी ब्लाऊज़ के ऊपर से मुँह में ले रहा था, मेरे थूक के कारण उनकी ब्लाऊज़ गीली हो गई थी। वो भी उसका आनन्द ले रही थी। गर्मी के साथ मेरी थूक के कारण उन्हें ठंडी का एहसास हो रहा था और वो मुझसे और लिपटती सी जा रही थी।

तभी अचानक मैंने अपनी पैन्ट के ऊपर चाची के हाथ का जोर महसूस किया। वो मुझे छूना चाहती थी, मेरे साथ का पूरा आनन्द लेना चाहती थी। मेरी आँखों में उनके लिए जो वासना थी उसे वो पीना चाहती थी। मैंने उनकी तरफ देखा, वो आँखों को बंद कर के मेरे हर एक स्पर्श को महसूस कर रही थी। यह देख उनके ब्लाऊज़ के बटन मैंने अपने दांतों से एक एक करके खोल दिए। अ़ब उनके दोनों मम्मे खुले थे, बिना ब्रा के मैं उन्हें पहली बार देख रहा था। उन्हें देख कर मैं पागल हो गया और उन्हें मसलने लगा, अपने हाथों में ले के एक एक करके रगड़ने लगा अपने जीभ से उनके साथ खेलने लगा, अपने दांतों से उन्हें काटने लगा।

यह देख वो भी मचलने लगी, मेरे बालों को पकड़ के अपने हाथों से मेरा सर मम्मों पे दबाने लगी। यह देख मैं और जोरों से उनके दोनों मम्मों से खेलने लगा। अ़ब तक वो एक बार झड़ चुकी थी। उनके मम्मो को तो मैंने टमाटर की तरह लाल कर दिये थे, उन्हें देख वो बोली,”छोटेऽऽ आम ही खायेगा? और मुझे कुछ नहीं खिलायेगा? आआअ उईईईइ।”

तभी मैं बोला,”चाची मैं तो पूरा आपका तो हूँ जहाँ से चाहे खा लीजिये !”

तब चाची ने मुझे अपने नीचे ले लिया और खुद मेरे ऊपर आकर मेरे पूरे शरीर को चूमने लगी, मानो मेरे लिए ही तड़प रही थी। मेरा कच्छा छोड़ चाची ने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और मेरे होंटों से अपने होंटों को गड़ा लिया और चूमने लगी। ऐसा लग रहा था मानो मैं उनके लिए नहीं, वो मेरे लिए प्यासी हैं !

फिर करीबन ५ मिनट के बाद वो मेरे ऊपरी शरीर को चूमते चूमते मेरे कच्छे तक पहुँच गई और मेरी आँखों में देखते हुए मेरे लंड को ऊपर से ही चूमती रही। उनकी यह अदा देख मानो वो मुझे याद दिलाना चाहती थी, जितनी बार उन्हें देख मेरे लंड खड़ा होता था तब तब वो मेरे लौड़े को देख कर तरसती थी। मैं सोच ही रहा था कि उन्होंने मेरे ७ इन्च के लौड़े को कच्छे से बाहर निकाला और अपने दांतों से खाने ही लगी और मेरे कच्छा निकाल फ़ेंका। अपने दांतों से मेरे लंड को चबाती और फिर अपने होंटों से ऐसे चूमती रही मानो मेरा लंड नहीं कोई लोलीपोप है। करीबन ५ मिनट मुझे खाने के बाद चाची मेरे लंड से पानी निकाल कर गटागट पी गई। इस बीच वो भी दो बार झड़ गई। अभी तक साड़ी उनकी कमर पर ही थी। उन्हें कोई भी मौका दिए बिना मैं उनके ऊपर आ गया, अपने सारे शरीर का बोजझ उनके ऊपर डालते हुए मैं उन्हें चूमता रहा। उनके होंटों को करीबन ५ मिनट तक चूमने के बाद उनके गले को और फिर उन के मम्मों को ऊपर से हाथ मारते हुए कब मैं उनकी साड़ी और पेटीकोट को उनके शरीर से अलग किया, पता भी न चला।

मगर यह साजिश गहरी थी, यह पता चल गया क्योंकि उन्होंने ब्रा के साथ साथ अपनी पैन्टी भी नहीं पहनी थी। ब्रा घर पर रहने के कारण नहीं पहनी होगी मगर साड़ी के साथ पैन्टी नहीं, वो भी अंकल सुबह ही गाँव गए हैं तो पैन्टी न पहनने का कोई सवाल नहीं था। जब वो अंकल के साथ सेक्स करती तो वो दिन में दो से तीन बार अपनी पैन्टी बदलती थी, यह बात मुझे पता थी। अ़ब अंकल गाँव गए हैं तो जाहिर है कि अंकल से अपनी भूख तो जरुर मिटाई होगी उन्होंने। फिर भी उन्होंने पैन्टी नहीं पहनी थी और रही मेरे उनके यहाँ ठहरने की बात तो यहाँ तो एक हफ़्ते पहले ही उन्हें पता था कि मेरे घर के सभी लोग गाँव जाने वाले हैं।

तो क्या बस मैं शुरु हो गया उनके पेट के ऊपर से नाभि तक चूमते हुए मैं उनकी जांघों के बीच उनकी मुनिया पर आ गया। अपनी जीभ उनकी जांघों पर फेरते हुए मैं उनके भगोष्ठों के ऊपर से फेरने लगा। वो चहक उठी और मैं भी उस गंध के कारण रोमांचित हो उठा था। मैं धीरे धीरे उनके अन्दर अपनी जीभ को डालते हुए उनके अंदरूनी होंटों को अलग करने लगा। वो भी यह प्रयास कर रही थी कि मैं पूरी तरह से उनमें समा जाऊं ! मैं उनकी यह तड़प और बढ़ाना चाहता था। मैं धीरे धीरे उनको पी रहा था कि अचानक उन्होंने अपने पैरों की पकड़ कड़ी कर दी और मेरे मुँह को अपने अमृत से भिगो दिया। मगर मैं रुकने वाला नहीं था, मैं और जोर से उनमें समाने लगा, अपने होंटों से उनके आंतरिक होंटों का सारा रस पीने लगा। वो एक बार फिर मेरे मुंह में आ गई।

अ़ब मैं अपने हाथों की उंगलियों का उपयोग करते हुए उन्हें फिर से मेरे अगले कार्यक्रम के लिए तैयार करने लगा। अब मानो वो मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगी और बोली,”छोटे, अ़ब तो तेरे लौड़े का स्वाद मेरी मुनिया को चखा दे, नहीं तो रो रो के दम तोड़ देगी ! आआआआआआ ईईईईईईईए “

यह सुनकर अ़ब मुझे उन पर तरस आ गया, मैंने कहा,”हाँ चाची ! थोड़ा सा और, बस फिर आप मुझे ही खा लेना !”

यह सुनकर मानो वो भी मेरे उंगलियों को साथ देने लगी। अपने कूल्हे पहले से अधिक उछालने लगी। अ़ब मैं अचानक रुक गया और अपने लौड़े को उनके मुँह तक ले गया। उनके चूमने से वो और मस्त हो गया। अ़ब उसे उनके सारे शरीर पर फिरा के उनके मम्मों से होते हुए मैं उनकी नाभि पर आकर उसे घुमाने लगा तो चाची और जोर जोर से मिन्नत करने लगी। उनकी भट्टी में मानो आग लगी थी, उनसे रहा नहीं जा रहा था। फिर मैं उनकी मुनिया को तरसाने लगा तो चाची ने अपना पूरा जोर लगा के मेरे बालों को पकड़ के मुझे अपने ऊपर ले लिया फिर भी मैं मानने वाला थोड़े ही था। मैंने अपने होट उनके होंटों से लगा लिये और उनको व्यस्त रखने की कोशिश करने लगा मगर उन्होंने अपने हाथों से मेरे लंड को पकड़ के अपनी आंतरिक होंटों से खाने लगी। देखते ही देखते उन्होंने मेरे आधा लंड अन्दर ले लिया। अ़ब क्या था, मैं तो कबसे तरस रहा था इस दिन के लिए ! मैंने जोर लगा के सारा का सारा अन्दर डाल दिया। तभी चाची जोर से चिल्लाई और मुझसे लिपट गई। मैंने अपने धक्के आहिस्ता-आहिस्ता शुरु किये।

मुझे चाची की ज़कड़ से लगा कि चाची जल्दी ही झड़ जायेगी। मैंने अपने धक्के धीरे से चालू किये। फिर अचानक अन्दर मुझे ज़कड़न और दबाव महसूस होने लगा और चाची झड़ गई।

मैं अभी नहीं आने वाला था। झड़ने के कारण उनकी मुनिया और भी गीली हो गई और मैंने अपना काम जारी रखा। थोड़ी देर बाद वो भी फ़िर साथ देने लगी और अपने कूल्हे मेरे साथ साथ उछालने लगी। मैं समझ गया कि अ़ब तो मज़ा ही मज़ा है। हम दोनों भी एक दूसरे को चूमते रहे। चाची ने तो मुझे अन्दर बाहर आते समय अड़चन ना हो इसलिए अपने पैर हवा में उठा लिए। मैंने फ़िर वही ज़कड़न को महसूस किया इसलिए मैंने अपनी रफ्तार बढ़ाई। चाची भी बराबर का साथ देने लगी और हम एक साथ एक दूसरे में मिल गए। मैं फिर भी रुका नहीं जब तक चाची ने मेरे पूरे लंड का रस अपनी योनि में नहीं लिया। तब तक मैं नहीं रुका। फिर कुछ देर बातें करते हम वैसे ही पड़े रहे। मेरा लंड अभी तक उनकी मुनिया से बाहर नहीं निकला था। उनके मम्मों से खेलते खेलते और बातें करते करते हम दोनों सो गए फिर अगले दौर के लिए !

दोस्तो, कहानी अभी बाकी है।

यह कहानी कैसी लगी, मुझे जरुर बतायें !

आपका छोटू

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