अनबुझी प्यास

(Anbujhi Pyas)

मनोहर लाल 2007-06-15 Comments

यह दो तीन साल पहले की बात है जब मेरी फुफेरी भतीजी गीता छुट्टियों में मेरे घर रहने आई हुई थी। गीता की उम्र 24 साल थी और मैं 31 साल का जवान था। धीर धीरे हम दोनों आपस में काफी घुलमिल गए और साथ साथ घूमने भी जाने लगे।

एक दिन हम दोनों शहर से बाहर घूमने गए हुए थे। वहाँ एक बड़ा मंदिर भी था और काफी भीड़ होने की वजह से लम्बी लाइन लगी हुई थी। हम दोनों भी लाइन में खड़े हो गए। गीता ठीक मेरे आगे खड़ी थी।

अचानक उसने मेरा दाहिना हाथ पकड़ा और सीधे अपने पेट पर रख दिया और पीछे को होकर मेरे साथ सट कर खड़ी हो गई। अब मुझे भी कुछ कुछ होने लगा था और मैंने भी हिम्मत करके अपना दाहिना हाथ उसके पेट पर ही फिराना शुरू कर दिया और आगे की ओर गीता से सट कर खड़ा हो गया। लाइन आगे बढ़ती जा रही थी और हम दोनों भी ऐसे ही आगे बढ़ रहे थे। गीता एक भरपूर जवान मदमस्त लड़की थी, लम्बा छरहरा बदन और भरपूर गोलाईयाँ थी। आपस में बदन सटे होने से मैं काफी उत्तेजित हो गया था लेकिन लोगों की वजह से कुछ और कर पाना मुश्किल था।

हम लोग मंदिर से निकल कर घूमने चले गए। अब पूरे समय गीता ने मेरा हाथ पकड़े रखा था। घर लौटते समय हम ट्रेन से आये और संयोग से उस कूपे में हम दोनों के अलावा कोई और नहीं था। मेरी उत्तेजना अब लगातार बढ़ती जा रही थी और यही हाल गीता का भी हो रहा था। जैसे जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी, हमारे बदन भी बैठे बैठे आपस में सटते जा रहे थे। अब मैंने बैठे बैठे ही उसका बदन अपनी छाती की तरफ झुका कर अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया और गीता के मदमस्त बदन की गर्मी महसूस करने लगा।

मामला इससे आगे नहीं बढ़ पाया और हम वापस घर पहुँच गए।

कुछ दिनों बाद गीता को वापस अपने घर लौटना था और संयोग से मुझे उसे ट्रेन से घर छोड़ने जाना पड़ा। रात का सफ़र था और ए.सी. कूपे में हम दोनों की नीचे की बर्थ थी। ट्रेन चल पड़ी थी लेकिन हम दोनों के अलावा उस कूपे में कोई और नहीं आया था। हम दोनों का अकेलापन और पिछली घटनायें उत्तेजना के लिए काफी थीं। काफी देर तक बातें करते करते अचानक गीता उठी और मेरी बर्थ पर मेरे साथ बैठ गई। यह इशारा मेरे लिए काफी था कि लड़की मस्त हो रही है।

बातें करते करते अचानक मैंने भी अपना बायाँ हाथ उसके कंधे पर रख दिया और दाहिने हाथ को उसके पेट की तरफ बढ़ा दिया। कुछ देर ऐसे ही हम बातें करते रहे फिर मैंने पहल करते हुए अपने दाहिने हाथ को गीता के पेट से ऊपर बढ़ाते हुए उसकी एक मदमस्त चूची को मसल दिया। लेकिन गीता ने झटके से मेरा हाथ हटा दिया। अब तक मेरी उत्तेजना चरम पर थी, मैंने गीता को बर्थ पर लिटा दिया और उसकी बगल में मैं भी लेट गया।

मैंने अब गीता की पीठ पर हाथ फिराना शुरू किया और उसे अपनी ओर सटा लिया। गीता की साँसे अब तेज होती जा रही थी। अब हम इतने सट कर लेटे हुए थे कि उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ मेरी छाती पर रगड़ खा रही थी और मेरा खड़ा लंड उसकी जांघों पर ठोकर मार रहा था। मैंने धीरे से उसका हाथ पकड़ा और अपने तने हुए लंड पर रख कर दबा दिया।
मस्ताई लड़की शरमा गई और झटके से अपना हाथ हटा दिया।
लेकिन मेरी हिम्मत आगे बढ़ गई थी और मैंने बगल में लेटे लेटे ही ऊपर से अपने लंड की ठोकर मस्ताई गीता की जांघों में मारना शुर कर दिया जिससे गीता और सट कर मुझसे लिपट गई और मैंने कपड़ों के ऊपर से ही गीता को चोदना शुरू कर दिया। तने हुए लंड की ठोकरें गीता की जांघों में और उसकी योनि में पड़ रही थी। मस्ताई गीता की साँसें तेज हो रही थी करीब आधा घंटे तक मैं गीता की लेता रहा और वो देती रही।

फिर अचानक मैं लोगों के आने के डर से उससे अलग हो गया लेकिन मदमस्त जवानी का जोश इतनी जल्दी जाने वाला नहीं था। मैंने फिर गीता को अपनी बगल में लिटा कर कंधे से उसके कुरते के अन्दर हाथ डाल दिया और ब्रा के ऊपर से उसकी नंगी पीठ सहलाता रहा और बीच बीच में उसकी जांघों में लंड की ठोकर भी मारता रहा। गीता पूरी मस्ता रही थी और उसके मुँह से आहा आ आ की मादक आवाज निकल रही थी। तभी लोगों के आने की आवाज सुन कर हम दोनों अलग हो गए और गीता अपनी बर्थ पर जाकर सो गई।

मैं भी अपनी बर्थ पर लेट गया लेकिन नींद कहाँ आने वाली थी। थोड़ी देर बाद जब लोग सो गए तो मैंने देखा गीता उठ कर फिर मेरी बर्थ पर आ गई है। लेकिन जैसे मैंने उसे पकड़ना चाहा वो भाग कर बाथरूम में चली गई। मैं भी पीछे पीछे गया, उसे बाथरूम के बाहर ही पकड़ लिया और अपने दोनों हाथों से गीता की दोनों मदमस्त बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगा।

वहीं पर कुछ देर खड़े खड़े अपनी चूचियों को मसलवाने के बाद गीता शिकायती लहजे में बोली- मेरे सर मैं दर्द हो रहा है और आपको इसकी सूझी पड़ी है!

और अपने को छुड़ा कर वापस अपनी बर्थ पर आकर लेट गई। शायद लोगों का डर उसे सता रहा था। लेकिन इतना जरूर है कि जवानी का मजा वो भरपूर लेना चाह रही थी। मैं भी अपनी बर्थ पर आ कर लेट गया और रात ऐसे ही गुजर गई। सुबह सुबह हमारा स्टेशन आ गया और हम दोनों शर्माती हुई निगाहों से ट्रेन से उतर कर अपने गंतव्य की ओर जाने के लिए आगे बढ़े।

गीता अपने घर चली गई लेकिन वो घटना आज भी मेरे दिल और दिमाग में रहती है। शायद अपनी इच्छा हम दोनों पूरी नहीं कर पाए थे इसीलिए आज भी जब हम कभी मिलते हैं तो माहौल में उत्तेजना आ जाती है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि गीता एक दिन मुझसे चुदेगी जरूर! उसकी भरी जवानी अभी भी बरकरार है, बड़ी बड़ी चूचियाँ अभी भी दावत देती हैं और गीता जब गोल बड़ी गांड जब मटका कर चलती है तो ऐसा लगता है कि लंड महाराज को रिझा रही हो। बस अब मुझे उस दिन का इन्तजार है जब मदमस्त और मस्ताई हुई गीता रानी की बड़ी बड़ी चूचियाँ मेरे हाथों में होंगी, तना हुआ लंड उसकी चूत में होगा और गीता घोड़ी बन कर मुझसे चुदवा रही होगी। शायद उसकी गोल गोल और मस्त गांड भी मारने को मिल जाए!

क्यों गीता रानी हो न तैयार?
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