बहूरानी के मायके में चुदाई-1

(Bahurani Ke Mayke Me Chudai- Part 1)

This story is part of a series:

मेरी पिछली कहानी
ससुर और बहू की कामवासना और चुदाई
के प्रकाशन के उपरान्त मुझे बहुत सारे ईमेल सन्देश मिले. उन सभी पाठक पाठिकाओं का आभार जिन्होंने मेरी कहानी को सराहा और अपने सुझाव भी दिये. इन सब संदेशों के लिए मैं आप सबका आभारी हूं. आशा है आप सब आगे भी मुझे ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहेंगे.

मेरी पिछली कहानी में मैंने बताया था कि मैं और बहूरानी अदिति उसके चचेरे भाई की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली पहुंच चुके थे; निजामुद्दीन स्टेशन पर ही अदिति के मायके वाले हमें रिसीव करने आ पहुंचे थे. हम मेहमानों के रुकने का इंतजाम एक धर्मशाला में किया गया था जो अच्छी, आधुनिक किस्म की सर्व सुविधाओं से युक्त होटल टाइप की धर्मशाला थी.

हम लोग धर्मशाला में पहुंचे तो अदिति को तो पहुँचते ही रिश्तेदारों ने घेर लिया और उनके हंसी ठहाके लगने लगे. शादी ब्याह में इन्ही छोरियों और नवयौवनाओं से ही तो रौनक होती है. वहां मुझे अन्य सीनियर लोगों के साथ एक बड़े से हाल में एडजस्ट होना पड़ा.
जिस दिन हम लोग दिल्ली पहुंचे शादी उसके अगले दिन थी.

लड़की वालों ने अपना मैरिज गार्डन बुक किया हुआ था जो हमारी धर्मशाला से को डेढ़ दो किलोमीटर के फासले पर था.

धर्मशाला के सामने बगीचे में एक बड़ा सा पंडाल लगाया हुआ था जिसमें कुक, शेफ यानि हलवाई द्वारा चाय, काफी, नाश्ता, लंच, डिनर इत्यादि सब बनवाने की व्यवस्था थी. जिसे जो खाना हो उनसे बनवा लो और एन्जॉय करो. कुल मिलाकर बढ़िया व्यवस्था की गई थी.

मैंने पहुंच कर इन्हीं सब बातों का जायजा लिया और तैयार होकर बड़े हाल में जा बैठा. अब करने को तो कुछ था नहीं. सबसे मिलना जुलना और चाय नाश्ता चल रहा था, साथ में नयी उमर की लड़कियों, विवाहिताओं और नवयौवनाओं को देख देख के अपनी आंखें सेंकता जा रहा था, साथ में चक्षु चोदन भी चल रहा था.

सजी धजी परियां अपना अपना मोबाइल पकड़े हंसी मजाक कर रहीं थीं. मोबाइल से फोटो शूट और सेल्फी लेने की जैसे होड़ मची थी. कुछ लड़कियों के ग्रुप दूर कहीं कोने में किसी मोबाइल पर नजरें गड़ाये मजे ले रहे थे; हंसना मुस्कुराना, कोहनी मार के हंस देना … यह सब देख कर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता था कि उनके मोबाइल में क्या चल रहा होगा. अब इन खिलती कलियों और बबुओं के फोन में पोर्न वीडियो होना तो एक साधारण सी बात रह गयी है.

चूत लंड, मम्में, लंड चूसना, चूत चाटना, चुदाई … ये सब पोर्न फ़िल्में अब तो सहज ही सबको उपलब्ध हैं. आजकल की नयी पीढ़ी इन मामलों में बड़ी खुशकिस्मत है. इन्हें सेक्स मटीरियल भरपूर बेरोकटोक उपलब्ध है और आज वे बड़े आराम से आपसी सहमति से सेक्स सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं. लड़कियां शादी होने तक अपना कौमार्य बचाये रखना पुरानी और दकियानूसी सोच समझने लगीं हैं. यह सच भी है आज के युग के हिसाब से.
आजकल लड़कियां ग्रेजुएशन के बाद कोई और प्रोफेशनल कोर्स जरूर करती हैं फिर जॉब और फिर इन सबके बाद शादी. इतना होते होते लड़की की उम्र सत्ताईस अट्ठाईस हो जाना मामूली से बात है और उतनी उम्र तक बिना चुदे रहना किसी तपस्या से कम नहीं. अब ऐसी तपस्या करना सबके बस का तो है नहीं तो बिंदास लाइफ आजकल का ट्रेंड बन चुकी है.

यूं तो आमतौर पर लड़की की पंद्रह वर्ष की उमर के बाद सोलहवां साल लगते ही उसकी चूत भीगने लगती है, उसमें सुरसुरी उठने लगती है और उसे सेक्स की चाह या चुदने की इच्छा सताने लगती है, उनकी चूत का दाना रह रह के करेन्ट मारने लगता है. यह तो प्राकृतिक नियम है जो सब पे समान रूप से लागू होता है. पहले के जमाने में लड़की रजस्वला या पीरियड्स के शुरू होने के बाद जल्द से जल्द उसकी शादी कर दी जाती थी और उसे लीगल चुदाई का सुख नियमित रूप से मिलने लगता था.

आज के जमाने में लड़की को प्राकृतिक रूप से वयस्क हो जाने के बाद और दस बारह वर्ष तक जब तक शादी न हो जाय अपनी चूत की खुजली पर कंट्रोल रखना पड़ता है. अब ऐसे में जिस्म की इस नैतिक डिमांड को दबाये रखना अपने ऊपर जुल्म करने जैसा ही तो है. अतः लड़कियां जैसे बने तैसे अपनी जवानी के मजे लूटने लगती हैं, इसमें कोई बुराई भी नहीं. जब शादी ब्याह जैसा उन्मुक्त माहौल मिले तो तमन्नाएं कुछ ज्यादा ही मचलने लगतीं हैं. तो ऐसे ही उन्मुक्त माहौल का मज़ा वो छोरे छोरियां उठा रहे थे.

एक हमारा ज़माना था अपनी वाली की सूरत देखने तक को तरस जाते थे. दिन में कई कई चक्कर महबूबा की गली के लगाने पड़ते थे तब कहीं जाकर उनकी एक झलक मिलती थी देखने को. तब न तो मोबाइल फोन थे न इन्टरनेट और न ही लड़कियां यूं कोचिंग जाती थीं. किसी लड़की को पटा लेना या दिल की बातें कर लेना आसमान से तारे तोड़ लाने जैसा मुश्किल काम था और उसके साथ चुदाई कर लेना तो एवरेस्ट फतह से भी बढ़ कर कठिन हुआ करता था.

हमारे उन दिनों सेक्स मेटीरियल के नाम पर कोकशास्त्र ग्रन्थ हुआ करता था या वात्स्यायन का कामसूत्र था, इनके अलावा कुछ पत्रिकाएं जैसे आज़ाद लोक, अंगड़ाई और मस्तराम लिखित चुदाई की कहानियों की छोटी सी बुकलेट बाज़ार में मिलती थी जिसे दुकानदार बड़ी मिन्नतें करवा कर, मनमाने पैसे लेकर बेचता था और जिसे हम बड़े शान से दोस्तों के साथ कम्पनी बाग़ के किसी एकांत कोने में छुप कर पढ़ा करते थे और कभी कभी सामूहिक रूप से मुठ भी मार लिया करते थे.

फिर समय बीतने के साथ विदेशी पत्रिकाएं आने लगीं जिनमें चिकने कागज़ पर चुदाई की रंगीन तस्वीरें हुआ करती थीं. इसी दौर में ऑडियो कैसेट्स भी मिलते थे जिन्हें कैसेट प्लेयर में चला कर लड़की लड़के की चुदाई की आवाजें और बातचीत सुन लेते थे. इसके बाद सेक्स की वीडियो कैसेट का ज़माना आ गया और अब तो जो है सो सबके पास है.

चलिए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. ज़माना तो हमेशा रंग बदलता ही रहता है.

शादी में आये मेहमानों की भीडभाड़ में टाइट जीन्स और टॉप पहने अपने अपने मम्मों की छटा बिखेरती चहचहातीं ये छोरियां हर किसी को लुभा रहीं थीं. लौंडे भी कम नहीं थे, सब के सब किसी न किसी हसीना को इम्प्रेस करने की फिराक में थे.
आजकल की शादियों में ऐसे नज़ारे अब आम हो गये हैं. एक विशेष परिवर्तन जो मैंने नोट किया कि अब कुंवारी, अधपकी नादान लड़कियां भी लिपस्टिक लगाने लगीं हैं. शादीशुदा लेडीज का तो कहना ही क्या; जैसे अपने कपड़े जेवर और बदन दिखाने ही आयीं हों शादी में.
बहरहाल कुल मिला कर सब अच्छा लग रहा था.

“पापा जी कुछ चाहिये तो नहीं न आपको?” अदिति बहूरानी की आवाज ने मुझे चौंकाया.
वो मेरे बगल में आ खड़ी हुई पूछ रही थी.
“नहीं बेटा, सब ठीक है.” मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और फिर बहूरानी की ओर देखा. पहली नज़र में तो वो पहचान में ही नहीं आई; घुमक्कड़ बंजारिनों जैसे कपड़े पहन रखे थे उसने… लहंगा चोली ओढ़नी और मैचिंग चूड़ियां वगैरह और उसके होंठो पर सजती वही मीठी मुस्कान. चोली में से उसके भरपूर, तने हुए मम्में, नीचे की ओर सपाट पेट और गहरा नाभि कूप और लहंगे में से आभास देता उसकी सुडौल जांघों का आकार. उसका लहंगा भी घुटनों से कुछ ही नीचे तक था जिससे उनकी गोरी गुदाज मांसल गुलाबी पिंडलियां जो बेहद सेक्सी लुक दे रहीं थीं और पैरों में बंजारिनों जैसे मोटे मोटे चांदी के कड़े.

मैं कुछ क्षणों तक मुंह बाए उसे देखता ही रह गया. मैंने बहूरानी को हर रूप में देखा था, हर रूप में हर तरह से चोदा था उसे … पर ये वाला रूपरंग पहली बार ही देख रहा था.
“क्या हुआ पापा जी; ऐसे क्या देख रहे हो? आपकी अदिति बहू ही हूं मैं!” वो चहक कर बोली.
“कुछ नहीं बेटा, तुझे इस रूप में आज पहली बार देखा तो नीयत खराब हो गयी.” मैंने धीमे से कहा.

“अच्छा? पापा जी, पिछले दो तीन दिनों में मुझे आप कई कई बार फक कर चुके हो ट्रेन में … फिर भी …?” वो भी धीमे से बोली.
“हां बेटा … फिर भी दिल नहीं भरा. जी करता है तेरा लहंगा ऊपर उठा कर तुझे गोद में बैठा लूं अभी और …”
“और क्या पापा?”
“और तेरी पैंटी साइड में खिसका कर अपना ये पहना दूं तेरी पिंकी में … पैंटी पहन रखी है या नहीं?” मैंने पैंट के ऊपर से अपना लंड सहलाते हुए कहा.

“धत्त …” बहूरानी बोलीं और अंगूठा दिखा कर निकल लीं. वो तो यूं धत्त कह के निकल लीं, जाने से पहले एक बार मुस्कुरा के कातिल निगाहों से मुझपर एक भरपूर वार किया और कूल्हे मटकाते हुए चलीं गयीं और मैं उनके थिरकते नितम्ब ताकता रह गया. अपनी बहूरानी को राजस्थानी बंजारिन के भेष में देखकर उन्हें इसी रूप में चोदने को मन मचलने लगा.

आखिर ऐसा होता क्यों है? मेरी पिछली कहानियों से आप सब जानते हैं कि बंगलौर से दिल्ली ट्रेन से आते आते उन छत्तीस घंटों में मैंने अदिति बहूरानी को कई कई बार तरह तरह की आसन लगा के चोद चुका था फिर अभी कुछ ही घंटों बाद उन्हें फिर से भोग लेने की ये दीवानगी कैसी?

किसी पहुंचे हुए ने सच ही कहा है कि लड़की की चूत नहीं उसका नाम, उसका हुस्न, उसका रुतबा, उसका व्यक्तित्व, उसकी शख्सियत, उसका रूपरंग, उसमें बसी उस औरत को, उसके मान सम्मान को चोदा जाता है; चूत का तो बस नाम होता है. ये आपकी इच्छा पर निर्भर करता है कि उसकी चूत के नाम पर उसका क्या क्या चोदना चाहते हैं. तो मेरा मन तो बंजारिन को चोदने के लिए मचल उठा था वरना अदिति बहूरानी की चूत की गहराई तो मेरा लंड कई कई बार पहले ही नाप चुका था.

अब इस भीड़ भाड़ वाले माहौल में इस अल्हड़ बंजारिन को कैसे चोदा जा सकता है, मेरे मन में यही प्लानिंग चलने लगी थी.

टाइम देखा तो साढ़े ग्यारह हो रहे थे. नाश्ता वगैरह तो हो चुका था और सब लोग अपने अपने हिसाब से टाइम पास कर रहे थे. बहूरानी के जाने के बाद मेरा ध्यान फिर से उन छोरियों के झुण्ड की ओर चला गया जहां वे सब कुर्सियों का गोलचक्कर बना के बैठी किसी मोबाइल में आँखें गड़ाये चहचहा रहीं थीं.
मेरा ध्यान उस थोड़ी सांवली सी लड़की ने खींचा जो सबसे अलग सी पर सबके साथ मिल के बैठी थी. एकदम गोल भोला सा चेहरा, सुन्दर झील सी आँखें जिनकी बनावट बादाम के आकार जैसी थी और उसका निचला होंठ रस से भरा भरा सा लगता था. क़रीब साढ़े पांच फुट का कद और घने काले बाल जिन्हें उसने चोटी से कस के बांध रखा था.

शहरी छोरियों से अलग वो किसी गाँव आयी हुई लगती थी; कपड़े भी उसके हालांकि नये से लगते थे पर आधुनिक फैशन के नहीं थे. सादा सिम्पल सा सलवार कुर्ता पहन रखा था उसने, सीने पर दुपट्टा डाल रखा था. उसका दुपट्टा काफी उभरा उभरा सा दिखता था जिससे अंदाज होता था दुपट्टे के नीचे कुर्ती और ब्रा में कैद उसके मम्में जरूर एक एक किलो के तो होंगे ही. उसकी बॉडी लैंग्वेज से यही लगता था कि वो किसी मध्यम वर्गीय ग्रामीण परिवार से आयी थी.

अब शादी ब्याह में तो सब तरह के रिश्तेदार आते ही हैं. अमीर गरीब, शहरी ग्रामीण, अलग अलग मिजाज वाले. तो वो छोरी भी उन लड़कियों के झुण्ड में चुपचाप सी शामिल थी. बोल भी न के बराबर रही थी. मैं उसकी मनःस्थिति को चुपचाप ताड़ रहा था; जरूर वो बेचारी हिंद्लिश … आधी अंग्रेजी आधी हिंदी … में गिटपिट करती उन मॉडर्न तितलियों से तालमेल नहीं बैठा पा रही थी और शायद इसी कारण हीन भावना या इन्फीरियरटी काम्प्लेक्स से भी ग्रस्त दिखती थी. पर हां … उत्सुकतापूर्वक उन मॉडर्न छोरियों के हाव भाव उनके स्टाइल्स आत्मसात या सीखने की कोशिश में जरूर लगती थी.

एक बात और मैंने नोट की कि वो गाँव की बाला जवान लड़कों को मुस्करा मुस्करा के गहरी, अर्थपूर्ण नज़रों से देखती थी शायद किसी को खुद पर आशिक करवाने की फिराक में थी और अपना सबकुछ लुटा देने, किसी के साथ ‘सेट’ हो जाने की सोच कर ही शादी में आयी थी; पर उसे कोई भाव देता नज़र नहीं आ रहा था.
गांव देहात की ऐसी बालाएं खूब मेहनत करती हैं; खेतों में, घर के कामकाज में … जिससे उनका बदन खूब कस जाता है; इनके ठोस मम्में और बेहद कसी हुई चूत लंड को निहाल कर देती है. मगर ये नयी उमर के छोरे तो उन रंगीन तितलियों को इम्प्रेस करने के फेर में थे. वे बेचारे क्या जानें कि जो मज़ा ये देहाती हुस्न देगा उसका मज़ा, उसकी लज्जत उसका जायका ही अलग होगा.

अब शादी ब्याह में तो ये सब चलता ही है और किसी की चुदाई भी हो जाय तो कोई बड़ी बात नहीं. कोई भी लडकी घर से निकल कर ज्यादा उन्मुक्त महसूस करती है और अपनी दबी छुपी तमन्नाओं इच्छाओं को पूरा कर गुजरना चाहती है.
ज्यादातर लड़कियां अपनी चुदने की इच्छा यूं ही अपने गाँव शहर से बाहर शादी ब्याह में, छुट्टियों में नानी के यहां, किसी अन्य रिश्तेदारी में या किसी ऐसे ही सुरक्षित माहौल में पूरी कर लेती हैं. क्योंकि वे ऐसे में ज्यादा सिक्योर फील करती हैं; चुदवाने के लिए सुरक्षित स्थान और माहौल इनकी पहली प्राथमिकता होती है; किससे चुदना है वो बात सेकेंडरी हो जाती है. चूत को तो लंड मिलना चाहिये और किसी को कानों कान खबर भी न हो बस.

अचानक किसी के फोन की घंटी बजने की तेज आवाज हॉल में गूँज उठी. नोकिया फोन की तीखी टिपिकल रिंगटोन थी वो. घंटी बजते ही वो ग्रामीण बाला झट से उठी और हॉल के मेरी तरफ वाले कोने की ओर बढ़ने लगी; जरूर ये उसी का फोन बजा था. मेरी निगाहें अभी भी उसी पर जमीं थीं. मेरी तरफ चल के आने से उसके उन्नत उरोज और कदली गुदाज जंघाओं के उभार उसके सलवार कुर्ते से स्पष्ट झांक रहे थे और छिपाए नहीं छिप रहे थे.

फिर उसने अपने कुर्ते में सामने से हाथ घुसा के फोन निकाला और किसी से बतियाने लगी. मैंने स्पष्ट देखा उसका फोन बाबा आदम के जमाने का नोकिया कम्पनी का घिसा पिटा सा एक इंच स्क्रीन वाला फोन था और वो फोन को अपनी हथेली में छिपाए बात कर रही थी.

बात ख़त्म करके उसने फोन को वापिस अपने कुर्ते में धकेल दिया और वापिस उन्ही लड़कियों की तरफ जाने लगी. मैंने पीछे से देखा तो उसके कुर्ते से झांकती उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स और उसके ऊपर पहनी हुई शमीज का आकर साफ़ नज़र आ रहा था; कुर्ता नीचे की तरफ उसके गोल मटोल पुष्ट नितम्बों की दरार में फंसा हुआ था जिससे उसकी मादक चाल और भी मदमाती लगने लगी थी. उसके लम्बे बालों वाली चोटी क्रम से इस नितम्ब से उस नितम्ब पर उछल उछल कर दस्तक देती हुई लहरा रही थी.

ये सब देख कर न जाने क्यों मेरे जिस्म ने एक झुरझुरी से ली और मन में इस कामिनी की उफनती जवानी को रौंदने की, उसके जिस्म को भोगने की, उसे चोदने की चाह जग गयी.

वो कामिनी ऐसी ही मदमाती चाल से चलती हुई वापिस अपनी जगह पर बैठ गयी. इधर मैं उसकी रूपराशि निहारता हुआ, उससे अपनी आँखे सेंकता हुआ उसे ताकता रहा.
अचानक उसकी नज़र मेरी तरफ उठी और मैंने भी उसे नज़र गड़ा कर, उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखा तो उसने फौरन सकपका कर अपना मुंह फौरन दूसरी ओर घुमा लिया.

ये लड़कियां या स्त्रियां मर्दों की वैसी चाहत वाली वाली नज़रों को खूब पहचानती हैं, क्षणभर में आदमी की चाहत और नीयत भांप लेती हैं. यह गुण इन्हें ईश्वरीय देन है जो इन्हें छोटी उमर से ही ज्ञान करा देता है. इस तरह हमारी नज़रें यूं ही दो चार बार टकरायीं, अंतिम बार उसने कोई पांच सात सेकेण्ड के लिए मेरी ओर एकटक देखा, शायद वो मेरे मन उमड़ रही चाहत को फिर से पढ़ना और कन्फर्म करना चाहती हो और फिर वो अपनी कुर्सी घुमा कर मेरी तरफ पीठ करके बैठ गयी.

इस लड़की में अब मेरी उत्सुकता न जाने क्यों बढ़ने लगी थी. अब शादी में आई थी तो रिश्तेदारी का लिंक मुझसे भी कहीं न कहीं से तो जुड़ेगा ही, मैंने सोचा. मेरी सोच इस देसी बाला की ओर गहराती गयी … गाँव से शादी में आई है; पुराने ढंग का पहनावा, बालों में कंघी करके कसी हुई चोटी, गुजरे जमाने का फोन लिए… बात करने का देहाती लहजा और वैसे ही हावभाव ये सब चिह्न उसके फॅमिली बैकग्राउंड को बखूबी दर्शा रहे थे. नौजवानों को रिझाने या सिड्यूस करने के उपक्रम करती ये बाला लगता था कि किसी से चुदने की ठान के ही घर से निकली थी.

“आह कितना मज़ा आयेगा इसे भोगने में… देखने से कम उमर की और कुंवारी सी दिखती है … हो सकता है अभी तक सील पैक हो इसकी चूत … या चुद चुकी होगी गाँव में … हावभाव से तो प्यासी सी लगती है, चुद भी चुकी होगी तो ज्यादा से ज्यादा पच्चीस तीस बार चुद ली होगी … इतने से चूत का कुछ बिगड़ता थोड़े ही है. बहुत हॉर्नी फील कर रही होगी तभी तो लड़कों को आंख में आंख डाल के मुस्कुरा के देखती है … इसे पूरी नंगी करके भोगने में कैसा सुख मिलेगा … ये कैसी कैसी कलाबाजियां खाते हुए ये लंड लीलेगी …” ऐसे ऐसे न जाने कितने विचार मुझे मथने लगे.

“संभल जा सुकान्त …” अपनी बहूरानी के साथ शादी में आये हो; अगर कोई ऊँच नीच हो गयी, तूने कुछ गलत किया और लड़की ने शिकायत कर दी तो पूरी बिरादरी में थू थू हो जायेगी, तेरा सोशल स्टेटस खत्म हो जाएगा और अदिति बहू भी नफरत करने लगेगी तुझ से … मेरे भीतर से चेतावनी सी उठी तो मुझे आत्मग्लानि सी हुई और मैं वहां से उठ कर चल दिया.

दोपहर का एक बज चुका था. भूख भी लग आयी थी, बाहर पंडाल में जाकर देखा तो मेजों पर खाना सजा दिया गया था. खाना खाते ही आलस्य आने लगा.

साढ़े चार बजे बहू ने मुझे चाय के लिए जगा दिया- उठ जाइए पापा जी, टी टाइम!
बहूरानी मुझे हिला कर जगा रहीं थीं. मैंने अलसाई आँखों से देखा तो वो मेरे ऊपर झुकी हुईं मेरा कन्धा हिला हिला के मुझे जगा रही थी. वही बंजारिन की वेशभूषा में थीं; मेरे ऊपर झुके होने के कारण उनके मम्मों की गहरी घाटी मेरे मुंह से कुछ ही इंच के फासले पर थी. मैंने शैतानी की और झट से मुंह ऊपर कर के दोनों मम्मों को चोली के ऊपर से ही बारी बारी से चूम लिया.

“आपके तो पास आना ही अपनी आफत बुलाना है. कोई शर्म लिहाज तो है नहीं … इतने लोगों के बीच भी सब्र नहीं है आपको?” बहूरानी मुझे झिड़कती हुई बोली.
“क्या करूं बेटा, बंजारिन के कपड़ों में तू इतनी हॉट लग रही है कि बस. मेरा बस चले तो …”
“रहने दो पापा जी, यहां कोई बस वस नहीं चलने वाला आपका … बस तो बस स्टैंड से चलती है वहीं चले जाओ.” बहूरानी खनकती हुई हंसी हंस दीं.

वासना में लिपटी यह सेक्स कहानी जारी रहेगी.
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top