शायरा मेरा प्यार- 10

(Shayra Mera Pyar- Part 10)

This story is part of a series:

दोस्तो, मैं महेश फिर से आपके सामने हाजिर हूँ. मेरी सेक्स कहानी में अब तक आपने पढ़ा था कि एकदम से स्कूटी के ब्रेक लगाते ही शायरा मेरी पीठ के ऊपर लग गई, जिससे उसके मम्मे मुझे मस्ती दे गए.

अब आगे:

“आह … क्या कर रहा है? आराम से नहीं चला सकता क्या?” शायरा ने मेरी पीठ पर चपत सी लगाते हुए कहा.
मैं- मैं क्या करूं … अचानक से बच्चा आगे आ गया‌.

वो- बच्चा आगे आ गया या जानबूझकर फायदा उठा रहा है?
मैं- तुम हमेशा ऐसा ही क्यों सोचती हो, मैं तो हम‌ भीगे ना‌‌ … इसलिए थोड़ा तेज चला रहा था … और अचानक से बच्चा आगे आ गया. मगर तुम हो कि बस उल्टा ही समझती हो.

वो- ठीक है … ठीक है, हो गया अब चलो भी?
मैं- तुम्हें समझना चाहिये ना. उस दिन तो उस दिन तुमने बिना कुछ पूछे ही थप्पड़ लगा दिया, उस दिन भी मैं तो तुम्हारे अच्छे के लिए ही कर रहा था.

बारिश भी थोड़ा तेज हो गयी थी, इसलिए मैं अब फिर से स्कूटी चलाने लगा.

मैं- कितनी ज़ोर से थप्पड़ मारा था तुमने उस दिन, मुझे तो तुम पर बहुत गुस्सा आया था.
वो- अब बस भी करो. उसके लिए मैंने सॉरी बोला तो था.

मैं- तुमने थप्पड़ मारा, तो मैं बोलूं भी ना?
वो- लगता है तुम उस बात को ऐसे नहीं छोड़ोगे. एक काम‌ करो तुम भी मुझे थप्पड़ मार लो, तब तो हिसाब बराबर!

ये सब बात करते करते हम‌ घर पहुंच गए थे.

रास्ते में ज्यादा जोर से तो बारिश तो नहीं हुई थी … मगर फिर भी हम दोनों भीग तो गए ही थे. स्कूटी को खड़ा करके हम‌ दोनों सीढ़ियां चढ़ते हुए बातें करने लगे.

मैं- नहीं … मैं कैसे कर सकता हूँ?
वो- नहीं … नहीं … मार ही लो, मुझे भी तो याद रहेगा कि मैंने गलती की थी.

मैं- लेकिन मैं लेडीज पर हाथ नहीं उठाता.
वो- नहीं, मार लो‌ थप्पड़, नहीं तो मुझे तुम रोज रोज यही सुनाते रहोगे.

ये कहते हुए शायरा ने अब अपना गाल आगे कर लिया. शायरा के गाल पर मैं थप्पड़ कैसे मार सकता था, मगर फिर भी मजाक के लिए मैंने अपना एक हाथ उठा लिया, जिससे डर के मारे उसने अपनी आंखें बंद कर लीं.

“मारो … मारो ..” उसने अपनी आंखें आधी सी खोलकर मिचमिचाते हुए कहा.

उसको डर भी लग रहा था और मुझे थप्पड़ मारने को भी बोल रही थी. कसम से डर के मारे इस तरह से आंखें मिचमिचाते हुए वो इतनी कमसिन और प्यारी लग रही थी कि बस पूछो मत.

उसके गोरे चिकने मुखड़े पर भीगे हुए बालों की लट कहर बरपा रही थी, तो भीगने के कारण ठण्ड से थरथराते उसके सुर्ख गुलाबी होंठ इतने प्यारे लग रहे थे कि मेरा तो जी कर रहा था कि उसके रसीले होंठों का सारा रस अभी के अभी चूस लूं … मगर डर भी था, कहीं वो बुरा ना मान जाए.

शायरा को डरा हुआ देख कर मुझे उस पर प्यार आ रहा था.
मैंने अपना तो हाथ पीछे ले लिया और शायरा के होंठों की बजाए उसके गुलाबी गालों पर किस कर दिया.

शायरा को तो इसकी उम्मीद ही नहीं थी, वो शॉक्ड सी हो गयी और तुरन्त अपनी आंखें खोल कर मुझे देखा.
मगर तब तक मैं जल्दी से भागकर ऊपर अपने कमरे में आ गया.

मैं तो वहां से आ गया मगर शायरा मूरत सी बनकर वहीं खड़ी रह गयी. शायरा को किस करके मैं खुश था. वो दिन मैं कभी नहीं भूल सकता, क्योंकि मैंने अपने सपनों की रानी को किस किया था.

इससे शायरा पूरी तरह से शॉक्ड हो गयी थी. उसको इस बात की उम्मीद नहीं थी.

मैंने होंठों की बजाए गालों पर ही किया था, फिर भी शायरा का चेहरा देखने लायक था. वो तो पूरी तरह से हिल ही गयी थी.

शायद दिन भर वो इस किस के बारे में ही सोचती रहेगी कि मैंने ऐसा क्यों किया? उसके दिमाग़ में शायद अब मैं ही मैं रहूँगा.

शायरा को मैं किस करके तो आ गया मगर डर तो मैं भी गया था कहीं उसको गुस्सा ना आया हो? अगर शायरा ने दोस्ती तोड़ दी, तो बना बनाया प्लान खराब हो सकता था, लेकिन ये स्टेप कभी ना कभी तो उठाना ही था.

अभी तो लोहा गर्म था और लोहा गर्म हो तो हथौड़ा मार देना चाहिये. यही मैंने किया.
शायरा अभी फुल फॉर्म में थी इसलिए मैं उसको ठंडा नहीं होने दे सकता था.
बस यही सोचकर मैंने ये कदम उठा लिया था मगर अभी तो जो किया था, उसको ठीक करना होगा, नहीं तो बात बिगड़ सकती थी. पर करूं तो क्या करूं?

शायरा वैसी लड़की नहीं थी जो कि आसानी से हाथ आ जाए.
वो बाकी सब से अलग और बहुत ही सैंसटिव टाईप की लड़की थी.
मेरे बहुत सी लड़कियों व औरतों से सम्बन्ध रहे हैं मगर शायरा उनसे बिल्कुल अलग थी.

शायरा के सामने तो मैं सीधे सीधे जा भी नहीं सकता था और उस समय इतना मोबाइल फोन भी नहीं चले थे … जो मैं फोन पर ही उससे माफी मांग लेता. बस अब उससे माफी मांगने का एक तरीका था और वो था उसे लैटर लिखना.

मगर मुझे तो लैटर भी ठीक से कहां लिखना आता था. मैंने तो जितनी भी लड़कियां व औरतें पटाई थीं … वो सब ऐसे ही पट गयी थीं. अभी तक किसी को लैटर देने की जरूरत ही नहीं पड़ी.

मुझे किसी लड़की के लिए लैटर लिखने का अभी तक‌ कोई अभ्यास तो नहीं था मगर फिर भी शायरा को मनाने के लिए अब कुछ ना कुछ तो करना ही था ना.
इसलिए मैं भी एक कापी पैन लेकर बैठ गया.

मैं काफी देर तक लिखता रहा और लिख‌ लिखकर‌ उस कापी के पेज फाड़ता रहा.

शाम के समय शायरा को किस किया था मगर लिखते लिखते मुझे शाम से रात हो गयी. वो अब उस कापी का लास्ट पेज था, जिसमें मैंने लिखा भी तो क्या.

“फूल को कोई कैसे कुचल सकता है, फूल से तो प्यार किया जाता है, फिर मैं कैसे कुचल देता … और वो भी फूल जब गुलाब का हो, इसलिए मैंने भी प्यार ही किया.”

“सॉरी, अगर तुम्हें बुरा लगा हो. पर मैं भी क्या करता? मैंने अपना हाथ ऐसे ही तुमसे मजाक करने के लिए उठाया था, पर तुम्हारे उस डरे हुए प्यारे से चेहरे को देखकर मेरी तो तुमसे मजाक करने की भी हिम्मत नहीं हुई.

तुम्हें डरा हुआ देखकर ही मुझे जब ऐसा लगा … तो तुम्हें मैं थप्पड़ कैसे मार सकता था! ऐसे में मैंने छोटी‌ सी गुस्ताख़ी कर दी, अब दोस्ती में इतना तो चलता है. शायद तुम जब ये पढ़ोगी, तो सोचोगी कि मैंने ये क्या लिख दिया. सॉरी मैं थोड़ा अनाड़ी हूँ. माफ़ कर देना अगर बुरा लगा हो … और इस पेज को फाड़ना मत.

क्योंकि ये सब लिखने के लिए मैंने अपनी पूरी एक कापी फाड़ फाड़ कर खाली कर दी है. ये बस लास्ट पेज ही बचा है. मैंने पूरा दिन वेस्ट कर दिया है उस एक सेकेंड के किस के बदले.

मेरे लिए नहीं, तो कम से कम उस मेरी कापी के लिए ही माफ़ कर देना, या फिर मेरे पूरे दिन भर की इस मेहनत के लिए माफ़ कर देना, जो ये लेटर लिखने के लिए मैंने लगाई है.”

मैंने उसे बहुत फालतू सा माफीनामा लिखा था. कोई भी पढ़े … तो‌ उसे हंसी आ जाए. मुझे खुद हंसी आ रही थी कि मैंने ये क्या लिखा है.

बिल्कुल एक चूतिया की तरह का लैटर लिखा था मैंने. मगर शायरा पढ़ी लिखी और एक स्मार्ट लड़की थी. उसको भी मेरा लेटर पढ़ कर हंसी तो ज़रूर आएगी. कभी कभी स्मार्ट लड़की के लिए ऐसा लेटर बहुत बड़ा रोल प्ले कर जाता है और मैंने भी वैसा ही‌ किया था.

मैंने उस लैटर को सीधे ही शायरा को नहीं दिया, देता भी कैसे? मुझे तो उसके सामने जाने में भी अब डर लग रहा था. इसलिए मैं वो लैटर लेकर अब चुपके से नीचे घर के बाहर आ गया.

रात के खाने का समय हो गया था, इसलिए मैंने अब बाहर आकर पहले तो होटल‌ पर खाना खाया … फिर पास के ही किराना स्टोर से एक‌ गुलाब का फूल खरीद‌कर घर आ गया.

शायरा भी उस समय शायद खाना बना रही थी या खाना खा रही थी, मुझे नहीं पता.
मगर उसके घर का दरवाजा बन्द था … इसलिए उसने मुझे आते जाते नहीं देखा.

घर आकर मैंने अब ऊपर और नीचे, सीढ़ियों के दोनों ओर की लाईट बन्द कर दी … ताकि अन्धेरे में छुपकर मैं उस लैटर व फूल को देखकर शायरा की होने वाली प्रतिक्रिया को आसानी से‌ देख सकूं.

फिर उस लैटर व गुलाब के फूल को शायरा के दरवाजे के पास रख दिया और उसके दरवाजे को एक बार जोर से खटखटाकर जल्दी से सीढ़ियों पर अन्धेरे में जाकर छुप गया.

शायरा ने भी अब दरवाजा खोला और वो इधर उधर देखने लगी. शायरा के घर की‌ लाईट चालू थी, जिसमें वो तो मुझे साफ नजर आ रही थी मगर अन्धेरे की वजह से मैं उसे दिखाई नहीं दे रहा था.

उसने दरवाजा खोलकर पहले तो इधर उधर देखा, मगर जब दोनों ओर उसे कोई नजर नहीं आया … तो वो‌ वापस दरवाजा बन्द करने लगी.

अब एक‌ बार तो मुझे लगा कि कहीं मेरे सारे किए कराये पर‌ पानी तो नहीं फिर गया. मगर फिर शायद उसकी‌ नजर, नीचे रखे उस फूल व लैटर पर चली ही गयी.
उस फूल व लैटर को नीचे रखा देखकर शायरा भी समझ गयी थी कि ये मैं ही हो सकता हूँ. इसलिए उसने तुरन्त ही ऊपर सीढ़ियों की ओर देखा, मगर सीढ़ियों पर अन्धेरा था.

एक बार ऊपर की ओर देखकर शायरा ने नीचे की ओर देखा. मगर जब नीचे भी उसे कुछ नजर नहीं आया, तो उसने उस फूल व लैटर को उठा लिया और उस लैटर को वहीं खोलकर खड़े खड़े पढ़ने लगी.

पता नहीं क्या कहेगी शायरा? मुझे डर तो‌ लग रहा था … मगर मैंने अपना काम कर दिया था. अब बाकी‌ का काम मेरे उस लैटर को करना था.

शायरा ने भी उस लैटर को पढ़ कर एक‌ बार फिर से सीढ़ियों के दोनों ओर … ऊपर व नीचे देखा, फिर उस लैटर को‌ फिर से पढ़ने लगी. मगर इस बार उसके चेहरे पर उस लैटर को पढ़ते पढ़ते ही हंसी आ गयी.

उस लैटर को वहीं दो बार पढ़ने‌ के बाद शायरा उस गुलाब व लैटर को‌ लेकर अब अन्दर चली गयी और अन्दर से दरवाजा बन्द कर लिया. शायरा के अन्दर चले जाने के बाद मैं भी अब ऊपर अपने कमरे में आ गया.

वैसे शायरा की हंसी तो बता रही थी कि मेरे उस लैटर ने अपना काम‌ कर दिया था. अब बाकी कल देखते हैं वो क्या कहती है.

शायरा की‌ हंसी को देखकर मुझे एक पल के लिए तो लगा कि मैं उससे जाकर अभी ही मिल लूं. फिर ये सोचकर रह गया कि कल उससे ऐसे मिलूंगा, जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो.

बस शायरा ज़्यादा गुस्सा ना हो. वैसे उसके रियेक्शन से तो यही लग रहा था कि वो अब गुस्सा नहीं होगी.

मेरी बात बनी रहे, मैं ऊपर वाले से यही दुआ कर रहा था. वैसे उसको भी सोचना चाहिये कि दोस्ती में इतना तो चलता ही है. वैसे अगर आज के लिए माफ कर दिया, तो कल वो दिन भी दूर नहीं होगा … जब मैं उसके रसीले होंठों पर भी किस करूंगा.

ये सब सोचते सोचते पता ही‌ नहीं चला कि कब मुझे नींद आ गयी.

अगले दिन सुबह तैयार होकर मैंने शायरा के घर का दरवाजा खटखटा दिया. मगर शायरा अभी तक भी नाईटी में ही थी.

मैं- क्या हुआ तुम तैयार नहीं हुई?
शायरा- हां मैं आज नहीं जाऊंगी, तुम जाओ.
मैं- क्यों क्या हुआ?
वो- कुछ नहीं बस … आज तुम अकेले जाओ, चाहो तो स्कूटी ले जाओ.

मैं अब तक शायरा के घर के अन्दर आ गया था मगर अभी तक उसने कल के मेरे उस किस के बारे में कुछ कहा नहीं था.

वो- तुम आज अकेले जाओ.
मैं- क्यों तुम कल की मेरे हरकत से तो ऐसा नहीं बोल रही हो?

वो- नहीं.
मैं- देखो कल जो हुआ उसके लिए सॉरी बोला है, दोस्ती में इतना तो चलता है.

वो- बात वो नहीं है.
मैं- मतलब मैंने किस किया तुम्हें अच्छा लगा?

वो- नहीं … उस बात पर मुझे गुस्सा आया, पर ये तुम्हारी पहली ग़लती समझ कर माफ़ कर रही हूँ.
मैं- सच में गुस्सा आया या फिर अब मैं कह रहा हूँ … इसलिए गुस्सा हो?

वो- तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.
मैं- तुम ही तो बार बार कह रही थी कि थप्पड़ मारो … थप्पड़ मारो.

वो- तो थप्पड़ मारने को कहा था, किस करने को नहीं!
मैं- हां … मैंने भी मजाक में ही हाथ ऊपर उठाया था, पर तुम तो ऐसे डर गईं … जैसे मैं सच में ही मारूंगा. अब तुमने तो बोल दिया कि थप्पड़ मारो, पर तुम खुद नहीं चाहती थीं कि मैं थप्पड़ मारूं.

वो- वो मैं …
मैं- अब उस बात को भूल जाओ और चलो साथ में चलते हैं. वादा करता हूँ कि अब आगे से ऐसा नहीं होगा.

मैं उसे देखने लगा.
वो- उस बात को मैंने ज़्यादा सीरियस नहीं लिया.
मैं- तो क्या बात है?

वो- बस थोड़ी तबीयत सी ठीक नहीं है
मैं- चलो तो फिर डॉक्टर के पास चलते हैं.

वो- डॉक्टर की ज़रूरत नहीं है, बस थोड़ा आराम करूंगी … तो ठीक हो जाएगा.
मैं- झूठ मत बोलो.

वो- झूठ?
मैं- हां … अगर तबीयत ठीक ना होती, तो ऐसा नहीं कहतीं कि डॉक्टर के पास नहीं जाना.

वो- अब इतनी सुबह सुबह कहां डॉक्टर मिलेगा!
मैं- वो काम मेरा है, तुम बस चलो … या बात कुछ और है?

वो- कुछ नहीं, बस आज मूड नहीं है.
मैं- कहीं कल तुम्हारी सहेलियों ने मुझे तुम्हारा हज़्बेंड कहा, इसलिए तो मेरे साथ जाने से मना नहीं कर रही हो?

वो- नहीं … ये बात नहीं है.
मैं- मतलब तुम्हें अच्छा लगा जब उन्होंने मुझे तुम्हारा हज़्बेंड बोला?

वो- तुम भी ना … कुछ भी मतलब निकाल लेते हो!
मैं- तो बताओ बात क्या है, दोस्त मदद करने को होते हैं.

वो- अब तुम्हें नहीं बता सकती.
मैं- तो फिर ठीक है … मैं भी यहां से तब तक नहीं जाऊंगा, जब तक तुम बताओगी नहीं.

वो- तुम लड़के हो, तुम्हें कैसे बता सकती हूँ?
मैं- अच्छा अब मैं समझा … तुम्हारे पीरियड आ गए है ना?

मेरी बात सुनते ही वो अब शॉक्ड सी हो गयी, कितनी आसानी से बोल दिया था मैंने, पर मेरी बात से शायरा एकदम से शर्मा गयी थी. उसको तो समझ नहीं आया कि अब वो मुझे क्या जवाब दे.

शायरा की प्रेम कहानी को सेक्स कहानी के रूप में पढ़ कर आपको कैसा लग रहा है, प्लीज़ इसके लिए भी कुछ लिख कर बताइए.
[email protected]

कहानी जारी है.

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