पाठिका संग मिलन-1

(Pathika Sang Milan- Part 1)

लीलाधर 2019-05-05 Comments

This story is part of a series:

प्रिय पाठको, मेरी स्वैपिंग सम्बन्धी कई कहानियाँ अन्तर्वासना पर आई हैं जिन पर बहुत सारे पाठक-पाठिकाओं की प्रतिक्रियाएँ मिलीं। उनमें खास बात यह थी कि महिला पाठिकाएँ पुरुष पाठकों से कहीं ज्यादा उत्साहित थीं। यद्यपि हरेक के साथ अलग अलग परिस्थिति थी- किसी का संयुक्त परिवार था जिसमें घर से निकलने की पाबंदी थी, कहीं पर पति के बारे में अनिश्चय था कि पता नहीं वह इसके लिए राजी होगा या नहीं, कहीं कुछ, कहीं कुछ, लेकिन उनमें एक बात समान थी कि इससे दाम्पत्य पर असर तो नहीं पड़ेगा इसकी चिंता थी।

उनमें से एक पाठिका ऐसी है जिसके साथ संवाद का सिलसिला काफी आगे बढ़ा और अंततः स्वयं में एक कहानी बन गया। मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी उस कहानी को आपके सामने लाने की, लेकिन वे, अपने स्त्री स्वभाव के अनुरूप, इसके पक्ष में नहीं थी।

बाद में उसका मन बदला।
“मैंने जो किया सो किया, वो कहानी आपकी होगी, आप जो चाहें करें।”
फिर तो मैंने कहा- अगर यह मेरी कहानी है तो पात्र भी मेरे पास जिस नाम से आई, वही नाम रखूंगा।
नीता …
एक सुंदर और कमनीय नाम … है ना?
पाठको, वह खुद भी कम सुंदर और कमनीय नहीं है बल्कि बहुत ज्यादा!

मेरी कहानी
विदुषी की विनिमय लीला
पढ़कर वह मेरे सम्पर्क में आई थी। कहानी का पहला भाग प्रकाशित होने पर उसका पहला मेल आया था। उस मेल को मैं यथावत् यहाँ देने का लोभ नहीं छोड़ पा रहा हूँ:
Hi Liladhar,
First of all accept my hearty congratulation of writing the supereb story in very decent style … I am 100% confident that you are a woman because no man can understand and explain our thoughts and feeling so minutely … I have been reading the stories on Antarvasna since long but your this story gave me totally different feeling … when I read through I feel as if everything is happening with me and different kind of feeling is going through in my body and mind … great work … keep it up … waiting for next part …
Nita”
(पहले तो एक बेजोड़ कहानी अत्यंत भद्र शैली में लिखने के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। मुझे 100% यकीन है कि आप औरत हैं क्योंकि कोई भी पुरुष हमारे खयालों और एहसासों को इतनी सूक्षमता से नहीं समझ सकता … मैं अंतर्वासना में काफी दिनों से कहानियाँ पढ़ रही हूँ लेकिन आपकी कहानी ने बिल्कुल अलग एहसास दिया … जब मैं आपकी कहानियाँ पढ़ती हूँ तो लगता है सबकुछ मेरे साथ घटित हो रहा है और मेरे तन मन में कुछ अलग तरह की अनुभूति हो रही है … कमाल का लेखन … इसे जारी रखिये … अगले भाग के इंतजार में)

मैंने उसकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद देते हुए कहा था कि मैं औरत नहीं मर्द हूँ, लेकिन यह जरूर है कि मेरी कहानियों को पहले मेरी पत्नी पढ़ती और अनुमोदित करती है।

उसे यकीन नहीं हुआ था कि मैं पुरुष हूँ। उसे एक एक पंक्ति में महसूस हुआ था जैसे विदुषी की जगह वह खुद है और कहानी का नायक अनय सब कुछ उसी के साथ कर रहा है। एक एक पंक्ति से मुझे रोमांच होता था और मैं पूरी तरह ‘गीली’ हो गई थी।

मैंने थोड़ा बोल्ड होते हुए उसके ‘गीलेपन’ को नमस्कार किया था और कहा था- यह सबसे बड़ी प्रशंसा है।
मैं हालाँकि कम ही पाठकों के करीब जाता हूँ, लेकिन उसकी भाषा और कहने का सलीका सुंदर थे। (बाद में पाया, वह बातों में ही नहीं, अंतर्मन और रूपाकार से भी बहुत सुंदर थी) मैंने हिचकते हुए उससे दोस्ती की इच्छा जाहिर कर दी थी।

उसने बड़ी खुशी से मेरी दोस्ती का अनुरोध स्वीकार किया था और मेरे व्यक्तिगत जीवन के बारे में जिज्ञासा प्रकट की थी। मेरी पिछली सारी कहानियों की लिंक मांगी थी।
अपने बारे में उसने कहा था- मैं हाउसवाइफ हूँ, पूना में रहती हूँ। तीन साल पहले ही शादी हुई है और पति एक आईटी कंपंनी में कंसल्टेन्ट हैं।
मुझे थोड़ी हैरानी हुई थी। इतनी जल्दी स्वैपिंग के सपने!!

कुछ ही दिनों बाद मेरी अगली स्वैपिंग कहानी
अगर खुदा न करे
आई।
उस समय ढेर सारी पाठक-पाठिकाओं की प्रशंसा से मेरी कल्पना आकाश में उड़ान भर रही थी। ‘विदुषी’ अगर स्वप्नलोक-सा मनमोहक था तो ‘अगर खुदा न करे’ वास्तविकता की मिट्टी में रचा-बसा। नीता इस कहानी को पढ़कर इतनी उत्तेजित हुई कि उसने दावा किया कि यह तो काल्पनिक घटना हो ही नहीं सकती। बताइये कि आपने कब और कैसे किया।

मैंने उल्टे उसी से पूछा कि यदि यह आपको इतना वास्तविक लगता है तो क्या आपने इसे किया हुआ है?
नीता- नहीं, मैंने किया तो नहीं है। सच कहूँ तो यह चीज मेरी कल्पना में भी नहीं थी। लेकिन जब से आपकी कहानी पढ़ी है यही मेरा मुख्य ख्वाब बन गया है। हालत यहाँ तक है कि जब भी कोई सुंदर जोड़ा मुझे दिखता है तो उसके साथ उत्तेजक चीजें करने की सोचने लगती हूँ। फिर भी मैं इसे सचमुच आजमाना शायद नहीं चाहूंगी।
मैं- अगर आप स्वैपिंग को वास्तव में ट्राय नहीं करना चाहती हैं तो इसमें कुछ अनुचित नहीं है। क्षणिक रोमांच के बजाय दाम्पत्य की ठोस नींव बहुत कीमती है। मेरी कहानियों का आनन्द लेती रहें, बस।

उसका उत्तर एक स्त्री के संकोच और सीधे न कबूल कर पाने की मनोवृत्ति का नमूना था- अगर मेरे पति बहुत जिद नहीं करें तो मैं स्वैपिंग में नहीं जा सकूंगी। (यानि पति बहुत जिद करे तो कर सकती है।) मुझे सोचकर डर लगता है, इससे दाम्पत्य में दरार नहीं आ जाएगी?

पाठको, मुझे हमेशा लगता रहा है कि स्वैपिंग में डरने की कोई बात नहीं है। पति-पत्नी का रिश्ता विवाह और आपसी प्रेम की ठोस बुनियाद पर खड़ा होता है। एक कोई क्षणिक सेक्स-सुख से इसमें फर्क नहीं पड़ जाता। असल चीज है अपने मन के अंदर जीवनसाथी को सुख लेते देखने की इच्छा और उसके लिए आपस में सहमति। अपने सबसे प्रिय व्यक्ति को दूसरे से सम्भुक्त होते देखना गजब का अनुभव होता है जिसका बयान नहीं किया जा सकता। यह आपके अपने बीच सेक्स में भी रोमांच घोल देता है। आपको लगता है कि आपने कुछ असाधारण काम किया है, आप खास लोगों में से हैं।

नीता मेरे इन विचारों से रोमांचित तो थी पर ऐसी कितनी ही पाठिकाएं थीं जो इस तरह की इच्छा जाहिर करती थीं, लेकिन कदम उठाना तो दूर, फोटो या नम्बर शेयर करने से भी डर जाती थीं। यह भी ऐसी ही लग रही थी। मैंने इतना ही कहा कि कहानी आपको अच्छी लग रही है, यही बहुत है। कोई जरूरी नहीं कि आप स्वैप कीजिए ही। बस इतना यकीन रखिएगा कि इसमें डरने जैसी कोई चीज नहीं है।

पाठको, आप मान सकते हैं कि मैं उतना तटस्थ नहीं था जितना कि मेल में खुद को दिखा रहा था। दिल से चाहता था कि वह स्वैप में उतर ही जाए और हमारे ही साथ तो क्या ही अच्छा।
उसके उत्तर में संभावनाएं भरी थीं, पूछ रही थी- अभी तक मैंने अपनी इस इच्छा के बारे में पति को नहीं बताया है। उन्हें बताऊँ?
मैंने अपना सुझाव दे दिया।
बहुत दिन तक उसका मेल नहीं आया। वह शायद हिम्मत नहीं कर पाई।

करीब चार-पाँच महीने बाद मेरी कहानी
जेम्स की कल्पना
अन्तर्वासना में प्रकाशित होने लगी तो फिर उसका मेल आया। वैसे ही रोमांचित थी। चकित थी कि स्त्री के मन के डरों और उलझनों को मैं कैसे इतनी सूक्ष्मता से पकड़ लेता हूँ। और कैसे उतने डर और उलझनों के बीच उससे सबकुछ कराकर चरम सुख खुलकर लूटने का चमत्कार कर देता हूँ।
उसने कबूल किया था कि इतने दिन वह मेल इसलिए नहीं की थी कि अपने मन पर छाई आकुलता से बाहर आना चाहती थी लेकिन मेरी कहानी पढ़कर फिर मजबूर हो गई। आप ऐसी कहानी क्यों लिखते हैं लीलाधरजी? कुछ और विषय पर क्यों नहीं लिखते?

जैसे जैसे वह अन्तर्वासना पर ‘जेम्स की कल्पना’ के एक एक भाग को पढ़ती जा रही थी, उसका मन और डोलता जा रहा था।
“लीलाधर जी, मैं एकदम से इसके लिए व्यग्र हो गई हूँ। बताइये ना मैं क्या करूँ?”
” लेकिन वास्तव में स्वैप करना? किसी दूसरे पुरुष की बांहों में जा पड़ना? ना ना ना!”
“पर क्यों नहीं? आखिर हर्ज क्या है?”
“लीलाधर जी, बचाइये, मैं कमजोर हो रही हूँ। ओह, आप ऐसी कहानियाँ क्यों लिखते हैं जिससे चरित्र स्खलन हो जाए? मैं एक कुलीन भारतीय स्त्री हूँ।”

मैं उसके मन में चल रहे संघर्ष को देख रहा था और उसे संयम की सलाह देता हुआ अप्रत्यक्ष रूप से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था। औरतों के मामले में सीधे ‘चढ़ जा बेटा सूली पर’ की ललकार काम नहीं आता। इन कोमल जीवों को बेहद सावधानी से लाइन पर लाना होता है।

नीता ने मेरे सुझाव के अनुसार अपने पति को कहानी पढ़ा दी थी और उसके पति ने उम्मीद के विपरीत कोई ऐतराज नहीं किया था। हिम्मत करके नीता ने उससे अन्तर्वासना पर मेरी स्वैप सम्बन्धी अन्य कहानियों की भी चर्चा कर दी थी। उसके पति ने खुद भी खोजकर मेरी सारी कहानियाँ पढ़ ली थीं। कुछ गड़बड़ नहीं हुई थी।
उसके पति ने उत्सुकता से एक बार उससे पूछ लिया था- तुमको इस तरह की कहानी बड़ी पसंद आ रही है, कुछ खास बात है क्या?
नीता ने शर्माकर सिर झुका लिया था।

लेकिन उसे उम्मीद की किरण नजर आने लगी थी। पति ने गुस्सा नहीं जताया, उल्टे पूछते वक्त मुस्कुरा रहे थे।
उन दोनों के बीच एक-दूसरे की थाह लेने का काम चल रहा था, इधर मैं उसे बांहों में लेने के सपने बुन रहा था। सचमुच यह एक अद्भुत बात होगी। पता नहीं क्यों, मैंने अभी तक अपनी पत्नी को उसके बारे में नहीं बताया था। अब तक हर स्वैप मैंने पत्नी से बात करके प्लान किया था। इस मामले में मन बेईमान हो रहा था।

मैं अब उसे फोन पर आने के लिए कह रहा था। वह अभी भी डर रही थी। क्या होगा? अगर एक बार कर लिया तो आदत नहीं लग जाएगी? बार बार करने का मन करेगा। मैं ऊपर से तटस्थता दिखाता ललकार रहा था- परिवार बड़ी चीज है नीता जी। डर लगता है तो रिस्क मत लीजिए। लेकिन बात यह भी है कि ‘नो रिस्क नो गेन।’

वह पूछती- अच्छा बताइये आपने क्या सोचकर स्वैपिंग कर लिया? मन में इच्छा की बात मैं जानती हूँ, मेरी भी होती है, लेकिन कदम क्या सोचकर बढ़ा ही दिया?
वह मुझे और खोलना चाहती- अच्छा बताइये आपको कैसा लगा? आपने कैसे किया? कैसी थी आपकी पार्टनर? उसके साथ कितनी बार किये? आप तो इतने अनुभवी हैं, बहुत ही अच्छे से बहुत आनन्द दिया होगा उसको। क्या क्या किए उसके साथ?

मेरी पत्नी के बारे में उसकी जिज्ञासाएं कम नहीं थीं- क्या बोलीं वे? कैसा लगा उनको? सब एक साथ किये या अलग-अलग? आपको जलन नहीं हुई? बाप रे बाप, मेरे तो सोचकर ही रोएं खड़े हो जाते हैं!

जितनी बातें मैं यहाँ जल्दी जल्दी वार्तालाप में लिख दे रहा हूँ वे ईमेल में महीने से भी ज्यादा में हो पाईं। लेकिन उसकी तरफ से भावनाओं में कमी नहीं थी। मैं बस धैर्य रखे जा रहा था। कभी कभी लगता यह फूल खुद ब खुद मेरी हथेली में आ गिरेगा। लेकिन वह एक साथ बहुत दूर भी लगती। नो फोन टॉक, नो पिक शेयरिंग। बस खाली बातें। मैं भी किसी प्रकार का आग्रह नहीं कर रहा था.

एक दिन मेरा फोन बजा- ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग …
अज्ञात नम्बर था। ऐड वगैरह के अनजान नंबर से फोन आते रहते थे. फिर भी जाने क्यों दिल धड़कने लगा। मैंने हलो किया, उधर एक स्त्री आवाज थी। यह भी कोई बड़ी बात नहीं थी। विज्ञापन कंपनियों के फोन ज्यादातर लड़कियों के ही रहते हैं।

“ये … अम … अँ … ” उधर कोई बोलने में लड़खड़ा रही थी।
मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। कहीं वही तो नहीं?
“हाँ हाँ बोलिये, क्या बात है?” मैंने मीठे स्वर में सहानुभूतिपूर्वक कहा।
“ये … लीलाधर जी का नम्बर है?”
अब मेरी लड़खड़ाने की बारी थी।

कुछ क्षण चुप रहकर मैंने दिल को थामा और पूछा- आप कौन?
“गेस कीजिए।”
“क्या … नीता जी?”
उधर एक क्षण का मौन, फिर मंद हँसी की आवाज।
फूलों का खिलना, भौंरों का गुनगुनाना, डालियों का लचकना, चिड़ियों का चहचहाना, जलतरंग का बजना … फिल्मों में प्रेम के देखे गए तमाम दृश्य एक साथ मन में दौड़ गए।
“ये नीता जी कौन है? मैं तो … ललिता हूँ।”
“मैं भी लीलाधर नही हूँ।”
“हा हा हा!” जलतरंग की सी हँसी- आप सचमुच तेज हैं, पहचान लिया!
“कोई बड़ी बात नहीं। लीलाधर का नंबर गिने-चुने के पास ही है। और उनमें पाठिका सिर्फ एक ही है।”
“अच्छा!”
उसे गर्व हुआ होगा। मैंने उसके कसे वस्त्रों के नीचे वक्षों के फूलने की कल्पना की।

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