नया एहसास

नीरज 2005-01-25 Comments

यह मेरी पहचान के एक लड़के की कहानी है, उसकी उम्र २० साल हुई ही थी, नाम उमेश, कद पाँच फुट दस इंच, आकर्षक।

जैसा कि होता है सबसे पहले जवानी के लक्षण आते ही सेक्स के बारे में उत्सुकता जागती है कि

सेक्स कैसा होता है ?

मजे आते हैं ?

दर्द होता है ?

लड़का और लड़की दोनों को मजे आते हैं ?

बच्चे कैसे होते हैं ?

आदि आदि

ये सब उसके मन में भी उठते थे

उसका संपर्क मेरे से हुआ, वो कंप्यूटर कोर्स के लिए मेरे पास आया था। धीरे धीरे घनिष्टता बढ़ी तो हम लोगों में सेक्स से सम्बंधित बातें भी होने लगी। वो मुझसे अपनी उत्सुकता को लेकर कई सवाल करता था। जब भी हम लोग फ्री होते तो हम सवाल जवाब करते रहते थे। उमेश के अपने भी कुछ दोस्त थे, उनमें भी स्वाभाविक रूप से ऐसी बातें होती रहती थी।

एक दिन उमेश ने मुझसे पूछा कि मेरे लंड के सुपाडे की खाल पीछे नहीं होती है जबकि मेरे दोस्त की तो हो जाती है?

मैंने उस से पूछा कि तुम मुठ मारते हो क्या?

उस ने पूछा कि कैसे मारते हैं?

मैंने उसको समझाया कि कैसे मुठ मारी जाती है।

तो उसने जवाब दिया कि बहुत कभी दो चार बार मारी है।

तो फ़िर मैंने उसको समझाया कि सुपाड़े की खाल तो सुपाडे से ही चिपकी हुई होती है, लेकिन जैसे जैसे जवानी आती है वैसे वैसे ये खाल अपने आप सुपाड़े से छूटती जाती है वरना जब सेक्स किया जाता है तो भी अपने आप धीरे धीरे छूट जाती है और या फ़िर मुठ मरोगे तो भी। लेकिन बहुत ज्यादा जोर लगा कर इसको पीछे करने कि कोशिश मत करना वरना घाव कर बैठोगे।

फ़िर उमेश ने पूछा कि यदि सेक्स किया जाए तो क्या फर्क पड़ेगा ?

तो मैंने पूछा कि कोई लड़की दोस्त है क्या ?

तो उमेश ने हिचकते हुए जवाब दिया हाँ है तो सही।

मैं : दोस्ती गहरी हुई क्या?

उमेश : हाँ धीरे धीरे गहरी हो रही है

मैं : क्या सेक्स की बातें होने लगी हैं?

उमेश : हाँ थोड़ी थोड़ी !

मैं : देखो, यदि खाल पीछे नहीं होती है तो लंड को चूत के अन्दर डालने में थोड़ी दिक्कत होती है, जोर से झटका मारोगे तो ख़ुद लंड पर भी घाव कर सकते हो और लड़की को यदि वो पहली बार कर रही है तो दर्द होगा।

उमेश : तो क्या मैं सेक्स नहीं कर सकता?

मैं: क्यों नहीं कर सकता भाई, मैंने मना थोड़े ही किया है, ऐसे समय सेक्स करने से पहले तैयारी करो – अपने हाथ साबुन से धो लेना, वेसलिन की डिब्बी ले लो, अपनी पहली ऊँगली पर वेसलिन लगा कर लड़की की चूत में ऊँगली करना। फ़िर उंगली को कुछ बार आगे पीछे करना। अब उंगली को ओ के आकर में धीरे धीरे घुमाना। ये सब करने में लड़की को दर्द हो तो रुकना फ़िर शुरू करना, अब अपने अंगूठे से भी इसी तरह करना। इस से लड़की की चूत का छेद थोड़ा खुल जाएगा और लंड डालते समय उसको दर्द कम होगा।

उमेश : लोग तो कहते हैं कि लंड को जोर से धक्का मारकर अन्दर डालना चाहिए। सील तोड़ना इसी को कहते हैं?

मैं: तू रोटी खाता है तो रोटी को तेरे मुँह में ठूंस ठूंस कर खिलाया जाय तो तुझको मजा आएगा क्या?

उमेश: मैं समझ गया, लड़की को दर्द होगा तो वो उतना मजा नहीं ले पायेगी।

मैं: हाँ ठीक समझा, वो ही क्या तुझको भी उतना मजा नहीं आएगा क्यूंकि दर्द के मारे वो उतना साथ नहीं देगी। अब अपने लंड पर वेसलिन लगा कर हलके धक्के लगाते हुए उसको भी चूत में धीरे से सरकते हुए अन्दर डालना, वेसलिन, क्रीम या नारियल का तेल लगाने से लंड आराम से अन्दर जाता है। बहुत जोर का घर्षण नहीं होता। समझा…? दर्द नहीं होने या कम होने से मजा बहुत आता है, सिर्फ़ सेक्स का असली मजा आता है। और जब मजा आने लगे और चूत पानी छोड़ने लगे तो तेरे में दम हो जितना जोर से लगाना, धक्के जोर से मारने हों तो मारना !

उमेश: लड़की को भी सेक्स का मजा आता है क्या?

मैं: क्यूँ भाई, लड़के ही ठेकेदारी लिखवा कर लाये हैं क्या मजे लेने के लिए। लड़कियों को भी मजा आता है। और जैसे कि अलग अलग लड़कों में सेक्स की रूचि अलग अलग होती है वैसे ही लड़कियों में भी, किसी लड़की को सेक्स में रूचि ज्यादा और किसी में बहुत कम या न के बराबर होती है। लेकिन एक बात याद रखना कि यदि सेक्स का मजा लेना हो तो लड़की को ओर्गास्म पहले आ जाए ये याद रखना ताकि उसका इंटरेस्ट बना रहे। अन्यथा पहले तुमको ओर्गास्म आ गया तो तुम्हारे दुबारा तैयार होने तक लड़की उत्तेजना से परेशान हो जायेगी और उसको हो सकता है तुमसे या सेक्स से नफरत हो जाए। यदि किसी कारण वश एसा हो भी जाए तो लड़की के साथ लगातार खेलते रहो। ताकि उसकी उत्तेजना बनी रहे।

और लड़की को पहले ओर्गास्म हो तो एक फायदा और होता है कि तुम्हारे को ओर्गास्म होने तक लड़की को और भी ओर्गास्म हो जाए। भगवन ने लड़की को ही वरदान दिया है कि सेक्स के एक राउंड में लड़की को कई ओर्गास्म हो सकते हैं जबकि लड़के को एक बार में एक ही ओर्गास्म होता है। उसके बाद लड़के को दुबारा ओर्गास्म हो इसके लिए उसको थोड़ा इंतजार करना होता है।

उमेश: सर बस एक बात और बता दीजिये कि लड़की को ज्यादा मजा कैसे आता है।

मैं: देखो लंड को चूत में डालने से पहले गेम खेलना चाहिए। इस गेम खेलने को फोरप्ले कहते है। इसमे होटों से होंट मिला कर चूसना, एक दूसरे की जीभ चूसना, कान की लटकन चूसना, लटकन के नीचे की गर्दन चूसना, बोबे दबाना और चूसना, नाभि चूसना और हो सके तो एक दूसरे के सेक्स ओरगन (लंड या चूत) चूसना शामिल हैं। शरीर की मालिश करना और सहलाना भी फोरप्ले में ही आता है। अब यह बात भी ध्यान रखना कि जिससे उसको उत्तेजना ज्यादा हो वो ही काम ज्यादा करना। जिसके लिए वो मना करे वो मत करना। ये अच्छा रहेगा, उसके मन में तेरे लिए विश्वास और प्यार पैदा होगा। जब लड़की को सेक्स खूब चढ़ जाए तो लंड को चूत में डालना। शुरू में बिल्कुल धीरे धीरे धक्के लगाना।

अब एक बात मैं और बता देता हूँ, देख लड़की के साथ सेफ सेक्स खेलना, या तो कंडोम प्रयोग में लेना या मासिक के चक्र को ध्यान में रखना। मासिक शुरू हो उस दिन को पहला गिनो। आम तौर पर ३० दिन का मासिक होता है। इस के अनुसार १५ वां दिन सबसे खतरनाक होता है। इस दिन तो बच्चा होने के सबसे ज्यादा चांस होते हैं। इस से तीन दिन पहले तक क्यूंकि तीन दिन वीर्य के शुक्राणु जिन्दा रह सकते हैं और तीन दिन बाद तक क्यूंकि लड़कियों में अंडाणु तीन दिन जिन्दा रहता है, अर्थात मासिक शुरू होने के १२ वें दिन से १८ वें दिन तक सीधा सम्भोग नहीं करना। वरना बच्चे होने का खतरा उठाना होगा। इसमे भी २ दिन और सेफ कर लो। ११ से १९ दिन तक। लेकिन यदि मासिक चक्र काफी ऊपर नीचे होता रहता है तो रिस्क मत लेना। कंडोम ही काम लेना।

उमेश: ठीक है सर।

मैं: अब तू मुझसे सुन, मैं सब कुछ समझता हूँ लल्लू, लड़की लगभग तैयार होगी। है न।

उमेश: एसा ही लगता है सर।

मैं: जा मजे कर, और सेक्स हो जाए तो बाकी सारी बातें बताना।

उमेश: बिल्कुल सर, ऐसा ही होगा।

अगले चार दिन उमेश नहीं आया, उसका फोन आया कि सर मैं छुट्टी पर रहूँगा। मैं समझ गया।

उसके बाद जब वो मेरे पास पढने आया तो मैंने उसको सारी बात बताने को कहा। अब आगे की कहानी उमेश की जुबानी सुनिए।

यहाँ से जाने के अगले दिन मैं ऋतु से मिला। मैंने बातों बातों में उस से पूछा कि कहीं घूमने चल रही हो?

ऋतु: किधर चलोगे?

उमेश: शहर से १० किलोमीटर दूर जो स्मृति वन है। ( इस स्पॉट में कम ही लोग आते जाते हैं)

ऋतु: जरूर, कल चलेंगे, खाना भी उधर ही खायेंगे। ठीक है?

उमेश: बिल्कुल ठीक है, जान।

मेरे इस नए संबोधन से ऋतु शरमाई सी आश्चर्य चकित मुझको देखने लगी। मैंने उसका हाथ धीरे से दबा कर बोला तुमने मेरा मन रखा उसके लिए धन्यवाद। तो ऋतु बोली इसमे धन्यवाद कैसा, मेरा तो ख़ुद घूमने का मन था। उल्टा धन्यवाद तो मुझसे लो। ये सुन कर मेरे मन में उमंगों ने लहर मारना शुरू कर दिया। मुझको उसकी साफगोई बहुत अच्छी लगी और मेरे मन में उसके लिए प्यार हिलोरे लेने लगा।

कोलेज पढने के बाद मैंने उस को अपनी मोटर साइकिल से उस के घर के पास छोड़ा। अगले दिन इसी जगह से दिन के बारह बजे स्मृति वन जाना निश्चित हुआ। दूसरे दिन वो मुझे उसी जगह पौने बारह बजे मिली और हम दोनों अपने घर से लाये खाने और पानी की बोतल के साथ स्मृति वन २० मिनिट में जा पहुंचे। मोटर साइकिल को स्टैंड पर लगा कर हम अपने खाने पीने के सामान के साथ पिकनिक स्पॉट में दाखिल हुए।

ये कई बीघा में बना हुआ पिकनिक स्पॉट है जहाँ कि बीच बीच में छायादार बड़े पेड़, झोंपडी टाइप गुमटियां और टीनशेड आदि दूर दूर लगे हुए हैं। बीच बीच में पानी के गढ़े, फ़व्वारे, डांसिंग लाइट आदि लगी हैं। काम काज का दिन होने से भीड़ कम थी। और हम बहुत आराम में थे। धीरे धीरे हम आपस में बात करते हुए अन्दर घुसे जा रहे थे। उसका सामान भी मैंने ले रखा था। हम साथ साथ चल रहे थे। और उसका हाथ मेरे हाथ से बार बार छू जाता था। मुझको अच्छा लग रहा था। और ऋतु इस बात पर ध्यान नहीं दे रही थी। बहुत अन्दर जाने पर जब आसानी से आसपास कोई दिखाई नहीं दे रहा था तो एक गुमटी में हम लोगों ने अपना डेरा जमा लिया।

हम एक दूसरे के पड़ोस में बैठे पढ़ाई से दूर की, अपने घर और परिवार की बातें करने लगे। बहुत देर तक बातें होती रही। हम एक दूसरे की बातों में रुचि लेते रहे। फ़िर हम एक दूसरे को चुटकुले सुनाने लगे। इस दौरान हँसी हँसी में हम एक दूसरे के हाथ पर हाथ मारने लगे। ऋतु ने कोई आपत्ति नहीं की। प्यास लगने पर एक ही बोतल के मुँह लगा कर पानी पिया। फ़िर किसी इसी ही मनभावन बात पर मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया। ऋतु ने एक बार मुझको देखा फ़िर नोर्मल ही वैसी ही बातें करने लगी। मैंने भी उसकी आँखों से आँखें मिलायी।

२ घंटे बाद हम लोग खाना खाने को हुए। हाथ धोये, ऋतु ने दोनों के घर से लाया खाना एक ही जगह बहुत अच्छी तरह सजाया। सलाद काटा फ़िर एक दूसरे के पास पास बैठ कर हम एक दूसरे को खाना खिलाने लगे। ऋतु मेरे बाएं साइड बैठी थी। फ़िर धीरे से मैंने अपना बायाँ हाथ उसके कंधे पर रख दिया। ऋतु ने मेरी और देखा तो मेरा दिल जोर से धड़का। लेकिन ऋतु धीरे से खिसक कर मेरे थोड़ा और पास हो गई। मुझको बहुत आराम आया। फ़िर हम दोनों ने किसी को भी ख़ुद के हाथ से खाना नहीं खाने दिया, एक दूसरे को खिलाते रहे। खाने के दौरान ऋतु बातों के बीच में अपना सर मेरे कंधे के बाजु पर लगा देती थी। हम दोनों ने बहुत एन्जॉय करते हुए १ घंटे में खाना ख़तम किया। ऋतु के व्यवहार से लग रहा था कि उसको मेरा साथ पसंद आया है।

दिन के तीन बज रहे थे। अब हम चद्दर बिछा कर अधलेटे से सुस्ताने लगे। अब असली बात मेरे मुँह से निकल नहीं पा रही थी। कि कैसे मैं ऋतु से कहूँ कि मैं उसके साथ सेक्स करना चाहता हूँ। जबकि उसके व्यवहार से लगता था कि वो भी राजी है। लेकिन यदि उसने बुरा माना तो मैं एक बहुत अच्छे दोस्त से भी हाथ धो बैठूंगा।

ऋतु ने मुझसे पूछा कि मेशु तुम बहुत विचार मग्न दिख रहे हो। क्या बात है?

मैंने कहा कि नहीं कुछ भी नही। तो ऋतु ने जोर दिया कि यार लगभग आधा घंटा हो गया मैं तुमको इसी स्थिति में देख रही हूँ। खाना खाने तक तो बहुत ठीक से सब कुछ चल रहा था। बताओ तो क्या बात है।

मैं हिचकिचाया तो ऋतु ने बोला कि तुम लड़के होकर नहीं बता रहे। क्या बात है बोलो।

मैं बोला ऋतु मैं बता तो दूँ लेकिन यदि बात तुमको पसंद नहीं आई तो?

ऋतु ने बीच में बात काट कर कहा – क्या क्या, यदि बात मुझको पसंद नहीं आई तो, चलो अभयदान दिया, कुछ नहीं होगा। फ़िर मैंने ऋतु को कहा कि देखो ऋतु तुम मेरी बहुत अच्छी दोस्त हो और मैं तुमको खोना नहीं चाहता। अबसे पहले मेरी कोई भी फिमेल दोस्त नहीं रही इसलिए प्लीज यदि बुरा न मानो और अपना सम्बन्ध इसी तरह बना रहे तो मैं बता दूँ वरना जाने दो।

ऋतु ने जवाब दिया जनाब मैं तो तुमको अभयदान दे चुकी बोलो इस से ज्यादा तो कुछ नहीं हो सकता। अब भी न बताओ तो तुम्हारी इच्छा। तुम्हारी ऐसी शकल देखने से तो अच्छा है कि घर ही चलें।

अब मुझको हिम्मत आ गई और ऋतु को मैंने कहा। कि ऋतु तुम मेरी पहली फिमेल दोस्त हो और हो सकता है कि आखिरी भी तुम ही रहो।

ऋतु: फ़िर

उमेश: बात ऐसी है !!

ऋतु: कैसे है यार, क्या लड़कियों की तरह शरमाते हो। लड़की होकर मैं इंतना नहीं शरमा रही, बेशर्म होकर तुमसे खोद खोद कर पूछ रही हूँ, क्या मैं रोटी नही घास खाती हूँ। मुझको भी कुछ अंदाजा है कि तुम क्या कहना चाहते हो लेकिन तुम ही बोलो ! चलो ! मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती हूँ !

मैं तो जड़ हो गया। फ़िर उसकी नजरें मुझ पर टिकी रही। मुझसे कुछ भी बोलते नहीं बन पा रहा था। तो ऋतु बोली चलो फ़िर घर चलते हैं।

लेकिन मैं नहीं उठा। उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया। उसके कन्धों पर हाथ रख दिया।

उसने मेरी ठुड्डी पर हाथ रखकर मेरा मुँह अपनी और किया और मेरी आंखों में देखने लगी।

मेरे पसीने छूट गए। फ़िर बोला ऋतु प्लीज समझोगी न मुझको !

उसने हाँ में गर्दन हिलाई।

मैंने दूसरे हाथ से उसका हाथ अपने हाथ में लिया। और उसकी और देखते हुए बोला ऋतु प्लीज ! ऋतु मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो। ऋतु मुस्कुराई। उसने आँख मार दी। मेरी हिम्मत बढ़ गई। मैंने कंधे वाला हाथ उसको लिए अपनी और खींचा और उसके गाल पर एक पप्पी ली। उसने कुछ नही कहा। और अपने हाथ से मेरा पकड़ा वाला हाथ दबा दिया। कुछ देर हम एक दूसरे को देखते हुए बैठे रहे। ऋतु फ़िर बोली बस ये ही कहना था आगे बोलो !

मैंने फ़िर कहा कि ऋतु ! प्लीज समझना यार, बुरा मत मानना।

ऋतु ने दूसरे हाथ से अपना माथा ठोक लिया।

उसने अपना हाथ छुडाया, अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा थामकर मेरी आँखों में देखती हुई बोली हाँ अब बोलो!

मैंने उसके दोनों कन्धों पर अपने दोनों हाथ जमा दिए फ़िर हिचकते हुए कहना शुरू किया- मुझको सेक्स के बारे में बहुत उत्सुकता है !

ऋतु: फ़िर ! ?

उमेश: तुमको भी है?

ऋतु: यार मेरा भी एक ही बॉय फ्रेंड है…। तुम, और ये तो सभी को होती है। इसमे ग़लत क्या है? लड़का लड़की एक दूसरे के बारे में जानना चाह्ते हैं। तुम क्या जानना चाह्ते हो?

अब मैंने अपना दिल कठोर कर लिया और सोचा कि जो होगा देखा जाएगा। ऋतु इतना सपोर्ट कर रही है।।।

उमेश: मुझसे सेक्स करोगी !?

ऋतु अपने हाथों में मेरा चेहरा पकड़े कुछ देर मुझे देखती रही मैं भी उसको देखता रहा। उसके गाल लाल हो गए। मेरा दिल धक् धक् कर रहा था। सारा शरीर कम्पन कर रहा था कि जाने क्या होगा, फ़िर !

ऋतु: मेशु मुझको तुम पर विश्वास है। इच्छा तो यार होती है लेकिन डर भी बहुत लगता है। कहीं कुछ ऊँच नीच हो गया तो जमाने को क्या मुँह दिखायेंगे?

उमेश:यदि ऐसा हो गया तो फ़िर हम शादी कर लेंगे।

ऋतु: क्याआआआआअ।

मेरे मुँह को चूम कर, उसने अपना चेहरा मेरे सीने में लगा दिया !

हम बहुत देर तक ऐसे ही बैठे रहे। कभी कभी एक दूसरे को चूम लेते। फ़िर मैंने अपना एक हाथ उसके बोबे पर रखा तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, नहीं मेशु आज नहीं कल, फ़िर नजरें नीची करके कहा – जब सेक्स करेंगे तब।

यह सुन कर मेरा फ्यूज उड़ गया।

मुझको अपने को वश में करना मुश्किल हो गया। मैं तुंरत उठ कर बोला ऋतु ५ बज रहे हैं चलो घर चलें। ऋतु भी बोली हाँ ठीक है चलो।

हमने अपना सामान समेटा और एक दूसरे का एक हाथ पकड़े मोटर साइकिल पर आए और घर की ओर रवाना हुए। ऋतु मुझसे चिपक कर बैठी हुई थी। मैंने पूछा ऋतु मासिक कितने दिन के हो गए। ऋतु बोली २५-२६ दिन हो गए ४-५ दिन में आ जायेगी। तो मैंने सोचा कि सीधे एंट्री हो सकती है बिना किसी डर के।

ऋतु को घर के पास उतारते समय ऋतु बोली कि वो कल १२ बजे मेरे कमरे पर आ जायेगी। लेकिन दर्द होगा ना ?

मैंने कहा कि यार नहीं होने दूँगा। ऋतु बोली मेरी सहेलियां तो बोलती हैं कि बहुत दर्द होता है पहली बार में। मैं बोला जय गुरूजी की विश्वास रखो नहीं होने दूँगा।

उसके बाद न तो मेरा मन किसी काम में लगा, न मुझको खाना खाने कि इच्छा हुई और न ही रात को ठीक से नींद आई। ऋतु का स्पर्श मुझको तरंगित किए था और मैं सातवें आसमान पर उड़ रहा था। बड़ी मुश्किल से वो दिन बीता और सुबह ७ बजे तक मैं नहा धो कर तैयार था। मेरे दिल की धड़कन बदल चुकी थी और ऋतु ऋतु आवाज आ रही थी। जैसे तैसे टाइम कट रहा था। ११ बजे जाकर होटल से खाना पैक करवाया। कमरे पर आकर ऋतु का इंतजार करने लगा। पता नहीं ऋतु आएगी भी या नही। सेक्स कोई ऐसी वेसी छोटी मोटी चीज तो थी नहीं जो वो मुझको देने वाली है और लड़की बिंदास है ये उसका व्यवहार बता रहा है। ठीक १० मिनिट पहले दरवाजे पर दस्तक हुई। मेरा दिल उछल कर गले मैं आ गया। दरवाजे पर ऋतु खड़ी थी।

उमेश: आओ आओ ऋतु अन्दर आओ।

मैंने दरवाजा बंद किया और बाहें बढाई कि ऋतु मेरे बाँहों में समा गई मेरे हाथ उसकी पीठ पर और उसके हाथ मेरी गर्दन के पीछे कस गए। हमारे होंट एक दूसरे से चिपक गए। १५-२० मिनिट हो गए, होंट थे कि हटने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हम एक दूसरे के होंट चूस रहे थे और इतना तन्मय हो गए थे जैसे किसी मधुर संगीत में खो गए हो।

जिन्दगी में पहला किस था किसी जवान लड़की को मेरा और ऋतु का भी।

उसके होटों का रस मेरे पेट में और मेरे होंटों का रस उसके पेट में जा रहा था। दोनों तृप्त हो रहे थे। दुनिया का कोई होश नहीं था !! हम खड़े खड़े ही एक दूसरे में खोये हुए थे। ऋतु की जीभ मेरे होटों पर फिरने लगी तो मैंने उसकी जीभ को अपने होटों से सक करके अपने मुँह में लिया और चूसने लगा। ऋतु के मुँह से जोर की सिसकारी निकली और वो जोर से मुझसे चिपक गई।

मैं अधमुंदी आंखों से ऋतु को देख रहा था, उसकी आँखें मुंदी हुई थी। धीरे धीरे वो होश खो कर मेरी बाँहों में लटकती जा रही थी। जैसे ही ये अहसास मुझे हुआ तो मैंने उसको दोनों बाँहों में उठा कर अपने बिस्तर पर हौले से लिटा दिया। वो पस्त निढाल लेटी हुई थी। मैं भी समझ गया कि अब उसको सेक्स की बहुत जरूरत है। मैं भी उसके साथ लेट गया और ऋतु को बाँहों में लेकर उसके बोबे दबाने लगा और उसके कान की लटकन चूसने लगा। उसने अपनी बाहें मेरी पीठ पर कस दी। थोडी देर बाद मैं उसकी गर्दन चूसने लगा। मेरे पसीने आने लगे। जैसे भट्टी जल रही हो। और मेरी बाँहों में तो साक्षात् आग लेटी थी। हम दोनों ही लस्त पस्त हो रहे थे। बिजली की चिंगारियां शरीर में भर रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं स्थिति को कैसे सम्भालूँ। मैंने धैर्य रखना उचित समझा। वरना मेरी हालत ख़राब होने को थी। बड़ी मुश्किलों से अपने को काबू किया।

मैंने ऋतु से पूछा- ऋतु कपड़े हटा दूँ। तो उसने सहमति से गर्दन हिला दी। मैं २ मिनिट के लिए ऋतु से हटा और ऋतु के शरीर से कुरता हटाया। जैसे जैसे उसका शरीर दीखता गया मेरे शरीर में भाप बनने लगी। जैसे तैसे उसका कुरता हटाया, ब्रा में उसके बोबे ऐसे दिख रहे थे जैसे ताजी, चमकदार और रसभरी दो मोस्मियाँ उसके शरीर पर चिपकी हों, मैं होश खो बैठा और ब्रा को ऊपर सरका कर एक हाथ से उसका एक बोबा दबाने लगा और दूसरे को अपने मुँह में भर लिया। आधा बोबा मेरे मुँह में आ गया। मैं चूसने लगा। ऋतु के मुँह से सिसकारियां छूटने लगी, वो तड़पने लगी। आहें कमरे में गर्मी भर रही थी। मैं बिल्कुल बेकाबू हो गया था। ऋतु मेरे सर को पकड़ कर अपने बोबों पर दबा कर पकड़ रखी थी। मैं कंट्रोल करने की कोशिश में लगा था। बड़ी मुश्किल से मैंने बोबे पर अपने दांत गड़ने से बचाए।

फ़िर मैं ऋतु की पकड़ से छूट कर पहले अपने कपड़े उतारने लगा। अब ऋतु ने ज़रा सी आँख खोल कर देखा फ़िर शर्मा कर मुस्कुरा कर वापस अपनी आँख बंद करके इंतजार करने लगी। अपने को जन्म जात अवस्था में लाकर मैंने ऋतु की ब्रा के हूक खोलकर उसको अलग किया। फ़िर सलवार का नाड़ा खोला। सलवार का जोड़ गीला हो चुका था। मैंने सलवार नीचे सरकाई। उसकी पैंटी दिखने लगी पूरी गीली। सलवार और नीचे सरकी तो उसकी जांघे मखमल जैसे, चिकनी पूरे शरीर पर एक भी बाल नही। क्या बदन है उसका मैं सोचने लगा। फ़िर मैं होश खोने लगा तो मैंने फ़टाफ़ट से उसकी सलवार टांगों में से निकाल दी और उसके पूरे शरीर पर छाते हुए उसकी गर्दन से नीचे से लेकर पूरे शरीर को जीभ से चाट गया। ऋतु फ़िर तड़पने लगी। सिसकारी और आहें कमरे में फैलने लगी जैसे कोई मधुर संगीत मन को तृप्त और उद्दीप्त करता है ऐसे ही वो आहें और सिसकारी काम कर रही थी।

ऋतु की पैंटी के नीचे चद्दर तक गीली हो गई। जैसे एक गिलास पानी गिर गया हो। मुझमें हजारों वाट की भट्टी दहकने लगी। इससे पहले कि मैं अपने होश खो बैठूं, मैंने पैंटी के दोनों और अपने हाथ रखे और ३ सेकंड में नीचे खीचंते हुए ऋतु की टांगो से बाहर किया और ऋतु पर आ गया। उसका कद ५ फुट ६ इंच का होगा क्योंकि मेरा लंड उसकी चूत पर अड़ रहा था और उसके मुँह से मेरा मुँह मिला हुआ था। उसका गोल चेहरा बिल्कुल निर्मल प्यारा लग रहा था। उससे मुझको प्यार हुए जा रहा था। अब ऋतु मेरी जीभ अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।

मैं उसके मोसमी जैसे बोबे दबाने लगा। और लंड को उसकी चूत पर रखकर दबा दिया। ऋतु के होंट ढीले पड़े और उसके मुँह से सिसकारी निकलने लगी। वो मुझसे ऐसे चिपक गई जैसे मुझ में घुस जायेगी। फ़िर तो वो मुझको जगह जगह से चाट गई जहाँ जहाँ वो बाँहों में बंधे हुए चाट सकती थी। मेरी हालत ऐसे थी कि काबू करने की कोशिश के बाद भी नहीं हो रहा था। मैं ने करवट ले कर अपने को ऋतु के साइड में कर लिया। और अब दबाने चूसने का कार्यक्रम बिना किसी रुकावट के चलने लगा।

ऋतु से मैंने कहा- ऋतु अब बर्दाश्त नहीं होता यार।

ऋतु फुसफुसाई तो मैं क्या करुँ यार। मैं तो तुम्हारे हवाले हूँ और मुझ से तो कुछ भी किया नहीं जा रहा। मैं तो उड़ रही हूँ जाने किधर आ गई आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह।

मैंने भी जय गुरूजी की बोलकर बेड के पास रखी वेसलीन की डिब्बी को उठा कर ऊँगली घुसा कर वेसलीन निकाली और हाथ नीचे ले जाकर ऋतु की चूत में ऊँगली सरकाई। ऋतु ज़रा सी कसमसाई लेकिन जैसे ही मैं ने ऊँगली गहरी डाली तो ऋतु के चेहरे पर दर्द कि लकीरें दिखने लगी। उंगली टाईट से अन्दर जा रही थी। मै उसी स्थिति में ऊँगली अन्दर बाहर करने लगा। ऋतु उत्तेजना के मरे मुझसे चिपक कर आहें भरने लगी। मैंने अपनी जीभ फ़िर ऋतु के मुँह में दे दी। वो चूसने लगी। मेरा लंड कठोर हो चुका था। अब मैंने ऊँगली को ओ के आकार में घुमाना शुरू किया फ़िर ऋतु के चेहरे पर दर्द उठने लगा। मैंने हाथ की स्पीड को कम किया। फ़िर ऋतु मचलने लग गई। उसके कूल्हे धीरे धीरे चलने लगे। अब मैंने अपनी ऊँगली निकाल कर अंगूठा उसकी चूत में डाल दिया। ऋतु थोड़ा सा कसमसाई और फ़िर एडजस्ट हो गई। अब जब मैंने अंगूठा ओ के आकार में घुमाने लगा तो स्पीड बिल्कुल कम रखी। फ़िर भी ऋतु आह आह करने लगी धीरे धीरे। मैंने पूछा तो वो बोली कि हल्का दर्द है और मजे भी बहुत आ रहे हैं। फ़िर मेरा मुँह चूम कर बोली राज्जा तुम बहुत अच्छे हो यार, मेरे दर्द का कितना ख़याल रखते हो। मैंने मन में सोचा कि सब गुरूजी की कृपा है

२ मिनिट बाद मैंने ऋतु से पूछा कि लंड को अन्दर डाल दूँ क्या। तो वो जरा सी आँखें खोलकर फुसफुसाते हुए बोली बोली जो करना है, करो मुझको क्या पता कि कैसे क्या होता है। बस थोड़ा इधर उधर से सहेलियों से सुना ही तो है। मैंने भी सोचा कि ऋतु बिल्कुल सही कह रही है।

फ़िर मैंने अपना लंड ऋतु के हाथ में दिया और फ़िर ऊँगली घुसेड़ कर वेसलीन निकली और लंड पर लगा दी और ऋतु को बोला कि बस अब इतना तो कर दो कि वेसलीन मेरे लंड पर लगा दो। उसने गर्दन हिला कर सहमति दी और आहें भरती हुई धीरे धीरे वेसलीन लंड पर रगड़ने लगी। पूरी स्थिति अब काबू बाहर होने लगी तो वेसलीन फैलते ही मैं ऋतु की टांगो के बीच में आ गया और ऋतु को बोला ऋतु अपने को कंट्रोल करना यार मुझको हेल्प करना यदि दर्द हो तो उसको थोड़ा सहन करना !

फ़िर मैंने अपने ६ इंच लंबे और २ इंच मोटे लंड को ऋतु की चूत के मुँह पर रखा फ़िर अपने हाथ ऋतु की कमर के दोनों साइड में रखकर धीरे से लंड पर दबाव डाला तो लंड का सुपाडा चूत के मुँह पर फिट हो गया फ़िर हल्का झटका दिया तो ऋतु के मुँह से आह निकली और मेरे मुँह से सिसकारी। लंड लगभग दो इंच अन्दर हो गया था। लंड चूत में जाने के एहसास से कड़क एकदम कड़क हो गया था और मेरे शरीर को जाने कौन आसमान में ले उड़ रहा था। मैंने अपने आपको सम्हालने कि कोशिश करते हुए ऋतु से पूछा कि दर्द?

तो वो बोली- थोड़ा है लेकिन चलेगा और मेरे शेर मैंने अपने आपको सही हाथों में दिया है ये मैं महसूस कर रही हूँ। करते जाओ।

तो मैंने धीरे धीरे दबाव डालते हुए हलके हलके धक्के से लगाते हुए अपना लंड जड़ तक ऋतु की चूत में डाल दिया। लंड के सुपाड़े की खाल चिपकी होने से थोड़ा तकलीफ तो मुझको भी हुई। ऋतु ने अपने होंट भीच रखे थे और अपनी गर्दन को हाँ आने दो की मुद्रा में हिला रही थी। जैसे ही पूरा लंड अन्दर गया कि मैं अपने हाथों को आगे करता हुआ ऋतु के ऊपर आ गया कोहनी बिस्तर पर थी और घुटने भी मेरे शरीर का वजन सम्हाले हुए थे। ऋतु ने अपने हाथों से मेरी गर्दन को अपनी और भीचा और अपने होटों से मेरी गर्दन चूसने लगी, मैंने अपनी हथेलियाँ उसके बोबों पर रख दी।

गर्दन से कैसे बिजली शरीर में आती है ये मैंने जाना ऋतु के होटों की हर हरकत लाखों वोल्ट के झटके मुझे दे रहे थे मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। कंट्रोल कैसे होता है ये ना मैं जानता था और ना ही ऋतु। बस हम तो किए जा रहे थे जो मन में आ रहा था वो सब। लेकिन बस काम हो रहा था।

थोडी देर बाद मैंने ऋतु को रोका और कहा यार ऋतु ऊपर आ जाओ। और ऊपर से करो तो ऋतु ने बमुश्किल अपनी आँखें खोली और मेरे हटने के बाद जब मैं साइड में सोया तो वो ऊपर आ गई। अब मैंने एक बदमाशी की, ऋतु ने जब लंड को चूत में डालने को कहा तो मैंने कहा कि अब ये अपने आप अपनी चूत में डालो। अब तो तुमको पता है कि लंड को कैसे और कहाँ अन्दर जाना है।

ऋतु ने आँखें तरेरी लेकिन मैंने चेहरा दयनीय बनाते हुए कहा प्लीज तो वो मेरे ऊपर लेट गई और अपने कूल्हे थोड़ा ऊपर करके मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत पर लगा दिया और बोली कि अब तो थोड़ा सा सहयोग कर दो न !

तो मैंने उसके कूल्हों पर हाथ रखकर नीचे से अपने कूल्हे ऊपर उठाने शुरू किए तो फ़िर हम दोनों के मुँह से सीसाहट निकलने लगी तो ऋतु ने मेरे होंटों पर अपने होंट चिपका कर चूसना शुरू कर दिया। फ़िर तो मैंने ऋतु को कस कर भीच लिया। ऋतु आहें भरने लगी। और मेरे सीने से लग कर थोडी देर पड़ी रही। फ़िर मैंने अपने एक हाथ को नीचे फंसा कर उसके चूत पर लाकर हलके से उँगलियाँ उसकी चूत में फसें लंड के चारों और की चूत की दीवारों पर फेरने लगा। ऋतु मचलने लगी।

वो मेरा मुँह चाट गई और कूल्हों के हलके झटके देने लगी। मैंने दूसरे हाथ को उसके कूल्हों पर फेरने लगा। ऋतु पूरी तरह छटपटाने लगी और लम्बी लम्बी साँसों के साथ सिसकारी लेने लगी। अब मैंने अपने कूल्हे नीचे से धीरे धीरे चलाने शुरू किए। ऋतु भी अपने कूल्हों को चलाने लगी। मैंने ऋतु को कहा कि जान अपनी चूत को चक्की की तरह रगड़ते हुए चलाओ। पहले तो उस से अच्छे से नहीं हुआ लेकिन मैंने हाथों से उसके कूल्हों को रगड़ कर चलाने को बताता रहा तो वो चलाने लगी। कुछ ही देर में लम्बी आह भरकर उसका शरीर अकड़ गया मैंने नीचे से जोर जोर से धक्के लगाने शुरू किए अपने हाथ ऋतु की पीठ पर बाँध दिए और टांगों को ऋतु की टांगो पर दबा लिया। नीचे से जोर जोर से धक्के लगाता रहा तो ऋतु के मुँह से सिसकी के बाद फ़िर सिसकी निकलने लगी ज़रा देर में ही मैं भी पिचकारी मार कर निढाल हो गया। ऋतु अपने हाथ मेरे चेहरे के चारो और किए थी और मैं उसको पीठ पर से मेरे हाथ बांधे था। हम सो गए पता भी नहीं चला। लगभग आधे घंटे बाद ऋतु कि आँखें खुली। उसने ऊपर से मुझे हलके हलके गाल थपथपा कर जगाया। हम एक दूसरे के साइड में आ गए। अब तक मेरा लंड ऋतु की चूत में घुसा हुआ था। कड़क।

अब ऋतु मुझसे चिपकते हुए बोली राजा मैं कमरे में आई थी तो कमरे में ताजा खाने की खुशबू थी। खाना खिलाओ ना।

मैंने कहा कि हाँ ऋतु कल दोपहर के बाद अब भूख लगी है। ठीक है खाना लगाओ। हमने अपने अंडरवियर पहने और बिस्तर पर अखबार बिछा कर ऋतु ने खाना सजाया। ऋतु को मैंने अपनी गोद में बिठा लिया और कल के जैसे ही एक दूसरे को खाना खिलाते रहे।

ऋतु को मैंने कहा – जान ट्रिप कैसा रहा। तो ऋतु बोली जय तुम्हारे गुरूजी की मजा आ गया और वो भी ऐसा कि अब एक राउंड और करेंगे। मान गई राजा हल्का सा दर्द हुआ और मजा तो ट्रक भरकर आया। आखिर में तो जब तुमने मुझको बाँहों में कस कर धक्के मारे तो मुझको तो जाने कितनी बार हो गया। फ़िर कल भी ४ घंटे मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी……

मैंने उमेश से उसकी मंशा जानी कि लड़की का क्या करोगे।

तो बोला यदि उसकी इच्छा होगी तो शादी कर लेंगे। देखेंगे…।। वो बोले तो सही…।

और सर मैं जानता हूँ कि उस से अच्छी लड़की मुझको ढूंढे से मिलनी मुश्किल ही है, वैसे अगर वो ना भी बोली तो मैं लड़का होने के नाते पहल करूँगा और मुझको पूरा विश्वास है कि वो मना नहीं करेगी…………।।

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