मेरी मम्मी की जवानी की कहानी-1

(Meri Mammi Ki Jawani Ki Kahani- Part 1)

नमस्कार दोस्तो।
मैं किंग आपके सामने फिर से हाज़िर हूँ अपनी सच्ची कहानी के साथ।
पहले तो मैं आप का दिल से शुक्रिया करना चाहता हूँ कि अपने मेरी पिछली कहानियों
जवानी की प्यास ने क्या करवा दिया
जिगोलो बन कर भाभी की जवानी की प्यास बुझाई
को इतना पसंद किया।

तो वक़्त खराब न करते हुए सीधे उस बात पर आता हूँ जो आप महसूस करना चाहते हैं।
अभी तक अपने पढ़ा था कि जब मैं भाभी को जन्नत की सैर करवा रहा था तो छाया ने लाइट जला दी और वो भाभी और कोई नहीं, मेरी सगी माँ पूनम थी। और वो बताने लगी कि कैसे पूनम के दोनों भाइयों यानि मेरे चाचा ने मेरी कली जैसी माँ को फूल बनाया।

आगे की कहानी माँ के शब्दों में:

मेरा नाम पूनम है और मैं दिल्ली के करावल नगर इलाके में रहती हूँ। हमारा इलाका थोड़ा पिछड़ा हुआ था जहाँ लड़कियों की जल्दी शादी हो जाती थी। मुझे सेक्स में कोई खास रुचि नहीं थी। मेरी शादी गाज़ियाबाद में एक अच्छे परिवार में हुई। मेरी उम्र तब लगभग 18 साल की थी और मेरा शरीर खूबसूरत था।

मेरे पति 3 भाई थे और हम सब एक ही घर में रहते थे। सास तो बहुत पहले खत्म हो चुकी थी और ससुर जी बैंक से रिटायर्ड थे. वे अपना ज़्यादातर समय पूजा पाठ में बिताते थे।

मेरी सुहागरात में बहुत खुश थी क्योंकि सहेलियों ने बताया था कि सेक्स में बहुत मज़ा आता है. पर जब तुम्हारे पापा ने सुहागरात पर मेरे साथ किया तो मुझे सब नार्मल लगा। अब वो रोज़ रात को मेरे साथ सेक्स करते और मैं ये सोचती कि सब बोलती थी कि बहुत मज़ा आता है पर मुझे तो कभी करने का अपनी तरफ से मन ही नहीं किया। मैं तो ये सोचती थी कि क्यों रोज़ नंगे होते है। ना खुद सोते हैं और न सोने देते हैं … फालतू में गीला कर देते हैं।

फिर एक दिन मेरी ननद छाया मेरे घर आई। मुझे छाया पर बहुत गुस्सा आता था क्योंकि वो हमेशा सेक्स की बात करती थी और कभी मेरी छाती या चूतड़ों पर हाथ मार देती थी मज़ाक में।
हद तो तब हुई जब एक बार मैं नहा रही थी तो बाथरूम में आवाज़ मारने लगी कि एक मिनट गेट खोलो ज़रूरी काम है।
मैं अपने शरीर पर तौलिया लपेट कर खड़ी हो गयी तो ये मैडम जी अंदर आयी और अंदर से कुंडी लगा के मेरे सामने सूसू करने लगी।

मुझे बहुत शर्म आ रही थी तो मैंने पूछ लिया- क्यों मुझे परेशान करती हो?
छाया- भाभी, आपका शरीर बहुत खूबसूरत है. सच बताओ भैया कितना परेशान करते हैं?

मेरे लिए तो सेक्स का मतलब एक बार करना होता था और वो भी मुझे बोझ लगता था तो मैंने बता दिया कि बहुत परेशान करते हैं और अंदर से रोज़ गीला करते हैं।
पहले तो वो खुश थी कि रोज़ सेक्स करते हैं. पर जब उसे पता चला कि रोज़ सिर्फ एक बार करते है और वो भी 2-3 मिनट के लिए तो वो समझ गयी कि मुझे सेक्स के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता।
छाया- भाभी, बुरा न मानो तो क्या आज हम साथ में नहा सकती हैं?

मेरा मन नहीं था मुझे शर्म आती है तो मैंने बहाना बनाया- दीदी आपके कपड़े नहीं हैं; और मैं नहा ही चुकी हूँ, जब तक आप कपड़े लेकर आओगी, मैं बाहर आ जाऊँगी, तब आप तसल्ली से नहा लेना।
पर छाया के दिमाग में तो कुछ और ही था।

वो बिल्कुल नंगी हो गयी और मुझसे पीछे से चिपक कर मेरा तौलिया हटाने लगी। मैंने शर्म से आंखें बंद कर ली। दिल में रो रही थी पर ससुराल था और न चाहते हुए भी ननद की बात माननी पड़ रही थी।

उसने सारे कपड़े टांग दिए और शावर चला दिया। मैं शर्म से नीचे मुँह कर के खड़ी थी और अचानक से उसने अपने होंठ मेरे कान के पीछे लगा दिए और मेरा कान और उसके पीछे का हिस्सा चूमने और चाटने लगी।
मुझे गुदगुदी सी हो रही थी पर अच्छा भी लग रहा था और शर्म भी आ रही थी। छाया ने पीछे से मुझे बांहों में भर लिया और मेरे चुचों से खेलने लगी। उसके चुचे मेरी पीठ में चुभ रहे थे। उसका नीचे का हिस्सा भी मेरे चूतड़ों से चिपक हुआ था। मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था.

अचानक एक आवाज़ आयी- कैसा लग रहा है भाभी?
शायद अब मेरा शरीर छाया के बस में था। मुझे शर्म नहीं आ रही थी, बस ऐसा लग रहा था कि छाया ऐसे ही पकड़ कर मुझे भिगोती रहे।

मैं कुछ जवाब नहीं दे पाई, बन्द आंखों से सिर्फ हल्की की मुस्कुराहट दिखा दी।

वो मेरे आगे आ गयी और मुझे दीवार के सहारे खड़ा कर के अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। मैं नहीं जानती मुझे सब कुछ इतना अच्छा क्यों लग रहा था। वो रोज़ सेक्स करते है पर वो बोझ लगता है और आज छाया की हर चीज़ अच्छी लग रही थी। जिस छाया को मैं खुद से दूर करना चाहती थी, आज उस छाया के इतनी नज़दीक हूँ कि हमारी सांसें, होंठ, छाती, पेट, सूसू सब बिल्कुल चिपके हुए हैं।

वो मेरे चुचे सहला रही थी, मेरा हाथ भी उसकी पीठ पर चल रहा था. पर मुझे नहीं पता था कि मुझे करना क्या है. मैंने तो अनजाने में एक उंगली छाया की सूसू पर रख दी।
उसकी आवाज आई- आआआआ आ…ह हहह भाभी।
और हंसने लगी।

मैं होश में आई कि मैं किस दुनिया में चली गयी थी और क्या पाप कर रही थी. और छाया हंस रही थी। मैं तौलिया उठाने के लिए हाथ बढ़ाने लगी पर छाया ने मुझे पीछे धक्का दिया और अचानक बैठ कर मेरे सूसू में अपना मुंह लगा दिया।
“छी: दीदी … ये गंदी होती है आप क्या क…र …” मैं अपनी पूरी बात नहीं बोल पाई … पता नहीं वो क्या नशा कर रही थी, मेरी आँखें अपने आप बन्द हो गयी. उसने एक उंगली अंदर डाल दी थी और लगातार जीभ घुमा रही थी।

मुश्किल से 1 मिनट हुआ होगा कि मेरा शरीर कांपने लगा। मन कर रहा था जोर से चिल्लाने लग जाऊं … पर बाहर कोई भी हो सकता था और मेरी सूसू छाया के मुँह पर ही निकल गयी।
“माफ कर दो दीदी, मैंने आपको गन्दा किया। मुझे पता नहीं चला कि सूसू आ रही है। अचानक से आ गयी और निकल भी गयी। माफ कर दो दीदी।”
“आप बहुत भोली हो भाभी … आपको तो ये भी नहीं पता कि आप सूसू नहीं कर रही थी, आप अपना वीर्य छोड़ रही थी। स्खलित हो रही थी आप!”
“मतलब?”

“मतलब कुछ नहीं … आज मुझे समझ आया कि आपको सेक्स से नफरत क्यों है?”
“गन्दा होता है तो नफरत तो होगी न!”
“मेरी मासूम भाभी, अब नहा ली हो तो बाहर चलो बाहर ही बात करेंगे क्योंकि छोटे भैया को भी काम पर जाना है और हमें बहुत ज़्यादा देर हो गयी है.” छाया ने बात काटते हुए कहा जो सही भी था।

छाया ने जो कपड़े पहने थे, वो ही पहन लिए और मैंने भी अपने कपड़े पहने.

और जैसे ही बाथरूम का गेट खोला, बड़े भैया मतलब तेरे बड़े चाचा अंडरवियर में सामने खड़े थे और नहाने का इंतज़ार कर रहे थे।

हम साथ में बाहर निकले थे और क्योंकि मैं उनकी भाभी थी तो उन्होंने मुझे मज़ाक में टोकते हुए कहा- मैं भी अकेला नहाने जा रहा हूँ, मेरे साथ भी नहा लो भाभी।
मैं शर्म से लाल थी तो कुछ नहीं बोली और चुपचाप पूजा करके रसोई में जाकर खाना बनाने जाने लगी।

बस मन में ये सोच रही थी कि क्या स्खलित? क्या होता है ये कि मेरी सूसू निकल गयी और मुझे पता भी नहीं चला।
छाया ने मुझे पीछे से फिर से बांहों में लिया, तब मेरा सपना टूटा।

“दीदी स्खलित क्या होता है?”
“भाभी इसका जवाब एक शर्त पर दूंगी?”
“शर्त? कैसी शर्त??”
“आपको बीच वाले भैया से सेक्स करना होगा.”
“नहीं दीदी, ये पाप हैं और वो उनके छोटे भाई हैं, आप कैसी बात कर रही हो?”

“भाभी आपको कुछ नहीं पता; आप अभी तक कुंवारी हो। आपको लगता है कि बड़े भैया रोज़ आपसे सेक्स करते हैं पर सेक्स आपके साथ आज तक नहीं हुआ. इसीलिए मेरा छूना आपको इतना अच्छा लगा।” छाया एक सांस में बोल गयी।

वैसे बड़े देवर जी देखने में भी इनसे अच्छे हैं और हंसमुख भी हैं पर मैं कैसे बोलूंगी और कहीं किसी को पता चल गया?
और ये पाप भी तो है कि अपने ही देवर के साथ?

“नहीं नहीं दीदी; मुझसे नहीं हो पायेगा।”
“देखो भाभी, अगर करना ही है तो सब मैं करवा दूंगी क्योंकि भैया का भी मन है. ये उनके तौलिये में बना हुआ तंबू बता रहा था। और अगर आपको लगता है कि पाप है तो रहने दो मत करो. पर अब मेरा मन कर रहा है तो मैं तो करूँगी आपके साथ।”

वैसे तो मुझे अच्छा लग रहा था छाया के साथ पर मैं बेशर्म नहीं थी। मेर मना करने पर भी उसने अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए और धीरे धीरे अपनी जीभ मेरे होंठों पर फेरने लगी। छाया जादूगरनी थी शायद जो चुटकियों में ही मेरी आँखें बंद हो गयी और हमारे हाथ एक दूसरे की छाती दबाने लगे थे।

अचानक आयी एक खांसी ने हमें जोर का झटका दिया।
“छोटे भैया आप?” एक साथ हमारे मुँह से निकला।

छाया तो शर्म से चली गयी बाहर … पर मेरा तो ससुराल था मैं मुंह झुका के खड़ी हो गयी क्योंकि मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। मेरे आंसू मेरे गाल से होते हुए मेरी छाती पर गिर रहे थे।

“भाभी, आप बहुत खूबसूरत हो। इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से समझ सकती हो कि लड़के तो लड़के लड़की भी आपके होंठ चूसना चाहती है। और जब आज तक आपको सुख मिला ही नहीं तो आपका भी हक़ है कि आपको जीवन की हर खुशी मिलनी चाहिए। मुझे पता चल चुका है कि भैया कुछ करने लायक नहीं है पर मैं आपको हर खुशी दे सकता हूँ।” ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरे होंठ पे एक छोटा सा किस किया जो मेरे अंदर भरोसा जगा गया कि ये बात किसी को पता नहीं चलेगी।

“तो चलें भाभी? काम शुरू करें?”
“नहीं भैया, अभी सब हैं, आप दिन में आ जाना। सब काम पर होते हैं और पिताजी सो जाते हैं।” पता नहीं कैसे मेरे मुँह से निकल गया। मैं तो मना करना चाहती थी और खुद दिन के लिए बोल दिया।
“ठीक है भाभी!” कहकर जाते हुए उन्होंने एक हाथ से मेरी चुची मसल दी।

सब काम पर चल गए थे. दिन में मैं और छाया बात कर रहे थे कि अचानक छोटे भैया आ गये। सच तो यह है कि आज मैं भी देवर जी का इंतज़ार कर रही थी क्योंकि मैं जानना चाहती थी सूसू मतलब स्खलित क्या होता है?
क्योंकि छाया को सब कुछ पता ही था तो छाया बाहर चली गयी और किसी से फ़ोन पर बात करने लगी।

कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का दूसरा भाग: मेरी मम्मी की जवानी की कहानी-2

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