मुम्बई की गंध-2

फ़ुलवा 2009-10-12 Comments

तीन फुट ऊंचे, संगमरमर के फर्श पर, बहुत कम कपड़ों में, चीखते आर्केस्ट्रा के बीच वह लड़की हंस हंस कर नाच रही थी। बीच-बीच में कोई दस-बीस या पचास का नोट दिखाता था और लड़की उस ऊंचे, गोल फर्श से नीचे उतर लहराती हुई नोट पकड़ने के लिए लपक जाती थी।

कोई नोट उसकी वक्षरेखा के बीच में ठूंस देता था, कोई होंठों में दबा कर होंठों से ही लेने का आग्रह करता था और नोट बड़ा हो तो लड़की एक या दो सैकेंड के लिए गोद में भी बैठ जाती थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उत्तेजना वहाँ शर्म पर भारी थी और वीभत्स मुस्कराहटों के उस वनैले परिदृश्य में सहानुभूति या संवेदना का एक भी कतरा शेष नहीं बचा था। पैसे के दावानल में लड़की सूखे बांस सी जल रही थी।

उस जले बांस की गंध से कमरे का मौसम लगातार बोझिल और कसैला होता जा रहा था। मैं उठ खड़ा हुआ।

“नीचे बैठेंगे।” मैंने अल्टीमेटम सा दिया।

“क्यों?”

“मुझे लगता है, लड़की मेरी धमनियों में विलाप की तरह उतर रही है।”

‘शरीफ बोले तो? चुगद!” रतन ने कहकहा उछाला और हम सीढ़ियां उतरने लगे।

नीचे वाले हॉल का एक अंधेरा कोना हमने तेजी से थाम लिया, जहां से अभी अभी कोई उठा था- दिन भर की थकान, चिढ़, नफरत और क्रोध को मेज पर छोड़कर, घर जाने के लिए।

मुझे घर याद आ गया। घर यानी मालाड के एक सस्ते गैस्ट हाउस का दस गुना दस का वह उदास कमरा जहां मैं अपनी आक्रामक और तीखी रातों से दो-चार होता था। मुझे लगा, मेरी चिट्ठी आई होगी वहाँ, जिसमें पत्नी ने फिर पूछा होगा “घर कब तक मिल रहा है यहाँ?”

मैं फिर बार में लौट आया। हमारी मेज पर जो लड़की शराब सर्व कर रही थी, वह खासी आकर्षक थी। इस अंधेरे कोने में भी उसकी सांवली दमक कौंध कौंध जाती थी।

डीएसपी के दो लार्ज हमारी मेज पर रख कर, उनमें सोडा डाल वह मुस्कराई,”खाने को?”

“बॉइल्ड एग !” रतन ने उसके उभारों की तरफ इशारा किया।

“धत्त।” वह शरमा गई और काउंटर की तरफ चली गई।

“धांसू है न?” रतन ने अपनी मुट्ठी मेरी पीठ पर मार दी।

“हां ! चेहरे में कशिश है।” मैं एक बड़ा सिप लेने के बाद सिगरेट सुलगा रहा था।

“सिर्फ चेहरे में?” रतन खिलखिला दिया।

मुझे ताज्जुब हुआ। हर समय खिलखिलाना इसका स्वभाव है या इसके भीतरी दुख बहुत नुकीले हो चुके हैं? मैंने फिर एक बड़ा सिप लिया और बगल वाली मेज को देखने लगा जहां एक खूबसूरत सा लड़का गिलास हाथ में थामे अपने भीतर उतर गया था।

किसी और मेज पर शराब सर्व करती एक लड़की बीच बीच में उसे थपथपा देती थी और वह चौंक कर अपने भीतर से निकल आता था। लड़की की थपथपाहट में जो अवसाद ग्रस्त आत्मीयता थी उसे महसूस कर लगता था कि लड़का ग्राहक नहीं है। इस लड़के में जीवन में कोई पक्का सा, गाढ़ा सा दुख है। मैंने सोचा।

“इस बार में कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है।” रतन के भीतर सोया गाइड जागने लगा,”फाइट सीन ऊपर होते हैं, सैड सीन नीचे।”

“हम दुखी दृश्य के हिस्से हैं?” मैंने पूछा और रतन फिर खिलखिलाने लगा।

शराब खत्म होते ही लड़की फिर आ गई।

“रिपीट।” रतन ने कहा, “बॉयल्ड एग का क्या हुआ?”

“धत्त।” लड़की फिर इठलाई और चली गई।

उसके बाद मैं ध्वस्त हो गया। मैंने कश लिया और लड़की का इंतजार करने लगा।

लड़की फिर आई। वह दो लार्ज पैग लाई थी। बॉयल्ड एग उसके पीछे-पीछे एक पुरुष वेटर दे गया।

अंडों पर नमक छिड़कते समय वह मुस्करा रही थी। सहसा मुझसे उसकी आँख मिली।

“अंडे खाओगी?” मैंने पूछा।

मैंने ऐसा क्यों पूछा होगा? मैंने सोचा। मैं भीतर से किसी किस्म के अश्लील उत्साह से भरा हुआ नहीं था। तो फिर?

तभी लड़की ने अपनी गर्दन हां में हिलाई, मेरे भीतर एक गुमनाम, अजाना सा सुख तैर गया।

“ले लो।” मैंने कहा।

उसने एक नजर काउंटर की तरफ देखा फिर चुपके से एक साथ दो टुकड़े उठाकर मुँह में डाल लिए। अंडे चबा कर वह बोली, “यहाँ का चिली चिकन बहुत टेस्टी है, मंगवाऊ?”

“मंगवा लो।” जवाब रतन ने दिया, “बहुत अच्छी हिंदी बोलती हो ! यूपी की हो?”

लड़की ने जवाब नहीं दिया। तेजी से लौट गई। मुझे लगा, रतन ने शायद उसके किसी रहस्य पर उंगली रख दी है।

चिली चिकन के पीछे पीछे वह फिर आई। इस बार अपने कपड़ों की किसी तह में छिपा कर वह एक कांच का गिलास भी लाई थी।

“थोड़ी सी दो न?” उसने मेरी आंखों में देखते हुए बड़े अधिकार और मान भरे स्वर में कहा।

उसके शब्दों की आंच में मेरा मन तपने लगा। मुझे लगा, मैं इस लड़की के तमाम रहस्यों को पा लूंगा। मैंने काउंटर की तरफ देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। दरअसल उस वक्त मैं लड़की को तमाम तरह की आपदाओं से बचाने की इच्छा से भर उठा था। अपनी सारी शराब उसके गिलास में डाल कर मैं बोला, “मेरे लिए एक और लाना।”

एक सांस में पूरी शराब गटक कर और चिकन का एक टुकड़ा चबा कर वह मेरे लिए शराब लेने चली गई। उसका खाली गिलास मेज पर रह गया। मैं चोरों की तरह, गिलास पर छूटे रह गए उसके होंठ अपने रूमाल से उठाने लगा।

“भावुक हो रहे हो।” रतन ने टोका।

मैंने चौंक कर देखा, वह गंभीर था।

हमारे दो लार्ज खत्म करने तक, हमारे खाते में वह भी दो लार्ज खत्म कर चुकी थी।

मैंने “रिपीट !” कहा तो वह बोली,”मैं अब नहीं लूंगी। आप तो चले जाएंगे। मुझे अभी नौकरी करनी है।”

मेरा नशा उतर गया। धीमे शब्दों में उच्चारी गई उसकी चीख बार के उस नीम अंधेरे में कराह की तरह कांप रही थी।

“तुम्हारा पति नहीं है?” मैंने नकारत्मक सवाल से शुरूआत की, शायद इसलिए कि वह कुंआरी लड़की का जिस्म नहीं था, न उसकी महक ही कुंवारी थी।

“मर गया।” वह संक्षिप्त हो गई- कटु भी। मानो पति का मर जाना किसी विश्वासघात सा हो।

“इस धंधे में क्यों आ गई?” मेरे मुंह से निकल पड़ा। हालांकि यह पूछते ही मैं समझ गया कि मुझसे एक नंगी और अपमानजनक शुरूआत हो चुकी है।

“क्या करती मैं?” वह क्रोधित होने के बजाय रूआंसी हो गई,”शुरू में बर्तन मांजे थे मैंने, कपड़े भी धोए थे अपने मकान मालिक के यहाँ। देखो, मेरे हाथ देखो।” उसने अपनी दोनों हथेलियाँ मेरी हथलियों पर रगड़ दीं। उसकी हथेलियां खुरदुरी थीं-कटी फटी।

“इन हथेलियों का गम नहीं था मुझे जब आदमी ही नहीं रहा तो…” वह अपने अतीत के अंधेरे में खड़ी खुल रही थी,”बर्तन मांज कर जीवन काट लेती मैं लेकिन वहाँ भी तो…” उसने अपने होंठ काट लिए।

उसे याद आ गया था कि वह “नौकरी” पर है और रोने के लिए नहीं, हंसने के लिए रखी गई है।

“और पीने का?…” वह पेशेवर हो गई, कठोर भी।

“मैं तुम्हारे हाथ चूम सकता हूं?” मैंने पूछा।

“हुंह.. !” लड़की ने इतनी तीखी उपेक्षा के साथ कहा कि मेरी भावुकता चटख गई। लगा कि एक लार्ज और पीना चाहिए।

अपमान का दंश और शराब की इच्छा लिए, लेकिन मैं उठ खड़ा हुआ और रतन का हाथ थाम बाहर चला आया।

पीछे, अंधेरे कोने वाली मेज पर, चिली चिकन की खाली प्लेट के नीचे सौ-सौ के तीन नोट देर तक फड़फड़ाते रहे- उस लड़की की तरह।

बाहर आकर गाड़ी के भीतर घुसने पर मैंने पाया- उस लड़की की गंध भी मेरे साथ चली आई है।

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category Hindi Sex Story or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

मुम्बई की गंध-2

Comments

Scroll To Top