दोस्त की कुंवारी बीवी को सेक्स का मजा दिया- 3

(Bhabhi Chudai Hindi Kahani)

हर्षद मोटे 2022-01-24 Comments

भाभी चुदाई हिंदी कहानी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपने गांडू दोस्त की कुंवारी बीवी की चूत चुदाई करके उसे सेक्स का मजा दिया. मेरा दोस्त उसे ठीक से चोद नहीं पाया था.

दोस्तो, मैं हर्षद सरिता भाभी की चुत चुदाई की कहानी में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत करता हूँ.
भाभी चुदाई हिंदी कहानी के पिछले भाग
दोस्त की कुंवारी बीवी की सील तोड़ी
में अब तक आपने पढ़ा था कि सरिता भाभी अपनी चुत में हाथ लगा कर देखने लगीं.
लंड चुत में पूरा घुसा देख कर उनकी बांछें खिल गई थीं.

अब आगे भाभी चुदाई हिंदी कहानी:

‘हर्षद कितना मस्त चोदते हो तुम … एक अनुभवी खिलाड़ी के जैसे. मुझे शुरू शुरू में बहुत ज्यादा दर्द हुआ. तुम्हारे मोटे लंड ने मेरी चुत भी फाड़ दी. लेकिन अभी मजा भी आ रहा है. मुझे तो यकीन नहीं होता था कि तुम्हारा ये मूसल जैसा लंड मेरी चूत में पूरा घुस जाएगा.’
मैंने कहा- अभी तो चुदाई चल रही है रानी.

वो- हां अब आधा घंटा हो गया है, तुम अभी भी मेरी चुत चुदाई कर रहे हो. अब तक मैं तीन बार झड़ चुकी हूँ. लेकिन तुम एक बार भी नहीं झड़े हो हर्षद. तुम चुदाई में बहुत उस्ताद हो. अब तक कितनी चुतों को पानी पिलाया है हर्षद … तुम्हारे मोटे लंड से कौन औरत चुदना नहीं चाहेगी. एक बार चुदेगी तो बार बार वो चुदवाने को तुम्हारे पास ही आएगी.

ये बातें सुनकर मैंने कहा- सरिता तुम आम खाओ, पेड़ क्यों गिनती हो.
इतना कहते मैंने सरिता की दोनों चुचियों को बारी बारी से चूसा और उसके एक चूचुक को दांतों से काटने लगा.

सरिता कसमासने लगी और सिसकारियां लेने लगी.
वो पूरी कामवासना से सुलग रही थी. वो अपने दोनों हाथों से मेरी गांड को दबाने लगी थी.

बीच में ही वो मेरी गांड की दरार में अपनी उंगलियां घुमाने लगी और गांड के छेद को अपनी उंगलियों से टटोलने लगी.
नीचे से वो अपनी गांड ऊपर उठाकर मेरे लंड पर दबाव भी डालने लगी.

अब मैं भी बहुत कामुक हो गया था, मेरा लंड सरिता की चूत में ही फड़फड़ाने लगा था.

मैंने फिर से घुटनों के बल बैठकर सरिता की दोनों टांगों अपने कंधे पर रख लिया और लंड बाहर निकालकर फिर अन्दर डालने लगा.

अब मैं धक्के मारने की स्पीड आहिस्ता आहिस्ता बढ़ाने लगा था तो सरिता के मुँह से कामुकता भरी गर्म सिसकारियां निकलने लगी थीं.
साथ में लंड और चुत गीली होने के कारण पचा पच की आवाज रूम में गूंजने लगी थी.

पूरा रूम कामवासना से भरा था.
हम दोनों भी और जोश में आ गए थे.

सरिता अपनी गांड उठा उठाकर लंड अन्दर ले रही थी.

मुझसे अब रहा नहीं गया, मैं पूरी ताकत से धक्के मारने लगा.

मेरे इन धक्कों को सरिता सह नहीं पा रही थी. वो चिल्लाने लगी थी लेकिन मैं पूरे जोश में था.

सरिता के चिल्लाने को मैंने नजरअंदाज कर दिया.
मैं लगातार जोरदार धक्कों के साथ पिला पड़ा था और मेरा लंड सरिता की चुत की दीवारें चीरकर सीधा जाकर गर्भाशय को टटोलने लगा था.

इस तरह दस मिनट की पलंगतोड़ चुदाई के बाद सरिता बोली- हर्षद, अब झड़ने वाली हूँ. मुझे बहुत दर्द हो रहा है. कितना जोर से ठोकते हो हर्षद!
मैंने कहा- अब मैं भी झड़ने वाला हूँ सरिता. दर्द होगा ही लेकिन तुम्हारी चुत की प्यास भी बुझानी है ना रानी.

“हां हर्षद तुम अपना अमृत मेरी चूत में ही छोड़ना. मैं ये सुनहरा पल महसूस करना चाहती हूँ मेरे राजा.”

इस तरह हम दोनों ही चरम सीमा पर पहुंच गए थे.
कुछ अंतिम धक्के मारने के बाद सरिता शरीर अकड़ने लगा था. उसकी चूत बहुत जोर से मेरा लंड अन्दर खींचने लगी थी.

अब वो फिर से झड़ने जा रही थी. उसके मुँह से जोर से सिसकारियां निकलने लगी थी.

सरिता बोली- आंह हर्षद अब मैं आ रही हूँ.
मैंने भी कहा- सरिता मैं भी आ रहा हूँ.

मैंने लगातार दस बारह जोरदार धक्के लगाए और उसी वक्त सरिता झड़ने लगी.
उसी वक्त धक्के देता हुआ मैं भी झड़ गया.
मैंने पूरी ताकत से लंड अन्दर पेल दिया और झड़ने लगा.

सरिता की टांगें मैंने अपने कंधे से नीचे लेकर दोनों बाजू में फैला दीं और मैं उसके ऊपर झुक गया.

वह भी मुझे अपने ऊपर खींचने लगी.

मैंने अपने हाथ उसकी पीठ के नीचे डालकर उसे अपनी बांहों में कस लिया.

सरिता ने भी अपने हाथों से मुझे कस कर जकड़ लिया और अपनी टांगों से मेरी गांड को जकड़ लिया.

वो पूरा दबाव अपनी चुत पर बनाए हुई थी. हम दोनों ही निढाल होकर एक दूसरे की बांहों में पड़े थे.

हम दोनों आंखें बंद करके जोर जोर से सांसें भी ले रहे थे.
उधर सरिता अपनी चुत अन्दर खींचकर मेरे लंड का रस पूरी तरह से निचोड़ रही थी.
मैंने भी लंड को आगे पीछे करके साथ दिया.

दस मिनट ऐसे ही लेटे रहे. फिर मैंने सर उठाकर सरिता के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

सरिता आंखें खोल दीं. उसकी आंखों में खुशी की चमक दिख रही थी. चेहरे पर अलग सी खुशियां दिख रही थीं.

सरिता मेरे होंठों को चूसती हुई बोली- हर्षद मेरे राजा, अब कैसे बताऊं तुम्हें … तुमने कितनी खुशी मुझे दी है. बरसों से प्यासी मेरी चुत को तुमने अपने लंड का अमृत पिलाकर प्यास बुझा दी है. तुमने सच में आज कली का फ़ूल बना दिया. तुमने तो चोद चोदकर मुझे बेहाल कर दिया लेकिन उतना सुख भी दिया जो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. मैं तुम्हें जिंदगी भर नहीं भुलूंगी. अब ये मेरी चुत तुम्हारे लंड की दीवानी हो गयी है. अब ये सिर्फ तुम्हारी ही है.

मैंने सरिता से कहा- इतना अहसान मत जताओ. तुमने भी मुझे सब कुछ अर्पण किया है. बहुत सुख दिया है मुझे. पहली बार इतनी कसी हुई और टाईट चुत चोदने को मिली है सरिता. मैं बहुत खुश हूँ. मेरे लंड में भी बहुत दर्द हो रहा है सरिता. तुमने मेरा बहुत ही ज्यादा साथ दिया है. मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगा. आज का ये सुनहरा पल हमें जिंदगी भर याद रहेगा.

इतना कहकर मैं सरिता से अलग हो गया. मेरे लंड कड़ापन कम हो गया था.

हम दोनों एक दूसरे से बांहें खोलकर आजाद हो गए.
मैं घुटनों के बल आ गया और आहिस्ता से अपना लंड सरिता की चुत से बाहर निकाला.

हम दोनों का कामरस खून के साथ घुलमिल कर बाहर बहने लगा.
सरिता उठकर अपने दोनों पैरों के बल बैठ गई और नीचे झुककर देखने लगी.

वो आश्चर्य से बोली- हर्षद, इतना सारा कामरस और ये खून के धब्बे भी … मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि इतना सारा अमृत तुम्हारे लंड और मेरी चुत से निकला है. मैं तो पहली बार ये सब देख रही हूँ हर्षद. ये सब मैंने तुम्हारी वजह से देखा और अनुभव किया है.
मैंने कहा- सरिता, ये कुछ भी नहीं है. अगर मैं दो बार तुम्हारी चुत का रस न पीता, तो तुम्हारा आधा गाउन भीग जाता. बहुत टेस्टी था तुम्हारा चुतरस.

तभी सरिता बोली- हर्षद, तुम्हारा अमृत तो कितना गाढ़ा है, मलाई जैसा … बहुत ही बढ़िया है.
वो मेरे लटकते हुए लंड को अपने हाथ में लेकर देखने लगी.

मेरे सुपारे पर लगे वीर्य को देखकर उससे रहा नहीं गया, सरिता ने सुपारे पर लगे वीर्य को अपनी जीभ से चाट कर पूरा सुपारा साफ कर दिया.

वो लंड चाटती हुई बोली- हाय हर्षद, कितना मीठा और मलाईदार है तुम्हारा अमृत.

जैसे ही मेरे सुपारे को सरिता ने चाटा … मेरे अन्दर पूरे शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी.

मैंने सरिता को ऊपर उठाया और अपनी बांहों में कस लिया.
वो भी मुझे अपने बांहों में कसकर चुम्बन करने लगी.

नीचे मेरा लंड उसकी चुत पर टकरा रहा था तो सरिता कसमसायी और मुझसे अलग होकर घड़ी देखने लगी.

दोपहर को बारह बजने को आए थे.

“हर्षद अब बहुत देर हो गयी है. मुझे खाना भी बनाना है.”

मैं भी सरिता से अलग हो गया.
सरिता ने अपना भीगा हुई गाउन समेट लिया और मेरे लंड को पौंछकर साफ कर दिया.

उसी से अपनी चुत और जांघों को पौंछकर साफ कर दिया.
वो मेरे लंड को एक हाथ से पकड़ खींचती हुई बोली- चलो जल्दी से नहा लेते हैं.

लेकिन सरिता को चलना भारी पड़ रहा था, दर्द की वजह से वो ठीक से चल नहीं पा रही थी.

मैंने उसका एक हाथ अपने कंधे पर रखा और अपना दूसरा हाथ उसकी कमर में डालकर उसे सहारा दिया.
हम दोनों बाथरूम में आ गए.

सरिता ने गाउन धोने के लिए बाल्टी में डाल दिया और उस पर पानी छोड़कर भीगने रख दिया.

मैंने शॉवर चालू कर दिया और सरिता से चिपककर शॉवर के नीचे खड़ा हो गया.
हम दोनों एक दूसरे को नहलाने लगे.

सरिता बोली- हर्षद, मेरी जांघों में और चूत में बहुत दर्द हो रहा है. चलने में बहुत मुश्किल हो रही है.
मैंने सरिता से कहा- तुम चिंता मत करो मैं हूँ ना!

मैंने उसे प्लास्टिक के स्टूल पर बिठाया और गीजर चालू कर दिया.
एक बाल्टी में गर्म पानी भर लिया और अपना अंडरपैंट गर्म पानी में भीगो कर सरिता की चुत और जांघों को सेंकने लगा.

सरिता की चुत को मैंने गौर से देखा तो चुत में सूजन आ गयी थी, फूल गयी थी.

थोड़ी देर बाद सरिता को थोड़ा सा आराम लग रहा था.

अब हम दोनों ने एक दूसरे को साबुन लगाकर अच्छी तरह से नहलाना शुरू कर दिया.
सरिता मेरे लंड को अपने दोनों हाथों में लेकर बड़े प्यार से नहला रही थी और मैं अपने हाथों से सरिता की चुत को गर्म पानी से नहला रहा था.

फिर सरिता ने शॉवर बंद कर दिया और हम दोनों ने एक दूसरे को तौलिये से अच्छी तरह से पौंछा.
हम नंगे ही बाहर आ गए.

मैंने सरिता को बेड पर बिठाया और रुकने को कहा.
मैं अपने रूम में जाकर क्रीम ले आया.
सरिता टांगें फैलाकर बैठ गई और मैंने अपने हाथ से उसकी चुत पर बाहर और अन्दर क्रीम लगा दी.

फिर मैंने उसको कपड़े पहनने को कहा.
मैं अपने कमरे में जाकर अपनी जांघिया पहनकर बाहर आ गया.

सरिता ने नीली पैंटी ब्रा पहनी थी. मुझे जांघियां में देखकर वो शर्मा गयी.
मैंने आपनी लुंगी उठाकर पहन ली और टी-शर्ट भी पहन लिया.

फिर वापस अपने रूम में जाकर बैग से एक पेन किलर गोली और पानी का गिलास लेकर आया तो सरिता अल्मारी में कुछ खोज रही थी.

मैंने आवाज देकर सरिता को बुलाया और गोली देकर कहा- इसे ले लो, अभी कुछ देर में तुम्हें आराम मिल जाएगा.

मैं पानी का गिलास उसको दिया.

सरिता ने बिना कुछ पूछे गोली ले ली और बोली- हर्षद, तुम मेरा कितना ख्याल रखते हो.

मैंने कहा- सरिता अब तुम मेरी हो ना … तो तुम्हारा ख्याल रखना मेरा कर्तव्य है. फिर ऐसा मत कहना सरिता.

तब मैंने पूछा- वैसे सरिता तुम अलमारी में क्या ढूँढ रही थी.
सरिता बोली- अरे वो मैं अपना गाउन ढूँढ रही थी हर्षद.
वो फिर से अलमारी के पास जाकर ढूँढने लगी.

मैं उसके पीछे जाकर खड़ा रहा.

सरिता अपने हाथ ऊपर करके एक एक कपड़ा बाहर निकाल कर देखने लगी.
मेरी नजरें सिर्फ उसकी चूचियां और गोलमटोल गांड पर थी.

मुझसे रहा नहीं गया और मैं पीछे से हाथ डालकर उसकी चूचियां मसलने लगा.

सरिता हड़बड़ाकर पीछे हटी तो उसकी गांड की दरार में मेरा लंड रगड़ खाने लगा.

सरिता कसमसाकर बोली- प्लीज हर्षद छोड़ दो. अभी बस मेरी गाउन ढूँढने में मदद करो. मुझे खाना भी बनाना है, बहुत देर हो जाएगी. मां और पिताजी भूखे होंगे.

सरिता की दर्द भरी याचना सुनकर मैंने उसे छोड़ दिया.
फिर मैंने ऊपर की ओर देखा, तो सरिता का गाउन ऊपर रखा था.

मैंने निकालकर सरिता को दिया और कहा- यही है ना सरिता.
सरिता ने खुश होकर पहन लिया. नीले कलर का फूल की डिजाइन वाला गाउन बहुत ही सुंदर था.

मैंने कहा- सरिता, तुम बहुत सुंदर दिखती हो.
और मैंने उसके होंठों को चुम्बन कर दिया.

“बहुत बदमाश हो हर्षद. अभी दिल नहीं भरा क्या?”
मैंने कहा- अभी तो सिर्फ ट्रेलर था … पिक्चर अभी बाकी है.

सरिता हंसती हुई बोली- अब अपनी पिक्चर बाद में दिखाना. तुम आराम करो. मैं खाना बनाने जा रही हूँ. खाना तैयार होने के बाद मैं तुम्हें बुलाऊंगी.
उसने दरवाजा खोला और नीचे चली गयी.

यह भाभी चुदाई हिंदी कहानी आपको कैसी लगी, मेल से जरूर बताना दोस्तो.

इसके आगे क्या हुआ था, वो मैं बाद में आपके सामने लेकर आऊंगा.
धन्यवाद दोस्तो.
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