सर बहुत गंदे हैं-3

(Sir Bahut Gande Hain- Part 3)

This story is part of a series:

मेरी जवानी की कहानी के दूसरे भाग में आपने पढ़ा कि मेरी चूत में उंगली करने के बाद सर ने मुझे पेपर करने की परमिशन दे दी थी. मगर मेरे पास वक्त कम था इसलिए मैं पूरा पेपर नहीं कर पाई. जब मैंने अपनी सहेली पिंकी से बात की तो पता चला कि उसका पेपर भी अच्छा नहीं हुआ.
मैं पिंकी को घर भेजकर सारा पेपर अकेले में करना चाहती थी लेकिन तभी सर ने मुझे मेरी सहेली पिंकी के साथ देख लिया और सर की परमिशन के बाद मैंने पिंकी को भी पेपर पूरा करने के लिए मना लिया.
अब आगे:

मैं खुश होकर दौड़ी-दौड़ी पिंकी के पास गयी.
“चल आजा, मैंने तेरे लिए भी बात कर ली है. तुझे भी सर पेपर दे देंगे.”
“अच्छा, सच? मज़ा आ जाएगा फिर तो”.
वो भी सुनकर खुशी से उछल पड़ी. अगले ही पल हम दोनों मैडम और सर के सामने खड़ी थीं.

“मैडम, प्लीज़ … आप ऑफिस का ताला लगाकर थोड़ी देर बाहर बैठ जाओ. मेरा फोन भी लेते जाओ. अगर कोई फोन आए तो कहना कि वो पेपर्स का बंडल लेकर निकल चुके हैं और फोन यहीं भूल गये!” सर ने मैडम की तरफ अपना मोबाइल बढ़ाते हुए कहा।
“मैं तो बैठ जाऊंगी सर मगर देख लो, ज़िंदगी भर अब आप मुझे और इस सेंटर को भूल मत जाना. अब मेरे स्कूल के किसी बच्चे का पेपर खराब नहीं होना चाहिए. सबको खुली छूट मिलेगी ना अब तो?” मैडम ने शिकायती लहजे में सर से कहा।

सर ने हंसते हुए अपना पूरा जबड़ा ही खोल दिया- हा हा हा … आप भी कमाल करती हैं मैडम … ये सेंटर और आपको कभी भूल सकता हूँ क्या? यहाँ तो मुझे तोहफे पर तोहफे मिल रहे हैं. आप बेफिक्र रहें. कल से सब बच्चों को 15 मिनट पहले पेपर मिल जाया करेगा और नकल की भी मौज करवा दूँगा.”

“थैंक्स सर, मुझे बस यही चाहिए.” मैडम ने मुस्करा कर कहा और बाहर निकल कर ऑफिस को ताला लगा दिया.
“सोफे पर बैठ जाओ आराम से … डरने की कोई ज़रूरत नहीं है. अपना अपना रोल नंबर बता दो जल्दी … तुम्हें नहीं पता मैं कितना बड़ा रिस्क लेकर तुम्हारे लिए ये सब कर रहा हूँ.” सर ने हमारे रूम का बंडल खोलते हुए कहा।

पिंकी ने मेरी ओर देखा और मुस्करा दी और फिर सर को अच्छी नज़रों से देखते हुए बोली- थैंक्स सर …
हम दोनों ने अपने अपने रोल नंबर सर को बताए और उन्होंने हमारी शीट निकाल कर हम दोनों को पकड़ा दी.
“किसी इंटेलिजेंट बच्चे का भी रोल नंबर बता दो. मैं निकाल कर दे देता हूँ. जल्दी-जल्दी उतार लेना उसमें से!”

“दीपाली!” पिंकी के मुँह से निकला.
जबकि मेरे मुँह से संदीप का नाम निकलते-निकलते रह गया. पिंकी ने दीपाली का रोल नंबर सर को बता दिया.

“हम्म मिल गया!” सर ने कहा और पेपर लेकर हमारे पास आए और हमारे बीच फंसकर बैठ गये- ये लो, जल्दी-जल्दी करो.

पिंकी ने शायद सर की मंशा पर ध्यान नहीं दिया था. हम दोनों ने सामने दीपाली का पेपर खोल कर रख लिया और जो क्वेस्चन हम दोनों के बाकी थे, उतारने लगे.
करीब पाँच मिनट ही हुए होंगे कि सर ने अपनी बांहें फैलाकर हम दोनों के कंधों पर रख दी- शाबाश … जल्दी-जल्दी करो.
“तुम्हारा क्या नाम है बेटी?” सर ने पिंकी की ओर देख कर पूछा.
“जी …? पिंकी!” पिंकी जल्दी-जल्दी लिखते हुए बोली.
“बहुत प्यारा नाम है. अंजलि को तो सब पता ही है. तुम भी अब किसी पेपर की चिंता मत करना. सब ऐसे ही करवा दूँगा. खुश हो ना?” सर पिंकी की कमर पर हाथ फेरने लगे.

मेरा ध्यान रह-रह कर पिंकी पर जा रहा था. मुझे तरुण की ठुकाई याद आ रही थी. ये सोचकर मैं डरी हुई थी कि कहीं सर पिंकी पर हाथ साफ करने के बारे में ना सोचने लगे हों. ऐसा होगा तो आज बहुत बुरा होगा. मैं मन ही मन सोच रही थी मगर कहती भी तो मैं किसको क्या कहती. मेरी एक आँख अपना पेपर करने पर और दूसरी पिंकी के चेहरे पर बनी रही.

“तुम अब जवान हो गयी हो बेटी, चुन्नी डाला करो ना … ऐसे अच्छा नहीं लगता ना … देखो … बाहर से ही साफ दिख रहे हैं!” सर की इस बात पर पिंकी सहम सी गयी. मगर शायद अपना पेपर पूरा करने का लालच उसके मन में भी था.
“वो … मैंने आज अंजलि को दे दी सर …” पिंकी ने हड़बड़ा कर कहा।
ओह … हां … इसकी तो और भी बड़ी-बड़ी और मस्त हैं. पर इसको अपनी लानी चाहिए … देखो ना … तुम्हारी भी तो कैसे चोंच उठाए खड़ी हैं … तुम ब्रा भी नहीं पहनती हो … है ना?”

सर की बात सुनकर पिंकी का चेहरा सच में ही गुलाबी सा हो गया … अब शायद उसके मन में भी सर की बातें सुन कर घंटियाँ सी बजने लगी थीं. मुझे डर था कि ये घंटियाँ घंटाल बनकर सर के सिर पर ना बजने लग जायें. अभी तो पांच पेपर होने और बाकी थे.
पिंकी बोली तो कुछ नहीं पर सरक कर ‘सर’ से थोड़ा दूर हो गयी.

“नहीं पहनती हो ना ब्रा?” सर ने उससे फिर पूछा.
“अंजलि भी नहीं पहनती. तुम भी नहीं … क्या बात है यार …”
पिंकी इस बार थोड़ा सा खीज कर बोली- “वो … मम्मी लाकर ही नहीं देती, कहती हैं अभी तुम छोटी हो!”
और यह कहकर पिंकी फिर से अपना पेपर करने में जुट गयी.

“मम्मी के लिए तो तुम शादी के बाद भी बच्ची ही रहोगी बेटी, हे हे हे …” सर अपनी जांघों के बीच तनाव को कम करने के लिए ‘वहाँ’ खुजाते हुए बोले- पर तुम बताया करो ना … तुम तो अब पूरी जवान हो गयी हो … लड़कों का दिल मचल जाता होगा इन्हे यूँ फड़कते देख कर … पर तुम्हारा भी क्या कुसूर है … ये उम्र ही मज़े लेने और देने की होती है.” सर ने कहने के बाद अचानक अपना हाथ पिंकी की जांघों पर रख दिया.

पिंकी कसमसा उठी- “सर … प्लीज़!”
“करो ना … तुम आराम से पेपर करो … मैं तुम्हारे लिए ही तो बैठा हूँ यहाँ … चिंता की कोई बात नहीं!” सर ने उसको याद दिलाने की कोशिश की कि वो हम पर कितना ‘बड़ा’ अहसान कर रहे हैं. उन्होंने अपना हाथ पिंकी की जाँघ से नहीं हटाया।

पिंकी के चेहरे से मुझे साफ लग रहा था कि वो पूरी तरह विचलित हो चुकी है मगर शायद पेपर करने का लालच या फिर उसकी उम्र या फिर दोनों ही कारण थे कि वह चुप बैठी अब भी लिख रही थी.

सर ने अचानक मेरे हाथ के नीचे से अपना हाथ निकाला और मेरा दायां स्तन अपनी हथेली में ले लिया. मैंने घबराकर पिंकी की ओर देखा कि कहीं उसके साथ भी ऐसा ही तो नहीं कर दिया. लेकिन अब तक गनीमत थी कि उन्होंने ऐसा नहीं किया था. वह हड़बड़ाई हुई जल्दी-जल्दी लिखती चली जा रही थी.
सर ने अचानक अपने हाथ से उसकी जांघों के बीच जाने क्या ‘छेड़’ दिया कि पिंकी उछल कर खड़ी हो गयी. मैंने घबराकर उनका हाथ अपनी छाती से हटाने की कोशिश की पर उन्होंने मेरी चूचियों पर से हाथ नहीं हटाया।

“क्या हो गया बेटी? इतनी घबरा क्यूँ रही हो? आराम से पेपर करती रहो ना … ये देखो … अंजलि कितने आराम से कर रही है.” सर निश्चिंत बैठे हुए थे, ये सोच कर कि मेरी ‘सहेली’ है तो मेरे ही जैसी होगी.

पिंकी ने मेरी ओर देखा और शर्म से अपनी आँखें झुका लीं. उसने मेरी छाती को ‘सर’ के हाथों में देख लिया था. मैं चाहकर भी उनका हाथ ‘वहाँ’ से हटा नहीं पाई.
पिंकी का चेहरा तमतमाया हुआ था.
“मुझे नहीं करना पेपर. दरवाजा खुलवा दो, मुझे जाना है” पिंकी ने कहा।

तब तक मेरा भी पेपर पूरा ही हो गया था. मैंने भी अपनी आन्सर शीट बंद करके टेबल पर रख दी.
“हो गया सर, जाने दो हमें …”
सर गुर्राते हुए बोले- “अच्छा, पेपर हो गया तो जाने दो? हमें नहीं करना पेपर … वाह! मैं क्या चूतिया हूँ जो इतना बड़ा रिस्क ले रहा हूँ!”

जैसे ही मैं खड़ी हुई सर ने मेरी कमर को पकड़ कर मुझे अपनी गोद में बैठा लिया.
मैंने पिंकी के कारण गुस्सा सा होने का दिखावा किया.
“ये सब क्या है सर? छोड़ दो मुझे”
मैं उनकी पकड़ से आज़ाद होने के लिए छटपटाई.

“अच्छा! साली … दिन में तो तुझे ये भी पता था कि रस कैसे पीते हैं लौड़े का … अब तेरा काम निकल गया तो पूछ रही है ये सब क्या है! तुम क्या सोच रही हो? मैं तुम्हें यूँ ही थोड़े जाने दूँगा. बाकी के दिन तुम्हारी मर्ज़ी पर लेकिन आज तो अपनी फीस लेकर ही रहूँगा.” मुझे गोद में ही पकड़े हुए सर मेरी चूचियों को शर्ट के उपर से ही मसलने लगे.

पिंकी बहुत डरी हुई थी. शायद वो भी घर में ही शेर थी. सर के सामने वो खड़ी-खड़ी काँपने लगी थी. मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी मगर सच में मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था उस समय क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मेरी सहेली पिंकी उसकी आंखों के सामने मेरे साथ ये सब होता हुआ देखे।

“अभी तो एक ही पेपर हुआ है, 5 तो बाकी हैं ना, सेंटर में इतनी सख्ती कर दूँगा कि एक दूसरे से भी कुछ पूछ नहीं सकोगी. देखता हूँ तुम जैसी लड़कियाँ कैसे पास होती हैं फिर!” सर ने गुर्राते हुए धमकी दी और मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूचियों को मसलने लगे.

उनकी इस धमकी का पिंकी पर क्या असर हुआ ये तो मैं समझ नहीं पाई मगर खुद मैं एकदम ढीली हो गयी और उनका विरोध करना छोड़ दिया. मैं मजबूर होकर पिंकी को देखने लगी.
पिंकी बोली- हमें जाने दो सर … प्लीज़ … मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ … आप कुछ भी कर लेना … पर हमें अभी जाने दो.
“चुपचाप खड़ी रह वहाँ. मैंने नहीं बुलाया था तुम्हें अंदर. तुम्हारी ये ‘छमिया’ लेकर आई थी और मैं तुम्हें कुछ कह भी नहीं रहा. अब ज़्यादा बकवास मत करो और चुपचाप तमाशा देखो.” सर ने कहा और मुझे खड़ा कर दिया.

सर आगे हाथ लाकर मेरी स्कर्ट का हुक खोलने लगे. मैंने पिंकी को दिखाने के लिए उनका हाथ पकड़ लिया- छोड़ दो ना सर प्लीज़!
“बहुत प्लीज सुन ली तेरी, अब चुपचाप मेरी प्लीज़ सुन ले. ज़्यादा बोली तो पता है ना?” उन्होंने कहा और झटके के साथ हुक खोल कर स्कर्ट को नीचे सरका दिया. पिंकी जैसी लड़की के सामने इस तरह खुद को नंगी होते देख मेरी आँखें एक बार फिर डबडबा गयीं. मुझे सर की हरकतों से कोई ऐतराज नहीं था, मुझे तो सिर्फ पिंकी की ओर से डर और शर्म थी.

मैं अब नीचे सिर्फ़ कच्छी में खड़ी थी और अगले ही पल कच्छी भी नीचे सरक गयी. मेरे नंगे नितम्ब अब ‘सर’ की आँखों के सामने थे और योनि ‘पिंकी’ के सामने. मगर पिंकी ने इस हालत में मुझे देखते ही अपनी आँखें झुका लीं और सुबकती रही.

“आह … क्या माल है तू भी लौंडिया! चूतड़ तो देखो! कितने मस्त और टाइट हैं. एकदम गोल-गोल पके हुए खरबूजे की तरह!” सर ने मेरे नितम्बों पर थपकी सी मारने के बाद उनको अलग-अलग करने की कोशिश करते हुए कहा- हाय … बिल्कुल एक नंबर का माल है … कितनी चिकनी चूत है तेरी … मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि इंडिया में भी ऐसी चूतें मिल जाएँगी … क्या इंपोर्टेड पीस है यार …”

पिंकी ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया.

कहानी जारी रहेगी.
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