ममता की गलती-2

देविन 2014-02-12 Comments

प्रेषक : देविन

“अरे गई क्या तुम? मैं आँखें खोल रहा हूँ।”

“नहीं अभी नहीं खोलना !” और फिर वो हुआ जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी। ममता ने मुझे होंठों पर चुम्बन किया, करीब 5 सैकेन्ड तक…

मेरी आँखें यूँ ही बन्द रही। जब मैंने खोलीं तो देखा वो दोनों जा रही थीं। ममता हाथ हिला कर मुझे ‘बाय’ कर रही थी।

मुझे होश सा आया तो देखा मैं वहाँ अकेले खड़ा था और रात होने वाली थी।

मैं घर आ गया। अगले दिन वो दोनों आईं, बस मुस्कुराईं और कम्प्यूटर ऑन किया और काम में लग गई।

तभी ममता बोली- सर मुझे प्रोब्लम हो रही है, बता दो।

मैं उसके पास जाकर उसे सही से समझाया और जाने लगा।

वो बोली- सर, बुरा मत मानना कल के लिए।

“नहीं कोई बात नहीं।”

“तो क्या सर आप करोगे मुझसे दोस्ती?”

“हम बाद में बात करते हैं, ओके ! अभी काम करो।”

कुछ देर बाद, “सर आप ने जवाब नहीं दिया?”

मैंने कहा- नहीं ममता, यही मेरा जवाब है।

उसने कहा- कोई बात नहीं सर, पर आप बुरा मत मानना। मेरे मन में जो था, मैंने कह दिया !

“नहीं, कोई बात नहीं।”

“थैंक्स सर !”

“तो ठीक है सर, सण्डे को मिलते हैं, पर इस बार मैं ही आऊँगी अकेली, नैना को उस दिन कहीं जाना है।”

“आ जाना !”

उसने जाते हुए फिर से मुझे एक फ्लाईन्ग चुम्बन दिया, मैं हँस दिया।

शनिवार को ही उसने इतवार को चार बजे आने का कह दिया। मैंने भी उसे सीधे रुम पर आने के लिये कह दिया।

मैं बता दूँ ज्यादातर लड़के अपने कमरे में कम कपड़ों में ही रहते हैं, तो मैं भी कम कपड़ों में ही रुम पर रहता हूँ। या तो निक्कर में या बस तौलिये में।

रविवार को सारा कमरा साफ किया। पूरा काम खत्म कर के दोपहर में टीवी चला कर देखने लगा और देखते-देखते सो गया। मैंने बस टावल ही पहना हुआ था। मुझे पता ही नहीं लगा ममता कब आई। मुझे पता जब चला जब मैंने गेट पर आवाज सुनी।

मैंने देखा कि मेरा तौलिया खुला पड़ा है और मेरा लंड पूरी तरह से तना हुआ है। मैंने तौलिया सही किया और गेट पर जाकर देखा तो ममता खड़ी थी। मैं उसे देख कर चौंक गया, देखा तो घड़ी में चार बजे हुए थे।

मैंने कहा- एक मिनट रुक जाओ।

“क्या हुआ…?”

“मैं कपड़े पहन लूँ।”

“कोई बात नहीं… पहन लीजिए।”

“कपड़े पहन कर मैंने दरवाजा खोल दिया।”

“अन्दर आ जाओ ममता।”

वो अन्दर आकर और बैठ गई।

“और सर क्या कर रहे थे?”

“मैं तो बस काम कर के सो रहा था… आज तुम्हारी सहेली नहीं है साथ?”

“वो सर कहीं गई है, अपनी मम्मी के साथ।” और वो कुछ नहीं बोली।

“तो बताओ क्या बात है… क्यों मिलने के लिये कहा था, बोलो?”

“सर मुझे लगा कि आप उस दिन की बात का बुरा मान गए।”

“मैंने कब कहा कि मुझे बुरा लगा…?”

“नहीं सर वो चुम्बन के बारे में बात कर रही हूँ।”

मैं हँसा, “अरे नहीं कोई बात नहीं… पर तुम्हारा बताने का स्टाईल अच्छा था।”

वो भी हँस दी, “वो सर मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने कर दिया।”

“पर तुम्हें चुम्बन करना आता नहीं है,” मैं फिर हँस दिया।

“तो आप सिखा दो ना सर !”

“नहीं तुम्हें नहीं सिखा सकता।”

“क्यों?” उसने हँस कर कहा।

“नहीं तुम मेरी स्टूडेन्ट हो।”

“फिर आपने यह क्यों कहा कि मुझे चुम्बन करना नहीं आता।”

“वो तो सच है… तुम्हें नहीं आता।”

“ठीक है आज मैं फिर से करती हूँ… मुझे भी तो पता चले कि मैंने क्या गलती की है।”

“नहीं अब नहीं।”

“आज सर मत रोको, आपको बताना ही पड़ेगा कि मेरे चुम्बन में क्या गलती है।”

“ओके, पर एक बार ही।”

“हाँ ठीक है… आप आँखें बन्द करो।”

मैंने आँखें बन्द कर लीं। उसके बाद ममता ने मुझे चुम्बन करना शुरु किया। जैसे ही उसके होंठ मेरे होंठों से छूए, मुझे एकदम कंपकंपी सी होने लगी, मेरे पूरे शरीर में जलन सी होने लगी। उसने मेरे बालों को पकड़ा और मेरे होंठों को चूसने लगी, जैसे वो कई बरस की प्यास बुझा रही हो। मुझे भी बेहोशी सी छाने लगी मेरी आँखें तो पहले ही बन्द थीं।

अचानक मुझे होश आया तो मैंने आँखें खोली वो बुरी तरह से मुझे चूम रही थी। उसकी आँखें बन्द थी, मैंने उसका चेहरा पकड़ कर अलग कर दिया। लेकिन उसने आँखें नहीं खोली। मैंने उसे छोड़ दिया और उठ कर पानी पीकर आया।

दो मिनट बाद देखा तो वो हँस रही थी।

“क्या सर… अब क्या कहते हो? बोलो !” मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या कहूँ।

“ओके… अब तुम घर जाओ।”

“नहीं, पहले आप बताओ क्या मेरा चुम्बन सही नहीं है।”

मैं हँसा, “पर अब तुम घर जाओ।”

“नहीं, यह बता दो क्या कमी थी? फिर मैं चली जाऊँगी।”

“कल बता दूँगा।”

“नहीं जी आज और अभी।” वो बच्चों की तरह जिद करने लगी और मेरे एकदम सामने आ कर खड़ी हो गई।

“ओके… अब तुम अपनी आँखें बन्द करो।” उस ने हाथ पीछे किए और आँखें बन्द कर लीं। उसके बाद मैंने उस की कमर में हाथ डाल कर उसे कस कर पकड़ा। वो मुस्कुरा रही थी। आज इतने पास उसे देख कर मजा आ रहा था।

जैसे ही मैंने उसके होंठों पर चुम्बन किया वो मस्त सी हो गई। मैं उसे चुम्बन करता रहा। और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी। उस के होंठों पर काट कर मैं चूमता जा रहा था। उसने भी मुझे अपने और करीब खींच लिया। मेरा हाथ पकड़ कर उसने अपने उरोजों पर रख दिया। मैं उसे मजे से चुम्बन करता रहा। अब मैंने उसके गले पर चुम्बन करना शुरु कर दिया।

उस मुँह से ‘आह’ सी निकलने लगी… “ओह सर यह आपने मुझे क्या कर दिया… आह, मेरे देव सर ! पागल कर दिया आपने मुझे…”

और मेरा हाथ अपने सीने पर दबाने लगी…

मेरे भी तन में आग सी लग चुकी थी। अचानक वह अपना दूसरा हाथ मेरे नीचे ले जाकर मेरे लोअर के ऊपर से ही दबाने लगी। मैंने उसे अपने से अलग कर दिया और उसने बैड पर बैठ कर अपने सर को पकड़ लिया।

“अब पता चल गया ना ! कैसे चुम्बन करते हैं, है कुछ अलग?”

वो कुछ नहीं बोली… फिर कहने लगी, “हाँ… कुछ तो अलग है।” वो मुस्कराई और मेरी ओर अपनी कातिल नजरों से देखने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

“ओके… अब तुम घर जाओ।”

उसका मन बिल्कुल भी नहीं था जाने का, “अरे सर मैं घर पर कह कर आई हूँ, मैं सात बजे तक आ जाऊँगी… मैं अभी नहीं जा रही हूँ।”

“वो, तुम देखो कोई दिक्कत ना हो तुम्हें।”

“नहीं सर, कोई दिक्कत नहीं है।”

मैंने टीवी चला दिया और दोनों देखने लगे, पर दोनों का ध्यान ही टीवी में नहीं था।

अचानक वो बोली, “सर आपने एक बात का जवाब नहीं दिया?”

“हाँ कहो ना।”

“सर, अब आप का क्या विचार है?”

मैंने जानबूझ कर कहा, “चुम्बन के बारे में!”

“दोस्ती के बारे में सर।”

“क्या अब भी मुझे कहना पड़ेगा!” और धीरे से हँस दिया।

“इस का मतलब आपने ‘हाँ’ कर दी।”

“ओके !”

वो मेरे और पास आकर बैठ गई और मुझे गौर से देखने लगी, मैं भी उसे देखने लगा।

उसने मेरे कान के पास आकर कहा- आई लव यू… और मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया।

उसके सीने में जैसे ही मेरा हाथ लगा, मेरे लोवर में कड़ापन सा होने लगा जिस पर मैंने अपना हाथ रख लिया। वो बड़े ध्यान से वहाँ पर देखने लगी और धीरे से मुस्कराने लगी।

मैं भी अब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। मैंने भी अपने होंठ उसके गर्म होंठों पर चिपका दिये और उसे प्यार से चूमने लगा। हम करीब 15 मिनट तक एक-दूसरे को ऐसे ही चूमते रहे। इसी बीच में उसने मेरे लोअर में हाथ डाल कर वहाँ दबाना शुरु कर दिया था और मैं उसके कपड़ों के ऊपर से ही उसके सीने से खेल रहा था। हम दोनों ने ही आँखें बन्द कर रखी थीं।

हम दोनों बैड पर ही लेट कर एक-दूसरे को चूमने लगे। उसने मेरा लोअर खोल दिया, मैंने भी उसके ऊपर के सारे कपड़े उतार दिए। वो शरमाने लगी और मैं उसे बस देखता रहा।

मुझे लगा कि वक्त कहीं रुक सा गया है। मैं पागल सा होकर उसके सीने पर चूमता रहा। उसने भी मेरे बाल पकड़ कर अपने सीने पर चिपका लिया। मैं उसके ऊपर आकर उसके ब्राउन वाले भाग पर अपनी जीभ से उसे छेड़ने लगा। वो पागल सी हो गई और अपना सर इधर-उधर करने लगी, उसके मुँह से ‘आह’ भरी सिसकारियाँ निकल रही थीं।

उसने अपने नीचे से अपने आप ही अपनी सलवार को खोल कर निकाल दिया। अब पूरी तरह से नग्न हो चुकी थी। मैंने भी अपना लोअर नीचे कर दिया। मेरा ‘अंग’ भी पूरी तरह से जाग चुका था, मैंने अपना हाथ उस के पैरों के बीच में ले जाकर ‘वहाँ’ सहलाने लगा। मुझे उसकी ‘वो’ कुछ गीली सी लगी।

मैं उसे बेतहाशा चूम रहा था और वो पागल होकर मुझे पकड़ कर अपने में मिला रही थी। हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था।

मेरे नीचे का भाग, उसकी टांगों के बीच में पूरे जोश से हिल रहा था। मैंने अपने ‘अंग’ का अगला भाग पकड़ कर उसके पैरों के बीच में लगाया और अन्दर डालने लगा, मुझे लगा जैसे मैंने किसी गर्म चीज पर अपने अंग को रख दिया हो। फिर मैंने धीरे से जोर लगाया तो वो नीचे से थोड़ा उठकर मुझे रोकने लगी, शायद उसे दर्द हो रहा था।

मैंने फिर जोर लगा कर डाला तो मेरा अगला भाग अन्दर जा चुका था। उस मुझे जोर से पकड़ लिया और मुझे जोर से भींचने लगी और एक दबी सी आवाज “आ… आह… आह… हह… ह… ह…” मैं रुक कर उसके होंठों को चुम्बन करता रहा और मैं फिर धीरे से अन्दर डालने लगा। वो ऐसे ही ‘आहें’ भरती रही और मैं अन्दर डालता रहा…

फिर हम एक दूसरी दुनिया में थे। दोनों ने एक-दूसरे को पूरा प्यार किया। वो ‘आहें’ भरती रही और मैं पूरा जोर लगा कर उसके साथ लगा रहा। उसके सीने से सीने को मिलता देख कर मैं और जोर लगाता और वो मेरा पूरा साथ देकर अपने आपको मुझे भी मजे दे रही थी।

बीस मिनट बाद उसने मुझे कर पकड़ा और जोर लगा कर मुझे अपनी ओर खींचने लगी…

और फिर… ‘आह… आह… ओ ओ ओ ओ… और जल्दी करो देविन’

फिर मुझे भी कुछ जोश आ गया। मैं जोर लगा कर धक्के मार रहा था। मैंने उसे कस कर पकड़ा और अपना पूरा-पूरा पानी उसके अन्दर छोड़ दिया… हम दोनों यूँ ही दस मिनट तक पड़े रहे… फिर दोनों उठे और कपड़े पहनने लगे।

वो मुझसे नजरें चुरा रही थी… फिर वो बाथरुम से हो कर पाँच मिनट में आ गई। मैं वहीं टीवी देखता रहा।

उसने कहा- सर, मैं चलती हूँ।”

“नहीं, रूक जाओ अभी, मैं छोड़ दूँगा।”

“नहीं, मैं पैदल ही जाऊँगी।”

“अब तुम बोलो, क्या बुरा लगा?”

“नहीं बिल्कुल भी नहीं सर !” वो मेरे चेहरे को देखने लगी।

“ठीक है हम बाद में मिलते हैं, पर ये सब नैना को…?”

“नहीं उसे नहीं पता लगेगा… पर सर आप भी…!”

“फिक्र मत करो…”

फिर वो ‘बाय’ कह कर वहाँ से चली गई।

दोस्तो, यह मेरी सच्ची कहानी है, कुछ चीजें बदल दी हैं। मेरी इस कहानी में कहीं भी कोई गलत शब्द नहीं है… अगर आप चाहते हैं, मैं और भी आप को बताऊँ तो मुझे मेल जरूर करें।

आपके विचारों का स्वागत है।

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