मैं और मेरी दोस्त की बहन

मानस गुरू 2008-08-15 Comments

मानस गुरू

मेरा नाम देव है. मेरी उम्र २३ साल की है. मैं पढ़ाई लिखाई में बचपन से ही अच्छा हूँ. गणित मेरी प्रिय विषय है. जब मैं स्नातकी में था तब मेरी दोस्त की बहन १२ कक्षा पास करने के बाद मेडिकल प्रवेशिका परीक्षा देने की तैयारी कर रही थी. मैं अपने फ़ुरसत के समय ट्यूशन भी किया करता था. मैं हाई स्कूल के बच्चों को पढाता था. हमारे इलाके में मेरा काफी नाम भी हो गया था.

उसी दौरान मेरे दोस्त ने मुझे अपने बहन को गणित का ट्यूशन देने को कहा. मैं उसे पैसे के बारे में कुछ ना बोल पाया. उसकी बहन को ट्यूशन देना चालू कर दिया.

उसकी बहन का नाम कशिश था. उनके घर में वो दो भाई बहन और उनकी अम्मी रहती थी. उनके पापा गुजर चुके थे. कशिश अपनी नाम की तरह अपने में एक अजब सी कशिश समेटे हुऐ थी. वो नई नई जवानी की दुनिया में पाँव रख रही थी. उसका कमरा हर वक्त सजा संवरा और कुछ ज्यादा ही गुलाबी नजर आता था. वो बला की खूबसूरत थी। उसकी तन पे यौवन के फूल धीरे धीरे बड़े हो रहे थे. उसके गुलाबी होंठ हमेशा जैसे किसी सवेरे गुलाब की पंखुडियां सुबह की ओस में भीगी सी नजर आती थी. उसके लब के दाईं ओर एक छोटा सा तिल था जो उसकी सुन्दरता को चार चाँद लगाता था.

मैं जब भी उसे ट्यूशन देने पहुंचता तो वो कुछ दूसरी ही बातें शुरू कर देती. उसका कभी पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वो बीच बीच में मुझे कभी कभी आँख मार देती। मैं जान के भी अनजान सा रह जाता. एक दिन में जब ट्यूशन देने पहुंचा तो वो अपना सर दोनों हाथों से जकड के बैठ गयी. मैंने पूछा तो उसने बताया कि जोर का सरदर्द है. उसने मुझे मेंथोप्लास बाम उसके माथे पे लगाने को कहा. मैंने पास ही में रखा मेंथोप्लास की डिब्बी उठाई और थोड़ा निकाला और उसके सिर पे धीरे धीरे मलने लगा.

वो कुछ देर तक वैसे ही बैठी रही और फिर अचानक मेरी हाथ को खींच के अपने नन्हे बोबों पे रख दिया. मैं उसकी इस अचानक की हरकत से भौंचक्का रह गया और अपना हाथ फट से खींच लाया. उसने फिर मेरे हाथ को खींच के अपने बोबों पे रख दिया. उसकी अप्सराओं वाली सुन्दरता और उसकी इस हरकत से मेरी ७” वाली लंड धीरे खडा होने लगा. फिर वो उठी और मुझे अपने आगोश में भर लिया.

उसकी कोमल स्पोंज जैसे बोबे मेरे चौडे सीने के नीचे दबने लगे. मैं भी अजब सी दीवानगी में उसे जोर से अपने करीब खींच लाया. मेरे लब उसके लब से सट गए. हम दोनों रस पान करने लगे. उसकी नाजुक सी पतली लबों की मिठास के आगे दुनिया की सबसे मीठी मिठाई भी फीकी थी.

उसी अवस्था में हम करीब १० मिनट रहे. फिर मैंने अपना हाथ धीरे से उसके गले की ओर लेते हुए सीधे उसके बोबों पे रख दिया. वो धीरे से सिसक उठी. अब मैं उसके बोबों को धीरे धीरे दबाने लगा था. मेरा लंड खड़ा होकर पैंट के अन्दर से ही नजर आने लगा था और उसके टांगों के बीच में रगड़ खा रहा था.

फिर मैंने उसकी ऊपर की टॉप उतार दी। उसने भी मेरी टी-शर्ट उतार दी. अब मैंने उसकी पैंट भी उतार फेंकी. वो अब सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में बची थी. उसका सरीर किसी मॉडल से कम नहीं था. फिर उसने मेरी पैंट उतार दी. अब मैं सिर्फ़ एक चड्डी में था जिसको मेरा लंड फाड़ के बाहर आने को बेकरार हो रहा था. तब हम बेड पे गिर पड़े. मैं कशिश के पूरे शरीर को चूमता जा रहा था. वो सिसकारियां भरती जा रही थी. उसके उभार जो कि ब्रा के ऊपर से बाहर निकल रहे थे, मैं उन्हें चूमता ही जा रहा था. तब मैंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसे निकाल कर फ़ेंक दिया. अब वो सिर्फ़ ब्रा में थी.

उसके गोल गोल उभार ना बड़े ना छोटे मेरे सामने रौंदे जाने को बेकरार हो रहे थे. मैं उन पर लपका, दाईं चूची को अपने मुंह में ले लिया और बाईं को हाथ से दबाने लगा. कशिश अपना जैसे कि होश ही खो बैठी थी. फिर मैं अपना हाथ सरकाते हुए उसकी पैंटी तक पहुँच गया.

वो पूरी गीली हो चुकी थी. तब कशिश ने मेरी चड्डी को नीचे करके अलग कर दिया. मेरा ७” का लंड पूरा खड़ा हो के उसके जांघो के बीच में जगह खोजने लगा. मैंने भी मौका ताड़ के उसकी पैंटी उतार फेंकी.

हम दोनों अब पूरे नंगे बेड पे एक दूसरे के ऊपर पड़े थे. मेरा लंड अब पूरी तरह तना हुआ उसके चुत के छोटे से छेद से घुसने को बेसब्र हो रहा था. मैं कभी उसके लबों को चूसता तो कभी उसकी बोबों को.।

फिर मैं नीचे सरक गया और अपनी जीभ उसकी चूत से सटा दी. वो सिसक कर रह गयी. फिर मैं उसे जोर जोर से चाटने लगा. वो भी मजे लेने लगी. मैं उसकी चुत के छोटे से छेद को अपनी जीभ से चोदता ही जा रहा था. उसका पानी निकलना जारी था.

वो अपनी आँखें बंद करके मेरे बालों को सहला रही थी और आहें भर रही थी. करीब १० मिनट के बाद वो बोली कि जल्दी जल्दी करो, मुझे कुछ हो रहा है, शायद मैं झड़ने वाली हूँ, जल्दी से चोद दो ना मुझे. ”

मैं फिर मौका ना गंवाते हुए उसकी ऊपर आ गया और उसकी कुंवारी चूत पे अपनी लंड को रख दिया. अब मैं भी बेचैन होने लगा था. मैंने अपना सुपाडा उसकी चूत के आगे रखा और धीरे से अन्दर धकेलने लगा.

तभी वो दर्द से कराहने लगी फिर बोली,” थोड़ा धीरे देव मेरी चूत अभी तक अन्छूई है. इसे प्यार से चोदो”

तो मैंने अपनी रफ्तार थोडी धीमी कर दी और उसको और गरम करने के लिए उसके चूचियों को जोर जोर से दबाने लगा और उसके लबों को चूसने लगा.

इसी दौरान मैं अपना लंड धीरे धीरे कशिश के चूत के अन्दर डालता जा रहा था…

तभी कशिश के सब्र का बाँध टूट गया और वो चिल्लाने ही वाली थी कि मैंने उसके मुहं को अपने हाथ से बंद कर दिया. मैंने नीचे देखा तो एक धार में खून मेरी लंड से नीचे गिर रहा था. तो मैंने एक पल न गंवाते हुए एक धक्का लगाया और मेरा लंड पूरा कशिश की चूत में था…

वो दर्द से तड़प उठी…और लंड बाहर निकाल लेने को मिन्नतें करने लगी. मगर मैं जनता था कि यह वक्त लंड निकाल लेने के लिए ठीक नहीं है. तो मैंने कुछ देर तक लंड को वैसे ही रहने दिया.

फिर कुछ देर बाद धीर धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा. मैं पहली मर्तबा जीती जागती चूत के अन्दर अपने लंड को महसूस कर रहा था…
वो अनुभूति अभी भी मुझे याद है…चूत की गीली, नर्म, गर्म सतह से लंड के जकडे होना ऐसे लग रहा था जैसे कि मैं सातवें आसमान में पहुँच चुका हूँ और आनंद के समुन्दर में गोते लगा रहा हूँ…

धीरे धीरे कशिश का दर्द गायब हो गया…और वो मेरा साथ देने लगी..

वो उसकी पहली चुदाई होने के बावजूद एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह जुम्बिश देती जा रही थी और अपने कमर को लचका रही थी. जब मैंने देखा कि वो अब खूब मजे लेने लगी है तो मैंने उसे डौगी के पोज़ में उल्टा कर दिया और फिर चोदता गया…

करीब ३० मिनट बाद वो बोली, “देव अब मैं नहीं रोक सकती, मैं झड़ने वाली हूँ।”

यह सुन के मैंने जोर जोर से धक्के लगाना चालू कर दिया…और कुछ देर बाद कशिश की चूत से ढेर सारा पानी निकला और वो निढाल हो कर लेट गई।

मेरा भी बाँध टूटने वाला था तो मैंने झट से लंड को चूत से बाहर निकाला और जोर जोर से मूठ मारने लगा. जब मेरा माल निकलने वाला था तब मैं उसके मुंह के पास चला गया…कशिश ने अपने मुंह खोला और मैंने उसमें अपना सारा इकट्ठा माल गिरा दिया…

मैं अब कशिश के साथ ही बेड पे गिर गया. कुछ देर बाद मैं और कशिश एक साथ बाथरूम में घुसे और नहा लिए.

अब मैं बिना देरी किए वहां से निकल आया. अब मैं जब भी ट्यूशन पढ़ाने जाता था तब पढ़ाई कम और प्यार की बातें ज्यादा होती थी और हमने कई बार सेक्स भी किया

उस साल कशिश मेडिकल में जगह न बना पाई. तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ. मैं एक दोस्त से विश्वासघात करने का दोषी था…
कुछ साल बाद एक अच्छा रिश्ता देखके कशिश के घरवालों ने उसकी शादी कर दी…

उसके पति का तबादला हो के वो लोग अब हमारे शहर में ही रह रहे हैं. मुझसे कशिश ने एक दो बार मिलने की कोशिश की, पर मैं हर बार बहाना बना कर टालता गया…कुछ दिन बाद उसके पति की एक सड़क हादसे में जान चली गयी…

कशिश अब अपने मायके में रहने लगी. मुझसे कशिश की सफ़ेद साड़ी देखी नहीं गयी. उसका खिला खिला सा चेहरा अब उदास रहने लगा था.
मैंने सोचा कि मेरी भूल सूधारने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता. तो मैं एक दिन कशिश के घर गया और कशिश की माँ से उसका हाथ मांग लिया. उसकी माँ की खुशी के ठिकाने नहीं रहे.

कुछ दिन बाद एक मन्दिर में हम दोनों ने शादी कर ली. अब हमारी शादी को एक साल पूरा होने वाला है और कशिश मेरी बच्चे की माँ बनने वाली है.

मुझे अब मेरी करनी पर कोई शर्मिंदगी नही है.

आशा है कि आप को यह कहानी अच्छी लगी होगी.

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