कोच को पटा कर चूत चुदवायी-1

(Coach Ko Pata Kar Choot Chudwayi- Part 1)

दोस्तो, बहुत बहुत आभार आप सभी का… आपने अपने मेल के जरिये मेरी हौसला अफजाई की।
मुझे बहुत से नटखट प्रशंसकों के काफी मेल प्राप्त हुए, जिनका खत मन को गुदगुदा जाता है. तो बहुत सारे गंभीर प्रशंसकों के मेल भी मिले जिनके सुझाव पर अगले बार से अमल करुँगा।
मेरे एक सुधी पाठक का प्रश्न यह था कि ‘मैं साली को कैसे पटाऊँ?’
जिसका जवाब मैंने दिया कि धैर्य रखें, कोई भी लड़की अपने दोस्त में पिता की अक्स खोजती है, उसके सानिध्य में अपने आप को महफूज सोचेगी. तब लड़के को बहुत ऐंगिल से परखती है तब वह कोई कदम आगे बढ़ाती है क्योंकि वह भी आगे पीछे समाज परिवार को देखती है फिर अपना भविष्य सोच कर तब आपको समर्पण करेगी।

ऐसे ही प्रशंसकों में से यह कहानी है सुश्री मीनाक्षी कंठ की जिसे सभी प्यार से मीनू बुलाते हैं। उन्होंने अपनी कहानी मेरे मेल पर शेयर की थी जो मुझे बहुत प्यारी लगी तो उनकी पूर्वानुमति के बाद उनकी कहानी उसी तरह से पेश कर रहा हूँ.
आशा है आप भी मीनू जी के आपबीती को सराहेंगे।

प्रिय दिनेश जी,
मैं आपकी पहली आपबीती कहानी
क्सक्सक्स फिल्म दिखा कर साली को मनाया चुदायी के लिये
से फालो कर रही हूँ।

पता नहीं क्यों मन कर रहा है कि अपनी कहानी पहले आपसे शेयर करुँ, फिर आपको अगर उचित लगे तो आप मेरी कहानी अन्तर्वासना के माध्यम से पूरे जग से शेयर कर सकते हैं।
आपकी साली बन कर सोचती हूँ तो लगता है कि वह भी कहीं न कहीं आपसे चुदना चाह रही थी भले ही वह कितनी भी गुस्सैल क्यूँ न हो। उसने आपको परखा, जब अपने आप को सुरक्षित महसूस किया उसने तो आपके फेंके जाल में फँसने को तैयार हुयी।
ऐसा नहीं है कि आपने कोई शेर का शिकार कर लिया. यह उसकी दैहिक मजबूरी रही होगी जिसके कारण वो समर्पित हुयी।
दूसरे भाग में तो उसने मस्ती की सिर्फ मस्ती और कुछ नहीं।

आपकी साली तो जानती थी कि आप उसके बहन के पति हो और वो अगर चुदवा रही है तो मात्र शारीरिक इच्छा की पूर्ति हेतु, एक शादीशुदा मर्द से सम्बन्ध बनाने का परिणाम शादी कभी नहीं है। हाँ, थोड़ी गलती आपकी भी है कि आपने बडे़ होकर भी सही मार्गदर्शन न करके उसे सेक्स करने के लिये उकसाया।

पर अपने बारे में क्या बताऊँ, प्यार में चोट खायी हुयी बंदी हूँ। नादानी बस इतनी कि एक शादीशुदा आदमी से प्यार कर बैठी और अपना सबकुछ समर्पित कर दिया। अगर जानती होती कि वह शादीशुदा है तो घास भी न डालती।

मेरी कहानी उस समय की है जब मैं कॉलेज में बी. ए. पार्ट थ्री की छात्रा थी। मेरी सेलेकशन सीनियर खो-खो टीम में हुयी थी। मेरे साथ 15 अन्य लड़कियों का भी सेलेक्शन हुआ और मैं प्रथम नौ की सदस्या थी।
बड़े इंडस्ट्रियल शहर (क्षमा करेंगे शहर का नाम नहीं बताऊँगी) में रहने का अपना सुख होता है। प्ले ग्राउंड, कोच की सुविधा, उपस्कर आदि कंपनी द्वारा ही किया जाता है, आप बस अपना खेल प्रदर्शित कीजिये।

उस समय मैं 21 वर्ष की थी। हम लोगों का कोच, अन्य खेल के कोच उन्हें राय साहब के नाम से पुकारते थे, पूरा नाम क्या है वो मैं आज तक नहीं जान पायी या यूँ कहे कि बताना नहीं चाह रही!
सुडौल बदन, गोरा चिट्टा रंग, 5 फीट 7 इंच के जवान थे। किसी किसी मर्दों के स्कीन टेक्सचर से उसके उम्र का अंदाज नहीं लगता उसी तरह उनके बॉडी को देख कर उसके उम्र का अनुमान लगाना कठिन था। हम लड़कियाँ उसे 34-35 का मान कर चल रही थी।

हम सभी काफी मेहनत कर खेलती थी पर चढ़ती जवानी हम लोगों पर कभी कभी हावी होने लगती। कोच राय साहब तो पहले अपने काम से ही काम रखते थे पर बाद में एक दो मुँहफट सदस्या के कारण वे भी उन लम्हों का आनन्द लेने लगे थे और प्रतिउत्तर में जवाब देने लगे थे। हल्की फुल्की वेज, नॉन वेज जोक्स कभी गुदगुदाती तो कभी चूत को गीली कर देती।

नॉन वेज जोक्स पर हम लड़कियों की तरफ से कोई एतराज न होने पर वे थोड़ा आगे का कदम लेने लगे। अब वे किसी न किसी बहाने हम सबों को छूने का बहाना ढूँढने लगे थे। वे मेरी तरफ कुछ ज्यादा आकर्षित हो रहे थे। कभी पोस्चर ठीक करने के बहाने से मेरे पीछे से पकड़ कर बताते तो उनका लंड मेरे गांड के गहरायी में महसूस होती थी.

कोच की दृष्टि से पकड़ने में या जानबूझ कर पकड़ने का फर्क हम लड़कियाँ भली भाँति समझती हैं। हम लोगों की ट्रेनिंग सूर्योदय से पहले अंधेरे में ही शुरु होती थी तो वे बेफिक्र होकर पकड़ते थे, कभी कभी तो उनके लंड का उभार भी हमें अपनी गांड पर महसूस होता था, तो धीरे से चूचियाँ भी दाबते या कभी आँख भी मार देते।
हम लोग हँस कर टाल देती थी। कच्ची उम्र हम सबों को भी यह अच्छा लग रहा था कि कोई तो है जो हम लोगों पर लाईन मार रहा है। वरना खिलाड़ी को देख लड़के दूर से ही बाय बाय करने लगते हैं। लड़कों को तो छुई मुई टाइप की लड़कियाँ पसंद होती हैं न?

जब वे मूड में रहते तो कोई भी उनसे पूछती कि सर आपका कोई गर्लफ्रेंड या आपकी शादी हुयी है या नहीं तो वे उसे हँस कर टाल जाते थे। बॉडी लैंग्वेज ऐसा होता जैसा जता रहें हों कि उनका अभी कोई नहीं है।
जिस कारण हम लोगों ने अनुमान लगाया कि वह अभी भी कुंवारे ही हैं। उनके तरफ से की गयी पहल के बाद मेरा दिल मचल गया उन्हें पाने के लिये। पर बाद में पता चला कि मेरा ही क्या दो तीन और कतार में थी। एक तो केवल अफेयर के लिये लाईन मारती थी।

अप्रैल माह में कोच राय साहब के साथ खो-खो प्रतियोगिता में भाग लेन के लिये हम लोगों को वाराणसी जाना था तो मैं इस मौके का भरपूर फायदा उठाना चाह रही थी। हम लोगों की बस चार बजे सुबह वाराणसी के लिये खुली।
संयोग कहें या जानकर… वे मेरे बगल में खाली सीट पर बैठ गये। बस खुलने के आधे एक घंटे के भीतर सभी ऊँघने लगे थे। राय साहब भी नाटक करते हुये मेरे कंधे पर सर टिका कर सोने लगे। उनकी गर्म गर्म सांसें मेरे गर्दन से टकरा रही थी, न चाहत हुये भी मेरी चूचियाँ कड़ी होने लगी, दोनों चूचुक भी तन कर खड़े हो गए थे। मेरी सांसें लम्बी लम्बी चलने लगी थी, मेरी चूत भी मेरा साथ नहीं दे रही थी, वह भी धीरे धीरे गीली होने लगी थी।

कोढ़ में खुजली का काम किया जब उन्होंने जानबूझकर अपना हाथ कुछ देर तक मेरे चूचियों पर रखा पर मेरी तरफ से कोई प्रतिकार नहीं होने पर उन्होंने मेरी जांघों पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे सहलाने लगे।
कुछ देर बाद ही पौ फटने के कारण वे सॉरी कह संभल कर बैठ गये। थोड़ा देर और अंधेरा रहता तो मैं पक्का खलाश हो गयी होती।

सुबह की प्रैक्टिस के लिये हम लोग 4 बजे सुबह ही मैदान पहुँच जाते थे, अंधेरा रहने के कारण शरारत करने में सहूलियत रहती थी। अब मैं भी जानबूझकर उनसे टकराने का मौका खोजती थी। कभी चक्कर लगाना पड़ता तो दूसरी तरफ देखते हुये उनके नजदीक से निकलते हुये अपना हाथ फैला देती जिससे उनका लंड को छूते हुये निकल पड़ती।

एक दिन समझाने की नियत से उन्होंने मुझे एकांत में बुलाकर कहा कि देखिये ये ठीक नहीं है।
मैंने अनजान बनते हुये पूछा- आप कहना क्या चाहते हैं सर?
वे बोले- आप जानबूझ कर इधर उधर छूते रहती हैं।
मैंने आगे पूछा- क्या छूती हूँ? कुछ कहेंगे तब तो समझ में आयेगी?

उन्होंने एक अंगुली नीचे कर इशारा में कहा- वहाँ!
तो मैं बोली- सर, कल तक तो आप बहाने बना बना कर अपना वो मेरे पीछे सटाते रहे और आज…
जानबूझ कर मैंने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया.

फिर अपना हाथ उनके वहाँ पर ले जाकर पूछा- यहाँ क्या सर?
तो वे घबरा गये, मेरे हाथ पड़ते ही उनका लंड तनने लगा था, वे मेरा हाथ पकड़ कर बोले- नहीं अभी नहीं।
तब तक मैंने उनके दोनों हाथ पकड़ कर कहा- तब आप भी बदला ले लीजिये न सर और अपनी चूचियों पर उनका हाथ रख दिया।
वे केवल कहते रहे- यह ठीक नहीं है!
पर अपना हाथ नहीं हटाये.

थोड़ी देर चूचियों पर हाथ रखने के बाद वे उन्हें बुरे तरीके से मसलने लगे तो मुझे ही कहना पड़ा- सर अब छोड़ दीजिये, अब दर्द कर रहा है।
फिर वे मुझे अपनी तरफ खींच कर अपने आलिंगन में लेते हुये मुझे चुम्बन करने लगे, मेरे होंठ चूसने लगे।
अंत में मुझे कहना पड़ा- क्या इसीलिये मुझे बुलाया था सर?
तो वे झेंप गये। वे अपने को मुझसे हटाते हुये बोले- अपना ध्यान अभी ट्राफी जीतने पर लगायें, ये सब बाद में देखा जायेगा।

हम लोगों ने काफी मेहनत से खेलते हुये ट्राफी पर कब्जा जमा लिया। कंपनी द्वारा हम लोगों को तथा कोच को सम्मानित किया गया।
फिर कई सदस्यों द्वारा कोच को बारी बारी से चाय नाश्ता पर घर में बुलाया गया।

मई का महीना रहा होगा, एक दिन उन्हें मैंने भी सर को शाम को अपने घर चाय पर बुलाया।

जब वो हमारे घर आये तो वो गाना गुनगुना रहे थे

शायद तेरी शादी का ख्याल दिल में आया है
इसीलिये मम्मी ने तेरी मुझे चाय पर बुलाया है!

मुझे यह इशारा ही लगा कि वे भी मेरी तरफ आकर्षित हैं। शायद शादी तक का ख्वाब वो भी देख रहे हों। इस गाने से मैं और अधिक आश्वस्त हो गयी और संपूर्ण समर्पण का भी विचार उसी समय आया।

फैक्ट्री में तीन शिफ्टों में काम होता है, उन दिनों मेरे पापा शाम के छः से रात के दो बजे वाले ड्यूटी पर जाते थे। राय साहब को इस बात का पता था तो वे शाम को सात बजे आये, नाश्ता आदि के बाद उन्हें छोड़ने बाहर तक आयी।
स्ट्रीट लाइट जली हुयी थी तो सब कुछ उजाले की तरह साफ साफ दिखायी दे रहा था पर मैं उन्हें फूलों की क्यारी में ले गयी, कनेर गुड़हल के पेड़ के ओट में ले जाकर मैंने उनको हग कर लिया और उनके होंठ चूसने लगी.

सर ने मुझे आलिंगन में लेते हुये किस किया, फिर छुड़ाते हुये बोले- कल मेरा ऑफ है, आइये घर पर कभी भी… अपने हाथ की बनी चाय आपको पिलाता हूँ।
इसी क्रम में सर ने मेरी चूचियों को भी मसल दिया।
मैंने मुस्कुरा कर कहा- अवश्य आऊँगी… आप पूरी तरह से तैयार रहना।
मेरा हृदय हर्ष और गर्व से फूल गया, मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी।

टीचर के साथ चुदाई की कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: कोच को पटा कर चूत चुदवायी-2

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