वासना की न खत्म होती आग भाग-13

(Vasna Ki Na Khatm Hoti Aag Part-13)

This story is part of a series:

नमस्कार दोस्तो.. आप अब तक सामूहिक सम्भोग के खेल की कहानी को पढ़ रहे थे.. उसी क्रम में आगे की दास्तान लिख रही हूँ।

मेरे मित्र ने धीरे-धीरे अपनी कमर बबिता की योनि के ऊपर दबाया और लिंग धीरे-धीरे योनि में घुसता चला गया। करीब आधा घुसने पर उन्होंने एक जोर का धक्का मारा, बबिता जी के मुँह से ‘आह्ह्ह..’ की आवाज निकली और लिंग बबिता जी की योनि की तह में समा सा गया।
उसके बाद बबिता जी ने एक लम्बी सांस लेते हुए मित्र को अपनी बांहों में जकड़ते हुए अपने ऊपर पूरी तरह गिरा लिया।

अब मेरे मित्र ने भी बबिता जी को उनको बांहों के नीचे से ले जाकर हाथ से उनके कंधों को पकड़ा। बबिता जी ने भी अपनी टांगें थोड़ी और फ़ैला दीं। अब मेरे मित्र ने एक दो-धक्के बबिता की योनि में आराम से मारे और फ़िर लगातार तेज़ धक्कों की बरसात सी शुरू कर दी, बबिता जी मीठी सिसकारियां लेने लगीं।

करीब दो मिनट तक मेरे मित्र के तेज़ धक्के चलते रहे, फ़िर वे थोड़े धीरे हुए और लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए उनके धक्के धीमी गति से चलने लगे थे।

उन्हें देख कर मुझे एक ख्याल सा आने लगा, मेरे दिमाग में लगने लगा कि ऐसा ही सीन होगा जब मैं और मित्र सम्भोग कर रहे होंगे। इस बात को सोचते हुए मैं मन ही मन में मुस्कुराने लगी।
शायद किसी ने अगर हमें सम्भोग करते देखा होता तो यही कहता कि बिल्कुल हमारी तरह का नजारा दोबारा चल रहा है।

तभी अमृता कहीं से आईं, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो अब तक कहाँ थीं।

उन्होंने आते ही मेरे बगल में लेटे कान्तिलाल जी को उठाया और बोलीं- क्या इतने में ही दम निकल गया?
इस पर कान्तिलाल जी ने जवाब दिया- अभी तो आपका दम निकालना है.. अभी मुझ में बहुत दम बाकी है।
अमृता ने उन्हें जवाब देते हुए कहा- चलो देखते हैं.. कौन किसका दम निकालता है।

यह कहते हुए वो उनसे लिपट गईं, वो वहीं बिस्तर पर उनके ऊपर गिर गईं और उन्हें चूमने लगीं। उनके बगल में शालू और विनोद अपनी अपनी चरम सीमा को पाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। विनोद जिस ताकत और जोश से शालू को धक्के मार रहा था.. उससे तो यही ज्ञात हो रहा था।

थोड़ी ही देर में शालू का बदन कांपने सा लगा और वो विनोद की छाती को मसलते हुए अपनी कमर दबा कर गोल-गोल घुमाने के साथ लम्बी-लम्बी साँसें लेती हुई ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करने लगी, मैं समझ गई कि शालू झड़ गई।

शालू के शांत होते ही विनोद ने उसे अपने ऊपर से हटाया और उसे बिस्तर पर गिरा दिया और खुद घुटनों के बल होकर अपना लिंग शालू के मुँह में डाल दिया।

शालू विनोद के लिंग को अपने हाथ से हिलाते हुए अपने मुँह से चूसने लगी। थोड़ी देर लिंग चूसने के बाद विनोद ने अपना लिंग उसके मुँह से खींच लिया और शालू के स्तनों के ऊपर अपने हाथ से जोरों से हिलाने लगी।

तभी अचानक अमृता ने कान्तिलाल जी को चूमना छोड़ कर विनोद का लिंग पकड़ लिया और उसे हिलाने लगी। विनोद ने अपनी आँखें बंद कर लीं और सिर ऊपर उठा अपने पूरे बदन को एकदम से सख्त कर लिया। अमृता ने पूरी तेजी से उसका लिंग हिलाना जारी रखा और अब विनोद ‘हुम्म्म.. अह्ह्ह्ह..’ करने लगा।

तभी विनोद ने एक हाथ से अमृता के हाथ को पकड़ा और उसे और तेज़ गति दे दी। साथ ही विनोद ने दूसरे हाथ से शालू के बालों को जोर से पकड़ा.. और बस एक और जोर लगा कर विनोद के लिंग से तेज़ धार निकल पड़ी, उसके लिंग का सफ़ेद गाढ़ा वीर्य शालू के दोनों स्तनों पर फ़ैल गया।

विनोद झड़ते हुए धीरे-धीरे कमजोर सा पड़ता हुआ झुकता चला गया। उसका माल टपकता रहा.. जब तक कि उसके लिंग से आखिरी बूंद अमृता ने ना निकाल दी।

विनोद के झड़ते ही अमृता ने उसे छोड़ दिया और वो शालू के बगल गिर कर सुसताने लगा। अमृता फ़िर से कान्तिलाल जी के साथ व्यस्त हो गई।

उधर बबिता के साथ मेरे मित्र और रमा के साथ रामावतार जी पूरे वेग से जोर लगाए जा रहे थे। बबिता और रमा जी की गीली योनियां दोनों के लिंगों को आसानी से अन्दर-बाहर होने में बहुत मदद कर रही थीं, दोनों के जोड़ों के धक्कों में ‘थप-थप’ की आवाजें आने लगी थीं।

बबिता और रमा जी की कराहें और सिसकारियां गवाही दे रही थीं कि वो दोनों कितने में मजे में हैं। वहीं उन दोनों मर्दों के धक्कों की रफ़्तार और उनके हाँफ़ने की दशा बता रही थी कि दोनों कितने जोश में हैं, दोनों बिना रुके जोर-जोर से धक्के मार रहे थे।

सच में उन्हें देख कर तो अब मेरा भी मन उत्तेजित होने लगा था। तभी रामावतार जी के झटके 3-4 धक्कों के साथ धीमे पड़े और उन्होंने रमा जी के स्तनों को दबाते हुए उनके चेहरे को अपनी तरफ़ खींच लिया और वे रमा जी को चूमने लगे।

रमा जी ने भी अपने हाथ पीछे कर रामावतार जी के चूतड़ों को पकड़ कर अपने चूतड़ों पर दबाती हुई उन्हें चूमती हुई अपनी कमर को इस अन्दाज में घुमा रही थीं.. जैसे वो और भी धक्कों के लगने का इन्तजार कर रही हैं।

मुझे दूर से ऐसा लग रहा था जैसे रामावतार जी का लिंग रमा जी के बड़े और मांसल चूतड़ों के बीच फंस गया हो। उन्होंने कुछ पल तो यूँ ही प्यार किया फ़िर वो अलग हो गए। मुझे लगा कि वो दोनों अपनी अवस्था बदलना चाह रहे हों।

रमा जी ने नीचे लेटी हुई सम्भोग में लीन बबिता को झुक कर कहा- बस भी करो बबिता जी.. क्या पूरा मजा अकेले ही ले लोगी?
तभी बबिता और मेरे मित्र जैसे नींद से जागे हों.. वे दोनों एक-दूसरे से अलग होते हुए उठे।

बबिता जी ने जवाब दिया- अकेले मजा लेने सब थोड़े इकट्ठे हुए हैं.. आ जाओ तुम भी इस तगड़े लंड का मजे ले लो।
रमा ने जवाब दिया- ऐसा नहीं है बबिता यहाँ सबके लंड तगड़े हैं, बस मजे लेने के तरीके होने चाहिए।
तभी रामावतार जी ने कहा- आ जाओ बबिता.. मेरे लंड को भी अपनी चूत का पानी चखा दो।

उनके कहने की देरी थी कि बबिता जी मेरे मित्र से अलग हुई और खड़ी हो गईं।

रामावतार जी ने उनके खड़े होते ही उन्हें कमर से जकड़ते हुए उठा लिया। अब रामावतार जी ने बबिता जी को वहीं मेज पर बिठा दिया और चूमने लगे।

वे दोनों एक-दूसरे को चूमते हुए सम्भोग की स्थिति बनाने लगे।

रामावतार जी खड़े थे और बबिता मेज पर बैठी थीं और दोनों एक-दूसरे को चूमते हुए सम्भोग का आसन बनाने लगे। धीरे-धीरे बबिता जी अपनी जांघें फ़ैलाती गईं और रामावतार जी उनके बीच आते गए। अब उन दोनों के लिंग और योनि आपस में छूने लगे थे.. पर अभी शायद रामावतार जी अपना लिंग घुसाना नहीं चाहते थे.. सो वे उसी स्थिति में चूमते-चूसते मजे लेने लगे।

उधर रमा जी ने मेरे मित्र को नीचे लिटा दिया और उनके बगल में बैठ कर उनके लिंग को पहले तो कपड़े से साफ़ किया.. फिर मुँह में लेकर चूसने लगीं। मेरे मित्र भी उनके स्तनों को दबाते हुए स्तनपान करने लगे।

मुझे उन्हें यूं स्तन चूसते देख कर सच में बहुत मजा आ रहा था।
मैं धीरे-धीरे फ़िर से उत्तेजित हो रही थी और मेरा हाथ खुद मेरी योनि की तरफ़ चला गया।

थोड़ी देर के बाद रमा ने मित्र को सीधा लिटा दिया और उनके मुँह के ऊपर दोनों टांगें फ़ैला कर बैठ गईं। मैंने सोचा ये क्या कर रही हैं.. तभी समझ में आया कि वो अपनी योनि चटवाने के लिए ऐसा कर रही थीं। मेरे मित्र भी बड़े चाव से रमा जी की योनि को चाटने लगे।

उधर रामावतार जी ने बबिता जी को मेज पर लिटा दिया और उनकी दोनों टाँगों को अपने कंधों पर चढ़ा लिया। उनकी स्थिति 90 डिग्री के कोण में थी। तभी रामावतार जी ने अपने मुँह से गाढ़ा थूक निकाला और उसे बबिता की योनि की दरार गिरा दिया। बबिता ने उनका लिंग पकड़ा और लिंग के सुपारे को थूक में सानते हुए अपनी योनि को मलने लगीं और फिर लिंग के सुपारे को अपनी योनि में घुसा लिया।

अब लिंग घुसने को तैयार दिख रहा था तो बबिता जी ने लिंग को सही दिशा दिखा कर अन्दर घुस जाने के लिए अपने हाथों को सिर की तरफ़ ऊपर उठा मेज को पकड़ते हुए जोर लगाया।

बबिता के सही स्थिति में होते ही रामावतार जी ने उनकी जाँघों को कस के पकड़ा और जोरों से अपनी कमर को बबिता की तरफ़ धक्का दे दिया। इस धक्के के साथ ही उनका लिंग बबिता की योनि के भीतर समाता चला गया।

लिंग के योनि में पेवस्त होते ही बबिता जी ने उसी वक्त एक लम्बी सांस लेते हुए अपनी कमर उठा दी। इस क्रिया से करीब आधा लिंग बबिता जी की योनि के अन्दर चला गया था।

अब रामावतार जी ने दोबारा से अपने लिंग को बाहर खींचा और एक और जोरदार धक्का मार दिया। इस बार तो बबिता जी की चीख सी निकल गई। बबिता जब तक शांत होतीं.. रामावतार जी ने फ़िर से अपना आधा लिंग बाहर निकाल कर दोबारा धक्का दे मारा। उसके बाद तो तेज़ और जोरदार धक्के शुरू हो गए और बबिता चीखते और सिसकी लेते हुए मजे में कमर उचका कर रामावतार जी के लिंग का जवाब अपनी योनि के झटकों से देने लगीं।

उधर रमा जी की योनि भी बुरी तरह तैयार हो चुकी थी और उनके स्तन के चूचुक सख्त होकर खड़े हो गए थे।

मेरे मित्र का भी लिंग भी जोर मार रहा था.. वो बार-बार घड़ी की सुई की तरह तन रहा था और योनि में घुसने को ललचा रहा था। रमा के मोटे चूतड़ योनि चटवाते समय जिस तरह घूम रहे थे उससे मुझे भी इस बात की लालसा हो रही थी कि जब वो मेरे मित्र के लिंग के ऊपर चढ़ाई करेंगी.. तो कैसा लगेगा।

हुआ भी वैसा ही.. रमा जी में मेरे मित्र के मुँह से अपने चूतड़ों को हटाया और उनकी कमर के पास अपनी कमर को भिड़ाते हुए अपनी दोनों टांगें फ़ैला कर उनके ऊपर चढ़ गईं, अभी लिंग रमा जी की योनि के बाहर ही था तो उन्होंने हाथ नीचे ले जाकर मेरे मित्र का लिंग पकड़ कर अपनी योनि की छेद पर टिका दिया, फिर दोनों हाथों से मेरे मित्र को पकड़ा और बहुत ही कामुक अन्दाज में अपने चूतड़ों को लिंग पर दबाने लगीं, लिंग कुछ ही पलों में योनि के भीतर समा गया और अब रमा जी के विशाल चूतड़ों के नीचे सिर्फ़ अंडकोष ही बाहर योनि का पहरा देते हुए दिख रहे थे।

जैसे ही मेरे मित्र का सख्त लिंग रमा जी की योनि में घुसा.. मित्र को जरूर सुकून मिला होगा.. तभी उन्होंने भी बहुत ही जोर से रमा के चूतड़ों को दबाते हुए नीचे से अपनी कमर उठाना आरम्भ कर दिया था। रमा जी ने फ़िर से तभी अपने चूतड़ों को थोड़ा उठाया.. जिससे मेरे मित्र भी अगले धक्के के लिए तैयार हो गए।

फ़िर क्या था.. जैसे ही रमा ने धक्का ऊपर से लगाया.. उन्हें भी नीचे से एक धक्का लगा। अब दोनों ही काफ़ी गरम जोशी में दिख रहे थे। थोड़ी ही देर में दोनों ने ताल से ताल मिलाना शुरू कर दिया। रमा जी जैसे-जैसे ऊपर से धक्के मारतीं वैसे-वैसे नीचे से मेरे मित्र अपनी कमर उचका कर उनके धक्के का जवाब देते।
दोनों ही बड़ी गर्मजोशी से एक-दूसरे में खोने लगे थे, दोनों धक्कों के साथ एक-दूसरे को कभी चूमते तो कभी काटते जा रहे थे, कभी रमा अपने होंठों का रस चुसातीं.. तो कभी अपने स्तनों से दूध पिलातीं। हालांकि रमा जी के स्तनों में दूध नहीं आता था.. पर फ़िर भी वो दोनों जोश में ऐसी हरकतें कर रहे थे।

उधर बबिता जी ऐसे सिसकियां ले रही थीं.. जैसे उनकी जान निकलने वाली है। रामावतार जी भी पूरे जोरों से हाँफ़-हाँफ़ कर धक्के मार रहे थे। उन दोनों की मादक सिसकारियां निकल रही थीं। लिंग और योनि के मिलन से ‘थप-थप’ और ‘चप-चप’ की आवाजें निकल रही थीं।

यही हाल रमा और मेरे मित्र के सम्भोग का था। इधर मैं उन्हें देख कर गर्म होने लगी थी और उधर कान्तिलाल जी को अमृता फ़िर से गर्म कर रही थीं।

विनोद और शालू थोड़े सामान्य हुए। शालू उठ कर बबिता और रामावतार जी के पास चली गई और रामावतार के गाल पर चुम्बन देते हुए शालू बबिता जी के स्तन को सहलाते हुए बोली- हाय कितनी बेरहमी से चोद रहे हो, कुछ तो रहम करो।

रामावतार जी ने भी धक्के लगाते हुए कहा- इसके बाद तुम्हारी बारी है जानेमन।
इसके जवाब में शालू हँसती हुई बोली- पेशाब करके आती हूँ, मेरे आने से पहले मत झड़ जाना।

ये कहते हुए शालू चली गई और रामावतार जी बबिता की योनि में धक्के मारते रहे।

बबिता जी की सिसकारियों ने और जोर पकड़ना शुरू कर दिया था.. अब वो झड़ने के करीब आ गई थीं। उनकी चरम पर आने की हरकतें रामावतार जी को और उकसाने लगी थीं।

कुछ ही पलों में बबिता जी की योनि से रस की धारा तेज़ी से निकलने लगी थी जो रामावतार जी के अन्डकोषों से लग कर बून्द-बून्द टपकने लगी थी। वे दोनों पसीने-पसीने हो चुके थे और बबिता जी का पानी उनके चूतड़ों के बीच के घाट.. और रामावतार जी के अन्डकोषों और जाँघों से बहने लगा था।

तभी बबिता जी ने एक झटके में मेज छोड़ रामावतार जी के हाथों को कस कर पकड़ लिया। बबिता जी जोर-जोर से साँसें लेने लगीं और हाँफ़ते हुए बड़बड़ाने लगीं।

‘ह्म्म्म्म.. अह्ह्ह्ह.. ओह्ह्ह्ह औऊउर.. तेज़.. और जोर से मारो.. ऊपर ऊपर.. की तरफ़ लंड मारो.. हाँ.. आह्ह.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… मेरी बच्चेदानी तक पेलो.. रुको मत.. चोदते रहो..’

ये सारी बातें किसी मर्द को उकसाने के लिए बहुत होती हैं.. और यही हुआ भी। रामावतार जी ने बबिता के चूतड़ों को पकड़ते हुए उन्हें थोड़ा ऊपर को उठाया और इतनी तेज़ी से धक्का मारने लगे जैसे उनकी मर्दानगी को किसी ने चुनौती दे दी हो।

बबिता जी और जोरों से बड़बड़ाने लगीं ‘आह्ह.. और तेज़ी से चोदो मुझे.. और तेज़ और तेज़.. आह्ह्ह्ह्ह म्म्म्म्म ऊऊ.. मां..’

तभी अचानक बबिता जी उठ बैठीं और रामावतार जी के गले में हाथ डाल कर खुद को उनसे चिपका लिया.. साथ ही अपनी जाँघों से उनको जकड़ लिया।

रामावतार जी ने भी उन्हें सहारा दिया, पर धक्कों की न तो तेजी में.. न ही जोर में कोई कमी आने दी।

बबिता जी अपनी कमर को घुमाने लगीं और ‘ह्म्म्म.. ह्म्म्म.. आह्ह्ह.. आह्ह्ह..’ करते हुए झड़ने लगीं।

अभी बबिता जी शान्त होतीं.. उससे पहले ही रामावतार जी भी पूरी ताकत झोंकते हुए उनकी योनि में अपना तपता हुआ लावा उगलने लगे। वे दोनों एक-दूसरे से चिपके हुए थे.. बस दोनों की कमर हिल रही थीं। फ़िर धीरे-धीरे उनका भी हिलना शान्त हो गया। अब दोनों झड़ चुके थे.. पर अब भी साथ में चिपक कर लगे हुए थे।

तभी शालू आई और रामावतार जी के चूतड़ पर थपकी देती हुए बोली- मेरे आने से पहले ही झड़ गए?

रामावतार जी ने अलग होते हुए जवाब दिया- अभी तो काफ़ी समय है.. दोबारा तुम्हारे लिए भी तैयार हो जाऊँगा बेबी।

बबिता जी की आँखें संतुष्टि से भरी हुई दिख रही थीं। उन्होंने शालू से मुस्कुराते हुए कपड़ा माँगा और अपनी योनि साफ़ करने लगीं।

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