वासना की न खत्म होती आग-11

(Vasna Ki Na Khatm Hoti Aag- Part 11)

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अब तक आपने पढ़ा..
होटल के कमरे में सम्भोगरत समूह को देख कर मेरी कामोत्तजना चरम पर पहुँच गई थी।
अब आगे..

चुम्बन के दौरान रामावतार जी के दोनों हाथ बबिता के साड़ी के अन्दर थे और वो उनके चूतड़ों को दबा और सहला रहे थे। कुछ पलों के चुम्बन और चूसने की क्रिया के बाद बबिता अलग हुई और अपनी साड़ी उठा कर उसने अपनी पैन्टी उतार दी।

बबिता ने अपनी साड़ी को कमर तक उठाया और अपनी एक टांग को कुर्सी के ऊपर रख कर अपनी योनि खोल दी। बस फिर क्या था.. रामावतार जी ने दोनों हाथों से बबिता की जांघों को पकड़ा और उसकी योनि को चाटने लगे।

इधर जब मैंने नजर घुमाई तो देखा कि शालू विनोद के लिंग के ऊपर उछल रही थी और विनोद उसके स्तनों को दबाते हुए खुद भी अपनी कमर उठा कर शालू के धक्कों का जवाब दे रहा था।

विनोद और शालू को देख कर मेरा तो अब ध्यान बंट सा गया था। मेरा शरीर एक तरफ तो पूरी तरह कामोत्तेजित था.. पर मन उत्तेजना के साथ उत्सुक भी था क्योंकि जो अब तक सिर्फ तारा से सुना था और व्यस्क फिल्मों में देखा था, वो सब कुछ मेरी आँखों के सामने था।

अब तक सामूहिक सम्भोग बस जान-पहचान में सुना था.. पर यहाँ तो मेरे लिए एक को छोड़ सभी अजनबी थे। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं था कि किसी अजनबी से मैंने पहली बार सम्भोग किया हो या समूह में पहली बार सम्भोग किया हो.. पर अभी मैं ऐसे माहौल में थी.. जहाँ बस लोग इसलिए मिले थे कि एक-दूसरे के बदन का स्वाद ले सकें। शायद मुझे भी लगने लगा था कि जैसे हर खाने का स्वाद अलग होता है.. वैसे ही अलग-अलग जिस्मों का स्वाद भी अलग होता है।

मैं एक तरफ तो सम्भोग का आनन्द लेना चाह रही थी.. वहीं मेरे मन और मस्तिष्क में दूसरों को सम्भोग रत देखने की भी लालसा भी थी। इधर जो मेरे तन-बदन में खलबली मची थी.. उसके लिए भी मैं बेचैन हुई जा रही थी। मेरे जिस्म के साथ ये पहली बार था कि दो मर्द एक साथ खेल रहे थे।

ये मेरी उत्तेजना को और भी बढ़ा रही थी। पता नहीं मेरे दिमाग में क्या आया.. जैसे कोई बिजली की रफ़्तार से उपाय सा आया और मैं अपने दोस्त को धक्का दे अलग होकर कांतिलाल की तरफ पलट गई और उन पर टूट सी पड़ी।

मैंने उनको धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और उनके ऊपर चढ़ बैठी। मैं उनके ऊपर झुक कर उनके होंठों से होंठों को लगा कर चूसने लगी और फिर क्या था वे भी मेरे मांसल चूतड़ों मसलते हुए मेरा साथ होंठों से देने लगे।
मुझे उनका तना हुआ लिंग मेरी योनि के इर्द-गिर्द चुभता सा महसूस हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था.. जैसे वो मुझे छूते हुए कर अपने अन्दर घुसने के रास्ते की तलाश कर रहा हो।

मेरे दिमाग में तो अब दोहरी नीति शुरू हो गई थी, मैं अब सबको देखना चाहती थी, मैंने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी। मैं यह बात तो समझ रही थी कि सभी लोग यहाँ जिस्मों का मजा लेने आए थे.. पर उनके दिमाग में मेरी छवि कुछ और थी.. और मैं वो छवि बरकरार रखना चाहती थी।

बस ये सारी बातें सोचते हुए मैंने अपने बाएँ हाथ से कांतिलाल जी के लिंग को पकड़ा और अपनी कमर ऊपर उठा कर लिंग को अपनी योनि की छेद पर थोड़ा रगड़ दिया।
बस फिर क्या था.. उनका सुपाड़ा तो पहले से लपलपा रहा था। इधर मेरी योनि बुरी तरह गीली होने के कारण सुपारा चिकनाई से और भी गीला हो गया।
मैंने लिंग को थोड़ा सीधा पकड़ते हुए योनि की छेद के तरफ दिशा दी और अपनी कमर को धीरे-धीरे दबाने लगी।
अगले ही पल उनका सुपारा पूरी तरह मेरी योनि के भीतर समा चुका था।

उनका लिंग पूरी तरह सख्त था.. सो मैंने अपना हाथ हटा उनको दोनों हाथों से जकड़ लिया और अपनी कमर लिंग पर दबाती चली गई। कांतिलाल जी का लिंग अब तक आधा घुसा था.. उन्होंने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को पूरी ताकत से पकड़ा और नीचे से अपनी कमर जोर से उचका दिया।

उनका कड़क लिंग सटाक से मेरी योनि में घुसता हुआ सीधा मेरे बच्चेदानी में लगा। अगले ही पल मेरे मुँह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ’ की आवाज कराह के साथ निकल पड़ी।

उनका लिंग बहुत ही ज्यादा सख्त था और गरम महसूस हो रहा था। मुझे लगा कि वो जल्दी ही झड़ जाएंगे.. पर मैं उनके साथ पहली बार सम्भोग कर रही थी.. सो कुछ भी अंदाजा लगाना मुश्किल था।

मैं अब सब कुछ भूल कर उनके ऊपर अपनी कमर उचकाने लगी और उनका लिंग मेरी योनि में अन्दर-बाहर होता हुआ मेरी योनि की दीवारों से रगड़ खाने लगा। मैं तो वैसे ही बहुत उत्तेजित थी और उनका भी जोश देख बहुत सुखद आनन्द महसूस कर रही थी। कुछ पलों के धक्कों के बाद कांतिलाल जी ने भी नीचे से पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया। हम दोनों की कमर इस प्रकार हिल रही थीं.. जैसे एक-दूसरे से ताल मिला रही हों। इस ताल-मेल में मुझे सच में बहुत मजा आने लगा था।

हम दोनों का हर पल जोश बढ़ता ही जा रहा था और धक्कों की गति तेजी से बढ़ती ही जा रही थी। हमें धक्के लगाते हुए करीब 10 मिनट होने चले थे और हम एक-दूसरे के होंठों को चूमते, चूसते, चूतड़ों को दबाते मसलते, मजा ले रहे थे। वो मेरा एक दूध चूसते और काटते हुए धक्के लगाए जा रहे थे।

मुझे उनका लिंग और उनका जोश वाकयी बहुत मजा दे रहा था। उनके धक्के कभी-कभी मेरी बच्चेदानी में जोर का चोट देते.. जिससे मैं एक मीठे दर्द के साथ कराह लेती और रुक जाती और फिर धक्के लगाने लगती।

मैं इधर मजे में सिसकते हुए कराह रही थी और वो उधर लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए मेरे जिस्म का मजा ले रहे थे। कुछ मिनट के बाद मेरा पूरा बदन गरम हो कर पसीना छोड़ने लगा और मेरे सर, सीने, जांघों के किनारों से पसीना बहने लगा। मेरी योनि पानी-पानी हो चली थी और पानी रिसने सा लगा था.. जो पसीने से मिलकर उनके लिंग को तर कर रहा था। फिर धक्कों के साथ ‘फच.. फच..’ की आवाजें आने लगीं।

मैं अब थकान महसूस करने लगी थी, उनके धक्कों के सामने मेरे धक्के ढीले पड़ने लगे। वो भी काफी अनुभवी थे और जब इस तरह का जोश हो.. तो कोई मौका नहीं छोड़ना नहीं चाहता.. सो उन्होंने सटाक से मुझे बिस्तर पर पलट दिया और मेरे ऊपर से उठ गए।

मुझे तो पूर्ण संतुष्टि चाहिए थी तो मैं उनके यूं उठ जाने से एक पल के लिए बहुत ही झुंझका सी गई.. पर उन्होंने तुरंत तकिया लिया और मुझे कुतिया बन जाने का इशारा किया। मैं भी बिना समय गंवाए पलट कर घुटनों के बल झुक गई और अपने चूतड़ों को उठा दिया।
उन्होंने तकिया मेरे पेट के नीचे लगा दिया और मैं तकिए के सहारे झुक कर कुतिया बन गई।

वो मेरे पीछे घुटनों के बल खड़े हो गए और उन्होंने अपने लिंग को बिना किसी देरी के मेरी योनि में घुसा दिया। अब वो मेरी कमर पकड़ कर जोर-जोर से धक्के लगाने लगे। इस स्थिति में उनके धक्के काफी तेज़ और जोरदार लग रहे थे क्योंकि उनके पास अपनी कमर घुमाने की पूरी आजादी थी।

मैं तो इतनी जोश में थी कि उनका हर धक्का मुझे और भी ज्यादा मजा दे रहा था।

करीब दस मिनट ऐसे ही धक्के लगाने के बाद तो मुझे अँधेरा सा दिखने लगा.. मेरी साँसें तेज़ होने लगीं.. मैं हाँफने और सिसकारने लगी।
अब मैं झड़ने वाली थी.. तभी कांतिलाल जी मेरे ऊपर झुक गए और चूतड़ों को छोड़ मेरे स्तनों को दबोचते हुए धक्के मारने लगे।

दो मिनट के धक्कों के बाद उन्होंने मेरा एक स्तन छोड़ मेरी कमर पकड़ कर अपनी ओर खींची, मैं उनका इशारा समझ गई कि वे मुझे अपनी कूल्हे उठाने को कह रहे हैं.. ताकि मेरी योनि की और गहराई में उनका लिंग जा सके।

मैंने थोड़ा और उठा दिया और वो धक्के लगाने लगे। मेरी तो जैसे जान निकलने जैसी हो रही थी क्योंकि अब मैं झड़ने वाली थी। बस 2-3 मिनट के धक्कों में ही मैंने कराहते हुए.. लम्बी-लम्बी साँसें छोड़ते हुए अपने बदन को ऐंठते हुए पानी छोड़ना शुरू कर दिया।

मैं झड़ते हुए अपने चूतड़ उनके लिंग की तरफ तब तक उठाती रही.. जब तक कि मैं पूरी तरह झड़ न गई।
जब तक मैं सामान्य स्थिति में आती.. कांतिलाल जी धक्के भी लगाते ही रहे। मैं उसी अवस्था में उनके झड़ने का इंतज़ार करती रही। मेरा पूरा बदन ढीला सा पड़ने लगा था.. पर उनके धक्कों की रफ़्तार और ताकत में कोई कमी नहीं थी।

करीब 5 मिनट के धक्कों के बाद उनका लिंग मेरी योनि के भीतर और भी गरम लगने लगा। मैं समझ गई कि अब इनका वक्त आ गया। फिर क्या था.. ‘उम्म्म उम्म्म्म ओह्ह्ह्ह..’ की आवाज करते हुए 8-10 जोरदार धक्कों के साथ उन्होंने मेरी योनि को अपने रस से भर दिया और 1-2 धीमे धक्कों के साथ मेरे ऊपर निढाल होकर हांफने लगे।

कुछ पलों के बाद जब थोड़े शांत हुए तो हम अलग-अलग होकर वहीं बिस्तर पर गिर गए।

फ़िलहाल कहानी को यहीं रोक रही हूँ, आगे की कहानी आपके विचारों को जानने के बाद लिखूंगी।

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