हवसनामा: सुलगती चूत-2

(Hawasnama: Sulagti Choot- Part 2)

इमरान ओवैश 2019-01-20 Comments

This story is part of a series:

मैं उस नये लड़के को नहीं जानती थी लेकिन रघु को तो जानती थी, कई बार कल्पनाओं में उसके नीचे खुद को मसलवा चुकी थी और उसके लिंग को अपनी योनि में ले चुकी थी।

मेरे उतावलेपन को देखते वे थोड़े हैरान तो जरूर हुए लेकिन मेरे ब्रा और पैंटी में आते ही उनमें भी जैसे करेंट सा लगा। मैं कोई संकोच, शर्म, लिहाज के मूड में इस वक्त बिलकुल नहीं थी और भूखी शेरनी की तरह उस पर टूट पड़ी। मैंने रघु को दबोच लिया और उसके शरीर पर जोर डालती उसे बेड पर गिरा लिया और खुद उस पर चढ़ गयी।

उसके होंठों से मैंने अपने होंठ जोड़ दिये और उन्हें ऐसे चूसने लगी जैसे खा जाऊँगी। उसके मुंह की गंध अच्छी तो नहीं थी लेकिन उस घड़ी जो मेरी स्थिति थी उसमें यह चीज कोई मायने ही नहीं रखती थी। उसके होंठ छोड़े तो उसके माथे, गाल, गर्दन को बेताबी से चूमने लगी। उसकी शर्ट के बटन जल्दबाजी में मैंने तोड़ दिये और नीचे की बनियान को फाड़ डाला, जिससे उसका बालों भरा चौड़ा चकला सीना सामने आ गया। मैं उसके सीने पे होंठ रगड़ने लगी।

“मैडम तो बहुत भूखी लगती हैं राजू … तू भी आ, अकेला नहीं संभाल पाऊंगा।” रघु ने याचना सी करते हुऐ कहा।

“हां बहुत भूखी हूँ, बहुत तरसी हूँ मर्द के लिये, बहुत तड़पी हूँ। जी भर के चोदो मुझे … दो घंटे हैं तुम लोगों के पास। मेरी चूत की धज्जियां उड़ा दो। वह सब कुछ करो जो तुमने कहीं पढ़ा या देखा हो .. मैं सबकुछ महसूस करना चाहती हूँ।” मैंने लहराती हुई आवाज में उसकी पैंट खोलते हुए कहा।
“मतलब?” दोनों ही अटपटा गये।
“मतलब एक दो टके की रांड बना दो मुझे … छिनाल बना के चोदो। मुझे मारो … तकलीफ दे सकते हो तो दो। बस चेहरे पे कुछ न करना। मेरी चड्डी ब्रा फाड़ के फेंक दो। मुझे कुतिया की तरह नंगी कर दो। गंदी-गंदी गालियां दो … जो गंदे से गंदा कर सकते हो करो। मेरे पूरे बदन को काट खाओ। मेरी चूचियों को संतरे की तरह निचोड़ कर रख दो। मेरी घुंडियों को बेरहमी से मसलो, दांतों से काटो। मेरी चूत में मुंह डाल के खा जाओ, मेरा मूत पी जाओ … मेरे चूतड़ों को तमांचों से मार-मार के लाल कर दो। मेरे मुंह में मूतो, मेरा मुंह चोद डालो, मेरे मुंह में झड़ जाओ और अपने लंडों से मेरी चूत और गांड सब चोद-चोद कर भर्ता बना दो। मुझे इतना चोदो कि मैं चलने लायक भी न रह पाऊं … जो कर सकते हो, करना चाहते हो करो। मैं महीनों इस चुदाई को भूल न पाऊं।”

मेरी तड़प मेरे शब्दों से जाहिर थी और वे भी कोई नये नवेले लौंडे नहीं थे, खेले खाये मर्द थे और मर्द तो मर्द … जब सामने नंगी लेटी औरत खुद खुली छूट दे रही हो तो उन्हें तो मौका मिल गया अपने अंदर के जानवर को जगाने का।

जब तक मैं रघु के पैंट से उसके उस लिंग को बाहर निकाल कर अपने मुंह में ले कर चूसना शुरू करती, जिसे महीनों से देखती और उसकी कल्पनायें करती आ रही थी, कि राजू ने भी कपड़े उतार कर फेंक दिये और पीछे से मेरी ब्रा के स्ट्रेप पकड़ कर ऐसे खींचे कि वे टूट गये और उसने ब्रा खींच कर मेरे शरीर से अलग कर दी।

मेरी मर्दाने स्पर्श को तरसती चूचियां एकदम से खुली हवा में सांस लेती आजाद हो गयीं और उसने मेरे बाल पकड़ कर ऐसे खींचा कि रघु का लिंग मेरे मुंह से निकल गया।

“तो ऐसे बोल न हरामजादी कि तू रांड है, लौड़े चाहिये थे तुझे कुतिया। ले तेरी माँ की चूत … देख कि कैसे तेरी बुर का भोसड़ा बनाते हैं रंडी। ले मुंह में लौड़ा ले छिनाल।” उसने कई थप्पड़ मेरे गाल पर थप्पड़ जड़ दिये जिससे मेरा चेहरा गर्म हो गया और आंख से आंसू छलक आये लेकिन इस पीड़ा में भी एक मजा था।

उसका लिंग रघु के लिंग से कम नहीं था। देख कर ही मजा आ गया और मैंने लपक कर उसे मुंह में उतार लिया और हलक तक घुसा कर जोर-जोर से चूसने लगी। मुझसे मुक्त होते ही रघु भी उठ खड़ा हुआ था और उसने भी मुझे गंदी-गंदी गालियां देनी शुरू कर दी थीं जो मेरे कानों में रस घोल रही थीं। उसने भी झटपट कपड़े उतार फेंके और मेरे चूतड़ों पर थप्पड़ जमाते हुए मेरी पैंटी खींचने लगा और इतनी बेरहमी से खींची कि वह फट गयी और मेरे शरीर से निकल कर उसके हाथ में झूल गयी।

फिर एक के बाद उसने कई जोरदार थप्पड़ जड़ दिये मेरे मुलायम चूतड़ों पर … दोनों चूतड़ गर्म हो गये और एकदम से ऐसा लगा जैसे चूतड़ों में मिर्चें भर गयी हों लेकिन फिर फौरन वह कुत्ते की तरह मेरे चूतड़ों को चाटने लगा। जबकि राजू अपना लिंग मेरे मुंह में घुसाये, हाथ नीचे करके मेरे दोनों स्तनों को जोर-जोर से भींचने लगा था।

चूतड़ों को चाटते-चाटते रघु ऊपर आया तो उसने मेरी पीठ पर चिकोटी काटते मुझे नीचे गिरा लिया। फिर दोनों मुझ पर भूखे जानवर की तरह टूट पड़े।

वह थप्पड़ों तमाचों से मुझे पूरे शरीर पर मार रहे थे, साथ ही मसल रहे थे, रगड़ रहे थे … मेरे सर पर इतनी ज्यादा उत्तेजना हावी थी कि मुझे उस मार से कोई तकलीफ नहीं महसूस हो रही थी। वे दोनों मेरी चूचियों को पूरी बेरहमी और बेदर्दी से मसल रहे थे। बीच-बीच में घुंडियों को मुंह में ले कर चूसने लगते, चुभलाने लगते, दांतों से काट लेते कि मैं सी कर के रह जाती।

कहीं मेरे होंठ उसी बेरहमी से चूसने लगते और अपना लिंग बार-बार मेरे मुंह में घुसा कर मेरा मुंह चोदने लगते। बीच-बीच में वे जितनी गंदी बातें कर सकते, जितना मुझे कह सकते थे … कह रहे थे और उनकी बातों के जवाब देते मैं भी ऐसे बिहेव कर रही थी जैसे मैं कोई थर्ड क्लास रंडी होऊं।

वे मेरे पूरे जिस्म पर काट रहे थे, चाट रहे थे और मेरे चेहरे को छोड़ बाकी जिस्म पर अपनी निशानियां अंकित कर रहे थे और मैं भी कम नहीं साबित हो रही थी। उनके आक्रमण का जवाब उसी अंदाज में दे रही थी। उन्हें गिरा लेती, उन पर चढ़ जाती, उनके पूरे बदन को चूमती चाटती और कई जगह काट भी लेती। उनके लिंग बुरी तरह चूसती, उनके टट्टे भी चूसती चाटती। उनके बाल पकड़ कर उनके मुंह पर अपनी योनि ऐसे रगड़ती जैसे उसे अपनी चूत में ही घुसा लेना हो। ऐसी हालत में दूसरा मेरे मुंह को चोदने लगता। चूत से ले कर गांड तक सब चटवा रही थी और वे भी पीछे नहीं हट रहे थे। इतने आक्रामक घर्षण में जाहिर है कि चूत का बुरा हाल होना था … मैं स्कवर्टिंग करती झड़ने लगी और वे भी इतने जोरदार आक्रमण को न झेल पाये। पहले मेरा मुंह चोदते गालियां देते हुए राजू झड़ने लगा तो उसने अपना लिंग बाहर निकालना चाहा लेकिन मैंने निकालने नहीं दिया।

यह नया अनुभव था, पहले कभी तो सोचा भी नहीं था … एकदम से मुंह उसके वीर्य से भर गया। अजीब स्वाद था, न अच्छा न बुरा … मैं आज हर हद पार कर जाना चाहती थी इसलिये पीछे हटने का सवाल ही नहीं था। मैं उसे निगल गयी और वह कांपता थरथराता झड़ता रहा और थोड़ा बहुत मैंने बाहर निकाल कर अपने दूधों पर मल दिया।

वह हटा तो मैंने रघु का लंड मुंह में लेना चाहा लेकिन उसने मना कर दिया कि वह चूत में ही झड़ेगा।

हालाँकि मैं झड़ चुकी थी और चूत बुरी तरह बह रही थी लेकिन लंड के लिये तो हर पल तैयार थी। मैंने उसे चित लिटाये उसके कठोर लिंग पर अपनी चूत टिकाई और बैठती चली गयी। चूत की संकरी मगर बुरी तरह पानी से भीगी दीवारें चरचराती हुई, ककड़ी की फांक की तरह फटती लंड को जड़ तक लेती चली गयी और मेरे मुंह से ऐसी राहत भरी जोर की ‘आह’ निकली थी जिसे बस मैं ही समझ सकती थी। भले झड़ चुकी थी लेकिन भट्ठी की तरह दहकती चूत को लंड से भला कैसे इन्कार होता।

आज पहली बार चूत को लंड का सही स्वाद मिला था। उस लंड के लिहाज से मेरी चूत एकदम कुंवारी ही थी और वह ऐसा फंसा-फंसा अंदर धंसा हुआ था जैसे कुत्ते कुतिया फंस जाते हैं। ऐसा नहीं था कि मुझे इस प्रवेश से दर्द नहीं हुई थी लेकिन इतनी तरसी तड़पी सुलगी हुई चूत को लंड मिला था, इस सोच से पनपी उत्तेजना उस दर्द पर भारी थी, लेकिन मैं फिर भी बिलबिलाती हुई उसे गालियां बकने लगी थीं जिसके प्रत्युत्तर में वह भी मुझे कुतिया, रंडी, छिनाल बना रहा था।

जबकि राजू झड़ने के बाद थोड़ी देर के लिये ठंडा पड़ गया था। जब मुझे लगा मैं बर्दाश्त कर सकती थी तो मैंने ऊपर नीचे होना शुरू किया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… चूत में यह लंड का घर्षण। लग रहा था जैसे मुझे पागल कर देगा। मैं जोर जोर से सिसकारती ऊपर नीचे होने लगी और चूत गपागप लंड लेने लगी। ‘फच-फच’ की आवाज के साथ मेरे चूतड़ों के उसकी जांघों से टकराने की ‘थप थप’ भी कमरे में गूँजने लगी थी।

घचर पचर चुदते हुए जब मैं थमी तो वह नीचे से जोर-जोर से धक्के लगाने लगा। लेकिन कुछ धक्कों में ही उसे अंदाजा हो गया कि उसकी उत्तेजना स्खलन के करीब पहुंच रही थी तो वह उठ कर बैठ गया और मुझे अपने ऊपर से हटाते नीचे गिरा दिया।

“अब मै झड़ने वाला हूँ रंडी … कहां लेगी मेरा माल बोल छिनाल?” वह मेरे पैरों को अपने कंधों पर रखते हुए बोला।
“मुंह में तो ले चुकी हरामी … अब मेरी चूत में बारिश कर दे। भर दे मेरी चूत को अपने माल से।” मैंने भी उसी के अंदाज में उत्तर दिया।

उसने कामरस से भीगा लिंग मेरी दहकती चूत के मुंह पर टिकाया और एक जोरदार धक्के में समूचा लंड मेरी चूत में पेल दिया कि चूत चरमरा कर रह गयी। एकदम से मेरी चीख सी निकल गयी।
“फाड़ डाली रे मेरी चूत मादरचोद!” मैंने बिलबिलाते हुए कहा।
“भोसड़ा बना के रख दूंगा तेरी बुर का बहन की लौड़ी। रोज तकती थी मेरे लौड़े को। आज देख इस लौड़े से कैसे तेरी चूत फाड़ता हूँ मादरचोद। रंडी छिनाल। तेरी माँ की चूत.. यह ले यह ले।”
“फाड़ दे … फाड़ दे हरामी। बहुत लंड मांगती थी यह। आज मजा चखा दे इसको।”

वह मेरे पैरों को अपने कंधों पे चढ़ाये थोड़ा झुक आया था और अब खूब जोर-जोर से धक्के लगा रहा था। मेरी चूत की दीवारें इस घर्षण से तप कर बहने को आ गयी थीं। लंड चलाते वह मेरी चूचियों को भी बेरहमी से दबाये डाल रहा था और मैं मुट्ठियों में बिस्तर की चादर दबोच रखी थी।

फिर जब मैंने योनि की मांसपेशियों में तीव्र अकड़न महसूस की, तभी उसके शिश्नमुंड को फूलते महसूस किया और उससे उबले गर्म-गर्म वीर्य को अपनी योनि में भरते हुए अनुभव करने लगी। झड़ते हुए मैंने पैर उसके कंधे से हटा कर नीचे कर लिये थे और उसे अपने ऊपर गिरा कर दबोच लिया था और जोर-जोर से सिसकारने लगी थी। उसने भी स्खलन की अवस्था में भेड़िये जैसी जोरदार गुर्राहटों के साथ मुझे भींच लिया था और हम दोनों ने उस चरम अवस्था में इतनी जोर से एक दूसरे को भींचा था कि हड्डियां तक कड़कड़ा उठी थीं।

थोड़ी देर में संयत होने पर वह उठ कर मुझसे अलग हुआ तो उसका मुरझाया लिंग पुल्ल से बाहर आ गया और एकदम से वीर्य बाहर उबला जिसे मैंने हाथ लगा कर हाथ पर ले लिया कि बिस्तर न खराब हो।
“बाथरूम किधर है?” मैंने राजू की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने बायीं तरफ एक बंद दरवाजे की तरफ संकेत कर दिया।

मैं उठ कर बाथरूम चली गयी … वहां सारा वीर्य फेंका, योनि में मौजूद वीर्य निकाला और फिर सर छोड़ के बाकी बदन पानी से अच्छे से धो लिया। मैं निकली तो वे दोनों एकसाथ ही बाथरूम में घुस गये।

क्रमशः

[email protected]
https://www.facebook.com/imranovaish2

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top