वह अविस्मरणीय, पूजनीय लंड

(Vah Avismarniy, Pujniya Lund)

चन्दा रानी 2019-01-10 Comments

ईश्वर सबसे बड़ा रचयिता है, उसके कला कौशल की कोई सीमा नहीं है. कितनी तरह के पेड़ पौधे, कितनी तरह के जीव जंतु, कितनी तरह के मनुष्य. सभी के रंग रूप अलग अलग. न कोई कलाकार परमपिता की बराबरी कर सकता है और न ही कोई कंप्यूटर उसके बराबर रचना कर सकता है. मनुष्य की रचना भी कितनी पूर्णता के साथ की. देखने के लिए आँखें हैं, खाने के लिए मुंह है, चलने के लिए पैर हैं. कार्य करने के लिए हाथ हैं और सृष्टि के संचालन के लिए यौनांग हैं. ईश्वर के द्वारा बनाई गयी कोई भी वस्तु निरर्थक नहीं है.

आप में से जिन स्त्री पुरुषों का यौन जीवन एक ही साथी तक सीमित है, वे यौनांगों की विविधता और खूबसूरती से अनभिज्ञ हैं. हाँ आजकल इंटरनेट पर तस्वीरें देखी जा सकती हैं, लेकिन साक्षात् देखने का उन्हें छूने का और उन्हें लेने देने का आनन्द ही अलग होता है. इसे मेरे जैसे लोग यानि काल गर्ल, काल बॉय, जिगोलो, गांडू, शौक़ीन आंटी, अंकल, भाभियाँ ही जान सकती हैं.

जैसा कि आपको मेरी अब तक अन्तर्वासना पर प्रकाशित कहानियों
ऐसे बना चंद्रप्रकाश से चंदा रानी
बन गयी सत्यम की दुल्हन
और
वह खतरनाक शाम
में पढ़ा कि मैं एक गांडू हूँ और अब तक दो सौ लोगों से अपनी गांड मरवा चुका हूँ. मेरा आग्रह है कि आप मेरी पुरानी कहानियाँ पढ़ें तो आपको मेरे बारे में काफी कुछ पता चल जाएगा और कहानियाँ पढ़ने में आनन्द आयेगा.

अब मैं अपनी इस कहानी पर आती हूँ. आपको मालूम है ना कि मैं जन्म से लड़का था मगर सत्यम ने फिल्म दिखाने के दौरान मुझे पटा लिया और मेरी गांड मारकर मुझे स्त्री बना दिया. तब से मैं स्त्रीलिंग में ही बात करना पसंद करता हूँ. तो आगे पूरी कहानी उसी फॉर्म में लिखूंगा.

तो मैं दो सौ मर्दों से पांच सौ से अधिक बार अपने पिछले छेद की सेवा करवा चुकी हूँ. कुछ ने चाटा है, कुछ ने काटा है, कुछ ने कूल्हों पर थपड़ाया है, कुछ ने निप्पल दबाकर अग्नि को भड़काया है. कुछ ने कुत्ता बनाकर मारी है, कुछ ने गोद में उठाकर पेला है, कुछ ने पुराने अंदाज में गांडमारी का खेल खेला है.

ऐसे ही एक रात की बात है, कोई नौ बजे का समय था. उस वक्त मैं इंदौर में थी. इंदौर की कई चीजें बहुत प्रसिद्ध है. सर्राफा मार्केट और पिपली बाजार में खाने पीने की चीजों की बहुत शानदार दुकानें हैं. रात में चटोरों और चटोरियों की बहुत भीड़ रहती है.

वहीं राजवाड़े के पास खजूरी बाजार के कार्नर पर एक दूकान है. यहाँ का गर्म केसरिया दूध बहुत ही प्रसिद्ध है. ठंड की रात थी, मैं भी दूध पीने की मानसिकता लेकर वहां पहुँची. गाढ़ा गाढ़ा दूध, मीठा, गर्म, केसर से युक्त, इलायची से महकता हुआ!

मैं सिप सिप करके दूध के मजे ले रही थी. दूध में कड़क मलाई थी, बहुत स्वाद आ रहा था. कोई चालीस पचास लोग थे वहां पर. कुछ समूह में थे. कुछ अकेले थे. ज्यादातर आदमी ही थे. दो तीन कपल भी थे. मैं आदमियों को देखते हुए दूध गटक रही थी. बीच बीच में अपने सीने पर और अपने कूल्हे पर भी हाथ फेर लेती थी. होंठों को भी दांत से दबा लेती थी.

एक गिलास दूध से मेरा मन नहीं भरा तो मैंने एक गिलास का और आर्डर दिया. सर्विसमैन दूध का गिलास लेकर मेरे पास आया. उसने स्वेटर पहना हुआ था. पैन्टमें आगे की जगह फूली हुई थी, जिससे अंदाज हो रहा था कि वहां दमदार डंडा होगा. मैंने उससे बातचीत प्रारम्भ की.
मैं- वाह! बहुत बढ़िया है भाई!
वह- जी हाँ सर जी, हमारे यहाँ का दूध पूरे इंदौर में प्रसिद्ध है. बहुत से लोग रोज आते हैं. आपको पहली बार देखा है.
मैं- हां जी, पहली ही बार देखा होगा मुझे. मगर आज के बाद बार बार देखना पसंद करोगे.
वह- हाँ साहेब, जो एक बार ले लेता है वो रोज लेने आता है.

मुझे हंसी आ गयी. वह दूध लेने की बात कर रहा था और मैं कुछ और ही लेने की फिराक में थी. मुझे हंसते देखकर वह भी मुस्कुराकर अन्य ग्राहकों को दूध देने में लग गया.
मैं दूध पीते हुए उसे ही देखती रही. बीच बीच में उसकी नजरें भी मुझसे मिल जाती. भीड़ बढ़ने लगी तो वह फिर मेरे पास आया और बोला- और कुछ चाहिए?
मैं- चाहिए तो सही … पर आप दोगे?
वह- जी हाँ! दूकान खोली ही इसलिए है, दूकान का सारा माल बेचने के लिए है. आप बताओ क्या लोगे?
मैं- मुझे दूकान का माल नहीं चाहिए.
वह- तो फिर क्या लोगे आप?

मैंने सोचा कि साफ़ साफ़ बोलना ही सही रहेगा. रिस्क तो है इसमें मगर इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं है. केसरिया दूध असर दिखा चुका था. दिमाग खुरापाती हो चुका था. तन और मन नियन्त्रण से बाहर निकल गया था. अब या तो मजा मिले या फिर सजा मिले. बीच का कोई रास्ता नहीं है.
मैं- मुझे दूकान का माल नहीं चाहिए. पर चाहिए तो सही दे पाओगे?
वह- आप बोलो तो?
मैं- मुझे आपका माल चाहिये?
वह- क्या?
मैं- मैंने यह दूध तो पी लिया है, मगर मुझे अब आपका दूध चाहिए.
वह- मेरा दूध. मेरे पास दूध कहाँ से आयेगा. मैं क्या भेंस गाय हूँ या मैं क्या औरत हूँ. सर आप भी मजाक करते हैं.
मैं- हाँ है आपके पास दूध. मुझे यहाँ का दूध पीना है.
मैंने उसके लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा.

वह शरमा गया, फिर धीरे से बोला- आप गंडिये हो?
मैंने उसे आँख मारी और कहा- सही पहचाना! बोलो पिलाओगे दूध अपना?
उसने कहा- आप सेठ को दूध के पैसे देकर उस तरफ आओ.

उधर सार्वजनिक सुविधाघर बना हुआ था. मैंने फटाफट पैसे दिए और उसके पीछे हो गयी.
बहुत ही गंदा मूत्रालय था. यूरिन का डाबरा भरा हुआ था.

उसने इशारे से पास बुलाया और बोला- कोई जगह है क्या? कहाँ पीओगे मेरा दूध?
मुझसे वहां खड़े होते नहीं बन रहा था, बहुत बदबू आ रही थी. लोग क्यू में खड़े थे यूरिन करने के लिए. मैंने जवाब दिया- हाँ जी है.
उसने कहा- ठीक है, आप दस बजे के आसपास यहाँ आ जाओ. दूकान उस समय बंद होती है. मैं पिला दूंगा आपको मेरे लंड का दूध.

अंधा क्या चाहे, दो आँखें … मुझे बिना अधिक प्रयास के इंदौर की उस रात को रंगीन बनाने का साधन मिल गया था. अभी मुझे उसके दुग्ध यंत्र के दर्शन नहीं हुए थे.
मैं वहीं पास के एक होटल में ठहरा था. साढ़े नौ तो बज ही चुके थे. थोड़ी देर इधर उधर घूमता रहा. मैंने सुन रखा था कि राजवाड़े के सामने बने उद्यान में गे एक्टिविटी चलती रहती है. वहां नजारा देखता रहा.

एक दो जोड़े संदिग्ध दिखे. पहले दूर दूर खड़े थे. फिर कुर्सी पर आकर बैठे. मुंह पर हाथ रखकर कुछ बातें की. पहले एक उठकर बाहर गया. फिर दूसरा उठकर उसके पीछे चल दिया. जैसे कुतिया के पीछे कुत्ते जाते हैं.
इन सब में टाइम कट गया. एक शानदार रात मेरा इन्तजार कर रही थी. एक अद्भुत अनुभव से मैं गुजरने वाली थी. मैं चाहती क्या थी और मुझे मिला क्या.

दूकान बंद हो रही थी, मैं थोड़ा आगे जाकर खड़ा हो गया. वह आदमी दूकान से बाहर आया. उसकी आँखों ने मेरा पीछा किया. मैंने हाथ उठाकर उसे अपने होने का आभास करवाया. वह अपने लंड को मसलते हुए मेरी तरफ आने लगा.
जैसी कल्पनाएँ मेरी थीं, वैसी ही कल्पनाएँ उसकी भी थीं. मैं दूध पीना चाहती थी वह दूध पिलाना चाहता था.

कोई पैंतीस चालीस साल का मुस्टंडा वह आदमी इतना तो समझता था कि केवल दूध पीने पिलाने की बात नहीं है. उसके ख्वाब में मेरी मटकती हुयी मोटे चूतड़ों वाली गांड का गुलाबी छेद भी मचल रहा होगा. मर्द था वह और मर्द के लटकते लंड को लौहे की रॉड में बदलने के लिए यह ख्वाब पर्याप्त था.
उसके पायजामे पर लंड की बल्ली से बना तम्बू स्पष्ट दिखाई दे रहा था.

मेरे पास आकर उसने कहा- बोलो कहाँ चलना है?
मैं- होटल में ठहरी हूँ. वहीं ले चलती हूँ आपको. मेरा नाम चंदा है. आप मुझे चंदा रानी या फिर चंदा डार्लिंग कह सकते हो.

मैंने उसका हाथ थाम लिया, उससे उसके बारे में पूछा तो उसने बताया कि वह राजस्थान के जयपुर का रहने वाला है. उसका परिवार वहीं रहता है. वह दूध की दूकान पर नौकरी करता है. खाना पीना रहना सब सेठ की तरफ से होता है. जब दस-बीस हजार रूपये इकट्ठे हो जाते हैं तो वह अपने देश जाता है और पैसे भी दे आता है तथा अपनी बीवी से भी मिल आता है. साल में तीन चार बार ही उसका बीवी से मिलन हो पाता है. मतलब उसकी केन दूध से लबालब भरी हुई थी. वह भी खाली करने के लिए बेचैन था.

वह किसी पंजाबी का होटल था. उस दिन सिंगल रूम खाली नहीं था तो मजबूरी में मैंने डबल्स वाला रूम लिया था. वह मजबूरी मेरे लिए प्लस पॉइंट बन रही थी.

मैं उसे अपने रूम में ले गया, उसे बैठाया और पानी का गिलास भरकर दिया. वह दिन भर से काम कर रहा था. ठंड के बावजूद उसके शरीर से पसीने की गंध आ रही थी. होटल में अधिकांश समय वह दूध गर्म करने की भट्टी के पास ही खड़ा रहता था तो पसीना आना स्वभाविक था. वैसे भी मुझे मर्दों का पसीना बहुत सुंगधित लगता है.

मैंने कहा- निकालो अपना टेंकर और उड़ेल दो दूध मेरे मुंह में!
वह- हो सकता है मेरा लंड आपको पसंद नहीं आये. अगर अच्छा लगे तो ही लेना नहीं तो मना कर देना. मैं चला जाऊँगा.

मुझे बाहर से ही उसके साइज़ का अंदाजा हो रहा था. उसकी बीवी कितनी लकी थी और यह कह रहा है कि मुझे पसंद नहीं आएगा.
मैंने पायजामे के ऊपर से उसके लंड को पकड़कर सहलाना प्रारम्भ कर दिया. एक दो बार हाथ ऊपर नीचे हुए तो उसका लंड झटके मारने लगा. मस्त मजबूत था.

वह पलंग पर बैठा था. मैं घुटनों के बल फर्श पर बैठ गयी और पायजामे के ऊपर से ही लंड को चूमने लगी. वह बेकाबू होने लगा.
वह- लाइट बंद कर दो चंदा.
मैं- नहीं, जलने दो लाइट.

मैंने उसका लंड पकड़कर खींचा और उसको अपनी जगह से उठने का संकेत दिया. वह जैसे ही उठा तो मैंने उसके पायजामे का नाड़ा खोल दिया. उसने अंदर कत्थई रंग की अंडरवियर पहन रखी थी. मैली और दो तीन जगह से फटी हुई. इंसान अपनी सबसे महंगी चीज को कितनी सस्ती चीजों और लापरवाही से कवर करता है.

वह- लाइट बंद कर दो चंदा, तुम मेरा लंड देख लोगी तो ले नहीं पाओगी. और अगर आज मैं केन को खाली किये बिना चला गया तो मुझे मेरी औरत की बहुत याद आयेगी.
मैं- आज मुझे ही अपनी घरवाली समझो सैंया जी और अपने सारे अरमान पूरे कर लो.

मैंने जैसे ही उसकी अंडरवियर नीचे की तो मैं चौंक गयी.
ओहो!!
तो इसलिए वह बार बार लाइट बंद करने के लिए कह रहे थे.

कैसा लंड था वो. हाँ हाँ बताती हूँ:
मैंने तब तक अनेक लंड लिए थे. अनेक देखे थे. मगर ऐसा लंड पहली और आख़िरी बार देख रही थी. उनका रंग गोरा था. चेहरे पर लालिमा भी थी मगर उनका लंड!! ऐसे कैसे हो सकता है. उनके होंठों पर गुलाबी आभा थी. और लंड का रंग एकदम काला. बिल्कुल काला. जैसे हाथी काला होता है. जैसे जवान इंसान के बाल काले होते हैं. जैसे सड़क बनाने का डामर काला होता है. और क्या उदाहरण दूँ आपको.
बिल्कुल वैसा ही काला लंड जैसे किसी ने ब्लेक एशियन कलर लेकर ब्रश से उसके लंड को पेंट कर दिया हो. मैं एकटक देख रहा था. गोरे आदमी का इतना काला लंड. अकल्पनीय.

उसे उसकी आशंका सही होती दिखी. मुझे चुसाने और मेरी गांड मारने का उसका सपना उसे टूटता हुआ महसूस हुआ. इसका असर यह हुआ कि उसके लंड का तनाव खत्म हो गया और वह सो गया. वाह … जागे हुए लंड से ज्यादा सुंदर उसका सोया हुआ लंड लग रहा था. मेरा मन कर रहा था कि यह खड़ा न हो और मैं इसे ऐसे ही देखती रहूँ. वाकयी वह अविस्मरणीय लंड था. वह पूजनीय लंड था.
मेरी तन्द्रा भंग हुई, वह नीचे झुका और अपनी अंडरवियर ऊपर खिसकाने लगा. इसके पहले की उसकी चड्डी उसके लंड को ढकती, मैंने तेजी से आगे बढ़कर उसे अपने मुंह में ले लिया. कितना नर्म और कितना गर्म. मेरी आँखें बंद हो गयी. मैं इस चुसाई को अपने दिल और दिमाग में सदा के लिए कैद कर लेना चाहती थी.

वह- चंदा! तुम्हें नफरत नहीं हुई मेरे काले कलूटे लंड से?
मैंने न चाहते हुए भी उसके लंड को आजाद किया और उसकी आँखों की तरफ देखते हुए कहा- तुम नहीं जानते प्यारे! तुम्हें ईश्वर ने क्या दे दिया है? यह नफरत करने की नहीं, प्यार करने की चीज है. तुम इसको लेकर लज्जित मत रहो. इस पर गर्व करो. तुम परिपूर्ण लंड के स्वामी हो. तुम वाकई एक मर्द हो.

उसने जैसे ही राहत की सांस ली. उसका लंड खड़ा होने लगा.
वह सारी रात मेरे साथ रहा. जब उसका लंड खड़ा होता तो वह मेरी गांड मारता. मैं उसके सामने कदकाठी में फूल की तरह थी. वह बहुत प्यासा था. शायद पहली बार उसके काले लंड को किसी ने ऐसे नजरिये से देखा था. कभी मुझे कुतिया बनाकर मेरी मारता. कभी मुझे अपने लंड पर उठक बैठक करवाता. कभी खिड़की के सहारे खड़ा करके अपना डंडा फंसाता. कभी मेरी गांड में अपना सात इंच का लंड फंसाकर मुझे गोद में उठा लेता, चूमने लगता, चुचियाँ दबाने लगता. और जब उसका दूध निकल जाता और लंड ढीला हो जाता तो मैं चूसने लगती.

बलवंत के साथ बिताई रात जितनी खतरनाक थी ( पढ़िये मेरी कहानी वह खतरनाक शाम) उतनी ही हसीन इसके साथ बिताई वह रात थी, रात के बीतते हर प्रहर ने मुझे भी तृप्त किया और उसे भी.

जब सुबह वह जाने लगा तो मैंने पांच सौ रूपये उसकी तरफ बढ़ाये. उसने ना में सिर हिलाया. उसने मुझसे पैसे नहीं लिए यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी. भावनाएं भावनाओं के पास पहुँची. उसने पूछा- अब कब मिलोगी.
मैंने जवाब दिया- आज जा रही हूँ भोपाल. जब भी इंदौर आउंगी तब आपसे अवश्य मिलूंगी.
वह- आपका नाम चंदा है. मगर आपने मेरा नाम तो पूछा ही नहीं.
मैंने कहा- मुझे नहीं पूछना तुम्हारा नाम. मगर मैं तुम्हें नाम देती हूँ ‘नागमणि’ तुम्हारा नाग साधारण नाग नहीं है, यह मणि वाला नाग है.

वह चला गया. जाते वक्त इमोशनल था, मुझसे लिपटकर गया. मेरी इच्छा पर एक बार और मुझे वह अविस्मरणीय लंड वह पूजनीय लंड दिखाकर गया. जाते हुए उसकी चाल में आत्मविश्वास था. उसे उसके तन की सबसे कीमती चीज की कीमत मालूम पड़ चुकी थी. क्या मैं नागमणि से बाद में और मिल पाई. बताउंगी फिर कभी किसी कहानी में.

आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी. आप मुझे [email protected] पर मेल करके बताएं. मैं आपके हर मेल का जवाब दूंगी. आप सभी की चंदा. और हाँ मुझे चन्द्रप्रकाश न कहें. मुझे चंदा सुनना अच्छा लगता है.

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