एक लड़के को देखा तो ऐसा लगा-2

(Ek ladke ko dekha to aisa laga- Part 2)

मेरी गे सेक्स कहानी के पहले भाग
एक लड़के को देखा तो ऐसा लगा-1
में आपने पढ़ा कि मैं एक सोशल मीडिया साइट पर एक जाट लड़के से बातें करने के बाद उसके जिस्म को भोगने के लिए रात में घर से निकल गया. अब आगे …

गांव में पहुंचकर नवीन ने गाड़ी रोकी और संजीव से गाड़ी को पार्क करने के लिए कह दिया. नवीन बाहर निकल गया और संजीव ने ड्राइविंग सीट संभाली और गाड़ी को सामने बने गैराज में ले गया. मैं पीछे वाली सीट पर ही बैठा हुआ था.
गाड़ी को पार्क करने के बाद उसने गाड़ी का इंजन बंद कर दिया. अब मैं संजीव का इंतज़ार कर रहा था कि वह क्या बोलेगा.

उसने पीछे मुड़कर देखा तो मैंने हल्की सी स्माइल दे दी.
उसने कहा- उतर जा भाई … इब गाड्डी मै ही बैठा रहवैगा के? (अब गाड़ी में ही बैठा रहेगा क्या?)

मैं सोच रहा था कि वह कुछ बात करेगा लेकिन उसके उलट उसने मुझे गाड़ी से उतर जाने के लिए कह दिया. संजीव ने अब तक मुझसे हाय, हैल्लो के अलावा कुछ भी बात नहीं की थी. जबकि जिस तरह से मेरी उससे मैसेंजर पर बात हुई थी तो उससे लग रहा था कि वह जानता है कि मैं उससे क्यों मिलने के लिए आया हूँ। हालांकि मैंने उसको खुलकर ये नहीं बताया था कि मैं उसके लंड को चूसना चाहता हूं लेकिन फिर भी इतना तो जानता ही था कि जब कोई किसी अन्जान लड़के को मिलने के लिए बुलाता है तो सामने वाले का मकसद समझने के बाद ही बुलाता है.

मैं चुपचाप गाड़ी से उतर गया. बाहर निकला तो रात के 11.30 बज चुके थे और कोहरा पड़ने लगा था. गाड़ी की गर्माहट से बाहर आते ही मैं फिर से ठिठुरना शुरू हो गया.
संजीव ने गाड़ी लॉक की और मैं उसके पीछे-पीछे चल पड़ा.

हम एक बिल्डिंग में घुस गए. जैसा कि मैंने पिछले भाग में बताया था कि वहां के लोगों के किराए को अपनी आमदनी का साधन बना रखा है तो यह बिल्डिंग भी वैसी ही बनाई गई थी. नीचे बाइक पार्किंग के खुली जगह थी और साथ में सीढ़ियां जा रही थीं. मैं संजीव के पीछे-पीछे सीढ़ियों पर इधर-उधर देखता हुआ चढ़ने लगा.
पहले माले पर पहुंचकर हम एक लम्बी सी गैलरी में दाखिल हुए जो लगभग 50 मीटर लम्बी तो होगी ही. गैलरी के फर्श पर टाइलें बिछी हुई थीं और दोनों तरफ कमरे बनाए गए थे. हम चलते हुए गैलरी के आखिरी छोर तक पहुंच गए. आखिरी कौने में सामने ही एक कमरा बना हुआ था जिसका दरवाज़ा हल्का सा खुला हुआ था.
मैं संजीव के पीछे-पीछे कमरे में अंदर दाखिल हुआ तो देखा कि फर्श पर तीन गद्दे बिछे हुए थे जिन पर कपड़े जहाँ-तहाँ बिखरे हुए थे.

कहीं रज़ाई तो कहीं चद्दर उलट-पलट हुई पड़ी थी. तीन-चार जोड़े जूतों के यहां-वहां अव्यवस्थित ढंग से फैले हुए थे. नवीन गैस स्टॉव के साथ में बैठकर खीरा छीलने में लगा हुआ था जिसके छिलके वहीं फर्श पर ही डाले जा रहा था.
संजीव ने जूते उतारे और अपनी जैकेट उतार दीवार पर लगे हैंगर पर टांग दी. कमरे की लाइट में चोरी छिपे उसके बदन का जायजा लेना शुरू कर दिया. उसकी जांघें काफी मोटी थी और गांड भी काफी भारी थी. पेट हल्का सा बाहर निकला हुआ था और उसके डोले भी ठीक ही साइज के थे. कुल मिलाकर उसके बदन में कोई खामी नहीं लगी मुझे.
संजीव ने मुझे जूते उतारने को कहा तो मैं भी जूते निकालकर गद्दे पर चढ़ गया. मैं अपने हाथों को अपनी छाती में फोल्ड किए हुए आराम से नीचे गद्दे पर दीवार से कमर लगाकर बैठ गया.

संजीव बाथरूम में चला गया मेरा ध्यान नवीन पर गया. वह शरीर में संजीव से हल्का था. उसकी लम्बाई के अनुसार उसका वजन भी ऐवरेज ही था और उसकी जांघें भी ज्यादा भारी नहीं थी जबकि मुझे मोटी-मोटी जांघें ज्यादा आकर्षित करती हैं जैसी कि संजीव की थी.

मैंने नवीन से कहा- मैं कुछ हेल्प करूं क्या …
नवीन बोला- नहीं बस हो गया.

इतनी ही देर में संजीव बाथरूम से बाहर आ गया और तौलिये से अपने गीले हाथ पोंछने लगा.
तभी नवीन का फोन बजने लगा. उसने फोन उठाया और सामने वाले से बातें करने लगा. शायद उसके किसी दोस्त का फोन था जो रोटियों के बारे में पूछ रहा था.
मुझे बस इतना समझ आया कि नवीन ने 20 रोटियां लाने के लिए बोला. शायद खाने की तैयारी हो रही थी. भूख तो मुझे भी लग रही थी क्योंकि मैंने भी खाना नहीं खाया था. इसलिए सेक्स के बारे में मेरा भी ज्यादा कुछ रुझान नहीं था अभी.

संजीव आकर मेरे साथ में मुझसे कुछ दूरी पर बैठ गया. उसने रजाई ओढ़ ली और मुझे भी रजाई ओढ़ने के लिए कह दिया. हालांकि उनकी रजाइयाँ काफी गंदी सी थी इसलिए मैंने मना कर दिया और बोल दिया कि मैं ठीक हूं. मुझे सर्दी नहीं लग रही है.

उसने पूछा- और बता भाई … क्या करता है तू?
मैंने कहा- कुछ नहीं, अभी तो पढ़ाई कर रहा हूँ। कॉलेज की छुट्टी थी तो इसलिए घर पर बोर हो रहा था और सोचा कि आपसे मिल लूँ।

मैं भी पूरा सीधा बनने की कोशिश कर रहा था कि जैसे मुझे पता ही न हो कि मैं यहां किसलिए आया हूँ।
एक-दो बात इधर उधर की हुई और तभी दरवाज़े में दो और लड़कों ने दस्तक दी.
उनके हाथ में एक पॉलीबैग थे जिसमें शायद रोटियाँ और सब्जी थी. उन्होंने अपने जूते निकाले और खाने को नवीन के पास रखकर गद्दे पर आ बैठे.

संजीव ने मेरे बारे में उनको बताया और उन दोनों ने भी मुझसे हाथ मिलाया. वो दोनों बड़े ही अजीब से थे. मुझे दोनों में से कोई भी पसंद नहीं आया. कुछ ही देर में उन्होंने बीड़ी निकाली और माचिस से उसको सुलगा कर बीड़ी पीना शुरू कर दिया.

मुझे वह धुंआ बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था लेकिन कमरा उनका था तो मैं चुपचाप बैठा रहा. फिर नवीन ने प्लेटें और कटोरी निकाली और खाने को गद्दे के बीच में रख दिया. एक प्लेट में 20 रोटियां रखी थीं और एक दो कटोरियों में सब्जी डाली गई थी. एक प्लेट में खीरे की कटी हुई लम्बी फांकें तितर-बितर रख दी गई थीं.

वो चारों खाने के लिए आस-पास इकट्ठा हो गए और मुझे भी खाने के लिए कहा.
मैं भी उनके साथ ही खाना खाने लगा. दो-तीन रोटी खाने के बाद मैं उठ गया और वाशरूम में जाकर हाथ धोकर वापस आ गया. उन सब ने भी खाना खाया और फिर सोने की तैयारी होने लगी.

मेरी बाईं तरफ वो दोनों लड़के थे और दाईं तरफ नवीन और संजीव थे. नवीन मेरी बगल में ही लेटा हुआ था और उसकी बगल में संजीव था. कुछ देर वे सब आपस में कंपनी की शिफ्ट के बारे में बातें करते रहे और धीरे-धीरे सब चुप होते चले गए. मैं चारों के बीच में लेटा हुआ चुपचाप पड़ा था. नवीन ने मुझे चादर ओढ़ने के लिए कहा तो मैंने उसकी गर्म चादर ओढ़ ली मगर मुंडी मैंने बाहर ही रखी.

कुछ ही देर में सब लोग सो गए. रात के करीब 12.30 बज गए थे. मैं चुपचाप लेटा हुआ था और नींद आने का वेट कर रहा था. मगर ऐसी जगह में नींद कैसे आती भला. दूसरी तरफ दिमाग में ये चल रहा था कि मैं यहां करने क्या आया हूँ. क्या मैं यहां सोने के लिए आया हूँ।
ये चारों तो सो गए. संजीव ने भी कुछ बात नहीं की. जबकि मेरा अंदाजा था कि संजीव ने मुझे सेक्स करने के लिए बुलाया था.

मैं चुपचाप लेटा हुआ यही सब सोच रहा था और घंटे भर के बाद जब सर्दी कुछ ज्यादा ही लगने लगी तो मैंने चादर को मुंह पर भी ढक लिया और मुझे नींद आ गई.

सुबह हुई तो वे दोनों लड़के जा चुके थे. जब मेरी आंख खुली तो संजीव बाथरूम से नहाकर बाहर आया था. उसने तौलिया लपेटा हुआ था. उसकी शरीर काफी भरा हुआ था. छाती भी में अच्छा खासा उभार था. छाती पर बाल भी थे जिनके बीच में गहरे भूरे रंग के निप्पल थे. जब उसने तौलिया उतारा तो मैं अपनी नज़रों को रोक नहीं पाया. उसने ट्रंक(लम्बा अंडरवियर) पहना हुआ था और उसकी जांघों पर काफी सारे बाल थे. जांघें काफी मोटी थीं और उसके चूतड़ों का साइज भी अच्छा खासा था. अंडरवियर गहरे काले रंग का था इसलिए लंड की शेप या साइज नापने में मुझे दिक्कत हो रही थी.

मगर इस पल का ही तो मैं इंतज़ार कर रहा था. मुझे लगा कि अब शायद ये कुछ करने वाला है. मगर उसने जल्दी ही अपनी लोअर पहन ली और टी-शर्ट भी डाल ली. बालों में तेल लगाकर कंघी की और गद्दे पर रज़ाई ओढ़कर बैठ गया.

उसके बाद नवीन वॉशरूम में गया और 10 मिनट में बाहर आ गया. मगर वह नहाया नहीं. उसके बाद मैं वॉशरूम में फ्रेश होने गया और बाहर आ गया. कोई कुछ बोल ही नहीं रहा था.
मैंने सोचा कि सुबह 11 बज गए हैं अब घर से फोन भी आने वाला है. इसलिए मैंने संजीव से कहा- भैया, मैं चलता हूं अब. अगर ज्यादा देर रुका तो घरवाले चिंता करने लगेंगे.

संजीव ने कहा- ठीक है … कोई बात नहीं.

मैं हैरान! क्या इसने मुझे रात में यहां सोने के लिए ही बुलाया था.
तभी नवीन बोल पड़ा- अरे, रुक जा ना अभी, मैं थोड़ी देर बाद तुझे गाड़ी में छोड़ आऊंगा, जाने की चिंता क्यूं कर रहा हैं तू. खाना खाकर चले जाना यार …

संजीव से ज्यादा अच्छा तो मुझे नवीन लगा. वह मेरी फिक्र कर रहा था. वह काफी केयरिंग लगा मुझे. इसलिए मैं उसकी बात भी मान गया.
मैंने कहा- ठीक है, मगर ज्यादा से ज्यादा एक-दो घंटा और रुक पाऊंगा नवीन भाई, फिर मुझे घर जाना पड़ेगा.
नवीन बोला- ठीक है, तुझे मेट्रो स्टेशन तक मैं छोड़कर आ जाऊंगा.

उसके बाद वो शाम वाले लड़के फिर कमरे में आ गए. उनके हाथ में कुछ चिप्स के पैकेट और दो दारू की बोतलें थी.
महफिल जमने में ज्यादा समय नहीं लगा. मैं भी ओकेज़नली पी लेता था इसलिए नवीन के कहने पर मैं भी उनके साथ शामिल हो गया. मगर मुझे ज्यादा पीने की आदत नहीं थी इसलिए दो पैग के बाद मेरा सिर घूमना शुरू गया. मजा सा आने लगा.
जब तक तीसरा पैग खत्म हुआ तो कमरे की सारी दीवारें घूमती हुई दिखने लगीं.

उसके बाद मैं उनसे अलग हो गया और एक तरफ गद्दे पर गिर गया. मुझे उनकी आवाज़ें सुनाई तो दे रही थीं मगर दिमाग मस्ती में था. मुझे अच्छा लग रहा था. जैसे हवा में हूँ। फिर शायद वो लड़के चले गए. उनकी शिफ्ट का टाइम हो गया था.

कुछ देर बाद शायद नवीन का भी ऑफिस से कॉल आ गया था. मैं आधा होश में था और आधा सुरूर में डूबा हुआ नशे का आनंद ले रहा था. अब कमरे में केवल मैं और संजीव ही रह गए थे. मैं एक तरफ पड़ा हुआ था. फिर उसने मुझसे कहा कि अगर सर्दी लग रही हो तो कम्बल ओढ़ ले.

मैं उसी के कम्बल में उसके साथ जाकर फिर से लेट गया. शायद वह देख रहा था कि मैं पूरे नशे में हूँ। मैं भी आधे होश में था तो हवस जागना शुरू हो गई थी. मैंने संजीव की पहल का इंतज़ार नहीं किया और उसकी छाती पर हाथ रख दिया. उसने मुझे अपने और करीब लाते हुए बांहों में भर लिया.
साथ ही साथ मैं इस बात का ध्यान भी रख रहा था कि संजीव को मेरी हरकतों से ऐसा लगे कि मैं यह सब नशे में कर रहा हूँ। जबकि इतना होश तो मुझे था कि मैं क्या कर रहा हूँ।

फिर उसने मुझे अपने से बिल्कुल चिपका लिया और मैंने उसकी छाती पर सिर रख दिया. मैंने अपनी एक टांग उठाई और उसकी मोटी जांघों से बीच में उसके लंड वाले एरिया पर रख दी जिससे मेरा घुटना उसके लंड से टच होने लगा. उसकी लोअर में उसका लौड़ा पहले से ही तना हुआ था.
मेरा घुटना लगते ही उसके लंड ने एक झटका देकर ये जता दिया कि वह भी मेरे लिए तैयार है. मगर अभी मैं संजीव के मजे लेता हुआ उसको तड़पा रहा था. वह मेरी कमर को सहला रहा था और उसका लंड बार झटके देने लगा था. 5 मिनट तक मैं यही नाटक करता रहा कि मैं पूरे नशे में हूँ. और उसके लंड की छुअन को फील करता रहा.

फिर संजीव ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी गांड को उठाकर दूसरे हाथ से लोअर को नीचे सरका दिया. मैंने हाथ को ढीला ही रखा ताकि उसे ये शक न हो कि मेरा दिमाग भी काम कर रहा है.

उसके बाद संजीव ने मेरे हाथ को अपने हाथ में पकड़कर अपने लंड पर रखवा दिया. मेरे मुलायम हाथों की छुअन से उसके लंड की तड़प और बढ़ गई. वह उम्मीद कर रहा था कि मैं खुद ही उसके लंड को पकड़ लूंगा लेकिन मैं तो नशे में था. इसलिए मैं उसके लंड पर हाथ को ऐसे ही ऱखकर लेटा रहा. कुछ पल बाद उसने खुद ही मेरे हाथ को अपने हाथ से पकड़कर मेरे हाथ की मुट्ठी बनाते हुए अपने लंड पर चलाना शुरू कर दिया.

मैं भी तो यही चाहता था. उसका लंड बहुत मोटा था. लम्बाई भी 6 इंच से ज्यादा ही थी. उसके मर्दाना हाथ के अंदर अपने हाथ से उसके लंड पर हाथ चलाने में मुझे गजब का मज़ा आ रहा था. मेरी वासना भी बढ़ने लगी थी मगर नशे का नाटक भी साथ-साथ चल रहा था.

फिर जब संजीव से बिल्कुल न रहा गया तो उसने मेरी गर्दन को अपने हाथों ने नीचे धकेल दिया. उसका लंड मेरे होंठों से टकराने लगा. मगर मैंने लंड को मुंह में नहीं लिया. फिर उसने खुद ही मेरे गालों को अपनी मोटी-मोटी उंगलियों में भींचकर मेरे होंठों को अलग-अगल करके खोल दिया और अपना लंड मेरे मुंह में दिया.

लंड को मुंह में देने के बाद अब बात उसके काबू से बाहर हो गई और उसने मेरे मुंह में अपने लंड को अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया.
मैं भी उसके लंड को मुंह में भर आराम से अंदर-बाहर होने दे रहा था. उसकी हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकल रही थीं. स्स्स् … आह्ह् … स्स्स … और वह अपनी गांड उठाकर मेरे मुंह में लंड को धकेलने लगा था.

3-4 मिनट में ही उसके लंड ने अपना रस मेरे मुंह में छोड़ना शुरू कर दिया. उसके नमकीन गर्म वीर्य का स्वाद मेरी जीभ पर मुझे फील होने लगा. कुछ वीर्य गले में चला गया और कुछ मुंह में भर गया.
5-6 झटकों के बाद वह रुक गया और आराम से नीचे लेट गया. उसका लंड अभी मेरे मुंह में ही था. उसका लंड वापस सिकुड़ना शुरू ही हुआ था कि उसके फोन की रिंग बजने लगी.

उसने फोन पर कुछ बात की जो मुझे अब याद भी नहीं है. उसके बाद उसने धीरे से अपना लंड मेरे मुंह से निकाला और मुझे वहीं पर लेटा छोड़कर कम्बल से बाहर निकल गया.
मैं अभी भी नशे के सुरूर में था. साथ ही संजीव के लौड़े का वीर्य मेरे खुले मुंह से लार के साथ मिलकर नीचे गद्दे पर गिरने लगा.

5 मिनट बाद मुझे दरवाजा पटकने की आवाज सुनाई दी. मैंने उठकर देखा तो कमरे में कोई नहीं था. मैं अकेला ही वहां पड़ा हुआ था. मैंने फोन में टाइम देखा तो दोपहर के दो बज गए थे.

मगर जब मैं उठकर चलने लगा तो मेरा सिर चकराने लगा. मैंने देखा कि मेरे जूते भी वहां पर नहीं थे. शायद मेरे जूते कोई लड़का पहन कर चला गया था.
मैंने पैरों में चप्पलें डालीं और चकराते सिर के साथ ही कमरे से बाहर निकल कर गैलरी में बाहर चलने लगा. मुझे चलते हुए दीवार का सहारा लेना पड़ रहा था.

फिर मैंने दिमाग को थोड़ी कमांड दी और उसने मेरा साथ देना शुरू किया. मैं उतर कर नीचे जाने लगा. नीचे पहुंचा तो सामने से नवीन आ रहा था.
उसने पूछा- कहां जा रहा है?

मैंने नवीन को पकड़ लिया और वहीं उसको गले से लगा लिया. पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैंने जैसे ही उसे गले से लगाया तो मेरा कलेजा जैसा भर सा आया.

मैंने कहा- तू कहां चला गया था यार?
उसने कहा- कम्पनी से फोन आ गया था. चल ऊपर चल … ऐसी हालत में कहां जाएगा बाहर.

कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
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