जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा-3

(January Ka Jada Yaar Ne Khol Diya Nada- Part 3)

मेरी कामुक कहानी के दूसरे भाग
जनवरी का जाड़ा, यार ने खोल दिया नाड़ा-2
में अभी तक आपने पढ़ा कि कॉलेज की छुट्टियों के बाद जब पढ़ाई शुरू हुई तो एक दिन देवेन्द्र मुकेश के साथ ही उसकी गाड़ी में बैठा हुआ मिला। निशा के घर पर वो दोनों भाई बहन उतर गए और मुझे घर छोड़ने का काम मुकेश ने देवेन्द्र को सौंप दिया। जब हम शहर से बाहर निकल कर खेतों के एरिया में आ गए तो देवेन्द्र गाड़ी रोककर पीछे मेरे साथ आ बैठा और उसने अपने तने हुए लिंग पर मेरा हाथ रखवा दिया।
अगले ही पल उसने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया और साथ ही मेरे स्तनों को भी दबाने लगा।

मैं गर्म होकर उसकी जवानी के सागर में डूबने लगी और उसने मेरे शर्ट में नीचे से हाथ डालकर मेरी ब्रा में दबे मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया। अब मैं किसी तरह का विरोध नहीं कर रही थी और उसके होंठों को चूसे जा रही थी। उसने मेरा हाथ पकड़कर फिर से उसकी पैंट में तने लिंग पर रखवा दिया और अबकी बार मैंने उसके लिंग को अच्छी तरह सहलाना शुरू कर दिया।
वो मेरे होंठों को और ज़ोर से चूसने काटने लगा। हम दोनों की सांसों की गर्मी से गाड़ी का माहौल भी गर्म हो गया था। उसका लिंग झटके पर झटके दे रहा था। जिसे मैं अपने हाथ से सहलाती हुई पकड़ने की कोशिश कर रही थी। सख्त और मोटे लिंग की छुअन से मेरी टांगें अपने आप ही गाड़ी की सीट पर फैलने लगीं और देवेन्द्र ने मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी पैन्टी को टटोलकर मेरी चूत को सहलाना शुरू कर दिया।

हम भूल गए थे कि खेतों के बीच सड़क पर गाड़ी में बैठकर एक दूसरे को चूस रहे हैं। तभी गाड़ी के पास से एक तेज़ रफ्तार दूसरी कार गुज़री और मैं देवेन्द्र से अलग हो गई। मैंने होश संभाला। और उसे अपने से अलग कर दिया।
वो बोला- क्या हुआ जान?
मैंने कहा- बस और नहीं, अब मुझे घर जाना है।
वो बोला- क्यूं, क्या हो गया?
मैंने कहा- तुम मुझे घर छोड़कर आ रहे हो या मैं पैदल ही चली जाऊं?
वो बोला- ठीक है, गुस्सा क्यूं हो रही है?

उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और बाहर निकलकर ड्राइविंग सीट पर बैठकर गाड़ी स्टार्ट की और सड़क पर दौड़ा दी।
5 मिनट में हम गांव के नजदीक पहुंच गए।
मैंने कहा- बस यहीं रोक दो, मैं यहां से पैदल चली जाऊंगी।
वो बोला- ठीक है, तेरी मर्ज़ी।

मैं गाड़ी से उतरी और मुंह पर दुपट्टा लपेटकर किताबों को सीने से चिपका कर सड़क के किनारे अपने गांव की तरफ बढ़ने लगी। मैंने पीछे मुड़कर भी नहीं देखा कि कहीं कोई ये न देख ले कि मैं किस लड़के की गाड़ी से उतरी हूं।

शाम को निशा का फोन आया- कल तू आ रही है ना मेरे घर?
मैंने पूछा- कल क्या है..
“भुलक्कड़ कल मेरा जन्मदिन है। भूल गई इतनी जल्दी?”
मैंने कहा- हां देखती हूं।
वो बोली- देखना-वेखना कुछ नहीं है, तेरे आने के बाद ही केक काटूंगी मैं।
मैंने कहा- ठीक है।

मैंने रात का खाना बनाने के बाद आज टीवी भी नहीं देखा और चुपचाप अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गई।
लेटते ही देवेन्द्र के साथ हुई दिन वाली कामुक घटना ने मेरे दिमाग पर कब्ज़ा कर लिया। मैंने अपनी नाइट वाली पजामी निकालकर सीधे चूत को सहलाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में मैं गर्म हो गई और मैंने पैंटी भी निकाल दी। मैंने तेज़ी से अपनी चूत को अपनी उंगलियों से मसलना शुरू कर दिया और एक हाथ को टॉप के अंदर डालकर अपने स्तनों को दबाने लगी। मेरी हालत खराब हो रही थी। काश देवेन्द्र अभी पास में होता तो मेरी प्यास बुझाने के लिए मुझ पर टूट पड़ता। मैं तड़पने लगी।

तभी लाइट चली गई और कमरे में अंधेरा हो गया। पूरे घर में सन्नाटा पसर गया और साथ ही मच्छर भी भिनभिनाने लगे।
ध्यान भटका तो सोचा, ये मैं किस रास्ते पर जा रही हूं।
मैंने वापस से पजामी पहन ली और कम्बल ओढ़कर सो गई।

अगले दिन निशा के लिए गिफ्ट लेने जाना था। मैं नहा-धोकर माँ के साथ बाज़ार चली गई। मैंने निशा के लिए गणेश जी की मूर्ति गिफ्ट के रूप में पैक करवा ली।
दिन के 3 बजे उसका फोन आया- रश्मी, मुकेश घर पर नहीं है तो उसका दोस्त भाई की गाड़ी लेकर तुम्हें लेने आएगा।
मैंने कहा- मगर …
वो बोली- क्या हुआ … कुछ प्रॉब्लम है?
मैंने दो पल सोचा और कह दिया- नहीं, मैं पहुंच जाऊंगी।

शाम के 5 बजे घर के बाहर गाड़ी का हॉर्न बजा तो मैंने जल्दी से माँ को आवाज़ लगाते हुए कहा- माँ, मैं मुकेश के साथ निशा के घर जा रही हूं।
माँ बोली- ठीक है, लेकिन टाइम से आ जाना।
मैंने पल की भी देर किए बिना गेट तुरंत बंद कर दिया। मैं नहीं चाहती थी कि घर वालों को पता चले कि मुकेश की गाड़ी में देवेन्द्र मुझे लेने आया है।

मैंने क्रीम रंग का कढ़ाई वाला सूट जिसके नीचे केसरिया रंग की चूड़ीदार पजामी पहन रखी थी और गले में आर्टीफिशल जूलरी डाल ली थी। सूट के ऊपर नीले रंग का कार्डिगन जो सर्दी से बचने के लिए डाल लिया था। बालों को शैम्पू करके सुखा कर खुला छोड़ दिया था और केसरिया रंग का जालीदार दुपट्टा सिर पर ढककर मैं गिफ्ट हाथ में लिए हुए जल्दी से गाड़ी के अंदर आकर बैठ गई।

लेकिन गाड़ी में बैठने के बाद देखा तो अंदर मुकेश बैठा हुआ था।
मैंने पूछा- भैया आप?
वो बोला- क्यूं … मेरी गाड़ी में कोई और होना चाहिए था क्या?
मैंने कहा- नहीं वो बात नहीं, मगर निशा तो कह रही थी कि आप घर पर नहीं हो और आपका कोई दोस्त मुझे घर से लेकर जाएगा।
मुकेश ने कहा- मैं बस कुछ देर पहले ही घर पहुंचा था, नहीं तो तुम्हें ले जाने के लिए मैंने देवेन्द्र को फोन कर दिया था। मगर मैं टाइम से पहुंच गया तो मैं ही आ गया।
कहकर उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम निशा के घर की तरफ चल पड़े।

घर पहुंचकर निशा के जन्मदिन पर कॉलेज की बाकी सहेलियाँ भी इकट्ठा हो रखी थीं। सबने खूब मस्ती मज़ाक किया और केक काटने का समय हो गया।
केक कटने के बाद सबने निशा को बर्थडे विश करते हुए गिफ्ट दिए और लड़कियाँ अपने घर जानें लगीं। मैंने निशा से कहा कि मुकेश भैया को बोल दे कि मुझे घर तक छोड़कर आ जाएँ।
वो अंदर अपने कमरे में गई और कुछ देर में वापस आकर बोली- मैंने भैया को बोल दिया है, तब तक तुम खाना खा लो।
निशा ने मेरे लिए खाना लगवा दिया।

मैं खाना खाकर मुकेश का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद वो बाहर आया और मुझसे चलने के लिए कहा। मैंने निशा को बाय बोलकर उसको फिर से बर्थडे विश किया और मेन गेट से बाहर निकलने लगी. मेरे साथ-साथ वो भी मुझे बाहर तक छोड़ने आ गई।

शाम के 7 बज चुके थे और जाड़े की ठंडी अंधेरी रात घिर आई थी। मैंने निशा को गाड़ी में बैठते हुए टाटा कहा और मुकेश ने गाड़ी स्टार्ट की और हम घर के लिए निकल पड़े।
कुछ ही दूर चले थे कि मुकेश ने गाड़ी धीमी कर ली। रात के अंधेरे में सड़क के किनारे कोई खड़ा होकर हाथ से गाड़ी को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था। मुकेश ने गाड़ी उस शख्स के पास ले जाकर रोक दी। उसने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और सीधा पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया।

वो देवेन्द्र था। मैं चौंक गई। अब ये क्या नई चाल है इन दोनों की।

मैं चुपचाप बैठी रही और मुकेश ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। जब गाड़ी शहर से बाहर निकल गई तो देवेन्द्र ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा और सीधा मेरे होंठों को चूसने लगा। मैं समझ गई कि दोनों ने पहले से प्लानिंग कर रखी थी कि मुकेश गाड़ी में जब मुझे घर छोड़ने जाए तो रास्ते में देवेन्द्र को लेता चले।

अब विरोध करने का तो फायदा था ही नहीं क्योंकि मैं उन दोनों के भरोसे ही थी। मैं देवेन्द्र को अलग करते चुपके से कान में फुसफुसायी- मुकेश के सामने ये सब क्या कर रहे हो?
जवाब में उसने भी फुसफुसा दिया- मैंने मुकेश को पहले से बता रखा था कि तेरे-मेरे बीच में क्या चल रहा है!
कहकर उसने मेरा हाथ अपनी लोअर में तने लिंग पर रखवाते हुए फिर से मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। मेरे खुले कार्डिगन के अंदर हाथ डालकर उसने मेरे स्तनों को दबाना भी शुरू कर दिया।

2-3 मिनट बाद गाड़ी की स्पीड धीमी होने लगी और वो मेन रोड़ से उतरकर कच्ची सड़क पर जाने लगी।
मैंने चुपके से फिर कहा- कहां ले जा रहे हो मुझे?
देवेन्द्र बोला- मुकेश के खेत पर!

इतने में ही गाड़ी खेतों के बीच में बनी कोठरी के पास जा रूकी।
मुकेश ने गाड़ी की सारी लाइट्स पहले से ही बंद कर रखी थीं।
उसने खिड़की खोलते हुए देवेन्द्र से कहा- आजा रै … सारा काम तैयार है.
देवेन्द्र ने मुझे नीचे उतरने के लिए कहा।

मरती मैं क्या न करती … चुपचाप नीचे उतर गई।
बाहर कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। गाड़ी में तो ठंड का अहसास भी नहीं हो रहा था लेकिन बाहर निकलते ही मेरी कुल्फी बनने लगी।
बाहर चारों तरफ सुनसान खेतों में रात का ठंडा घनघोर अंधेरा था और कोहरे में 10 फीट दूर देखना भी मुश्किल था।
इतने में मुकेश ने कोठरी का ताला खोल दिया और देवेन्द्र मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मुकेश के पीछे-पीछे कोठरी के अंदर ले गया।
दरवाज़ा बंद करते ही मुकेश ने पीली रोशनी वाला एक बल्ब जला दिया और खुद कोठरी से बाहर निकल गया।

मैंने कहा- ये कहां जा रहा है?
वो बोला- ये गाड़ी में बैठकर दारू पीएगा, और बाहर की रखवाली करेगा कि कोई अंदर न आए।
कहते ही देवेन्द्र ने मेरे कार्डिगन को उतरवा दिया और मुझे बाहों में लेकर फिर से मेरे होंठों को चूसने लगा। उसने मुझे पास की दीवार से सटा लिया और मेरे दोनों हाथों को मेरे सिर के ऊपर अपने हाथों में जकड़ते हुए दूसरे हाथ से मेरी चूत को पजामी के ऊपर से ही सहलाते हुए मुझे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।

मैं गर्म होने लगी और देवेन्द्र ने मेरा कमीज निकलवाते हुए नीचे ज़मीन पर पड़ी पराली पर डाल दिया। मैं सफेद ब्रा में दीवार से सटी हुई खड़ी थी और देवेन्द्र ने अपने ट्रैक सूट को खोलकर नीचे फेंकते हुए नीचे पहनी शर्ट के बटन खोलना भी शुरू कर दिया। पल भर में उसकी चौड़ी छाती नंगी थी और वो मुझ पर टूट पड़ा उसने मेरे स्तनों को ज़ोर-ज़ोर से दबाते हुए मेरी चूत के बीच में ज़ोर-ज़ोर से रगड़ते हुए मेरे होंठों को काटना शुरू कर दिया। उसका लिंग उसकी लोअर में नुकीला होकर मेरी जांघों में छेद करने के लिए उतावला मालूम पड़ रहा था।

उसने अगले ही पल अपनी लोअर उतार दी और साथ में अंडरवियर भी। वो बिल्कुल नंगा हो गया और मेरी ब्रा को खोलने लगा। जब मेरी ब्रा का हुक नहीं खुल सका तो उसने उतावलेपन में उसे मेरे कंधों से नीचे सरकाते हुए खींचकर मेरे पेट पर लाकर छोड़ दिया और मेरे गोरे स्तन नंगे हो गए। उसने बिना देर किए उन पर अपने होंठ रख दिए और मैं सिहर गई।
पहली बार किसी मर्द के होंठों में जाकर मेरे स्तनों में दौड़ी सरसरी ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी- आह्ह्ह्ह … देवेन्द्र …
देवेन्द्र उनको चूसने काटने में इतना मशगूल था कि वो कोठरी के दरवाज़े को अंदर से बंद करना भी भूल गया था।

जब मेरी नज़र दरवाज़े पर पड़ी तो मुकेश बाहर से हल्के से खुले दरवाज़े के बीच से हमारी रास-लीला देखता हुआ नज़र आ गया मुझे।
मैंने देवेन्द्र से कहा बस करो, कोई आ जाएगा। इससे आगे जाना ठीक नहीं है।
लेकिन वो कहां सुन रहा था मेरी।
उसने अपना हाथ मेरे नाड़े की तरफ बढ़ाया तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मैंने कहा- नहीं देवेन्द्र, ये ठीक नहीं है।”

मुझे पता था कि मुकेश बाहर से सब देख रहा है। लेकिन देवेन्द्र ने मेरे हाथ हटाते हुए मेरा नाड़ा खोल दिया और मेरी पजामी को नीचे खींच लिया। मैं पैंटी में थी और मेरी ब्रा मेरे पेट पर लिपटी हुई थी।
अगले ही पल उसने मेरी पजामी को भी निकलवा दिया और साथ ही पैंटी को भी।
मेरी नई नवेली चूत देवेन्द्र के सामने बिल्कुल नंगी हो गई थी।

उसने मेरी एक टांग को अपने हाथ से हल्का सा ऊपर उठाया और खुद घुटनों के बल नीचे बैठकर मेरी चूत पर अपने होंठ रख दिए।
मैं तड़प उठी- ओह्ह्ह … यार …
उसने जब जीभ अंदर डाली तो मैं पागल होने लगी। वो अपनी गर्म जीभ को मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा।

अब मुझसे भी बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने उसे उठाते हुए उसको फिर से खड़ा कर लिया और उसके होंठों को चूसने लगी।
उसने मेरी टांगों को उठाए हुए ही अपने लिंग को मेरी चूत पर लगाकर अपना सारा भार दीवार की तरफ लगा दिया और उसका लिंग मेरी चूत में प्रवेश करने लगा। मैं उससे लिपट गई और उसकी छाती में मुंह छिपाते हुए दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी। मेरे स्तन उसकी नंगी छाती से सटे हुए थे और वो मेरी गर्दन पर किस करते हुए मुझे प्यार कर रहा था।
धीरे-धीरे उसका लिंग मेरी चूत में उतर गया और उसने मुझे गोदी में उठाते हुए नीचे पराली पर लेटा दिया।

मेरे होंठों को चूसते हुए उसने हौले-हौले अपना लिंग मेरी चूत से पूरा बाहर निकाले बिना फिर से हल्के हल्के दबाव बनाया और मुझ पर लेट गया। मैंने उसको बांहों में भर लिया।
अब उसने लिंग को धीरे-धीरे मेरी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।

मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था लेकिन मेरे गर्म जिस्म से सटा देवेन्द्र का नंगा बदन और मेरे गले में उतर रहा उसके होंठों का रस दर्द पर मरहम का काम कर रहे थे। मैं उसकी कामक्रीड़ा में डूबने लगी। पहली बार मेरी चूत किसी मर्द के लिंग के घर्षण का मज़ा लेने में मशगूल हो गई थी।

देवेन्द्र की स्पीड बढ़ने लगी और साथ ही उसका जोश मेरी चूत का दर्द भी बढ़ाने लगा था। उसका लिंग काफी मोटा था। मैं उसकी कमर को सहलाते हुए अपने दर्द को कम करने की पूरी कोशिश कर रही थी।
लेकिन जैसे-जैसे उसकी स्पीड बढ़ती गई उसका लिंग मेरी चूत को फाड़ने लगा। अब तो वो जैसे पागल सा हो गया था। उसे मेरे दर्द से कुछ लेना-देना नहीं रह गया था। बस अपने लिंग को चूत में पेलते हुए मेरे स्तनों को चुटकी से काटते हुए मुझे चोदे जा रहा था।

5 मिनट तक उसने इसी स्पीड से मुझे चोदा और एकाएक उसका शरीर अकड़ने लगा। और स्पीड कम होते-होते वो शांत होकर मेरे ऊपर गिर गया।
कुछ पल हम ऐसे ही पड़े रहे।

मैंने कहा- उठो, मुझे ठंड लग रही है।
वो उठा तो मैंने देखा कि मुकेश अभी भी दरवाज़े से झांक रहा था लेकिन अब दरवाज़ा थोड़ा ज्यादा खुल गया था और मुकेश के लिंग से निकले वीर्य ने दरवाज़े को बीच में से गीला कर दिया था।
देवेन्द्र उठकर अपने कपड़े पहनने लगा और मुझे भी उठने के लिए कहा।

उस रात देवेन्द्र ने मेरी कुंवारी चूत को चोदकर मुझे दर्द और मज़ा दोनों ही खूब दिए।
लेकिन बात यहां पर खत्म होने वाली नहीं थी।
अभी के लिए इतना ही, बाकी की कहानी फिर कभी सुनाऊंगी।
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