मेरे प्यार की कीमत-1

(Mere Pyar Ki Keemat- Part 1)

सन्नी शाह 2011-08-14 Comments

This story is part of a series:

मूल लेखक : आलोक
यह कहानी अन्तर्वासना पर पांच साल पूर्व प्रकाशित हुई थी, मामूली संशोधनों के बाद इसे पुनः प्रकाशित किया गया है।
पूर्व प्रकाशित मूल कहानी सहेली की खातिर

मैं रेखा हूँ, 30 साल की बहुत ही खूबसूरत महिला, मेरे पति अंशु बिज़नेसमैन हैं। मैं आपको उस घटना के बारे में बताना चाहती हूँ जो आज से कोई दस साल पहले घटी थी, इस घटना ने मेरी जिंदगी ही बदल दी..

मेरे जिस्मानी संबंध मेरी सहेली के पति से हैं और इसके लिए वो ही दोषी है। मेरे दो बच्चों में एक का पिता अंशु नहीं बल्कि मेरी सहेली का पति है।

उस समय मैं पढ़ाई कर रही थी। मेरी एक प्यारी सी सहेली है, नाम है शीतल। वैसे आजकल वो मेरी ननद है, अंशु शीतल का ही भाई है, शीतल के भाई से शादी करने के लिए मुझे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। हम दोनों कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थी, हमारी जोड़ी बहुत मशहूर थी, दोनों ही बहुत खूबसूरत और छरहरे बदन की थी, बदन के कटाव बड़े ही सेक्सी थे, मेरे उरोज शीतल से भी बड़े बड़े थे लेकिन एकदम टाइट थे।

हम अक्सर एक दूसरे के घर जाते थे। मेरा शीतल के घर जाने का मकसद एक और भी था, उसका भाई अंशु। वो मुझे बहुत अच्छा लगता था, उस समय वो बी.टेक कर रहा था। बहुत ही हैंडसम और खूबसूरत सख्सियत का मालिक है अंशु! मैं उस से मन ही मन प्यार करने लगी थी। अंशु भी शायद मुझे पसंद करता था। लेकिन मुँह से कभी कहा नहीं। मैंने अपना दिल शीतल के सामने खोल दिया था। हम आपस में लड़कों की बातें भी करते थे।

मुसीबत तब आई जब शीतल आनन्द के प्यार में पड़ गई। आनन्द कॉलेज यूनियन का लीडर था। उसमें हर तरह की बुरी आदतें थी। वो एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था.. उसके पिताजी एक जाने माने उद्योगपति थे, अमाप कमाई थी और बेटा उस कमाई को अपनी अय्याशी में खर्च कर रहा था, दो साल से फ़ेल हो रहा था।

आनन्द मुझ पर भी गंदी नज़र रखता था पर मैं उस से बुरी तरह नफ़रत करती थी, मैं उससे दूर ही रहती थी। शीतल पता नहीं कैसे उसके प्यार में पड़ गई। मुझे पता चला तो मैंने काफ़ी मना किया लेकिन उसने मेरी बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। वो तो आनन्द की लच्छेदार बातों के भुलावे में ही खोई हुई थी।

एक दिन उसने मुझे बताया की उसके साथ आनन्द से शरीर के संबंध भी हो चुके हैं। मैंने उसे बहुत बुरा भला कहा मगर वो थी मानो चिकना घड़ा उस पर कोई भी बात असर नहीं कर रही थी।

एक दिन मैं अकेली स्टूडेंट रूम में बैठी कुछ तैयारी कर रही थी, अचानक आनन्द वहाँ आ गया उसने मुझसे बात करने की कोशिश की मगर मैंने अपना सिर घुमा लिया। उसने मुझे बाहों से पकड़ कर उठा दिया।

मैंने कहा- क्या बात है? क्यों परेशान कर रहे हो?
आनन्द बोला- तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।

‘मैं तेरे जैसे आदमी के मुँह पर थूकना भी पसंद नहीं करती!’ मैंने कहा, तो वो गुस्से से तिलमिला गया। उसने मुझे खींच कर अपनी बाहों में ले लिया और तपाक से एक चुबन मेरे होंठों पर दे दिया।

मैं एकदम हक्कीबक्की रह गई। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वो किसी आम जगह पर ऐसा भी कर सकता है। इससे पहले कि मैं कुछ सम्भलती, उसने मेरे दोनों स्तन पकड़ कर मसल दिए, निप्पल ऊँगलियों में भर के खींच लिए और मुँह लगा कर दाँत से काट लिया। मैं फ़ौरन वहाँ से जाने लगी तो उसने मेरे चूतड़ पकड़ कर मुझे उसके बदन से दबा लिया, उसका मोटा लंड मेरी चूत पर गड़ रहा था।

मैंने कहा- मुझे कोई बाजारू लड़की मत समझना, जो तेरी बाहों में आ जाऊँगी।

तभी किसी के कदमों की आवाज़ सुनकर वो वहाँ से भाग गया।

मेरा उस पूरा दिन मूड खराब रहा। ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी भी मेरी चूचियों को मसल रहा हो, बहुत गुस्सा आ रहा था। दोनों स्तन छूने से ही दर्द कर रहे थे।

घर पहुँच कर अपने कमरे में जब कपड़े उतार कर अपनी सफेद छातियों को देखा तो रोना आ गया, छातियों पर उनके मसले जाने के नीले नीले निशान दिख रहे थे।

शाम को शीतल आई- आज सुना हैं तुम आनन्द से लड़ पड़ी?’ उसने मुझसे पूछा।

मैंने कहा- लड़ पड़ी? मैंने उसे एक जम कर चांटा मारा। और अगर वो अब भी नहीं सुधरा तो में उसका चप्पलों से स्वागत करूँगी.. साला लोफर!’

शीतल- अरे क्यों गुस्सा करती हो। थोड़ा सा अगर छेड़ ही दिया तो इस तरह क्यों बिगड़ रही है। वो तेरा होने वाला नंदोई है। रिश्ता ही कुछ ऐसा है कि थोड़ी बहुत छेड़छाड़ तो चलती ही रहती है।

‘थोड़ी छेड़छाड़ माय फुट! देखेगी क्या किया उस तेरे आवारा आशिक़ ने?’ मैंने कह कर अपनी कमीज़ ऊपर करके उसे अपनी छातियाँ दिखाई। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

‘च्च्च.. कितनी बुरी तरह मसला है आनन्द ने!’ वो हंस रही थी। मुझे गुस्सा आ गया मगर उसकी मिन्नतों से में आख़िर हंस दी। लेकिन मैंने उसे चेता दिया- अपने उस आवारा आशिक़ को कह देना मेरे चक्कर में नहीं रहे। मेरे आगे उसकी नहीं चलनी!

बात आई गई हो गई। कुछ दिन बाद मैंने महसूस किया की शीतल कुछ उदास रहने लगी है। मैंने कारण जानने की कोशिश की मगर उसने मुझे नहीं बताया। मुझसे उसकी उदासी देखी नहीं जाती थी।

एक दिन उसने मुझसे कहा- रेखा, तेरे प्रेमी के लिए लड़की ढूंढी जा रही है।

मैं तो मानो आकाश से ज़मीन पर गिर पड़ी ‘क्या..?’

‘हाँ! भैया के लिए रिश्ते आने शुरू हो गये हैं। जल्दी कुछ कर, नहीं तो उसे कोई और ले जाएगा और तू हाथ मलती रह जाएगी।

‘लेकिन मैं क्या करूँ?’
‘तू भैया से बात कर!’
मैंने अंशु से बात की।

लेकिन वो अपने मम्मी पापा को समझाने में नाकाम था। मुझे तो हर ओर अंधेरा ही दिख रहा था। तभी शीतल एक रोशनी की तरह आई।

‘बड़ी जल्दी घबरा गई? अरे हिम्मत से काम ले!’
‘मगर मैं क्या करूँ? अंशु भी कुछ नहीं कर पा रहा है।’
‘मैं तेरी शादी अंशु से करवा सकती हूँ।’ शीतल ने कहा तो मैं उसका चेहरा ताकने लगी।

‘लेकिन..क्यूँ?’
‘क्यूँ? मैं तेरी सहेली हूँ हम दोनों जिंदगी भर साथ रहने की कसम खाते थे। भूल गई?’
‘मुझे याद है सब, लेकिन तुझे भी याद है या नहीं, मैं यह देख रही थी।’
उसने कहा- मैं मम्मी-पापा को मना लूँगी तुम्हारी शादी के लिए मगर इसके बदले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा!
‘हाँ बोल ना, क्या चाहती है मुझसे?’ मुझे लगा जैसे जान में जान आई हो।

‘देख तुझे तो मालूम ही है कि मैं और आनन्द सारी हद पार कर चुके हैं, मैं उसके बिना नहीं जी सकती।’ उसने मेरी ओर गहरी नज़र से देखा- तू मेरी शादी करवा दे, मैं तेरी शादी करवा दूँगी!’
मैंने घबराते हुए कहा- मैं तेरे मम्मी पापा से बात चला कर देखूँगी।
शीतल बोली- अरे, मेरे मम्मी-पापा को समझाने की ज़रूरत नहीं है। यह काम तो मैं खुद ही कर लूँगी!
‘फिर क्या परेशानी है तेरी?’

‘आनन्द..!’ उसने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा- आनन्द ने मुझसे शादी करने की एक शर्त रखी है।’
‘क्या?’ मैंने पूछा।
‘तुम!’ उसने कहा तो मैं उछल पड़ी- क्या?…क्या कहा?’ मेरा मुँह खुला का खुला रह गया।
‘हाँ, उसने कहा है कि वो मुझ से तभी शादी कर सकता है जब मैं तुझे उसके पास ले जाऊँ।’
‘और तूने… तूने मान लिया?’ मैं चिल्लाई।

‘धीरे बोल, मम्मी को पता चल जाएगा। वो तुझे एक बार प्यार करना चाहता है। मैंने उसे बहुत समझाया मगर उसे मनाना मेरे बस में नहीं है।’

‘तुझे मालूम है कि तू क्या कह रही है?’ मैंने गुर्रा कर उससे पूछा।

‘हाँ मेरी प्यारी सहेली से मैं अपने प्यार की भीख माँग रही हूँ.. तू आनन्द के पास चली जा, मैं तुझे अपनी भाभी बना लूँगी!’

मेरे मुँह से कोई बात नहीं निकली। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है।

शीतल ने कहा- अगर तूने मुझे निराश किया तो मैं भी तुझे कोई हेल्प नहीं करूँगी।

मैं चुपचाप वहाँ से उठकर घर चली आई। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ। एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई।

अंशु के बिना मैं नहीं रह सकती और उसके साथ रहने के लिए मुझे अपनी सबसे बड़ी दौलत गँवानी पड़ रही थी।

रात को काफ़ी देर तक नींद नहीं आई। सुबह मैंने एक फ़ैसला कर लिया। मैं शीतल से मिली और कहा- ठीक है, तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा। आनन्द को कहना कि मैं तैयार हूँ।’ वो सुनते ही खुशी से उछल पड़ी।

‘लेकिन सिर्फ़ एक बार! और किसी को पता नहीं चलना चाहिए। एक बात और…’

शीतल ने कहा- हाँ बोल जान! तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।’

‘उसके बाद तू मेरी शादी अपने भाई से करवा देगी और तेरी शादी होती है या नहीं, इसके लिए मैं ज़िम्मेदार नहीं हूँगी।’ मैंने उससे कहा।

वो तो उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। शीतल ने अगले दिन मुझे बताया कि आनन्द मुझसे होटल पार्कव्यू में मिलेगा। वहाँ उसका सूट बुक है। शनिवार शाम 8 बजे वहाँ पहुँचना था। शीतल ने मेरे घर पर चल कर मेरी माँ को शनिवार की रात को उसके घर रुकने के लिए मना लिया।

मैं चुप रही। शनिवार के बारे में सोच सोच कर मेरा बुरा हाल हो रहा था, समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ठीक कर रही हूँ या नहीं। शनिवार सुबह से ही मैं कमरे से बाहर नहीं निकली, शाम को शीतल आई, उसने माँ को मनाया अपने साथ ले जाने के लिए, उसने माँ से कहा कि दोनों सहेलियाँ रात भर पढ़ाई करेंगी और मैं उनके घर रात भर रुक जाऊँगी।

उसने बता दिया कि वो मुझे रविवार को छोड़ जाएगी। मुझे पता था कि मुझे शनिवार रात उसके साथ नहीं बल्कि उस आवारा आनन्द के साथ गुजारनी थी।

हम दोनों तैयार होकर निकले। मैंने हल्का सा मेकअप किया। एक सादा सा कुर्ता पहन कर निकलना चाहती थी मगर शीतल मुझसे उलझ पड़ी, उसने मुझे खूब सजाया।

फिर हम निकले। वहाँ से निकलते निकलते शाम 7.30 बज गये थे।

‘शीतल, मुझे बहुत घबराहट हो रही है। वो मुझे बहुत जलील करेगा। पता नहीं मेरी क्या दुर्गति बनाए!’ मैंने शीतल का हाथ दबाते हुए कहा।

‘अरे नहीं, मेरा आनन्द ऐसा नहीं है!’

मैंने कहा- ऐसा नहीं है? साला लोफर! मैं जानती हूँ कितनी लड़कियों से उसके संबंध हैं। तू वहाँ मेरे साथ रहेगी। रात को तू भी वहीं रुकेगी।

‘नहीं तो! मैं नहीं जाऊँगी।’
‘अरे नहीं, तू मेरे साथ ही रहेगी।’

‘घबरा मत, मैं उसे समझा दूँगी। वो तेरे साथ बहुत अच्छे से पेश आएगा।
कहानी जारी रहेगी।

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