खामोशी: द साईलेन्ट लव-8

(Khamoshi: The Silent love- Part 8)

अब तक कहानी में आपने पढ़ा कि दोबारा रायपुर पहुंचने के बाद जब मैंने कॉन्डोम लगाकर मोनी की चूत मारी तो उस रात वह भी मेरे साथ स्खलित हो गई थी. अगले दिन मैं उम्मीद कर रहा था कि वह अपनी खामोशी को तोड़ कर मुझसे इस बारे में अब कुछ बात जरूर करेगी. मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
पूरा दिन गुजर जाने के बाद जब रात को सोने का समय हुआ उसने अपने लिये नीचे फर्श पर अलग से बिस्तर नहीं लगाया और मेरे साथ ही बेड पर आकर लेट गयी. लाइट और टीवी भी उसने खुद बंद किया और ऐसा करते ही मेरे अंदर वासना का भूत सवार हो गया. मैंने उसको नंगी कर दिया और उसकी चूत को उंगलियों से रगड़ने के बाद जब चुदाई के लिए लंड पर कंडोम लगाने लगा तो उसने मना कर दिया. मैं उसकी बात सुनकर हैरान था.

मोनी का पति बहुत अधिक शराब पीता था जिसकी वजह से वो कुछ करने की बजाय सो जाता होगा और वैसे भी मोनी अपने पति के साथ इतना रहती भी तो नहीं थी, तभी तो मोनी को अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ था … उसकी शादी को दो साल से भी ज्यादा का समय हो गया था मगर अभी तक उसको कोई बच्चा नहीं था.

अब सारी बात मेरी समझ में आना शुरू हो गयी थी कि आखिर क्यों मोनी ने मुझे कॉन्डोम लगाने से मना कर दिया और वह बिना गर्भ निरोधक के ही मेरा मूसल लंड अपनी चूत में लेने के लिए तैयार हो गई.
“ओह्हो … तो ये बात है!” मेरे ज़हन में अब बच्चे का ख्याल आते ही मेरी सब कुछ समझ में आ गया.

“शायद मोनी का पति उसके साथ ना तो ठीक‌ से कुछ करता था और ना ही वो उसको‌ बच्चा दे पा रहा था, इसलिये ही मोनी ने मुझे अब कॉन्डोम पहनने से मना किया था और इसलिये ही शायद वो आज खुद मेरे पास आकर सोयी थी.”

अब ये बात मेरे दिमाग में आते ही मुझमें एक नया ही जोश‌ सा भर गया. मैंने अपने लंड को करीब आधा बाहर खींचकर अब एक जोर का धक्का और लगा दिया और अपने लंड को उसकी मखमली गहराई में जड़ तक ही उतार दिया जिससे मोनी जोरों के साथ चिहुंक गयी और अपने दोनों हाथों से उसने मेरी कमर को कस कर पकड़ लिया.
इतना जोर का धक्का लगाने के बाद मैं भी अब कुछ देर रुक गया। मैंने रुक कर अब पहले तो मोनी‌ के मुलायम गालों को चूमा और फिर धीरे से अपने एक हाथ से उसकी गर्दन‌ को सीधा करके‌ उसके‌ नर्म नाजुक होंठों को अपने मुँह में भर लिया जिससे मोनी अब फिर से कसमसाने लगी।

मोनी अपने होंठों को छुड़ाने के लिये अपनी गर्दन को हिला तो रही थी मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं, उसके होंठों को चूसते हुए मैंने अब नीचे से भी धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिये जिससे मोनी ने अब हल्का-हल्का कराहना भी शुरु कर दिया।
मोनी के होंठों को मैंने अपने मुँह में लिया हुआ था इसलिये वो ज्यादा जोर से तो नहीं कराह रही थी लेकिन फिर भी मेरे धक्का लगाने से वो हल्की-हल्की ‘ऊंह्ह … ऊंह्ह …’ की आवाज करते हुए चुदने के लिए खुद को तैयार कर रही थी।

जब मैं लगातार उसके होंठों को चूसता और चाटता रहा तो धीरे-धीरे वो अपने आप ही शान्त हो गयी।
उसके के शान्त होने‌ पर मैंने अब धीरे-धीरे अपने धक्कों की गति को भी बढ़ाना शुरु कर दिया जिससे मोनी कुछ देर तो कसमसाई मगर फिर जल्दी ही उसकी चूत में कामरस भर आया। मेरा लंड अब आसानी से उसकी चूत में अन्दर बाहर होने लगा था जिससे उसका बदन जो कि कुछ देर पहले तक तना हुआ था अब ढीला पड़ने लगा था. साथ ही उसने धीरे-धीरे नीचे से अपने नितम्बों को उठाना भी शुरू कर दिया था.

उसके बदन की हरकतों से मुझे साफ पता लगने लगा था कि मोनी अब मेरे लंड की चुदाई का आनंद लेने लगी है. मगर उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे वो यह दिखाने की कोशिश कर रही हो जैसे कि उसके साथ यह सब मजबूरी में किया जा रहा है. मगर उसकी इस बनावट में उसका शरीर बिल्कुल भी उसका साथ नहीं दे रहा था.

मुझे पता था मोनी खुद तो कुछ करेगी नहीं इसलिये अब मैंने ही उसके दोनों पैरों को उठा कर अपने पैरों पर रखवा लिया ताकि मेरे साथ साथ उसको नीचे से धक्के लगाने में आसानी हो जाये. मोनी ने भी अब अपने पैरों को मेरे पैरों पर से हटाया नहीं बल्कि उनको थोड़ा सही से करके मेरे पैरों में ही फँसा लिया।

मोनी के पैरों को अपने पैरों पर रखवाकर अब मैं भी तेजी से धक्के लगाने लगा जिससे मोनी की कराहटें अब और भी तेज हो गयी जो कि शायद आनन्द की कराहना थी क्योंकि नीचे से मोनी के कूल्हे अब धीरे धीरे उचकने लगे थे।

अभी तक उसने अपना मुंह नहीं खोला था जिससे कि मेरी जीभ उसके मुंह के अंदर नहीं जा पा रही थी. फिर जब मैंने थोड़ी सी जबरदस्ती दिखाई तो उसने अपना मुंह खोल दिया और मेरी जीभ को भी अपने मुंह में अंदर जाने का रास्ता दे दिया. मैंने जीभ अन्दर जाते ही उसके मुंह का रस लेना शुरू कर दिया. बदले में मोनी ने भी अपनी जीभ की हरकत दिखाई और उसने भी मेरा साथ देना शुरू कर ही दिया.

उसके दोनों हाथ अब अपने आप ही मेरी कमर पर से रेंगते हुए मेरी पीठ पर आ गये थे और उसने अपने दोनों हाथों से मेरी पीठ को सहलाते हुए मेरी जीभ को हल्का-हल्का चूसना शुरू कर दिया.

उसके मुँह से अब ‘ऊंह्ह … ऊंह्ह …’ की कराहों की जगह ‘आह … ईईश्श … आह्ह … आह्ह…’ की सिसकारियां सी निकलने लगी थीं।

जब उसका साथ मिलना शुरू हुआ तो मैंने भी अपनी पूरी तेजी व ताकत से धक्के लगाने शुरु कर दिये जिससे मोनी की सिसकारियों के साथ उस पलंग से भी चर्र-चर्र की आवाजें निकलना शुरू हो गयीं।

वैसे तो वो पलंग काफी मजबूत था मगर मेरे और मोनी की इस धक्कम-पेल से उसके पाए अब ज़मीन पर घिसटने लगे थे जिससे मोनी की सिसकारियों के साथ-साथ अब उस पलँग के पायों के चरमराने किकियाने की ‘कीईईं … कीईईईं …’ की सी आवाजें भी निकलने लगी थीं।

हम दोनों की फूली हुई साँसों के साथ-साथ उस पलँग के पायों के घिसटने की और हम दोनों की ही कामुकता भरी आवाजों से पूरा माहौल अब बेहद ही कामुक हो गया था जिससे वो पूरा कमरा गूंजने लगा था।

अगर बाहर कोई दूर भी खड़ा होगा तो जरूर वो हम दोनों के बीच चल रहे इस कामुक खेल की आवाजें सुन रहा होगा. मगर मुझे अब होश ही कहां था, मैं तो अपने पूरे जोश से मोनी की उस नन्ही सी मुनिया को उजाड़ने पर उतारू हो चला था … जो कि मेरे लंड को अब पूरा घर्षण प्रदान कर रही थी।

मोनी शायद अब अपने चरम के करीब ही थी. मेरे धक्कों के साथ-साथ अब वो भी अपने कूल्हों को थोड़ा जोर-जोर से उचकाकर मेरे लंड को अपनी चूत में उतारने की कोशिश करने लगी थी और उसकी चूत की दीवारें तो सँकुचित सी होकर मेरे लंड को अब अपने अन्दर ही पकड़कर रखने की कोशिश कर रही थीं। उसकी चूत की दीवारें मेरे लंड पर अब ऐसे कस रही थीं जैसे कि मेरे लंड को किसी ने हाथ में पकड़कर उसकी कस कर मुट्ठी भींच रखी हो जिससे मुझे अपने लंड पर अब ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसकी कमसिन संकरी चूत की दीवारें मेरे लंड को अन्दर ही पकड़कर रखना चाह रही हों. इसलिए मुझे खींच-खींच कर अपने लंड को अन्दर बाहर करना पड़ रहा था.

मेरी इस घमासान धक्कम-पेल को चलते अभी कुछ ही देर हुई थी कि अचानक से मोनी का पूरा बदन थरथरा सा गया और उसके हाथ-पैर कंपकंपाते हुए मेरे शरीर पर जोरों से आकर लिपट गये। मेरे लंड को अपनी चूत में पूरा निगलकर उसने अब किसी बेल की तरह मेरे शरीर से खुद को लिपटा लिया था.

‘आह्ह … आह्ह … आह्ह …’ की जोरों से सिसकारियाँ भरते हुए पिछली रात की तरह ही उसने अपनी चूत से मेरे लंड को जैसे चूसना शुरू कर दिया।

उसकी चूत की दीवारों के संकुचन और प्रसारण से आनंदित होकर मैं ज्यादा देर तक ठहर नहीं सका। उसका स्खलन इतना उग्र व भीषण था कि उसकी चूत की दीवारें मेरे लंड पर अब इतनी जोरों से कस गयीं कि मैं बड़ी ही मुश्किल से एक दो धक्के लगा पाया और अपने आप ही मेरे लंड ने उसकी चूत में वीर्य उगलना शुरू कर दिया‌ जिसे मोनी की चूत चूस-चूस कर निचोड़ती चली गयी.
कुछ पल के इस स्वर्ग सा आनंद देने वाले स्खलन के बाद मोनी मूर्छित सी होकर धम्म से बिस्तर पर गिर गयी और हाँफने लगी. मैं भी सारा वीर्य उसकी चूत में उड़ेलने के बाद निढाल होकर उसके ऊपर गिर गया और अपनी उखड़ी सी सांसों को काबू में करने की कोशिश करने लगा.

मैं और मोनी कुछ देर तक तो ऐसे ही एक दूसरे में समाये पड़े रहे. फिर धीरे से मोनी ने मुझे अपने ऊपर से धकेलकर नीचे कर दिया और करवट बदलकर अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया। मैं भी अब कुछ देर तो शान्त होकर ऐसे ही पड़ा रहा मगर जैसे ही मेरा लंड अपनी मूर्छा से जागा मैंने फिर से मोनी को पकड़ कर अपनी बाँहों में भर लिया‌ … जिसका उसने अब कोई विरोध नहीं किया।

उस रात मैंने तीन बार मोनी के साथ सम्बन्ध बनाये और करीब एक हफ्ते तक वहीं मोनी के पास ही रहा। इस हफ्ते भर में मैंने मोनी के साथ काफी बार सम्बन्ध बनाये मगर हम दोनों ने कभी भी एक दूसरे से बात नहीं की। हालांकि मैं तो मोनी से बात करने की काफी कोशिश करता रहता था मगर मोनी ने कभी खुल कर मेरा साथ नहीं दिया.

वो कभी आगे से पहल भी नहीं करती थी. हाँ इतना जरूर था कि मेरे पहल करने पर उसने मुझे कभी मना भी नहीं किया। वो दिन में तो मुझसे दूर ही रहती थी मगर रात को चुपचाप मेरे पास पलंग पर ही आकर सो जाती थी।

इस हफ्ते भर में वैसे तो मैंने मोनी के साथ सब कुछ किया मगर न जाने किस संकोच के कारण वो मुझसे खुल नहीं पाई. वो न तो दिन में कभी मेरे करीब आने की कोशिश करती थी और न ही रात को लाइट जला कर मुझे उसके बदन को देखने का मौका देती थी.

उसकी टाइट सी चूत को अपनी आंखों से निहारने की ख्वाहिश मेरे दिल में ही रह गयी. वैसे तो इससे पहले भी मैंने चूतों के दर्शन किये थे मगर मोनी की चूत देखने की चाहत मेरे दिल में जगी ही रहती थी. मगर अफसोस कि मुझे हफ्ते भर उसके घर से वापस आना पड़ा. हाँ, उसकी चूत मार कर मन को कुछ शांति तो मिल गई थी लेकिन उसके प्रति जो मेरे मन में भावनाएँ जगी थीं उनके कारण मैं उसको अपनी आंखों के सामने नंगी देखना चाहता था.

देखना चाहता था कि वह बिना कपड़ों के कैसे लगती है. मगर मेरी यह इच्छा पूरी नहीं होने दी उसने. मैंने भी उसके साथ ज्यादा कुछ जोर-जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की क्योंकि वह इस खामोशी को बरकरार रखना चाहती थी.

उसके बाद मैं अपने घर वापस आ गया और घर आने के करीब डेढ़ महीने बाद मुझे पता चला कि मोनी पेट से है! यह बात सुनते ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और मेरा मन खुशी से फूला नहीं समा रहा था. मेरी मुंह बोली बहन मेरे अंश को अपने पेट में पाल रही थी.

मेरी मुंह बोली बहन के साथ मेरी यह खामोश कहानी यहीं पर समाप्त होती है. कहानी आपको कैसी लगी इसके बारे में आपकी प्रतिक्रियाओं का मुझे बेसब्री से इंतजार रहेगा. मैं भविष्य में आपके लिए इस तरह की और भी कहानियां लेकर आता रहूंगा. धन्यवाद!
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