नौकर के बेटे की वासना भरी निगाहें-2

(Naukar Ke Bete Ki Vasna Bhari Nigahen- Part 2)

मेरी चुदाई की सेक्सी कहानी के पहले भाग
नौकर के बेटे की वासना भरी निगाहें-1
में आपने पढ़ा कि मेरे नौकर का बेटा छुट्टियों में अपने पिता के पास आया हुआ था तो वो हमार घर भी आ जाता और घर के काम में अपने पिता की मदद कर देता. एक दिन मैंने देखा कि वो मुझे घूरता रहता है, मेरे छोटे कपड़ों में से दिख रहे मेरे नंगे बदन को ताड़ता रहता है. मुझे भी मजा लेने की सूझी और मैंने अपना खेल शुरू कर दिया.

अब आगे:

मैंने थोड़ा और मस्ती की, मैंने अपनी चड्डी को खींच कर अपने दोनों चूतड़ों में घुसा लिया, अब मेरे दोनों चूतड़ मेरी चड्डी से बाहर थे और मेरी चड्डी मेरे चूतड़ों की दरार में फंस गई थी।
मैंने कहा- यहाँ भी लगा दे।

उसके चेहरे पर जैसे खुशी ने ही डेरा कर लिया हो। उसने पहले तो आराम आराम से तेल लगाया, मगर मेरे हौंसला देने पर बड़े प्यार से मेरे दोनों चूतड़ दबा दबा के, मसल मसल के, इनकी मालिश की।

मैंने पूछा- और भी लगा देगा?
वो बोला- जी मैडम!
मैंने उल्टी लेटे लेटे ही अपनी टी शर्ट उतार दी और बोली- ले पीठ पर भी मालिश कर दे।

उसने पहले तो मेरी पीठ पर तेल डाला और फिर लगा मालिश करने। मगर मेरी बगल में बैठ कर मेरी पीठ की मालिश करने में उसे दिक्कत हो रही थी।
मैंने उसे कहा- अगर दिक्कत हो रही है, तो मेरी टाँगों पर बैठ जा और फिर रगड़ के मालिश कर।

वो जब मेरी टाँगों पर चढ़ कर बैठा, तो मैंने उसके आँड और लंड का स्पर्श अपनी जांघों पर महसूस किया। मर्द आखिर मर्द ही होता है। मैंने महसूस कर लिया था कि उसका लंड पूरी तरह से अकड़ा हुआ है। वो भी इसी कोशिश में था कि उसका अकड़ा हुआ लंड मेरी चूतड़ों से न छूए, मगर जब सारी पीठ पर उसे मालिश करनी थी, तो आगे पीछे होते होते अक्सर उसका लंड मेरे चूतड़ों को छू जाता, मैं भी नीचे लेटी आराम से मज़े ले रही थी।

मेरी पीठ, कंधों की मालिश करते हुये उसने मेरी बगल से मेरे बूब्स को भी छू कर देखा। वो तो ये ज़ाहिर कर रहा था कि वो मेरे बदन की मालिश कर रहा है, मगर मुझे उसकी उंगलियों की हरकत से पता चल गया था कि वो मेरे बूब्स को छू कर देख रहा था।

धीरे धीरे उसका डर खुलता गया और अब वो बड़े आराम से अपना तना हुआ लंड मेरी गांड पे मसल रहा था। शायद उसका दिल कर रहा होगा कि वो अपनी पेंट और मेरी चड्डी उतार फेंके और बस अपने कड़क लंड से मुझे चोद डाले। चाहती तो मैं भी यही थी, मगर अभी नहीं मैं थोड़ा सब्र से उसे वो सब देना चाहती थी, जो उस वक़्त उसे चाहिए था, मगर साथ की साथ मैं खुद भी उस से अपनी तसल्ली चाहती थी।

जब मेरी पीठ पर उसने मालिश कर ली तो मैंने कहा- और करेगा?
वो बोला- जी, आप बोलो, कहाँ की मालिश करनी है?
लड़के में आत्मविश्वास जाग चुका था।

मैंने उसे नीचे उतरने का इशारा किया, वो साइड में बेड पर बैठ गया, तो मैं सीधी हो कर लेट गई। मेरी 36 साइज़ की बूब्स उसकी आँखों के सामने आए, तो वो तो जैसे पलक झपकना ही भूल गया, आँखें फाड़ फाड़ के वो मेरे गोरे मोटे बूब्स को देखने लगा।

मैंने उसका तेल से सना हाथ पकड़ा और खुद अपने मम्मे पर रखा और सहलाया। जैसे ही मैंने उसका हाथ छोड़ा, तो उसने झट अपने दोनों हाथों पर और तेल लगाया, और मेरे दोनों मम्मे पकड़ लिए।
ये मालिश करने वाली पकड़ नहीं थी, एक मर्दाना पकड़ थी, जैसे कोई भी मर्द किसी औरत का मम्मा मज़े लेने के लिए दबाने के लिए पकड़ता है। बेशक उसके चेहरे पर अभी दाढ़ी मूंछ नहीं आई थी, मगर मर्दानगी थी उसके बदन में।

मैं बिस्तर पर फैल कर लेटी रही और वो मेरे बदन की मालिश भूल कर सिर्फ मेरे मम्मों से ही खेलता रहा। मैं भी मस्त हो कर लेटी रही, और उस लड़के को देखती रही, जो अभी अभी मर्द बना था।
उसकी पेंट को उसके लंड ने ऊंचा उठा रखा था।

मैंने उसकी उठी हुई पैन्ट की तरफ इशारा करके पूछा- ये क्या है?
वो बड़ी बेशर्मी से बोला- लंड है जी।
मैंने कहा- अभी कहाँ, अभी तो तुम छोटे हो।
वो बोला- नहीं मैडम जी, अब तो पूरा बन गया है, पहले छोटा सा था, अब तो दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है।

मैंने अपने हाथ से उसकी पैन्ट के ऊपर से ही उसके लंड को छू कर देखा, सच में कड़क मर्दाना लंड। अब वक्त आ गया था कि मैं उसको भी नंगा करके देखूँ, तो वैसे तो मैं उसके सामने नंगी ही पड़ी थी, पर अपनी भाषा में भी थोड़ी बेशर्मी ला कर उसे कहा- मुझे तेरा लंड देखना है।

वो सकपका सा तो ज़रूर गया मगर घबराया नहीं, शायद उसे भी पता था कि बेशर्मी से ही उसे सब कुछ हासिल हो सकता है, शराफत से नहीं।
वो उठ कर खड़ा हुआ और पहले अपनी टी शर्ट और फिर अपनी पेंट और चड्डी दोनों एक साथ ही उतार दी। करीब 5 इंच का लंड रहा होगा उसका, मगर इतना कड़क के ऊपर उसकी नाभि तक उठा हुआ।

मैंने उसे हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया और उसका लंड अपने हाथ में पकड़ा, बहुत दिनों बाद ऐसा कड़क लंड हाथ लगा था। मैंने उसकी चमड़ी पीछे हटाई, तो गुलाबी रंग का टोपा बाहर निकल आया।
मैंने उससे पूछा- हाथ से करता है?
वो शर्मा गया- जी कभी कभी।
मैंने पूछा- क्यों कभी किसी की ली नहीं क्या?
वो बोला- कहाँ मैडम जी, गाँव में कहाँ मौका मिलता है।
मैंने कहा- क्यों, कहीं खेत खलिहान में, कोई लड़की पटा कर ले जाता।
वो बोला- अरे नहीं मैडम जी, अपने गाँव में ही नहीं, बल्कि मैंने तो आज तक किसी की देखी भी नहीं।

मैं उठ कर बैठ गई, अब लंड हाथ में था, तो किस बात का इंतज़ार करना था। एक बिल्कुल अंजान, कच्चा, मासूम, नौसिखिया आशिक मुझे मिल गया था जिसने कभी चूत देखी भी नहीं थी।

मैंने सबसे पहले उसका लंड पकड़ा और खींच के बाथरूम में ले गई, वाशबेसिन पे ले जा कर अपने हाथ से अच्छे से उसका लंड धोया। फिर वापिस कमरे में आ गई, और बेड पर बैठ कर उसको अपने सामने खड़ा किया. उसका लंड पकड़ा और अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।

कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जो सिखानी नहीं पड़ती, इंसान अपने आप सीख जाता है। जैसे ही मैंने उसका लंड अपने मुँह में लिया, उसने मेरा सर पकड़ लिया, और थोड़ी देर बाद खुद कमर हिला हिला कर मेरा मुँह चोदने लगा, मेरी पीठ मेरे मम्मों और मेरे चेहरे पर हाथ फिरा फिरा कर स्वाद लेने लगा।

लंड चूसने के बाद मैंने उससे पूछा- चाटेगा?
उसने शरमा कर ना कर दी।
मैंने उससे पूछा- कैसे करेगा, आगे से या पीछे से?
उसने कहा- पहले आगे से फिर पीछे से!

अब ये बातें उसको किसने सिखाई, किसी ने नहीं मगर फिर भी उसे पता था।

मैंने अपनी चड्डी उतारी और बेड पे लेट गई। वो बेड पर आया, मेरी दोनों टाँगें खोली और मेरी चूत पर अपना लंड रख दिया और अंदर डालने लगा, मगर उसका लंड अंदर घुसा नहीं क्योंकि उसने अपना लंड मेरी भग्नासा पर ही रखा था।
मैंने उसे कहा- अरे यहाँ नहीं डालते!
फिर उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रखा और फिर कहा- यहाँ डालते हैं।

उसने ज़ोर लगाया तो उसका लंड अंदर घुस गया। जैसे लंड मैं पहले ले चुकी थी, वैसा लंड तो नहीं था उसका, मगर फिर भी ठीक था, अच्छा था, मजबूत था, कड़क था और मेरी चूत के अंदर ऊपर उसके लंड के टोपे की रगड़ मैं अच्छे से महसूस कर रही थी।

बेशक पहली बार था मगर जैसे मैंने उसको समझाया था, उस हिसाब से वो ठीक चोद रहा था। मैंने उसे अपने ऊपर लेटा लिया। खुद अपना मम्मा अपने हाथ में पकड़ कर उसके मुँह में दिया, उसके अपने दोनों मम्मे चुसवाए। उसको होंठ चूसने बताए, लड़की को कैसे किस करते हैं, वो भी समझाया।

वो भी कभी मुझे चूमता, कभी मुझे चूसता। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे क्या न करे। ऐसा पगला था, कभी कभी चूमने और चूसने के चक्कर में चोदना भूल जाता, और मैं उसके चूतड़ पर मार कर कहती- इसे क्यों रोक दिया, इसे तो चालू रख!
और वो फिर से अपनी कमर हिलाने लगता।

फिर वो बोला- अब मैं आपको पीछे से चोदूँगा।
मैं उठ कर घोड़ी बन गई, तो वो अपना लंड मेरी गांड पे रखने लगा तो मैंने कहा- अरे यहाँ नहीं, नीचे डाल!
और फिर उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत पे रखा, वो फिर से चोदने लगा, मगर इस पोज में उसको खेलने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था, सिर्फ चुदाई ही कर सकता था। तो थोड़ा सा चोद कर वो बोला- मैडम जी वैसे ही सीधी हो जाओ, उसमें ज़्यादा मज़ा है।

मैं फिर से सीधी हो कर लेट गई, वो मेरे ऊपर लेटा तो मैंने उसे अपनी बांहों में भरा और पलटी मार कर उसे नीचे और खुद उसके ऊपर आ गई। उसका लंड मेरी चूत से लगा था, बस मैंने हल्का सा ज़ोर लगाया और उसका लंड मेरी चूत में घुस गया।

लंड घुसते ही मैं उठ गई और जैसे ही मैं सीधी हुई, मोनू का पूरा लंड मेरी चूत निगल गई। फिर मैंने खुद अपनी कमर हिलाई तो वो बोला- वाह मैडम, इसमें तो और भी मज़ा है।
मैंने पूछा- तुझे अच्छा लगा?
वो बोला- हाँ बहुत अच्छा लगा, बस ऐसे ही करती जाओ।

मैं अपनी कमर हिला हिला कर उसको चोदती रही और वो नीचे लेटा, मेरे मम्मों से खेलता रहा, कभी दबाता, कभी चूसता, एक दो बार तो काट भी लिया। हम दोनों को कोई जल्दी नहीं थी, इस लिए बड़े आराम से चुदाई चल रही थी। मैं सिर्फ उस लड़के को मज़ा देने के लिए सेक्स कर रही थी, मुझे अपने मज़े या झड़ने की कोई चिंता नहीं थी। मैंने तो सोचा था कि अगर ये जोश जोश में पहले झड़ भी गया तो भी कोई बात नहीं।

मगर फिर भी वो नौजवान दमदार था, करीब बीस मिनट हो गए थे, चुदाई को चलते और वो वैसे ही टन्न की आवाज़ निकाल रहा था। मगर मेरा जोश चर्मोत्कर्ष पर था, मुझे लग रहा था कि बस मैं झड़ी के झड़ी।
और वही हुआ।
अगले ही पल मेरी चूत से पानी की धार बह निकली। मैंने नीछे झुक कर खुद उसके होंठ अपने होंठों में लेकर चूस डाले और झड़ने के बाद उसके ऊपर ही शांत हो कर लेट गई। फिर थोड़ा संभाल कर मैंने उससे कहा- तेरा नहीं हुआ?
वो बोला- बस होने ही वाला है.

मैंने उसे फिर से अपने ऊपर कर लिया। इस बार उसने बड़े ज़ोर से मेरी चुदाई की क्योंकि उसे सिर्फ झड़ना था, 1 मिनट की शानदार चुदाई के बाद उसके वीर्यपात से मेरी चूत भर गई। एक मिनट में वो पसीने से नहा गया।
मैंने पूछा- मज़ा आया?
वो बोला- बहुत मज़ा आया।

कुछ देर हम दोनों एक दूसरे को बांहों में भर के लेटे रहे। फिर वो उठा और कपड़े पहन कर चला गया। मैं भी बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर अपने काम काज में बिज़ी हो गई।

वो करीब 15 दिन और हमारे घर रहा और करीब करीब मैंने 10 बार और उससे चुदवाया।
बेशक मुझे उसका लंड छोटा सा लगता था, मगर लौंडे में दम बहुत था। तब मुझे एहसास हुआ कि लंबे लंड की बात नहीं है, मर्द में दम होना चाहिए, औरत को तो वो छोटे लंड से भी तृप्त कर सकता है। बाकी भूख तो कभी भी शांत नहीं होती, 9 इंच का लंड खा कर भी मैं और बड़ा लंड चाहती हूँ। पर अगर मेरी तसल्ली 5 इंच का लंड भी करवा सकता है, तो फिर तो लंड चाहे 2 फीट का भी हो, तो भी मुझे तृप्त नहीं कर सकता।

छुट्टियाँ खत्म होने पर वो अपने गाँव वापिस चला गया और मैं फिर से किसी और नए लंड की तलाश करने लगी।
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