कुंवारी भोली-3

शगन कुमार 2011-06-27 Comments

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लेखक : शगन कुमार

अब उसने मेरे ऊपर पड़ी हुई चादर मेरी कमर तक उघाड़ दी और उसे अपने घुटनों के नीचे दबा दिया। मैं डरे हुए खरगोश की तरह अपने आप में सिमटने लगी।

“अरे डरती क्यों है… तेरी मर्ज़ी के बिना मैं कुछ नहीं करूँगा, ठीक है?”

मैंने अपना सर हामी में हिलाया।

“आगे का इलाज कराना है?” उसने इलाज शब्द पर नाटकीय ज़ोर देते हुए पूछा।

मैंने फिर से सर हिला दिया।

“ऐसे नहीं… बोल कर बताओ…” उसने ज़ोर दिया।

“ठीक है… करवाना है” मैं बुदबुदाई।

“ठीक है… तो फिर आराम से लेटी रहो और मुझे अपना काम करने दो।” कहते हुए उसने मेरे दोनों हाथ मेरी बगल से दूर करते हुए ऊपर कर दिए। मुझे लगा मेरे स्तनों का कुछ हिस्सा मेरी बगल की दोनों ओर से झलक रहा होगा। मुझे शर्म आने लगी और मैंने आँखें बंद कर लीं।

उसने अपने हाथ रगड़ कर गरम किये और मेरे कन्धों और गर्दन को मसलना शुरू किया। मेरा शरीर तना हुआ था।

“अरे… इतनी टाईट क्यों हो रही हो… अपने आप को ढीला छोड़ो !” भोंपू ने मेरे कन्धों पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा।

मैंने अपने आप को ढीला छोड़ने की कोशिश की।

“हाँ… ऐसे… अब आराम से लेट कर मज़े लो !”

उसके बड़े और बलिष्ठ हाथ मेरी पीठ, कन्धों और बगल पर चलने लगे। उसका शरीर एक लय में आगे पीछे होकर उसके हाथों पर वज़न डाल रहा था। वैसे तो उसने अपना वज़न अपने घुटनों पर ले रखा था पर उसके ढूंगे मेरे नितम्बों पर लगे हुए थे… जब वह आगे जाते हुए ज़ोर लगा कर मेरी पीठ को दबाता था तो मेरे अंदर से ऊऊह निकल जाती… और जब पीठ पर उँगलियों के जोर से पीछे की ओर आता तो मेरी आह निकल जाती। मतलब वह लय में मालिश कर रहा था और मैं उसी लय में ऊऊह–आह कर रही थी…

अब उसने कुछ नया किया… अपने दोनों हाथ फैला कर मेरे कन्धों पर रखे और अपने दोनों अंगूठे मेरी रीढ़ की हड्डी की दरार पर रख कर उसने अंगूठों से दबा दबा कर ऊपर से नीचे आना शुरू किया… ऐसा करते वक्त उसकी फैली हुई उँगलियाँ मेरे बगल को गुदगुदा सी रही थीं। वह अपने अंगूठों को मेरी रीढ़ की हड्डी के बिलकुल नीचे तक ले आया और वहाँ थोड़ा रुक कर वापस ऊपर को जाने लगा।थोड़ा ऊपर जाने के बाद उसकी उँगलियों के सिरे मेरे पिचके हुए स्तनों के बाहर निकले हिस्सों को छूने लगे। मुझे बहुत गुदगुदी हुई। मैं सिहर गई और सहसा उठने लगी… उसने मुझे दबा कर फिर से लिटा दिया। वह मेरे शरीर पर अपना पूरा अधिकार सा जता रहा था… मुझे बहुत अच्छा लगा।

अब उसने अपनी दोनों हथेलियाँ जोड़ कर उँगलियाँ फैला दीं और मेरी पीठ पर जगह जगह छोटी उंगली की ओर से मारना शुरू किया। पहले छोटी उँगलियाँ लगतीं और फिर बाकी उँगलियाँ उनसे मिल जातीं… ऐसा होने पर दड़ब दड़ब आवाज़ भी आती… उसने ऐसे ही वार मेरे सर पर भी किये।

बड़ा अच्छा लग रहा था। फिर अपने दोनों हाथों की मुठ्ठियाँ बना कर मेरी पीठ पर इधर-उधर मारने लगा… कभी हल्के तो कभी ज़रा ज़ोर से। इसमें भी मुझे मजा आ रहा था। अब जो उसने किया इसका मुझे बिल्कुल अंदेशा नहीं था। वह आगे को झुका और अपने होटों से उसने मेरी गर्दन से लेकर बीच कमर तक रीढ़ की हड्डी पर पुच्चियाँ की कतार बना दी।

मैं भौचक्की हो गई पर बहुत अच्छा भी लगा।

“ओके, अब सीधी हो जाओ।” कह कर वह मेरे कूल्हों पर से उठ गया।

“ऊंह… ना !” मैंने इठलाते हुए कहा।

“क्यों?… क्या हुआ?”

“मुझे शर्म आती है।”

“मतलब तुम्हें बाकी इलाज नहीं करवाना?”

“करवाना तो है पर…”

“पर क्या?”

“तुम्हें आँखें बंद करनी होंगी।”

“ठीक है… पर मेरी भी एक शर्त है !!”

“क्या?”

“मैं आँखें बंद करके तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करूँगा… मंज़ूर है?”

“ठीक है।”

“पूरे बदन का मतलब समझती हो ना? बाद में मत लड़ना… हाँ?”

“हाँ बाबा… समझ गई।” मेरे मन में खुशी की लहर दौड़ गई पर मैंने ज़ाहिर नहीं होने दिया।

“तो ठीक है… मैं तुम्हारे दुपट्टे को अपनी आँखों पर बाँध लेता हूँ।” और मैंने देखा वह बिस्तर के पास खड़ा हो कर दुपट्टा अपनी आँखों पर बाँध रहा था।

“हाँ… तो मैंने आँखों पर पट्टी बाँध ली है… अब तुम पलट जाओ।”

मैंने यकीन किया कि उसकी आँखें बंधी हैं और मैं पलट गई। वह अपने हाथ आगे फैलाते हुए हुआ बिस्तर के किनारे तक आया। उसके घुटने बिस्तर को लगते ही उसने अपने हाथ नीचे किये और मुझे टटोलने लगा। मुझे उसे देख देखकर ही गुदगुदी होने लगी थी। उसका एक हाथ मेरी कलाई और एक मेरे पेट को लगा। पेट वाले हाथ को वह रेंगा कर नीचे ले गया और मेरे घाघरे के नाड़े को टटोलने लगा। मेरी गुदगुदी और कौतूहल का कोई ठिकाना नहीं था। मैं इधर उधर हिलने लगी। मैं नाड़े के किनारों को घाघरे के अंदर डाल कर रखती हूँ… उसकी उँगलियों को नाड़े की बाहरी गाँठ तो मिल गई पर नाड़े का सिरा नहीं मिला… तो उसने अपनी उँगलियाँ घाघरे के अंदर डालने की कोशिश की।

“ये क्या कर रहे हो?” मैंने अपना पेट अकड़ाते हुए पूछा।

“तुम मेरी शर्त भूल गई?”

“मुझे अच्छी तरह याद है… तुम बंद आँखों से मेरे पूरे बदन पर मालिश करोगे।”

“तो करने दो ना…”

“इसके लिए कपड़े उतारने पड़ेंगे?” मैंने वास्तविक अचरज में पूछा।

“और नहीं तो क्या… मालिश कपड़ों की थोड़े ही करना है… अब अपनी बात से मत पलटो।” कहते हुए उसने घाघरे में उँगलियाँ डाल दी और नाड़ा खोलने लगा। मेरी गुदगुदी और तीव्र हो गई… मैं कसमसाने लगी। भोंपू भी मज़े ले ले कर घाघरे का नाड़ खोलने लगा…उसकी चंचल उँगलियाँ मेरे निचले पेट पर कुछ ज्यादा ही मचल रही थीं। हम दोनों उत्तेजित से हो रहे थे… मुझे अपनी योनि में तरावट महसूस होने लगी।

“तुम बहुत गंदे हो !” कहकर मैं निढाल हो गई। उसकी उँगलियों का खेल मेरे पेट पर गज़ब ढा रहा था। उसने मेरे घाघरे के अंदर पूरा हाथ घुसा ही दिया और नाड़ा बाहर निकाल कर खोल दिया। नाड़ा खुलते ही उसने एक हाथ मेरे कूल्हे के नीचे डाल कर उसे ऊपर उठा दिया और दूसरे हाथ से मेरा घाघरा नीचे खींच दिया और मेरी टांगों से अलग कर दिया। मुझे बहुत शर्म आ रही थी… मेरी टांगें अपने आप ज़ोर से जुड़ गई थीं… मेरे हाथ मेरी चड्डी पर आ गए थे और मैंने घुटने मोड़ कर अपनी छाती से लगा लिए। भोंपू ने घाघरा एक तरफ करके जब मुझे टटोला तो उसे मेरी नई आकृति मिली। वह बिस्तर पर चढ़ गया और उसने बड़े धीरज और अधिकार से मुझे वापस औंधा लिटा दिया। वह भी वापस से मुझ पर ‘सवार’ हो गया और अपने हाथों को पोला करके मेरी पीठ पर फिराने लगा। मेरे रोंगटे खड़े होने लगे। अब उसने अपने नाखून मेरी पीठ पर चलाने शुरू किये… पूरी पीठ को खुरचा और फिर पोली हथेलियों से सहलाने लगा। मुझे बहुत आनन्द आ रहा था… योनि पुलकित हो रही थी और खुशी से तर हो चली थी।

अब वह थोड़ा नीचे सरक गया और अपनी मुठ्ठियों से मेरे चूतड़ों को गूंथने लगा। जैसे आटा गूंदते हैं उस प्रकार उसकी मुठ्ठियाँ मेरे कूल्हों और जाँघों पर चल रही थीं। थोड़ा गूंथने के बाद उसने अपनी पोली उँगलियाँ चलानी शुरू की और फिर नाखूनों से खुरचने लगा। मुझ पर कोई नशा सा छाने लगा… मेरी टांगें अपने आप थोड़ा खुल गईं। उसने आगे झुक कर मेरे चूतड़ों के दोनों गुम्बजों को चूम लिया और मेरी चड्डी की इलास्टिक को अपने दांतों में पकड़ कर नीचे खींचने लगा।

ऊ ऊ ऊ ऊह… भोंपू ये क्या कर रहा है? कितना गन्दा है? मैंने सोचा। उसकी गरम सांस मेरे चूतड़ों में लग रही थी। पर वह मुँह से चड्डी नीचे करने में सफल नहीं हो रहा था। चड्डी वापस वहीं आ जाती थी। पर वह मानने वाला नहीं था। उसने भी एक बार ज़ोर लगा कर चड्डी को एक चूतड़ के नीचे खींच लिया और झट से दूसरा हिस्सा मुँह में पकड़ कर दूसरे चूतड़ के नीचे खींच लिया। अपनी इस सफलता का इनाम उसने मेरे दोनों नग्न गुम्बजों को चूम कर लिया और फिर धीरे धीरे मेरी चड्डी को मुँह से खींच कर पूरा नीचे कर दिया। चड्डी को घुटनों तक लाने के बाद उसने अपने हाथों से उसे मेरी टांगों से मुक्त करा दिया।

हाय ! अब मैं पूरी तरह नंगी थी। शुक्र है उसकी आँखों पर पट्टी बंधी है।

भोंपू ने और कुछ देर मेरी जाँघों और चूतड़ों की मालिश की। उसकी उँगलियाँ और अंगूठे मेरी योनि के बहुत करीब जा जा कर मुझे छेड़ रहे थे। मेरे बदन में रोमांच का तूफ़ान आने लगा था। मेरी योनि धड़क रही थी… योनि को उसकी उँगलियों के स्पर्श की लालसा सी हो रही थी… वह मुझे सता क्यों रहा था? यह मुझे क्या हो रहा है? मेरे शरीर में ऐसी हूक कभी नहीं उठी थी… मुझे मेरी योनि द्रवित होने का अहसास हुआ… हाय मैं मर जाऊँ… भोंपू मेरे बारे में क्या सोचेगा ! मैंने अपनी टांगें भींच लीं।

भोंपू को शायद मेरी मनोस्थिति का आभास हो गया था… उसने आगे झुक कर मेरे सर और बालों में प्यार से हाथ फिराया और एक सांत्वना रूपी चपत मेरे कंधे पर लगाई… मानो मुझे भरोसा दिला रहा था।

मैंने अपने आप को संभाला… आखिर मुझे भी मज़ा आ रहा था… एक ऐसा मज़ा जो पहले कभी नहीं आया था… और जो कुछ हो रहा था वह मेरी मंज़ूरी से ही तो हो रहा था। भोंपू कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं कर रहा था। इस तरह मैंने अपने आप को समझाया और अपने शरीर को जितना ढीला छोड़ सकती थी, छोड़ दिया। भोंपू ने एक और पप्पी मेरी पीठ पर लगाई और मेरे ऊपर से उठ गया।

“एक मिनट रुको… मैं अभी आया !” भोंपू ने मुझे चादर से ढकते हुए कहा और चला गया। जाते वक्त उसने अपनी आँखें खोल ली थीं।

कोई 3-4 मिनट बाद मुझे बाथरूम से पानी चलने की आवाज़ आई और वह वापस आ गया। उसके हाथ में एक कटोरी थी जो उसने पास की कुर्सी पर रख दी और बिस्तर के पास आ कर अपनी आँखों पर दुपट्टा बाँध लिया।

मैंने चोरी नज़रों से देखा कि उसने अपनी कमीज़ उतार कर एक तरफ रख दी। उसकी चौड़ी छाती पर हल्के हल्के बाल थे। अब उसने अपनी पैन्ट भी उतार दी और वह केवल अपने कच्छे में था। मेरी आँखें उसके कच्छे पर गड़ी हुई थीं। उसकी तंदरुस्त जांघें और पतला पेट देख कर मेरे तन में एक चिंगारी फूटी। उसका फूला हुआ कच्छा उसके अंदर छुपे लिंग की रूपरेखा का अंदाजा दे रहा था। मेरे मन ने एक ठंडी सांस ली।

मैं औंधी लेटी हुई थी… उसने मेरे ऊपर से चादर हटाई और पहले की तरह ऊपर सवार हो गया। उसने मेरी पीठ पर गरम तेल डाला और अपने हाथ मेरी पीठ पर दौड़ाने लगा। बिना किसी कपड़े की रुकावट से उसके हाथ तेज़ी से रपट रहे थे। उसने अपने हथेलियों की एड़ी से मेरे चूतड़ों को मसलना और गूंदना शुरू किया… उसके अंगूठे मेरे चूतड़ों की दरार में दस्तक देने लगे। भोंपू बहुत चतुराई से मेरे अंगों से खिलवाड़ कर रहा था… मुझे उत्तेजित कर रहा था।

अब उसने अपना ध्यान मेरी टांगों पर किया। वह मेरे कूल्हों पर घूम कर बैठ गया जिससे उसका मुँह मेरे पांव की तरफ हो गया। उसने तेल लेकर मेरी टांगों और पिंडलियों पर लगाना शुरू किया और उनकी मालिश करने लगा। कभी कभी वह अपनी पोली उँगलियाँ मेरे घुटनों के पीछे के नाज़ुक हिस्से पर कुलमुलाता… मैं विचलित हो जाती।

अब उसने एक एक करके मेरे घुटने मोड़ कर मेरे तलवों पर तेल लगाया। मेरे दाहिने तलवे को तो उसने बड़े प्यार से चुम्मा दिया। शायद वह कल की मालिश का शुक्रिया अदा कर रहा था !! मेरे तलवों पर उसकी उँगलियों मुझे गुलगुली कर रही थीं जिससे मैं कभी कभी उचक रही थी। उसने मेरे पांव की उँगलियों के बीच तेल लगाया और उनको मसल कर चटकाया। मैं सातवें आसमान की तरफ पहुँच रही थी।

उसने आगे की ओर पूरा झुक कर मेरे दोनों चूतड़ों को एक एक पप्पी कर दी और पोले हाथों से उनके बीच की दरार में उंगली फिराने लगा।

बस… न जाने मुझे क्या हुआ… मेरा पूरा बदन एक बार अकड़ सा गया और फिर उसमें अत्यंत आनन्ददायक झटके से आने लगे… पहले 2-3 तेज़ और फिर न जाने कितने सारे हल्के झटकों ने मुझे सराबोर कर दिया… मैं सिहर गई .. मेरी योनि में एक अजीब सा कोलाहल हुआ और फिर मेरा शरीर शांत हो गया।

इस दौरान भोंपू ने अपना वज़न मेरे ऊपर से पूरी तरह हटा लिया था। मेरे शांत होने के बाद उसने प्यार से अपना हाथ मेरी पीठ पर कुछ देर तक फिराया। मेरे लिए यह अभूतपूर्व आनन्द का पहला अनुभव था।

इसके आगे क्या हुआ “कुंवारी भोली–4” में पढ़िए !

शगन

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