शायरी में चुदाई

एक दीवाना 2005-04-01 Comments

प्रेषक : दीवाना “अजनबी”

बहुत अँधेरा है कमरे में रौशनी कर दो ,

उतार दो यह पैराहन, चांदनी कर दो .

चली भी आओ मैं जकड़ूँगा तुम को बाँहों से ,

मैं पीना चाहता हूँ आज बस निगाहों से .

दिखा के अपना हुस्न मेरे होश गुम कर दो ,

कि आज प्यार की पहली पहल भी तुम कर दो .

चले भी आओ तड़प के हमारी बाँहों में ,

कि अपनी सांस मिला दो हमारी सांसों में .

मेरे जलते हुए होठों पे अपने लब रख दो ,

उतार दो ये कपडे पलंग पे सब रख दो .

मैं अपने लबों को रख दूँ तेरे रुखसारों पे ,

और अपने हाथ फिराऊँ तेरे उभारों पे .

तुझे सर से पाँव तक मैं चूमता ही रहूँ ,

तेरे कंधे , तेरी छाती को चूसता ही रहूँ .

मैं चाहता हूँ छेड़ना तेरे तेरे अंगारों को ,

दबा के चूस के पी लूँगा इन उभारों को .

तेरा वोह अंग जो दुनिया में सब से प्यारा है ,

मैं उसे जीभ से चाटूं तेरा इशारा है .

फिरा के हाथ बदन पे मैं सज़ा दूँ तुझको ,

फिर अपनी जीभ से ज़न्नत का मज़ा दूँ तुझको .

मेरे लिए भी तो यह काम एक बार करो ,

मुंह में लेके चूसो इसे और प्यार करो .

फिर आओ इसके बाद एक हो जाएँ हम तुम ,

मुझे अपने बदन में पूरा समा लेना तुम .

और इस खेल में आखिर में वोह मुकाम आये ,

मेरे बदन में जो भी कुछ है तेरे काम आये .

चले आओ मेरी खुशियों को सौ गुणी कर दो ,

बहुत अँधेरा है कमरे में रौशनी कर दो . “”

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