रेखा की मस्ती

(Rekha Ki Masti)

जो हन्टर, कामिनी सक्सेना

ट्रेन अपनी गति पकड़ चुकी थी। मैं खिड़की के पास बैठा हुआ बाहर के सीन देख रहा था। इतने मे कम्पार्ट्मेन्ट मे एक सुन्दर सी लड़की अन्दर आयी। मैंने उसे देखा तो चौंक गया। सामने आ कर वो बैठ गयी। मैं उसे एकटक देखता रह गया। तभी मेरा दिमाग ठनका। और

वो मुझे जानी पहचानी सी लगी। मैंने उसे थोड़ा झिझकते हुए कहा,’ क्या आप रेखा डिकोस्टा हैं…’

‘ह… आ… हां… आप मुझे जानते हैं…?’
‘आप पन्जिम में मेरे साथ पढ़ती थी… पांच साल पहले…’
‘अरे… तुम जो हो क्या…’

‘थैंक्स गोड… पहचान लिया… वर्ना कह्ती… फिर कोई मजनूं मिल गया…’
‘जो…तुम वैसे कि वैसे ही हो…मजाक करने की आदत गई नहीं… कहां जा रहे हो…?’

‘मडगांव… फिर पन्जिम..मेरा घर वहीं तो है ना…’
‘अरे वाह्… मैं भी पण जी ही जा रही हूं…’

पण जी का पुराना नाम पंजिम है… रास्ते भर स्कूल की बातें करते रहे… कुछ ही देर में मडगांव आ गया। हम दोनो ही वहां उतर गये। वहां से मेरे चाचा के घर गये और कार ले कर पंजिम निकल गये। वहां पहुंच कर मैंने पूछा -‘कहां छोड़ दूं…?’

‘होटल वास्को में रुक जाउंगी… वहीं उतार देना…’

‘अरे कल तक ही रुकना है ना…तो मेरे घर रूक जाओ…’

‘पर जो…तुम्हारे घर वाले…’

अरे यार… घर में मम्मी के सिवा है ही कौन…’ वो कुछ नहीं बोली। हम सीधे घर आ गये।

मैंने अपना कमरा खोल दिया-‘रेखा तुम रेस्ट करो…चाहे तो नहा धो कर फ़्रेश हो लो… अन्दर सारी सहुलियत है…’ मैं मम्मी के पास चला गया। शाम ढल चुकी थी। खाने के पहले मैंने जिंजर वाईन निकाली और उसे दी… मैंने भी थोड़ी ले ली। बातों में रेखा ने बताया कि उसके पापा के मरने के बाद उसकी प्रोपर्टी पर बदमाशों ने कब्जा कर लिया था… फिर वहां उसके भाई को मार डाला था। उसे बस वो मकान एक बार देखना था।

‘मुझे अभी ले चलोगे क्या अभी… नौ बजे तक तो आ भी जाएँगे…’ कुछ जिद सी लगी…

‘क्या करोगी उसे देख कर… अब अपना तो रहा नही है…’

‘मन की शान्ति के लिये… सुना है आज वहां जोन मार्को आ रहा है…’

‘अच्छा चलो… भाड़ में गया तुम्हरा मार्को…’

मैंने उसका कहा मान कर वापिस कार निकाली और उसके साथ चल दिया। मात्र दस मिनट का रास्ता था। उस मकान में एक कमरे में लाईट जल रही थी। हम दोनो अन्दर गये…

‘वो देखो… वो जो बैठा है ना… दारू पी रहा है… उसने मेरे भाई को मारा है…’ मैंने खिड़की में से झांक कर देखा… पर मुझे उस से कोई वास्ता नहीं था…

‘मैं कार में बैठा हूं जल्दी आ जाना…’

मैं वापस कार में आकर उसका इन्तज़ार करने लगा। कुछ ही देर बाद रेखा आ गयी। बड़ा संतोष झलक रहा था उसके चेहरे पर। मैंने गाड़ी मोड़ी और और घर वापस आ गये… हां रास्ते से उसने भुना हुआ मुर्गा और ले लिया…

‘चलो जो… आज मुर्गा खायेंगे… मै आज बहुत खुश हूं…’

घर पहुंचते ही जैसे वो नाचने लगी। मेरा हाथ पकड़ कर मेरे साथ नाच कर एक दो चक्कर लगाये। मुझे उसकी खुशी की वजह समझ में नहीं आ रही थी। उसने भी मेरे साथ फ़ेनी ड्रिंक ली… और फिर मुर्गा एन्जोय किया। रात हो चुकी थी…

‘रेखा तुम यहां सो जाओ… मैं मम्मी के पास सोने जा रहा हूं… गुड्नाईट्…’

‘क्या अभी तक मम्मी के साथ सोते हो… आज तो मेरे साथ सो जाओ यार…’

‘अरे क्या कह्ती हो… चुप रहो… ज्यादा पी ली है क्या…’

‘चलो ना… आज मेरे साथ सो जाओ ना जो… देखो मैं कितनी खुश हूं आज… आओ खुशियां बांट ले अपन… दुख तो कोई नहीं बांटता है ना… मेरे साथ सेलेब्रेट करो आज…’

उसने मेरा हाथ थाम लिया… मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि रेखा क्या बोले जा रही है… रेखा ने पीछे मुड़ कर दरवाजा बन्द कर लिया। मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी… मैंने मजाक में कहा-‘देखो रेखा… मैं तो रात को कपड़े उतार कर सोता हूं…’

‘अच्छा… तो आप क्या समझते है… मै कपड़ों के साथ सोती हूं…’ उसने अपनी एक आंख दबा दी। उसी समय लाईट चली गयी। उसने मौका देखा या मैंने मौका समझा…हम दोनो एक साथ, एक दूसरे से लिपट गये। उसके उन्नत उरोज मेरी छाती से टकरा गये। शायद खुशी से या उत्तेजना से उसकी चूंचियां कठोर हो चुकी थी। मेरे हाथ स्वत: ही उसके स्तनों पर आ गये… मैंने उसके स्तन दबाने शुरु कर दिये… उसके कांपते होंठ मेरे होठों से मिल गये… तभी फ़िल्मी स्टाईल में लाईट आ गयी… पर हम दोनो की आंखे बन्द थी… मेरा लन्ड खड़ा हो चुका था और उसके कूल्हों पर टकरा रहा था। उसे भी इसका अह्सास हो रहा था।

‘आओ जो… बिस्तर पर चलते है… वहां पर मेरी बोबे… चूत…सब मसल देना… अपना लन्ड मुझे चुसाना… आओ…’

मैंने उसके मुंह से खुली भाषा सुनी तो मेरी वासना भड़क उठी। मैंने भी सोचा कि मैं भी वैसा ही बोलूं -‘फिर तो तुम कही… चुद गयी तो…’

‘अरे हटो… तुम बोलते हो तो गाली जैसी लगती है…’ उसने मेरा मजाक उड़ाया फिर धीरे से बोली…’और बोलो ना जो…’

मैंने रेखा को गोदी में उठा लिया… मुझे आश्चर्य हुआ वो बहुत ही हल्की थी… फ़ूलों जैसी… उसे बिस्तर पर प्यार से लेटा दिया। उसका पजामा और कुर्ता उतार दिया। रेखा बेशर्मी से अपने पांव खोल कर लेट गयी… उसकी चूत पाव जैसी फ़ूली हुयी प्यारी सी सामने नजर आ रही थी। उसकी बड़ी बड़ी चूंचियां पर्वत की तरह अटल खड़ी थी… मैंने भी अपने कपड़े उतार डाले।

”बोलो… कहां से शुरु करें…’

‘अपना प्यारा सा लन्ड मेरे मुँह में आने दो…देखो मेरे ऊपर आ जाओ पर ऐसे कि मेरे कड़े निप्पल तुम्हारी गान्ड में घुस जाये’

मैं रोमन्चित हो उठा… रेखा ज्यादा ही बेशर्मी की हदें पार करने लगी। लेकिन मुझे इसमे अलग ही तेज मजा आने लगा था। मैं बिस्तर पर आ गया और उसके ऊपर आ गया… अपनी चूतड़ों को खोल कर उसके तने हुए उरोज पर कड़े निपल पर अपनी गान्ड का छेद रख दिया और अपने खड़े लन्ड को उसके मुँह में डाल दिया। उसके निप्पल की नोकों ने मेरी गान्ड के छेद पर रगड़ रगड़ कर गुदगुदी करनी चालू कर दी… और मेरे लन्ड को उसने मुँह में चूसना शुरू कर दिया। मुझे दोनों ओर से मजा आने लगा था। वो लन्ड चूसती भी जा रही थी और हाथ से मुठ भी मार रही थी। मेरा हाथ अब उसकी चूत ओर बढ़ चला। उसकी चूत गीली हो चुकी थी… मेरी उंगली उसकी चूत को आस पास से मलने लगी। उसे मस्ती चढ़ती जा रही थी… मैंनें अपनी उंगली अब उसकी चूत में डाल दी… वो चिहुंक उठी। उसने बड़े ही प्यार से मेरी तरफ़ देखा। मेरा लन्ड मस्ती मे तन्नाता जा रहा था… उसका चूसना और मुठ मारना तेज हो गया था। मैंनें आहें भरते हुए कहा- ‘रेखा अब बस करो… वर्ना मेरा तो निकल ही जायेगा…’

‘क्या यार जो… शरीर से तो दमदार लगते हो और पानी निकालने की बात कहते हो…’

‘हाय… तुम हो ही इतनी जालिम… लन्ड को ऐसे निचोड़ दोगी… छोड़ो ना…’

मैंने अपना लन्ड उसके मुंह से निकाल लिया… वो बल खा कर उल्टी लेट गयी…

‘जो मेरी प्यारी गान्ड को भी तो अपना लन्ड चखा दो…’

‘अजी आपका हुकम… सर आंखो पर…’

मैंने उसकी गान्ड की दोनो गोलाईयों के बीच पर अपना लन्ड फंसाते हुये उस पर लेट गया। और जोर लगा दिया। उसके मुंह से हल्की चीख निकल गयी… मुझे भी ताज्जुब हुआ लन्ड इतनी आसानी से गान्ड में घुस गया… दूसरे ही धक्के में पूरा लन्ड अन्दर आ गया।

मुझे लगा कि कहीं लन्ड चूत में तो नहीं चला गया। पर नहीं…उसकी गान्ड ही इतनी चिकनी और अभ्यस्त थी यानि वो गान्ड चुदाने की शौकीन थी। मुझे मजा आने लगा था। मैंने अब उसके बोबे भींच लिये और बोबे दबा दबा कर उसकी गान्ड चोदने लगा। वो भी नीचे से गान्ड हिला हिला कर सहायता कर रही थी।

‘जोऽऽऽऽ चोद यार मेरी गान्ड… क्या सोलिड लन्ड है… हाय मैं पहले क्यो नहीं चुदी तेरे से…’

‘मेरी रेखा… मस्त गान्ड है तेरी… मक्खन मलाई जैसी है… हाय।…ये ले… और चुदा…’

‘लगा… जोर से लगा… जो रे… मां चोद दे इसकी… हरामी है साली… ठोक दे इसे…’

पर मेरी तो उत्तेजना बहुत बढ़ चुकी थी मुझे लगा कि जल्दी ही झड़ जाउंगा… मैंने उसकी गान्ड मे से लन्ड निकाल लिया… रेखा को सीधा कर लिया… और उसके ऊपर लेट गया… रेखा की आंखे बन्द थी… उसने मेरे शरीर को अपनी बाहों में कस लिया।

हम दोनो एक दूसरे से ऐसे लिपट गये जैसे कि एक हों… मेरा लन्ड अपना ठिकाना ढूंढ चुका था। उसकी चूत को चीरता हुआ गहराईयों में बैठता चला गया। रेखा के मुँह से सिस्कारियाँ फ़ूटने लगी… वो वासना की मस्ती में डूबने लगी…

मेरे लन्ड मे भी वासना की मिठास भरती जा रही थी… ऊपर से तो हम दोनो बुरी तरह से चिपटे हुए थे…पर नीचे से… दोनो के लन्ड और चूत बिल्कुल फ़्री थे… दोनो धका धक चल रहे थे नीचे से चूत उछल उछल कर लन्ड को जवाब दे रही थी… और लन्ड के धक्के… फ़चा फ़च की मधुर आवाजें कर रहे थे।

‘हाय जो… चुद गयी रे…लगा जोर से… फ़ाड़ दे मेरे भोसड़े को…’

‘ले मेरी जान… अभी बहन चोद देता हू तेरी चूत की… ले खा लन्ड… लेले…पूरा ले ले… मां की लौड़ी…’

रेखा के चूतड़ बहुत जोश में ऊपर नीचे हो रहे थे। चूत का पानी भी नीचे फ़ैलता जा रहा था… चिकनाई आस पास फ़ैल गयी थी। लगा कि रेखा अब झड़ने वाली है… उसके बोबे जोर से मसलने लगा। लन्ड भी इंजन के पिस्टन के भांति अन्दर बाहर चल रहा था।

‘जोऽऽऽ जाने वाली हूं… जोर से… और जोर्… हाय… निकला…’

‘मेरी जान… मै भी गया… निकला… हाय…’

‘जोऽऽऽ… मर गयी… मांऽऽरीऽऽऽ जोऽऽऽऽ… हाऽऽऽऽऽय…’

रेखा झड़ने लग गयी… मुझे कस के लपेट लिया… उसकी चूत की लहर मुझे महसूस होने लगी… मेरी चरमसीमा भी आ चुकी थी… मैंने भी नीचे लन्ड का जोर लगाया और पिचकारी छोड़ दी… दोनों ही झड़ने लगे थे। एक दूसरे को कस के दबाये हुये थे। कुछ देर में हम दोनो सुस्ताने लगे और मैं एक तरफ़ लुढ़क गया… रेखा जैसे एक दम फ़्रेश थी…बिस्तर से उतर कर अपने कपड़े पहनने लगी। मैंने भी अपनी नाईट ड्रेस पहन ली । इतने मे घर की बेल बज उठी…

मैं सुस्ताते हुए उठा और दरवाजा खोला… मैं कुछ समझता उसके पहले हथकड़ी मेरे हाथों मे लग चुकी थी… मैं हक्का बक्का रह गया। पुलिस की पूरी टीम थी। दो पुलिस वाले रेखा की और लपके… मैं लगभग चीख उठा…

‘क्या है ये सब… ये सब क्यों…’

इन्सपेक्टर का एक हाथ मेरे मुँह पर आ पड़ा… मेरा सर झन्ना गया। मुझे समझ में कुछ नहीं आया।

‘दोनो हरामजादों को पकड़ लेना… सालों को अभी मालूम पड़ जायेगा’ पुलिस जैसे जैसे रेखा के पास आ रही थी… रेखा की हंसी बढ़ती जा रही थी…

‘जान प्यारी हो तो वहीं रूक जाना… जो का कोई कसूर नहीं है… मार्को मेरा दुशमन था…’

‘अरे पकड़ लो हरामजादी को…’

‘रूक जाओ… उसे मैंने मारा है मार्को को… उसने मेरे भाई का खून किया था…मेरी इज्जत लूटी थी… फिर मुझे चाकुओं से गोद गोद कर मार था… उसे मैं कैसे छोड़ देती… मैंने उसे मारा है…’

‘क्याऽऽऽ… तुम्हे मारा… पर तुम तो…’

‘बहुत दिनों से तलाश थी मुझे उसकी… आज मिल ही गया… मैंने जशन भी मनाया… जो ने मुझे खुश कर दिया…’

रेखा का शरीर हवा मे विलीन होता जा रहा था…

‘जो ने कुछ नहीं किया… उसे तो कुछ भी मालूम नहीं है… अगर जो को किसी ने तकलीफ़ पहुंचायी तो… अन्जाम सोच लेना…’

उसकी भयानक हंसी कमरे में गूंज उठी… उसका चेहरा धीरे धीरे कुरूप होता जा रहा था… उसका आधा हिस्सा हवा मे लीन हो चुका था… कमरे मे अचानक ठन्डी हवा का झोंका आया… उसका बाकी शरीर भी धुआं बन कर झोंके साथ खिड़की में से निकल कर हवा में विलीन हो गया… सभी वहां पर स्तब्ध खड़े रह गये। इंस्पेक्टर के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी… वो कांप रहा था…

‘ये…ये क्या भूत था… आप के दोस्त क्या भूत होते है…’ उसने मेरे हाथ से हथकड़ी खोलते हुए कहा…

‘नहीं इन्स्पेक्टर साब मेरे दोस्त भूत नही… चुड़ैल होती है…’ मैं चिढ़ कर बोला।

सभी पुलिस वालों ने वहां खिसक जाने में ही अपनी भलाई समझी… मै अपना सर थाम कर बैठ गया… ये रास्ते से क्या बला उठा लाया था… मम्मी घबरायी हुयी सी कमरे में आयी…’जो बेटा… क्या हुआ… ये पुलिस क्यो आयी थी…’

‘कुछ नहीं मम्मी… पुलिस नही… मेरा दोस्त था… मेरे साथ पढ़ता था… अब पुलिस में है… यू ही यहां से पास हो रहा था सो मिलने आ गया…’
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