मानव की गुरु दक्षिणा

एक बार फिर मैं अपनी एक और नई कहानी लेकर आपसे रूबरू हो रहा हूँ, पर यह कहानी और कहनियों से कुछ हट कर है। यह कहानी जहाँ तक मुझे लगता है, सत्य घटना है, पर कहाँ तक सत्य है, इसका फैसला आप पर छोड़ता हूँ। इस कथा के सत्य होने के प्रमाण मुझे अनेक पुस्तकों में मिले तो हैं पर मैं निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता। मैंने इस सत्य घटना को सिर्फ अपने शब्दों में ढाला है, अगर इस कहानी में कोई कमी रह जाये तो कृप्या मुझे अवश्य बताना जोकि उस गलती को मैं आगे सुधार सकूँ।

गुरुकुल में विश्वबन्धु अपने शिष्यों शिक्षा दिया करते थे। उनकी शिक्षा समाप्त होने के बाद गुरु विश्वबन्धु को उसके शिष्यों ने बताई हुई गुरु दक्षिणा गुरु विश्वबन्धु को भेट कर दी।

गुरु विश्वबन्धु के शिष्यों में एक शिष्य ऐसा भी था जो कि बहुत निर्धन था, उसका नाम मानव था, अपने गुरु को देने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। फिर भी मानव ने अपने गुरु विश्वबन्धु से पूछा कि उनको गुरुदक्षिणा क्या चाहिए।

गुरु विश्वबन्धु ने मानव से गुरुदक्षिणा में 800 ऐसे घोड़े मांगे जिनका रंग चन्द्रमा के सामान सफ़ेद हो और उसके कान एक ओर से काले हो ऐसे घोड़ों को श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त कहा जाता था और वो घोड़े बहुत ही दुर्लभ जाति के और वो बहुत अधिक मूल्यवान थे। उनको रखना हर किसी के बस की बात नहीं थी।

मानव बहुत ही गरीब था इसलिए उसने अपने गुरु से कुछ समय माँगा, गुरु विश्वबन्धु ने उनको 6 वर्ष का समय दिया।

मानव ने गुरु विश्वबन्धु से आज्ञा लेकर आश्रम से चल दिए। मानव ने सबसे पहले अपने रहने और खाने–पीने का इंतजाम करनी की सोची और फिर मानव ने एक जंगल में जाकर अपनी कुटिया बनाने लगे, कुछ दिनों बाद उन्होंने अपने रहने लायक कुटिया बना ली।

मानव उस कुटिया में खाने–पीने का इंतजाम भी कर लिया। अब उनको गुरु विश्वबन्धु को गुरु दक्षिणा में श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त घोड़े देने की चिंता होने लगी। इसलिए वो अपने सबसे नजदीक राजा ख्याति के राज्य जा पहुँचे और उन्होंने राजा ख्याति से श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त घोड़े दान में देने के लिए कहा।

राजा ख्याति के पास ऐसे घोड़े नहीं थे जैसे गुरु विश्वबन्धु ने मांगे थे, राजा ख्याति ने मानव से क्षमा मांगते हुए हुए कहा- वर, ऐसे घोड़े तो मेरे पास नहीं है, पर मैं आप को खाली हाथ भी नहीं भेज सकता इसलिए मैं आपको अपनी पुत्री माधुरी को आपको दान में देता हूँ। उन्होंने अपनी बेटी माधुरी को दान दे दी ताकि उसे अन्य राजाओं को सौंप कर घोड़े प्राप्त कर सके।

माधुरी सहुष कुल में उत्पन्न चन्द्रवंश के पांचवें राजा ख्याति की पुत्री थी। माधुरी बेहद खूबसूरत, अत्यंत ही आकर्षक थी। राजा ख्याति की यह बेटी किसी गुण में कम नहीं थी। जब माधुरी मानव के सामने पहुँची तो मानव माधुरी को देखते ही रह गए, इतनी सुन्दर लड़की उन्होंने कभी नहीं देखी थी।

उस समय माधुरी की आयु करीब 21 वर्ष रही होगी, और लम्बाई भी करीब 5′ 5″ की थी। माधुरी के सर के बालो में उलझा हुआ उसका दुपट्टा, और गोरे-गोरे गाल, गुलाबी होंठ उसके उठे हुए उभारों को अपनी कैद में करती हुई उसकी चोली और उस पर उसके उरोज का विशाल आकार ! तो क्या कहने, चोली से ऊपर और चोली से नीचे का नंगा बदन उसकी सुन्दरता की चुगली कर रहे थे। नाभि से नीचे बांधा हुआ उसका लहंगा कुल मिलकर माधुरी सौन्दर्य की देवी लग रही थी।

माधुरी ने अपने पिता महाराज की आज्ञा का पालन करते हुए माधुरी ने अपने पिता से आज्ञा ली और ना चाहते हुए भी मानव के साथ चली गई। मानव माधुरी को लेकर अपनी कुटिया में लेकर आ गये।

रात होने को थी, मानव और माधुरी ने भोजन किया। भोजन करने के पश्चात् मानव ने राजकुमारी माधुरी को कुटिया के अन्दर सोने को कह कर खुद बाहर आकर लेट गए।

मानव जब भी सोने के लिए अपनी आँखें बंद करते तो उनको माधुरी का रूप–यौवन सामने आ जाता। अनेक बार कोशिश करने के बाद भी उनको नींद नहीं आ रही थी। जब मानव को नींद नहीं आई तो वो माधुरी के बारे में सोचने लगे। राजा ख्याति ने अपनी बेटी का दान मुझे इसलिए दिया है, ताकि मैं माधुरी को किसी अन्य राजा को सौपकर घोड़े प्राप्त कर सकूँ। जब मुझे माधुरी को किसी और को सौंपना ही है, तो क्यों न मैं ही इसको पहले भोग लूँ।

यह विचार मन में आते ही मानव कुटिया के अन्दर जा पहुँचे, राजकुमारी माधुरी उस समय कुटिया के बीचोंबीच खड़े बांस के सहारे खड़ी थी। मानव की आँखों में वासना की चिंगारियाँ भड़क रही थी। मानव माधुरी को ऐसे देख रहे थे, जैसे शेर बकरी को अपना शिकार बनाने से पहले देखता है।

मानव माधुरी के करीब पहुँचकर उसको अपनी बांहों में पकड़ लिया। माधुरी की नंगी पीठ पर मानव के हाथ पड़ते ही उनमें और भी ज्यादा जोश आ गया। माधुरी अपने आप को मानव की पकड़ से छूटने की हर नाकाम कोशिश कर रही थी। मानव ने अपने होंठ माधुरी की सुराहीदार गोरी गर्दन पर रख कर उसको चूमने लगे।

माधुरी मानव का विरोध कर रही थी और मानव उसको चूमते जा रहे थे। मानव ने माधुरी को चूमते हुए उसकी चोली उतार फेंका।

अब मानव उसके स्तनों को मसलते हुए माधुरी के गौरे बदन को चूमते हुए चाट रहे थे। माधुरी मानव की बांहों की कैद में छटपटा रही थी। कुछ देर ऐसे ही चूमने चाटने के बाद मानव ने माधुरी का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपने होंठ माधुरी के पतले और गुलाबी होंठों से मिलकर उसका रसपान करने लगे।

अब तक माधुरी के अन्दर की औरत जाग चुकी थी। अब माधुरी को भी कुछ-कुछ आनन्द आने लगा था। मानव माधुरी के होंठ और गाल को चूस रहे थे तो माधुरी सोचने लगी- जब मेरे पिता ने मुझे मानव को दान दे दिया है तो मानव का मेरे ऊपर पूरा–पूरा अधिकार है। मानव मुझे किसी भी तरह से इस्तमाल कर सकते है। मानव के किसी भी कार्य का विरोध करने का हक मुझे नहीं है।

फिर माधुरी ने अपने आप को मानव के हवाले कर दिया। अब माधुरी भी मानव के इस खेल का आनन्द लेने लगी, फिर माधुरी ने मानव को अपनी बांहों में ले लिया और वो भी मानव को चूमने लगी उसके दोनों हाथ मानव की पीठ सहला रहे थे।

कुछ देर बाद मानव ने माधुरी का लहंगा भी उतार दिया और अपने भी वस्त्र उतार दिए, अब दोनों ही पूर्ण रूप से नंगे खड़े थे।

माधुरी अभी भी उसी बांस के सहारे खड़ी थी। मानव का लिंग माधुरी की बाल रहित योनि को देखकर फुंकार मार रहा था। मानव का लिंग 7″ लम्बा और 3″ मोटा था। मानव का लिंग माधुरी की योनि में जाने के लिए मचल रहा था। इसलिए मानव ने देर न करते हुए माधुरी की गोरी जांघों पर हाथ फिराते हुए माधुरी की दाहिनी टांग अपने एक हाथ से ऊपर अपनी कमर तक उठा ली और एक हाथ से अपने लिंग को माधुरी की योनि पर सही से रखने के बाद दूसरे हाथ से उसकी कमर को पकड़ लिया। माधुरी की योनि तो पहले से ही इतनी गीली हो चुकी थी कि लिंग के हल्के से दवाब से ही माधुरी की गुहा में घुसता जा रहा था।

मानव ने माधुरी की कमर को पकड कर नीचे से जोरदार धक्का ऊपर की तरफ माधुरी की योनि पर मारा तो माधुरी ‘आआ आऐई ईईई ऊऊ ऊओहह’ जोर से चीख पड़ी। माधुरी की आवाज जंगल में गूंज पड़ी। मानव का लिंग माधुरी की योनि को फाड़ता हुआ आधा अन्दर घुस चुका था। माधुरी पीड़ा से छटपटा रही थी, माधुरी ने दाहिने हाथ से मानव की बाजू थाम रखी थी और बाएँ हाथ से उसकी गर्दन।

माधुरी पीड़ा के कारण अपने वक्षोभार मानव की छाती से रगड़ रही थी। मानव ने माधुरी के कंधों को चूमते हुए माधुरी की योनि पर एक और ज़ोरदार प्रहार किया ‘मम्म्म्मा आआऐईइ ऊऊओ’ करती हुई एक बार फिर रात के सन्नाटे को चीरती हुई माधुरी की चीखें जंगल में गूंज गई। मानव का पूरा लिंग माधुरी की योनि में समा गया था।

माधुरी दोहरी पीड़ा के कारण खड़े रह पाने में दिक्कत हो रही थी। तभी तो माधुरी मानव को पकड़ कर लगभग लटक ही गई थी। माधुरी की योनि बुरी तरह लहुलुहान हो चुकी थी, माधुरी की योनि से निकलता हुआ रक्त मानव की झांटों के बाल भिगो रहा था और कुछ रक्त नीचे भी गिर रहा था। मानव माधुरी की पीड़ा को नजर अंदाज करते हुए माधुरी की योनि पर धक्के लगाने लगे।

माधुरी मानव के लिंग की हर चोट पर ऊपर उछल जाती। कुछ देर बाद माधुरी को पीड़ा की जगह आनन्द आने लगा, अब माधुरी की चीखें सिसकारियों में तब्दील हो चुकी थी और वो भी पूरा मज़ा लेते हुए मानव से यौन क्रिया का आनन्द लेने लगी।

अब मानव ने अपने दोनों हाथ से माधुरी के कूल्हों को अपने हाथों में पकड़ कर अपने लिंग से माधुरी की योनि का बाजा बजाने में लगे हुए थे।

कुछ देर बाद वो दोनों चरम सीमा तक पहुँच गए और दोनों साथ साथ झड़े, मानव के वीर्य से माधुरी की योनि भर गई थी। कुछ देर इसी अवस्था में दोनों खड़े रहे फिर दोनों अलग अलग हुए। दोनों के चेहरों पर ही तृप्ति के भाव थे, दोनों खुश भी बहुत थे। मानव माधुरी को उसी हालत में छोड़कर अपने वस्त्रों को उठा कर स्नान करने चले गए। मानव के स्नान करने बाद माधुरी भी स्नान कर के मानव के साथ सो गई।

माधुरी मानव के साथ करीब पाँच महीने रही और उन्होंने अनेकों बार सम्भोग करके एक दूसरे को खुश किया। फिर मानव को गुरु विश्वबन्धु दी जाने वाली गुरु दक्षिणा की चिंता सताने लगी। इस कारणवश मानव माधुरी को लेकर सबसे पहले अवध के राजा हर्य के पास पहुँचे और एक वर्ष के लिए मानव ने राजा हर्य को माधुरी भेंट (किराये पर) कर दिया और बदले में राजा हर्य से श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त घोड़े की माँग की।

मानव ने माधुरी को समझाते हुए कहा कि अब तुमको एक वर्ष तक राजा हर्य खुश करना है और इनका हर हुक्म मानना है।माधुरी मानव की आज्ञा नहीं टाल सकती थी, क्योंकि अब मानव ही उसके स्वामी थे। राजा हर्य ने मानव को एक वर्ष पश्चात् श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त 200 घोड़े देने का वादा किया और मानव एक वर्ष बाद आने को कह कर कर वो वापस लौट गए।

राजा हर्य माधुरी के रूप को देखते ही उस पर फ़िदा हो गये थे। राजा हर्य माधुरी को पाकर फ़ूले नहीं समा रहे थे, उन्होंने माधुरी को अपने महल में रख लिया और उसको आराम करने के लिए बोला और फिर अपने राज कार्य को जल्दी से निपटने लगे। राजा हर्य सारे काम से निपटने के बाद वो माधुरी के कक्ष में पहुँचे।

रात्रि का पहला पहर शुरू हो चुका था, चारों और ख़ामोशी छाई हुई थी, चाँदनी रात में चाँद की चाँदनी से पूरा महल जगमग जगमग कर रहा था। माधुरी के शयनकक्ष में चाँद की चाँदनी से उजाला हो रहा था। चाँदनी में माधुरी का रूप और भी निखर रहा था। माधुरी का कक्ष रंग बिरंगे फूलों से महक रहा था।माधुरी भी सिंगार से परिपूर्ण होकर पलंग पर बैठी हुई थी, राजा हर्य का इंतजार कर रही थी।

राजा हर्य माधुरी के करीब पहुँचे, तो माधुरी पलंग से उतर कर नीचे खड़ी हो गई। माधुरी की आँखों झुकी हुई नीचे बिछे कालीन को निहार रही थी। राजा हर्य ने माधुरी को पलंग पर वापस बैठाया और खुद भी उसके पास बैठ गए। माधुरी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उससे कहा- माधुरी, तुम बहुत सुन्दर हो ! तुमको पाकर मैं धन्य हो गया !

फिर राजा हर्य ने माधुरी का हाथ चूम लिया।

राजा हर्य ने माधुरी की ओढ़ी हुई चुनरिया उसके जिस्म से अलग कर दी। राजा हर्य ने माधुरी के बालों को सहलाते हुए, एक-एक कर के उसके सारे आभूषण उतार दिए। फिर माधुरी को पकड़ कर पलंग पर लिटा दिया, माधावी अब भी राजा हर्य से शरमा रही थी।माधुरी के लेटते ही राजा हर्य उसको चूमने लगे, उनका हाथ माधुरी के पेट को सहला रहा था। माधुरी राजा हर्य की बांहों में आते ही कामुक होने लगी, माधुरी को अब सहवास की आदत जो हो गई थी, उसने अपनी परिस्थियों से समझौता कर लिया था।

माधुरी के हाथ अब राजा हर्य के बदन को सहलाने लगे थे, राजा हर्य माधुरी को चूमते हुए नीचे की ओर जाने लगे, माधुरी के पैरों के पास पहुँचकर उन्होंने उसके एक पैर को अपने एक हाथ से पकड़ कर थोड़ा ऊपर की तरफ उठाया और एक हाथ से उसके लहंगे को ऊपर की ओर खिसकाते हुए उसके पैरों को चूमने लगे।

राजा हर्य माधुरी के पैरो को चूमते हुए ऊपर की ओर जाने लगे और उसके होंठों को चूमते हुए उसके वक्ष दबाने लगे। फिर कुछ पलों बाद राजा हर्य ने माधुरी की चोली खोल दी अब माधुरी ऊपर से निर्वस्त्र थी। मानव ने पाँच महीने में माधुरी के वक्ष का आकार बढ़ा दिया था।

राजा हर्य उसकी नंगी चूचियाँ देख कर बौखला गए और उसको अपने हाथों में लेकर बहुत जोर जोर से मसलने लगे, कभी वो माधुरी के उरोज कसके दबाते तो कभी उसकी नाभि में अपनी जीभ डाल कर उसको चाटते। फिर राजा हर्य ने माधुरी का लहंगा भी उतार दिया। अब माधुरी पूरी नग्न राजा हर्य के सामने लेटी हुई थी और राजा हर्य माधुरी का नंगा बदन चूम चाट रहे थे।

कुछ देर बाद जब उनसे नहीं रहा गया, तो उन्होंने भी अपने कपड़े उतार दिए और वो भी नंगे हो गए। अब दोनों ही जन्मजात नंगे एक दूसरे को निहार रहे थे। राजा हर्य का लिंग पूरा तैयार हो चुका था माधुरी की योनि में जाने के लिए। माधुरी की नज़र राजा हर्य के लिंग पर पड़ी तो वो भी बहुत खुश हो गई और सोचने लगी कि इनका लिंग तो मानव से भी बड़ा और मोटा है।

माधुरी की योनि राजा हर्य का लिंग देखते ही पानी–पानी हो गई, माधुरी की योनि उत्तेजना के कारण और भी फ़ूल गई थी। अब राजा हर्य माधुरी के पैरो के बीच पहुँच गए और अपना लिंग माधुरी की योनि पर रगड़ने लगे। माधुरी से जब सहन नहीं हुआ तो उसने राजा हर्य का लिंग पकड़ते हुए अपनी योनि के छेद पर लगा दिया। राजा हर्य को समझते हुए देर न लगी और उन्होंने ज़ोरदार धक्का माधुरी की योनि पर दे मारा।

माधुरी मानव से अनेकों बार सम्भोग कर चुकी थी, पर राजा हर्य का लिंग तो मानव से बड़ा और मोटा था, इसलिए माधुरी की चीख निकल गई ‘ऊऊ ऊईई म्म्म्माआआअ म्मम्ममा’ माधुरी की चीख सुनकर राजा हर्य ओर भी ज्यादा उत्तेजित हो गए। राजा हर्य ने माधुरी के दोनों तरफ पलंग पर अपने हाथ टिका कर उसकी योनि पर जम कर धक्के लगाने लगे।

माधुरी राजा हर्य से चुदते हुए राजा हर्य को उत्साहित कर रही थी। माधुरी के हाथ राजा हर्य की गर्दन में लिपटे हुए थे। कुछ देर बाद माधुरी और राजा हर्य दोनों ही चरमसीमा पर पहुँच गए, दोनों ही साथ-साथ झड़े, राजा हर्य माधुरी को पाकर बहुत ख़ुश हो गए। राजा हर्य ने माधुरी को पूरे एक साल तक भोगा।

राजा हर्य से माधुरी को एक राजकुमार हुआ जिसका नाम वसुम रखा गया। अवधि पूरी होने पर मानव माधुरी को लेने आये।राजा हर्य ने मानव को शुल्क के रूप में 200 श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त घोड़े दिए। माधुरी राजकुमार वसुम को राजा हर्य के पास छोड़कर मानव के साथ चली गई।

इसके बाद मानव माधुरी को लेकर काशी के अधिपति दिवोदास के पास गए और उनको भी उन्होंने माधुरी को एक वर्ष के लिए भेंट कर दिया। अधिपति दिवोदास ने भी माधुरी को जमकर भोगा और उससे भी माधुरी को प्रतर्द नामक पुत्र हुआ। एक वर्ष बाद मानव माधुरी को वहाँ से ले गए और उसके शुल्क में मानव को अधिपति दिवोदास ने 200 श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त घोड़े दिए, और अधिपति दिवोदास ने अपने पुत्र प्रतर्दन को अपने पास ही रख लिया।

उसके बाद मानव माधुरी को लेकर भोमनगर के राजा उशीना के पास गया और उनको भी उन्होंने माधुरी एक वर्ष के लिए राजा उशीना को भेंट कर दिया। राजा उशीना ने भी माधुरी को जी भर कर पूरे साल भोगा और राजा उशीना से भी माधुरी से जिवी नामक पुत्र प्राप्त हुआ।

फिर एक वर्ष बाद मानव माधुरी को वहाँ से भी ले गए और उसके शुल्क में मानव को राजा उशीना ने 200 श्यामकर्ण और चन्द्रप्रभायुक्त घोड़े दिए, माधुरी ने जिवी को भी राजा उशीना के पास ही छोड़ दिया।

विश्वबन्धु ने मानव को माधुरी वापस लौटा दी और खुद जंगल चले गए।

मानव गुरुदक्षिणा के भार से मुक्त हो चुका था। इसलिए मानव ने राजा ख्याति को उसकी कन्या माधुरी वापस दे दी और खुद भी वन को प्रस्थान कर गए।

दोस्तों आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी बताना जरुर।

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