राजा का फ़रमान-4

वृंदा 2009-05-09 Comments

कहानी का पिछला भाग: राजा का फ़रमान-3

राजा ने फरमान सुनाया- इस लड़की ने मुझसे चुदने से इनकार किया है, इसलिए इसकी इसी दरबार में बोली लगेगी, ऐसी बोली जैसी आज तक किसी की नहीं हुई होगी। इस बोली के बाद इसका इसी सभा में चीरहरण होगा, उसके बाद यह रखैल तो क्या किसी की दासी बनने के लायक भी नहीं रह जाएगी, इसके चीर और यौवनहरण के बाद इसकी चूत और गांड सिल दी जाएगी, चूचे और जबान काट लिए जायेंगे। और हाँ, बोली लड़की की नहीं उसकी जवानी की लगेगी, चूचे, गाण्ड, गदराया बदन, जांघें, बाहें, होंठ, बगलें जिस्म के हर हिस्से की बोली लगेगी..!!!

यह सुन कर तो मेरे होश उड़ गए..
अब और क्या होना बाकी है मेरे साथ…?
मुझे मन ही मन डर लग रहा था..!!!

यह सुन सभा में ख़ुशी से शोरगुल होने लगा, लोग ठहाके लगाने लगे, फबतियाँ कसने लगे, भीड़ में से आवाज़ आई- आज मज़ा आयेगा! मैं अभी घर से अशर्फ़ियाँ उठा लाता हूँ!

मेरी तो हवा निकल रही थी कि अब जाने आगे मेरे साथ क्या होने वाला है, इससे पहले जो हुआ वो कम था क्या…!!!

कि अचानक आवाज़ आई..

राजा : बोली ठीक 15 मिनट बाद आरम्भ होगी ताकि आप सभी इस समय में इसके जिस्म का मुआयना कर लें और अपने हिसाब से बोली लगायें..!!!

मेरे जिस्म से कपड़े फाड़ कर फिंकवा दिए गए, लोगों की तो मौज हो गई।

तभी एक मंत्री ने राजा से अनुरोध किया- महाराज, क्या हम इसे छूकर देख सकते हैं? ताकि हमें भी भरोसा हो जाये कि जो माल हम खरीद रहे हैं उसमें किसी बात की कमी तो नहीं..!!!

राजा : ठीक है छू लो!! आखिर ग्राहक को भी पता होना चाहिए कि जिस चीज की वो कीमत दे रहा है वो असल में क्या है और कैसा है..!!! हा ह़ा हा हा!!

मंत्री मेरी तरफ बढ़ चला, तो भीड़ से आवाज़ आई- मंत्री जी छुइएगा नहीं! कहीं पानी न छोड़ दे राण्ड..!!!

एक और आवाज़ आई- और अगर छू भी रहे हैं जनाब, तो मसल डालियेगा! और हाँ! जिस्म का कोई अंग ना रहने पाए..!!!

यह सुन कर लोग ठहाके लगाने लगे..

मैं नंगी खड़ी पानी-पानी हो रही थी, मुझे अब तक केवल पाँच लोगो ने छुआ था, राजा और उसके सिपाहियों ने और अब छठे की बारी थी।

वो आया और आते ही उसने मेरे केशों में हाथ फेरा, फिर अचानक से बालों को खींच कर उसने मुझे धक्का दिया और भीड़ की तरफ मुँह करके बोला- क्यों कैसी रही?

सभी लोगों ने उसे वाह-वाही दी।

फिर वो मेरी तरफ बढ़ा, दोनों हाथों से मेरे चूचे थाम कर बोला- बहुत गरम माल है! ऐसा लग रहा है कि हाथों में पिघल रहा है!

और मेरे चूचे बेदर्दी से मसलने लगा। चूचे पकड़ कर उसने यकायक मुझे अपनी ओर खींचा और मेरी गाण्ड पर ज़ोरदार तमाचे लगाने शुरू कर दिए, कहने लगा- नीचे से भी कड़क है!

फिर उसने मुझे ज़मीन पर धकेल दिया और दो सिपाही बुलवा कर मेरी टांगें हवा में खुलवा दी, मेरी चूत की फांकें खोल कर बोलने लगा- अरे कोई चोदो इस राण्ड को! वरना पानी बहा बहा कर पूरा महल अपने काम रस से भर देगी…!!!

भीड़ से आवाज़ आई- हम भी तो उसमें डूबना चाहते हैं!

तभी महामंत्री ने एलान किया- बोली शुरू की जाये!

पहली बोली महाराज की।

महाराज ने कहा- सबसे पहले होंठो की बोली, एक सौ सोने की अशर्फियाँ!

बोली बढ़ते-बढ़ते 2500 अशर्फियों तक पहुँची और फिर मेरे होंठ आखिरकार बिक गए, किसी साहूकार ने खरीदे थे।

साहूकार आगे आया और मेरे होंठो पर चूमने लगा, भरा दरबार मेरी लुट ती हुई इज्ज़त देख रहा था, मेरे होंठ चूसते हुए उसने अपनी जबान मेरे मुँह में डाल दी और मेरी गर्दन पकड़ ली।

सभी लोगों के मुँह में पानी आ रहा था, लार टपक रही थी।

फिर मेरी बगलों की बोली हुई, जिन्हें 1500 अशर्फियों में दो भाइयों ने खरीदा।

दोनों अपना लण्ड झुलाते, मेरे दोनों तरफ आ गए और दोनों ने अपने अपने लण्ड मेरी बगलों में घुसा दिए और घिसने लगे।

उधर साहूकार ने भी अपने फनफ़नाता लण्ड निकाला और सर की तरफ खड़े हो मेरा चेहरा अपनी ओर करते हुए अपना लण्ड मेरे मुंह में पेल दिया…

अब मेरे जिस्म पर तीन लण्ड थे।

फिर मेरे चूचों की बोली शुरू हुई।

महामंत्री ने मेरे चूचे 5000 अशर्फियों में खरीद लिए और आकर मेरी कमर पर बैठ मेरे चूचे चूसने लगे।

फिर मेरे हाथों की बोली लगी।

दो व्यपारियो ने मेरे हाथ खरीदे और अपने अपने लण्ड मेरे हाथों में मुठ मराने के लिए दे दिए।फिर बोली लगी मेरी गांड की!

दस हज़ार अशर्फियों में गाण्ड भी बिक गई।

गाण्ड का फूल कोमल था, उसे एक बलिष्ठ पहलवान ने खरीदा था।

वो आया और मुझे अपने नीचे सीधा करके लेटा लिया। इस तरह कि मेरा चेहरा छत की तरफ हो।

अब मुझ पर सात लण्ड सवार थे, दो हाथों में, दो बगलों में, एक चूचों में, एक मुँह में और एक गाण्ड में!

और अब बारी राजकुमारी चूत की थी!

वो इतने लण्डों की वजह से रस चो चो कर बेहाल थी।
मैं जल्दी ही अपनी चूत में एक मोटा ताज़ा लौड़ा लेना चाहती थी।

मेरी इज्ज़त तो लुट ही चुकी थी, मैं सबके सामने नंगी हुई अलग अलग जगह से चुद रही थी, मैं खुद पर अपना नियंत्रण खो चुकी थी।

इतने मर्द मेरे जिस्म से लिपटे थे, मैं इसी सोच में थी कि मुझे सुनाई पड़ा- इसकी चूत आपकी हुई!

मैंने मुँह से साहूकार का लण्ड निकाला और चेहरा उठा कर इधर-उधर देखा तो क्या देखती हूँ,

चूत राजा ने खरीदी थी, वो भी दस-बीस हज़ार में नहीं, पूरे एक लाख अशर्फियों में!

राजा आया, जो कि पहले से नंगा था, आकर मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी चूत में अपना लण्ड घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगा…

उधर मेरा मुँह लण्ड खा-खा कर थक चुका था…कि साहूकार ने अपना काम रस छोड़ दिया, मेरे मुँह में भर दिया और उठ कर पूरी कामलीला देखने लगा..

मेरी बगलों से लंड-रस बह रहा था, चूचो पर महामंत्री जी अपने हाथों से घुन्डियाँ घुमा कर मुझे मीठी सी टीस दे रहे थे, हाथ वाले लण्ड, मैं अभी भी जोर जोर से हिला रही थी, और पहलवान मेरी गाण्ड फाड़ रहा था।

उस पर चोट खाए राजा ने जोर से एक झटका मारा और मेरी चूत फाड़ डाली।

मेरी चूत से खून नहीं निकला तो राजा बोला- तू तो खेली-खाई है, तो भी तेरे इतने नखरे हैं… ये ले …!!!

कह कर उसने एक और ज़ोर से झटका मारा…. एक मीठी सी आह के साथ एक .. तैरती सी तरंग मेरे जिस्म में फ़ैल गई।

अब तो गाण्ड का दर्द भी जा चुका था… ऐसा लग रहा था जैसी दुनिया भर का समंदर मेरी दो टांगों के बीच समा गया है।

सभी मंत्रिगण मेरे हाल देख कर मुठ मार रहे थे…

महामंत्री मेरे चूचे और जोर से मसल मसल के दाँतों से काटने लगे…

मैं कराह रही थी.. आःह्ह्ह आआह्ह्ह्ह से दरबार गूँज रहा था…

मेरी आहें.. राजा और पहलवान को लुभा रही थी कि तभी राजा अपने हाथ से मेरी चूत का दाना छेड़ने लगा..

मैं तड़प उठी…

मैंने अपने हाथ से एक लण्ड छोड़ राजा के हाथ पर हाथ रख दिया और जोर-जोर से भींचने लगी.. राजा के हाथ को अपने दाने पर दबाने लगी..

तभी मंत्री जी ने अपना काम रस मेरे चूचों पर छोड़ दिया… और जिस्म से हट गए..

उन्होंने हटते ही मेरे होंठों पे ज़ोरदार चुम्मा दिया और बोले-. तू कमाल की है… अगर राजा का चूचे काटने का फरमान नहीं होता तो शायद में तेरे चूचे चूसने, दबाने के लिए तुझे हमेशा के लिए अपने पास रख लेता…

तभी साहूकार पिनियाते हुए आया और बोला- इसके होंठ मेरे हैं… तू क्यों चूम रहा है..?

महामंत्री बोला- अरे सबसे पहले तो तूने ही मुँह मारा है इस पर.. तू हट गया तो मैंने भी मार लिया अपना मुँह! अब कुआँ चाहे किसी का भी हो, कुआँ पानी तो हर किसी को पिलाता है ना…?

दोनों व्यापारियों की भी पिचकारी छूटने लगी थी, दोनों ने मेरे चेहरे पर पिचकारी दे मारी.. और बोले- चाट इसको… नहीं तो फिर से मुठ मारेगी तू हमारी…

मेरी हालत.. सचमुच की रांडों जैसी हो गई थी कि तभी पहलवान छूटने लगा और दोनों हाथों से मेरे चूचों पर जो माल गिरा था उसे मेरे चूचों पर मसलने लगा…

महामंत्री खड़े खड़े तमाशा देख रहा था.. कि कराहट से मेरा मुँह खुल गया है…

तभी राजा मेरे ऊपर आया और मेरे होंठो को उसने अपने मुँह में भर लिया, काटने-खसोटने लगा…

तभी पहलवान झड़ने लगा और उसने सारा रास मेरी गाण्ड में ही छोड़ दिया…

उसका लण्ड छोटा होकर मेरी गाण्ड से बाहर आ गया..

अब राजा को मौका मिल गया.. वो तो पहले से ही मुझ पर सवार था..

अब मेरे जिस्म पर वो हक़ ज़माने लगा, कभी मेरे चूचे मसलता, कभी मेरे मुँह में हाथ डाल देता..

वो मेरी जवानी लूट रहा था और मैं कुछ नहीं कर पा रही थी..

इतने में उसने पहलवान को मेरे नीचे से हटने का मौका दिया..

अब मैं कालीन पर और राजा मेरी चूत में घुसा बैठा था…

वो अब मेरी गाण्ड में दो ऊँगलियाँ घुसाने लगा.. और मैं मदमस्त हुई अपनी जवानी का रस लुटा रही थी..

अब मैं भी मज़े लेने लगी थी.. मेरे अंदर की छिपी राण्ड अब बाहर आकर अंगड़ाइयाँ लेने लगी थी… मेरी आहें दरबार में गूँज रही थी..

कि तभी अचानक राजा ने लण्ड निकाल कर मेरी गाण्ड में पेल दिया…

राजा अब झड़ने वाला था… राजा ने एक झटके से अपना लण्ड फिर मेरी चूत में पेला और झड़ने लगा … आगे बढ़ कर मेरे होंठ चूसने लगा.
उसने मेरी चूचक मसले … और मेरे अन्दर ही झड़ गया… उसके बाद वो मुझ पर से हट गया.

उसने सिपाहियों को मुझे खड़ा करने को बोला.
मैं कामरस में भीगी हुई थी, मेरे से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था.

जैसे तैसे मैं सिपाहियो के सहारे खड़ी हुई।
हवा में कामरस की खुशबू मुझे और चुदने को मजबूर कर रही थी.

इसके बाद मेरे साथ क्या हुआ..?
मेरी चूत सिल दी गई..?
या मैं और चुदी..?
या राजा ने मुझे अपनी रखैल बना लिया…?

बाकी कहानी अगले एवं अंतिम भाग में पढ़िए.. राजा का फरमान!
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कहानी का अगला भाग: राजा का फ़रमान-5

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