गीत की जवानी-2

(Geet Ki Jawani- Part 2)

This story is part of a series:

अब तक की मेरी इस रोमांटिक सेक्स स्टोरी में पढ़ा कि गीत और मनु संदीप के जन्मदिन पर उसके घर पहुंची और वहां कोई उनका बेसब्री से इंतजार कर रहा था. वो कोई और नहीं संदीप ही था जो नजरें बिछाए बैठा था.
उसे देखते ही गीत का मन खिल उठा, धड़कनें तेज हो गईं. शायद यही हाल संदीप का भी हो रहा था.

अब आगे:

अन्दर से उसके पिता की आवाज आई- आओ बेटा, अन्दर आ जाओ.

हमने अपना एक कदम ही बढ़ाया था कि संदीप के छोटे भाई ने ललक कर हमारे पांव छू लिए और छोटी बहन ने गले लग कर प्रेम प्रदर्शित किया. ये हमारे लिए कुछ अलग था क्योंकि आजकल तो सब नमस्ते से काम चला लेते हैं.

उनमें रोपे गए संस्कार की ही प्रेरणा से हम लोगों ने भी झुककर अंकल को प्रणाम किया, फिर हम सोफे पर बैठ गए और सामान्य वार्तालाप के साथ ही नजर बचाकर घर को भी देखने परखने लगे.

घर के अन्दर बहुत गरीबी तो नजर नहीं आई, पर अमीरी का भी कोई खास लक्षण नहीं दिखा, सीमित संसाधनों में रहकर भी मेहमान का स्वागत कैसे किया जाता है, इसकी मिसाल हमें संदीप के घर देखने को मिली.

संदीप ने पहले तो सभी से हमारा परिचय करवाया, फिर खाना खाने के लिए कहने लगा.

अभी तो 11.30 ही बज रहे थे, इसलिए हम दोनों ने बाद में खाने की बात कही … और साथ में मैंने पूछ लिया- मां कहां हैं?
उसके पिता ने उदास चेहरा बना लिया और ऊपर देखते हुए कहा- भगवान के पास.
मैंने हड़बड़ा कर सॉरी कहा … जैसा सभी कहते हैं.

तो बाबू जी ने हंसते हुए बात टालने की कोशिश की और कहा- चलो जल्दी से संदीप को मंगल टीका लगा दो, फिर तुम सब गप्पें मारना और मेरा भी दुकान जाने का समय हो गया है.

संदीप की दस साल की बहन ने आरती की थाली सजा रखी थी. यहां आधुनिकता से अलग, किन्तु एक मोहक अंदाज में जन्मदिन मनाया जा रहा था.

हमने संदीप को सोफे पर बिठाया और उसकी आरती उतारने के बाद बारी-बारी से मंगल टीका लगाया. संदीप बहुत ज्यादा खुश नजर आ रहा था.
फिर बाबू जी दुकान चले गए.

शायद संदीप की बहन को भी अपनी किसी सहेली के यहां जाना था पर हमारे होने की वजह से वो नहीं जा रही थी. पर मैंने उसे जिद करके भेज दिया.

अब उसके 6 साल के भाई और संदीप के अलावा मैं और मनु ही उस घर में रह गए थे.

संदीप ने फिर से खाने के लिए जिद की. इस बार हम दोनों ने खाने के लिए हां कह दिया.

संदीप खाना निकालने परोसने के लिए उठ गया, इस पर पहले तो मैंने संदीप को गिफ्ट पकड़ाया और उसके कानों के पास मुँह करके ‘आई लव यू’ कहती हुई खुद रसोई की ओर भाग गई.

संदीप मुस्कुराता रह गया और मनु भी मेरा सहयोग करने आ गई. हम खाना निकालने लगे, पर संदीप मना किए जा रहा था. पर हमारी जिद के सामने उसकी एक ना चली. मुझे उसके घर पर ऐसा काम करते हुए बहुत आनन्द आ रहा था, क्योंकि अपनेपन का आनन्द अलग ही होता है.

कुछ चीजों को संदीप ने बताया, कुछ चीजें हमने खुद कर लीं. इस बीच मनु ने संदीप के छोटे भाई को ज्यादा से ज्यादा अपने पास रखा और उसके साथ खेलने लगी. वो दोनों अच्छा घुल-मिल गए. मनु मुझे संदीप से बातचीत या पास आने के लिए ज्यादा मौका देना चाहती थी.

हम सबने साथ खाना खाया, ये पल अद्भुत आनन्द देने वाला था. खाना खाते हुए चर्चा में पता चला कि उसकी बहन शाम को बाबू जी के साथ ही लौटेगी. संदीप के भाई ने एक मेमने का जिक्र किया, वो उसके साथ खेल कर बहुत खुश रहता था.

हम सभी ने खाना खत्म किया और बर्तन हटा दिए. संदीप ने हमें बर्तन साफ नहीं करने दिए. उसके बाद मनु ने अपना दिमाग लगाया और उसके भाई से मेमने को दिखाने के लिए कहने लगी.

मेमना दूसरे के घर का था, जो थोड़ा दूर था, वहां आने जाने में समय भी लगता और ये तो हमारे लिए और भी अच्छा था. मनु ने संदीप के भाई को चलने को कहा.

मनु ने आंख मार कर मुझसे धीरे से कहा- तू काम पर लग जा, मैं दो तीन घंटे से पहले वापस नहीं आऊंगी.

मैंने मुस्कुरा कर हामी भर दी.

दरअसल आज यहां आते वक्त ही मनु ने साफ कह दिया था कि अगर जरा भी मौका मिले, तो संदीप के करीब आने से मत चूकना … और यहां तो मौका ही मौका था.

उनके जाते ही मैंने संदीप को तलाशा, वो रसोई को ठीक कर रहा था.

मैं दबे पांव संदीप के पास गई. उसके गालों पर चुंबन दे दिया … और उसके प्रतिउत्तर का इंतजार करने लगी. पर उसने मेरे अंदाजे के विपरीत काम किया. वो चौंक तो जरूर गया, पर उसने साधारण सी मुस्कान के साथ मेरी खुशी पर वहीं विराम लगा दिया. मैं ऐसे मौके पर क्या करूं, समझ नहीं आया और मैं सोफे पर आकर बैठ गई.

संदीप ने मेरे चेहरे के भाव पढ़ लिए, वो पास आया और मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर मुझे उठाया. मैं मुँह लटका कर खड़ी हो गई. तब उसने मेरे गालों को हथेलियों से थाम कर मेरा सर ऊपर उठा लिया.

मेरी आंखों में आंख डालकर संदीप ने कहा- गीत, मैं जानता हूँ, तुम मुझसे प्यार करती हो … और तुमसे कहीं ज्यादा मैं तुम्हें चाहता हूँ.
उसकी बातों से मेरी आंखों में चमक आ गई. मैं हवा में उड़ने लगी, पर अभी मैं उसकी पूरी बात सुनना चाहती थी.

उसने कहा- गीत तुम मेरे करीब रहो, उम्र भर रहो, ये मेरा सपना है. पर हर सपना सच हो, जरूरी तो नहीं. मेरे मन में तुम्हें पाने का, तुम्हें भोगने का ख्याल हर पल आता है, लेकिन जिसे दिल से चाहा हो, उसे मैं धोखा कैसे दे सकता हूँ, मैं नपुंसक नहीं हूँ, मेरी जवानी भी तुम्हारी जवानी का दीदार करना चाहती है.

उसकी इस बात ने चूत में आग ही लगा दी. ऐसे भी आज मैं पूरे मूड में थी. फिर भी मैंने उसे अपनी बात खत्म करने का पूरा मौका दिया.

उसने आगे कहा- गीत जब तुम पास आती हो, तो मन में उमंग भर जाती है, एक खुशनुमा अहसास मेरा आलिंगन कर लेती है. इन सबके बावजूद मैं खुद को रोक लेता हूँ, क्योंकि मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता.
अब मैंने धाम रखे आंसुओं को बह जाने दिया और कहा- धोखा कैसा संदीप? तुम कहना क्या चाहते हो?
इस पर संदीप की आंखें भी छलक आई थीं. उसने कहा- आज तुमने हमारे घर की स्थिति परिस्थिति का आकलन तो कर ही लिया होगा, मैंने जानबूझ कर ही तुम्हें यहां बुलाया था. देखो गीत, मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ … लेकिन मुझे पता है लड़कियां जिसे दिल में बिठाती हैं, उससे ही शादी करना चाहती हैं … और मैं अपने घर की हालत की वजह से बहुत जल्दी शादी करने वाला हूँ. तुम्हें सपने दिखा कर किसी और के साथ घर बसा लेना धोखा ही तो है.

अब मैं और फफक कर रो पड़ी. मैंने कहा- तुम बहुत अच्छे हो संदीप, जो इतना कुछ सोचते हो, पर तुमने एक लड़की के मन को नहीं समझा है. खैर छोड़ो … अब ये बताओ जब तक साथ दे सकते हो … जब तक प्यार दे सकते हो, तब तक प्यार दोगे? आगे की जिंदगी मैं तुम्हारे इसी प्यार के सहारे जी लूंगी.

इतना कहकर मैंने बांहें पसार दीं और संदीप ने मुझे गले लगा लिया. उसके आगोश में आते ही मुझे दुनिया भर की खुशियां एक साथ नसीब हो गई थीं.

हम दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे. गालों पर, माथे पर, कंधे पर, गले पर, पता नहीं … हम एक दूसरे को कितना दबाना चूमना चाह रहे थे. ये महज काम वासना नहीं थी, बल्कि हमारे पवित्र प्रेम की वजह से हो रहा था. हम आपस में गुत्थम गुत्था करते हुए एकाकार होने का प्रयत्न कर रहे थे.

इस पवित्र प्रेम के बीच ही मन में दबी वासना ने भी सर उठाना शुरू कर दिया. तभी तो संदीप का कड़क हो चुका विशाल लंड मुझे चुभने लगा. मेरी भी चूत भी पनिया चुकी थी. हम दोनों का ही शरीर तेज बुखार की भांति तपने लगा था.

पर शायद मुझे संदीप से ज्यादा जल्दी थी, सो मैंने प्रेम क्रीड़ा के दौरान ही संदीप के कान में कहा- तुम मुझे धोखा नहीं दे रहे हो संदीप, मैं बिना शादी के भी तुमसे चरम सुख पाना चाहती हूँ. मैं तुम्हारे प्यार की प्यासी हूँ, अपनी प्रेम वर्षा से मुझे तृप्त कर दो संदीप. मेरे प्रेम पर मुहर लगाओ संदीप … मुझे अब और मत तड़पाओ.

यही सब कहते-कहते मैंने उसके मुँह से अपना मुँह लगा दिया और संदीप ने भी बिना कुछ कहे मौन स्वीकृति देते हुए मेरा साथ देना शुरू कर दिया.

अब गुत्थम गुत्था का दौर थमने लगा, क्योंकि बुखार अब ऊपरी नहीं, बल्कि अंदरूनी हो चला था. मैंने अपनी दोनों बाहों का हार बना कर संदीप के गले में डाल दिया और उसका वरण कर लिया.

मैंने अब तक लेस्बियन सेक्स को ही चखा था, किसी पुरुष के संपर्क का प्रथम अहसास मुझे रोमांचित कर रहा था.

संदीप भी अब पूरी तरह रंग में आ गया था. मेरी जीभ चुभलाते हुए भी उसके हाथ निरंतर मेरी कमर और कूल्हों को सहला रहे थे और दबाने मसलने का भी पूरा प्रयास किया जा रहा था. ऐसा उपक्रम मेरी उत्तोजना को सातवें आसमान में ले जाने वाला था.

मेरे मुँह से सिसकारियों का निकलना स्वाभाविक था और अब मैंने अपना एक हाथ नीचे लाकर संदीप के लंड को कपड़े के ऊपर से ही पकड़ना और दबाना चाहा. उसके मोटे और सख्त लंड को छूते ही मेरी तड़प रही चूत ने पानी बहा दिया. मेरी पैंटी गीली हो गई, पर मैं कहीं से भी ठंडी नहीं हुई.

जैसे ही मैंने लंड पकड़ा, मेरे जवाब में संदीप ने चूमना छोड़ कर मुझे अपने से पीठ के बल सटा लिया. मैंने लंड को हाथ पीछे ले जाकर दूसरे हाथ से पकड़ लिया और संदीप ने मेरी चूत को कपड़ों के ऊपर से मसलना शुरू कर दिया.

संदीप उतावलेपन में बेरहम हो गया था और मेरे लिए उसका बेरहम होना वरदान साबित हो रहा था.

अब संदीप ने एक हाथ से मेरे मस्त मम्मों को संभाल लिया और बारी-बारी से उनको उखाड़ने जैसी ताकत से दबाने लगा. मैं बेचारी नई नवेली छोकरी उसके ऐसे तेवर से कराह उठी. बेचैनी और चुदने की चाहत ना होती, तो शायद मैं ऐसा भयानक दर्द झेल ही ना पाती. पर यही तो वो दर्द है, जिसे पाने के लिए हर लड़की बेताब होती है.

मेरी भी बेताबी बढ़ चुकी थी, मेरे मुँह से सिसकारियां निकलनी तेज हो गईं और मैंने संदीप की मजबूत पकड़ से खुद को आजाद कर लिया. मैं उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गई. मैंने संदीप के पैंट खोलनी चाही, पर मुझसे हो ना पाया. तो मैंने पैंट की जिप खोलकर लंड बाहर निकालना सही समझा. पर लंड के खड़े होकर अकड़ जाने और साइज में बहुत बड़े होने की वजह से मुझसे ये भी नहीं हो पा रहा था.

मेरी हालत समझकर संदीप ने अपना पैंट उतारने में मेरी तुरंत मदद की. इस बीच कुछ पल ही व्यर्थ हुए … लेकिन उन कुछ पलों का इंतजार मुझे युगों का इंतजार करना प्रतीत हुआ. मेरी आंखें वासना से लाल हो चुकी थीं, शरीर का तापमान सौ डिग्री बुखार की भांति हो चुका था.

संदीप ने जैसे ही पैंट का हुक खोला, मैंने पैंट नीचे खींच दिया, साथ ही मैंने उसकी फ्रेंची कट अंडरवियर भी खींच दिया. तना हुआ मस्त भूरे रंग का लाल सुपारे वाला विशाल लंड मेरी आंखों के सामने था. उसकी मदहोश कर देने वाली खुशबू ने वासना के जानवर को जगा दिया.

तभी तो मैंने उसे पैंट को पैरों से बाहर निकालने का भी समय नहीं दिया और अपने दोनों हाथों को उसकी जांघों पर रख कर लंड को मुँह से ही संभाला और बिना समय गंवाए सुपारा मुँह में भर लिया.
संदीप का लंड बड़ा था, इसलिए मैं चाहती, तो भी आधे से भी कम लंड ही मुँह में समा पाता.

मुँह में संदीप के पेशाब का थोड़ा नमकीन सा स्वाद आया पर अभी तो मेरे लिए सब कुछ अमृत ही था. संदीप ने पैरों को थोड़ा झुका कर मुझे लंड की जगह पर व्यवस्थित किया और अपने दोनों हाथों को मेरे बालों पर फिराते हुए मेरे सर को लंड की ओर खींचने लगा.

संदीप आंखें बंद करके ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ की आवाजें निकालने लगा था. वो मेरे मुँह को ही चूत समझकर चोदने लगा. मेरे लिए मेरा आनन्द ही दर्द का सबब बन गया, क्योंकि अब संदीप उग्र हो गया था और लंड को मेरे गले तक डालने की कोशिश करने लगा. पर लाख प्रयत्नों के बाद भी आधे लंड से ज्यादा मेरे मुँह में नहीं समा सका.

संदीप का लंड जितना भी मुँह में आ पाया, उतने से ही उसने मुँह चोदना जारी रखा और बड़बड़ाने लगा.

कुछ ही पलों में वो झड़ने वाला है, यह जानकर मैं भी उसे और अधिक सहयोग करने लगी. उसने अंतिम पल में लंड बाहर निकालना चाहा, तब तक मेरे मुँह को प्रसाद प्राप्त हो चुका था.
मैं धन्य हो गई थी.
पर पूरी तृप्ति होना अभी बाकी थी. उसके आधे लंड ने ही मेरी जान निकाल दी और इधर मेरी चूत ने बार बार लंड की मांग शुरू कर दी.

मैंने खुद को थोड़ा अलग किया. मैं अपने कपड़े खोलने लगी, पर संदीप ने ऐसा नहीं करने दिया. वो मुझे गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गया, जहां गुलाब के फूलों के प्रिंट वाला चादर बिछा था.

मुझे वो बिस्तर मेरी सुहागरात की सेज नजर आने लगी, वासना से मेरी आंखें लाल और गाल गुलाबी हो गए थे. मेरा बदन धधक रहा था, पीले सूट में मेरा ऐसा यौवन और मेरी हरकतों में ऐसा जोश देखकर संदीप भी हैरान और हैवान हो गया था.

मैंने पजामे का नाड़ा खुद ही खींच दिया था और नीचे खींच कर उसे बाहर करने का काम संदीप ने किया. मैंने पैंटी उतारनी चाही, तो संदीप ने मुझे फिर रोक दिया. शायद वो मेरे हुस्न का जी भर के दीदार करना चाहता था. उसने पल भर में अपने बाकी के कपड़े भी उतार फेंके और तब तक मैंने भी अपनी कुरती को बाहर कर दिया.

संदीप आदमजात नग्नावस्था में था और मैं अभी भी ब्रा पैंटी की कैद में बंधी हुई थी. मुझे इस अवस्था में देखकर संदीप कुछ पल स्तब्ध खड़ा रहा. मुझे नहीं पता था कि संदीप के जीवन में इतने करीब से ऐसा नजारा पहले कभी आया था या नहीं. पर उसकी आंखों की चमक बता रही थी कि उसे आज खजाना मिल गया था, हीरे मोती मिल गए थे, बरसों की अधूरी मुराद पूरी हो गई थी.

मैंने कहा- संदीप अरे ओ संदीप … कहां खो गए?
उसने चौंकते हुए कहा- कुछ नहीं.

वो मुस्कुराते हुए मेरे पास आकर बैठ गया और जो इंसान अब तक दबा रहा था, निचोड़ रहा था … वही इंसान अब मुझे ऐसे छूने लगा, जैसे मैं पानी का बुलबुला हूँ और उसके छूने से टूट जाऊंगी.

संदीप ने मेरे पैरों के नाखूनों से लेकर मुझे छूना शुरू किया और मेरे बदन के हर हिस्से को छूकर देखा. उसकी इस हरकत ने मेरी गुदगुदी और बेचैनी बढ़ा दी. मैं खुद ही अपने उरोजों को मसलने लगी.

फिर संदीप ने नीचे बैठकर मेरे पैर की उंगलियों को चूमना शुरू किया. मेरे दमकते गोरे रंग और पूरी तरह बेदाग शरीर में, मेरे पैर भी बहुत खूबसूरत हैं. उंगलियों के नाखून सब सजे हुए थे. मेरी कोमल कंचन काया का भोग संदीप बड़े इत्मिनान से कर रहा था, लेकिन उसकी हरकतों की वजह से मैं इत्मिनान नहीं रख पा रही थी.

संदीप ने मेरे अंगूठे को चूसना शुरू कर दिया, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी. फिर संदीप अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरे नाजुक जिस्म पर फिराते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा. मुझे लगा कि उसकी आखरी मंजिल मेरी चूत होगी, पर मैं गलत थी उसने चूत को छोड़ कर कमर से होते हुए ऊपर का रास्ता बना लिया और मेरे एवरेस्ट पर्वत पर आकर रूक गया.

पहले उसने मेरी ब्रा को ऊपर की ओर सरका दिया, जिससे मेरी ब्रा में दबे मम्मे और सख्त होकर संदीप के सामने नुमाया हो गए. मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था, पर शायद संदीप को इसी में आनन्द आ रहा था. मेरे लिए ये दर्द भी मजा बन गया था.

मेरे दोनों पर्वतों का बराबर मर्दन करते हुए संदीप ने उन्हें सम्मान दिया और कुछ देर तक वहां अपनी जिह्वा का करतब दिखाने के बाद वापस चूत की और लौटने लगा. इतने में मैं छटपटाने लगी और मैंने अपने ही होंठों को जोर से काट लिया. तभी एक बार फिर से मेरी चूत ने रस बहा दिया.

मेरे प्यार और सेक्स की कहानी जारी रहेगी.

मेरी सेक्स स्टोरी पर आप अपने विचार निम्न आईडी पर दें.
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top