मेरी दास्तान

मस्तराम 2008-12-12 Comments

आज मैं आपको वो दास्तान सुनाने जा रही हूँ जो अपने अंदर और कई दास्तां छुपाए हुए है। मैंने अपनी ज़िंदगी में जो कुछ किया, जो पाया, जो खोया सब आपके सामने रखूंगी। यह मत समझिएगा कि यह कोई गमगीन दास्तान है.. नहीं, यह एक बहुत हसीन, बहुत रंगीन और जज़बातों से महकती दास्तान है। बस इसके जो किरदार हैं काश वो .. वो ना होते.. आप होते..

काश मैं भी आप ही की तरह अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर बैठी आप ही की तरह अपने दिल की धड़कन थामे यह कहानी पढ़ रही होती और आप ही की तरह अपने ही जिस्म के मखसूस हिस्सों से लज़्ज़त लेती, लुत्फ़ ले हो रही होती..

लेकिन ऐसा नहीं है मैं ही इस कहानी का एक किरदार हूँ, यह पूरी कहानी मेरी है.. मैं नहीं जानती थी कि मैं भी कभी किसी कहानी का किरदार हूँगी, एक दिन लोग मेरी भी कहानी पढ़ेंगे! मैं तो आप ही की तरह इंटरनेट पर, अन्तर्वासना पर सेक्स कल्पनाएँ और कहानियाँ पढ़ने की शौक़ीन हुआ करती थी…

मुझे याद है हमारे घर नया नया कंप्यूटर आया..

हुआ कुछ यूँ कि मैंने ग्रॅजुयेशन में प्रवेश लिया.. वहाँ कंप्यूटर की क्लास हुआ करती थी। लड़कियाँ थी ज्यादा और कंप्यूटर्स थे कम.. मजबूरन मैंने एक कंप्यूटर कोचिंग जॉयन की, वहाँ ही मैंने इंटरनेट की दुनिया से थोड़ी-बहुत वाक़फ़ियत हासिल की।

मुझे याद है उन दिनों इंटरनेट पर चैट ज्यादा की जाती थी.. एक ही प्लेट फोरम पर चैटिंग करने का दौर था.. मैं अपने कॉलेज में इतनी दिलचस्पी नहीं लेती थी जितनी कंप्यूटर क्लास में शौक़ से जाया करती…

मेरे इसी शौक़ को देखते हुए मेरे वालिद साहिब ने मुझे एक कंप्यूटर आख़िर खरीद ही दिया। उनकी जेब पर भारी तो पड़ा लेकिन बेटी की मुहब्बत में उन्होंने खरीद दिया। एक ही तो बेटी थी उनकी और एक बेटा। लेकिन आज मैं सोचती हूँ अगर उनको मालूम होता कि वो अपनी बेटी ख़ुशी के लिए किस क़यामत को अपने घर लिए जा रहे हैं तो शायद उनका फ़ैसला कुछ और होता।

कंप्यूटर क्या आया, हमारे फोन का बिल एकदम बढ़ गया क्योंकि मैं दिन भर, रात भर इंटरनेट पर ऑनलाइन हुआ करती और इंटरनेट की रंगीन दुनिया में खोई रहती, मेरे दिन-रात बदल चुके थे, अपना इमेल अकाऊँट बनाया, ढेरों वेबसाइट्स देखीं, चैटिंग की, फिर सेक्सी चैटिंग होनी शुरू हो गई। मैं लड़का बन कर सेक्स-चैट किया करती, दूसरों को बेवकूफ़ बना कर बहुत मजा आता। कई लड़कियाँ मेरी दोस्त बन गई जो रात-रात भर मुझसे साइबर सेक्स करती। मैं खुद भी एक लड़की थी लेकिन उनकी बताई बातें सुन कर और लड़का बन कर उन लड़कियों की जज़्बात की आग सर्द करते करते कई बार मैं खुद भी फारिग हो जाया करती।

मैं सोचा करती कि आजकल की लड़कियाँ कितनी दीवानी हैं सेक्स की। फिर नग्नता से वास्ता पड़ा। शुरु में चैटिंग पर मेरी कुछ दोस्तों ने मुझे नंगी तस्वीरें दिखाई, नंगी लड़कियाँ जिनकी छातियों की, कूल्हों की और चूत की बेहद नुमायाँ-अंदाज़ में फोटो लिए गये थे।

उनको देख कर तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गई। यह इसी दुनिया में होता है, मुझे यक़ीन नहीं आ रहा था। ये नंगी लड़कियाँ अपने जिस्म के इंतहाई पोशीदा हिस्से यूँ दुनिया के सामने ताने और खोले खड़ी होती कि ऐसा महसूस होता कि मण्डी में कोई चीज़ सजा कर रखी गई है कि कोई खरीदार आए और उन्हें खरीद कर ले जाए..

फिर जैसे जैसे नग्नता मेरे लिए आम हुई तो मुझे मर्द और औरत के तालुक़ात के बारे में मुकमिल आगाही होने लगी। मर्द का लंड पहली बार जब देखा तो यक़ीन करें कि मेरे जिस्म के बाल खड़े हो गये और मेरा जिस्म एक दम गर्म हो गया। सांसें जैसे धुंआ छोड़ने लगीं और धड़कनें बेक़ाबू होने लगीं.. मैंने नज़रें हटा लीं.. फिर चोर नज़रों से देखा.. फिर देखा और फिर मैं आदि होती गई.. किस तरह मर्द औरत को सरशार करते हैं.. किस तरह औरत की प्यास उसके जिस्म की भूख मर्द अपने लंबे मोटे लंड से बुझाते हैं!

यह देख-देख कर मेरा कच्चा दिमाग बुरी तरह से अपसेट हो गया .. मेरी समझ नहीं आता कि मैं क्या करूँ.. अपनी कैफियत किससे कहूँ .. किसे हाले-दिल सुनाऊँ ..

पहले ख़याल आया कि जल्दी से शादी हो जाए, लेकिन अभी दूर-दूर तक कोई मौका नहीं था। फिर सोचा किसी को बॉयफ्रेंड बना कर उससे अपने जिस्म की अनकही दास्तनां मुकमिल करवाऊँ और उसके जिस्म से अपनी प्यास बुझाऊँ..

कोई हो जो मेरा जिस्म चाटे-चूमे, मेरा जिस्म अपने मज़बूत बाजुओं में दबा कर इस तरह दबाए कि मेरी हड्डी-पसली एक कर दे.. अपना लंबा सा लण्ड मेरी चूत में डाले और मैं तस्वीरों वाली लड़कियों की तरह मज़े से उनसे चुदवाऊँ.. कभी घोड़ी बन कर, कभी उनके लण्ड पर बैठ कर, कभी गोद में आकर..

तस्वीरों में जो सुकून उन लड़कियों के चेहरे पर नज़र आता था जब वो किसी मर्द का लण्ड लिए होतीं थी, अब वही सुकून मेरी मंज़िल था जिस पर मुझे जाना था। लेकिन मेरे पास रास्ता ना था.. मैंने समलिंगी लड़कियों की भी तस्वीरें देखीं लेकिन मुझको उनमें वो बात नज़र ना आई। भला एक लड़की दूसरी लड़की को क्या सुकून दे सकती है.. जिस चीज़ की मुझे हवस थी यानि मर्दाना लण्ड, वो भला कोई लड़की कैसे दे सकती थी क़िसी को.. इन सारी बातों में ज़माने में रुसवाई और बदनामी का डर अलग था.. अगर मैं क़िसी से चुदवाती और वो मुझसे बेवफ़ाई कर देता तो क्या होता.. बच्चा हो जाता मेरा तो मैं कहाँ जाती.. मेरे माँ-बाप तो जान से मार देते मुझे और वो खुद भी कहाँ किसी को मुंह दिखाने के क़ाबिल रहते.. बस यही सोच थी जो मुझे बाहर किसी लड़के से अपनी ख्वाहिश पूरी ना करने देती थी। मैं क्या करूँ? किस तरह अपनी बदनकी आग सर्द करूँ? समझ नहीं आता था..

नहाते हुए मैं घंटों खड़ी अपने हसीन जिस्म को देखा करती.. आग जैसे गरम गोरे गुलाबी जिस्म पर पानी की नन्ही नन्ही बूंदें पड़ती तो मेरे तर बदन से जैसे जजबातों का धुआँ सा उठने लगता.. मेरा जिस्म जलता रहता कितना ही ठंडा पानी क्यों ना हो, मेरा जिस्म आग बरसाता रहता और आख़िर पानी भी हार मान लेता और मैं जलती-सुलगती अपना टूटता हुआ जिस्म लपेटे बाहर आ जाती, दुनिया-जहाँ की हसरतें मचल रही होतीं मेरे सीने में, लेकिन क्या कर सकती थी..

आख़िर एक दिन मुझ को एक इमेल मिली जिसमें एक कहानी थी। मैं कहानियाँ नहीं पढ़ा करती थी, सिर्फ़ तस्वीरें देखने की शौक़ीन थी.. लेकिन उस कहानी का नाम था ‘मेरी सुलगती बहन’ लेखक ना मालूम कौन था पर मुझे उसका नाम अच्छा लगा..

मैंने कहानी पढ़ी और जैसे वो कहानी मेरे लिए ही लिखी गई थी.. कोई शैतानी ताकत मेरे अन्दर काम करने लगी थी, किसी ने जैसे अंधेरे रास्तों की तरफ मेरी राहनुमाई कर दी थी और मैं उस राहनुमा का हाथ थामे अंघेरी गलियों में दाखिल हो गई, यह भी ना देखा कि भला अंधेरे रास्तों की तरफ ले जाने वाला मेरा हमदर्द भी हो सकता है.. उस वक़्त मैंने कुछ ना सोचा, मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जज्बों को राह मिल गई.. जैसे मेरी मंज़िल का निशान मिल गया.. वो एक ऐसी कहानी थी जिसमें एक भाई को एक बहन को चोदते बताया गया था.. मैंने उसके बाद सिर्फ़ सेक्सी साइट्स और कहानी ढूंढनी शुरु कर दी और मेरे सामने तो दरवाज़े खुलते चले गये.. बहन-भाईयों की चुदाई के वक़्त की तस्वीरें, उनकी कहानियाँ..

फिर चैटिंग के दौरान कई तरह के लोग मिले जो अपनी बहनों को चोदते रहे हैं.. अब वो सच कहते थे या अपने आपको और मुझे कल्पना की दुनिया में ले जा रहे थे यह तो नहीं मालूम लेकिन मैंने सोच लिया था कि अपने जिस्म की आग बुझाने का सबसे आसान और महफ़ूज़ ज़रिया यही है कि मैं अपने एक साल छोटे भाई के जिस्म को इस्तेमाल करूँ.. उसको अपना कोरा- करारा जिस्म सौंप दूँ.. वो मुझे चोदे, मेरे जिस्म से खेले और मैं उसके जिस्म को चूसूं, उससे खेलूँ .. हाँ! यही सबसे महफ़ूज़ रास्ता नज़र आ रहा था मुझे.. लेकिन मेरा फ़िर जमीर सर उठा कर खड़ा हो गया और कहने लगा कि यह गलत होगा।

और अब वक़्त आ गया है कि मैं आप सबको अपना तारुफ़ करवा दूँ ..

मेरा नाम लाज़वन्ती है.. जिस वक़्त के वाकियात मैं आपको सुनाने जा रही हूँ उस वक़्त मेरी उम्र 20 साल की होने वाली थी यानि अपनी जवानी के इंतहाई हसीन मोड़ पर थी मैं, जब उमंगें जवान होती हैं, जब मन में किसी का डर नहीं होता और मुझ पर तो जवानी भी टूट कर आई थी.. खूबसूरत तो मैं बचपन से ही थी.. खूब खिलता हुआ गोरा रंग जिसमें गुलाबी रंग अपने क़ुदरती हुस्न के साथ घुला हुआ था .. पतले नक़्श, लंबे स्याह बाल, बड़ी-बड़ी आँखें जिनमें गुलाबी डोरे तैरते दिखाई देते थे और इन आँखों में हसीन और रंगीन ख्वाबों का पता देते थे..

नाज़ुक-नाज़ुक नर्म हाथ और पांव, छातियाँ खूबसूरत और जवानी से सरशार जैसे मौसम-ए-बाहर में कोई ताज़ा कली अपना सिर उठाए तन कर ठंडी हवा में झूमती है ऐसे ही मेरी नाज़ुक और हसीन छातियाँ ज़रा सी जिस्मी तहरीक पर जाग उठती और तन कर यूँ खड़ी हो जाती जैसे कह रही हों कि.. कोई है जो इनके हुस्न को अपने सीने से लगा कर और इनका मद भरा रस अपने गर्म होंठों से लगा कर पीना चाहता हो.. कोई है जो इन्हें चूस कर हल्का करना चाहता हो.. लेकिन हर बार ना-उम्मीद होकर खुद ही ठंडी पड़ जाती, किसी को ना पाकर खुद ही सर्द हो जाती। चुचूक गुलाबी थे, छाती पर दो तिल थे, मेरे गले में एक सोने की जंजीर पड़ी रहती थी जिसका एक सिरा मेरी दोनों छातियों के बीच में रहता और कपड़े उतार कर ऐसा लगता जैसे सोने की वो चैन मेरी दोनों छातियों के बीच एक गहरी और पतली सी दरार में फँस कर बहुत खुश हो..

ज़रा नीचे आ जाएँ! कमर पतली और बहुत चिकनी! ज़रा हाथ रख कर देखें, अगर फिसल ना जाए तो बोलिएगा.. और फिसल कर रुकेगा कहाँ.. मेरी खूब फ़ूले हुए कूल्हों पर! फिर मेरी गोरी और खूब सेहतमंद जांघें जिनके बीच हर मर्द की पसंदीदा जगह मेरी नन्ही सी नाज़ुक सी चूत .. जहाँ से जमा देनी वाली सर्दियों में भी आग सी बरसती रहती थी.. जो जलती थी, जो तपती थी, इस आग में जलने को, तपने को हर मर्द तैयार होता है.. और यह जलाने को बेक़रार और इस मुक़ाबले में चूत हार जाती है, ठंडी पड़ जाती है मर्द की मनी से भीग कर उसकी प्यास यूँ बुझ जाती है जैसे रेगिस्तान की प्यासी ज़मीन पर बारिश के क़तरे पड़ते हैं… लेकिन मर्द भी कहाँ यह दावा कर सकता है कि वो जीत गया.. उसका लंड भी तो निचुड़ जाता है, उसे चूस कर ही छोड़ती है यह चूत…

तो ऐसी ही खूबसूरत प्यासी चूत मेरी भी है.. कमसिन है… यह मेरा रेशम जैसा बदन जो दिखने में रेशम जैसा चमकदार लेकिन छूने में मखमल जैसा नर्म और मुलायम…

कल ही मेरी डेट्स खत्म हुई हैं, मैं अपने अंदर एक नई ताज़गी और सेक्स के लिए एक नई उमंग महसूस कर रही हूँ.. मेरा दिल कर रहा है कि कोई मेरे इस जिस्म को अपनी मज़बूत बाँहों में लेकर इसे खूब ज़ोर से दबाए इसी निचोड़ डाले और मैं अपनी जवानी का मजा उसके जिस्म को दूँ..

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