पेरिस में कामशास्त्र की क्लास-4

प्रेषक : विक्की कुमार

पांच मिनट सुस्ता कर कर घड़ी देखी तो पता चला कि साढ़े पाँच बज चुके हैं, हमें सात बजे तक हेल्थ क्लब पहुँचना है, क्योंकि वहाँ सभी मेरा योगा सिखाने के लिये इन्तजार कर रहे होंगे। हम दोनों जल्दी से बाथरूम में घुसे, शावर साथ में लिया व तैयार होकर क्लब में पहुँच गये।

ठीक सात बजे सभी पहुँच चुके थे। ट्रेनर ने एक बड़े हाल में योगा के लिये उचित व्यवस्था कर रखी थी। उस समय मुझे मिलाकर कुल 18 व्यक्ति वहाँ उपस्थित थे, जिनमें से 10 महिलायें थी। मैं कई वर्षों से योग का अभ्यास कर रहा हूँ, किन्तु मैंने कभी किसी को सिखाया नहीं। अतः मेरे मन में एक डर था, क्योंकि अगर मैंने कुछ गलत सिखला दिया तो लोगों का भला होना तो ठीक, वरन उलटा नुकसान होने की सम्भावना रहेगी। वैसे भी हम हिन्दुस्तानियों की बचपन से जाने अनजाने में पालथी लगाकर बैठने जैसे अनेकों हल्के फुल्के व्यायाम करते रहने के कारण हड्डियाँ थोड़ी लचीली होती हैं। किन्तु इन गौरी चमड़ी वाले फिरंगियों की हड्डियाँ या तो जिम्नास्टिक करने से बहुत ही नरम हो जायेंगी, या तो फिर बहुत ही कड़क होंगी, अतः मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।

इसका समस्या का हल हिन्दुस्तान में मेरे गुरुजी के पास था, यदि मैं अब फोन लगाता हूँ तो इस वक्त हिन्दुस्तान में सुबह के साढ़े तीन बजे होंगे, इसलिये अभी फोन लगाना उचित नहीं होगा।

तब मैंने एक जुगाड़ लगाया व सबसे कहा- आप सब लोगों ने कभी योगा नहीं किया है अतः मैं चाहता हूँ कि आप सभी आज मुझे करते हुए देखें, फिर कल से मैं आपको प्रेक्टिस कराऊँगा।

सभी ने मान लिया। अब वे मुझे योग करते हुए देखने लगे।

क्रिस्टीना भी मेरे पास ही बैठी थी, वह मेरे शब्दों को फ्रेंच में अनुवाद कर सबको बताने लगी क्योंकि उपस्थित व्यक्तियों में से कई ऐसे थे जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। मैं योग के प्रत्येक आसन को समझाने लगा। आज मुझे सबको बताने में तकरीबन पौना घंटा लगा, जबकि मुझे लम्बे अभ्यास के बाद मात्र 20 मिनट ही लगते हैं, व प्राणायाम में 5 मिनट। इस प्रकार अभ्यास के बाद मात्र 25 से 30 मिनट में योग के महत्वपूर्ण आसन व प्राणायाम हो जाते हैं। इससे अधिक समय निकाल पाना तो रोजमर्रा की जिंदगी में बहुत मुश्किल होता है।

फिर घर जाने के बाद मैंने अपने गुरुजी से फोन पर चर्चा की, तो उन्होंने मुझे सब कुछ विस्तारपूर्वक बतलाया कि अमुक आसन को किसे नहीं करना चाहिये, व किसे करना चाहिये, किस बीमारी में आसन करते समय क्या सावधानी रखना चाहिये।

उनसे पूछकर मैंने पूरी तैयारी कर ली। फिर अगले दिन मैंने योग सिखलाना शुरु कर दिया। चूंकि उन सभी शिष्यों में सीखने की चाह थी, अतः वे एक सप्ताह में अच्छे ढंग से सीख गये। इस योगा क्लास के कारण मुझे पेरिस में कई नये दोस्त मिले। इसके अलावा सभी आसनों की क्रिस्टीना ने वीडियो शूटिंग कर सबको दे दी थी ताकि भविष्य में कभी जरुरत पड़े तो वे उसकी मदद ले सकते थे।

क्रिस्टीना ने मेरे कारण छुट्टियाँ ले रखी थी, अतः जब तक मैं पेरिस में था तब तक वह बिल्कुल फ्री थी। अब हम प्रतीदिन सुबह योगा क्लास में जाते, व घर लौटकर नाश्ता करने के बाद चुदाई का एक राऊँड निपटाते। फिर पेरिस व आसपास घूमने के लिये निकल जाते। दिन का खाना या तो या तो हम किसी रेस्टोरेंट में करते या फिर घर से ही अपने साथ खाने पीने का सामान कार में रख लेते व कहीं सही जगह देखकर खा पी लेते। कुल मिला कर मेरी ऐश चल रही थी।

पेरिस एक महंगा महानगर है। यह निश्चित रूप से दुनिया के सबसे खूबसूरत पाँच शहरों में से एक है। फ्रांसिसियों ने दुनिया भर में अपने उपनिवेशों से जो पैसे लूटा था, उसी से उन्होंने पेरिस में एक से एक खूबसूरत भवनों, बगीचों, महलों, सड़कों के निर्माण कर उसे दुनिया का एक खूबसूरत शहर बना दिया था। फ्रांसिसियों ने दक्षिण भारत में स्थित पांडीचेरी पर भी लम्बे समय तक शासन किया था। हालांकि वे अंग्रेजों के कारण भारत में विस्तार नहीं कर पाये, वरना आज हम स्कूलों में अंग्रेजी के बजाय फ्रेंच सीख रहे होते।

हम दोनों प्रतीदिन दोपहर को किसी ना किसी प्रसिद्ध टूरिस्ट स्पाट को देखने के लिये जाते। हमने तय कर रखा था कि हम दिन में एक से ज्यादा जगह नहीं जायेंगे। ताकि उस जगह को हम तसल्ली से देख सकें, समझ सकें। क्रिस्टीना एक अनुभवी गाईड की तरह उस जगह के बारे में मुझे तफसील से बताती।

एक दिन वह मुझे मुसी डी ओर्से Musée d’Orsay या ओर्से म्यूजियम दिखाने ले गई जो एक पुराने रेलवे स्टेशन में बना हुआ है, यहाँ दुनिया भर के इम्प्रेशनिस्ट कलाकारों की पेंटिंग्स रखी गई हैं, फिर अगले दिन जार्डीन डु लक्सेम्बर्ग या लक्सेम्बर्ग गार्डन्स पेरिस का दूसरा सबसे बड़ा पब्लिक पार्क है जो अपने खूबसूरत लान, फव्वारों, कठपुतली शो, बच्चो के खेलने के लिये प्ले ग्राऊँड के लिये प्रसिद्ध है। गर्मियों में यहाँ इतने खूबसूरत बगीचे में हरी घास पर एक सुंदरी के साथ लेटना व फिर आस पास घूमती हुई बेहद कम वस्त्रों वाली इन गोरी हसीनाओं को कनखियों से देखते हुए पिकनिक मनाने से बढ़कर क्या सुख हो सकता है।

वैसे भी पेरिस को दुनिया के फैशन की राजधानी कहा जाता है तो क्रिस्टीना भी बदलते हुए फैशन के प्रति उसी प्रकार सचेत थी जैसे पेरिस की अन्य बालाएँ।

फिर एक दिन हम नगर के सबसे ऊँचे पाईंट पर मोन्टेमार्ट्रे पहाड़ी पर बना हुआ एक सफेद डोम वाला सुन्दर बेसेलिका, जिसे साक्रे कोयर के नाम से जाना जाता है को देखने गये। फिर अगले दिन विश्व प्रसिद्ध “नोट्रेडाम केथेड्रल” जो 400 फीट ऊँचा है, व अपने दो टावर के लिये विख्यात है जा पहुँचे।

गर्मियों में पेरिस तो क्या सारे यूरोप में दुनिया भर के सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। कारण सर्दियों में तो बेचारों को लगभग 4-5 माह तक सूर्य देवता के दर्शन ही नहीं होते हैं पर इनकी गर्मिया उतनी ही सुहावनी होती हैं जैसे कि हमारे यहाँ जाती हुई फरवरी की ठंड का समय।

पेरिस का एक लैंड मार्क “आर्क डी ट्रीम्फ” जो नेपोलियन बोनापार्ट की विजय को यादगार बनाने के लिये बनाया गया था, जो लगभग हमारे दिल्ली में स्थित इण्डिया गेट की तरह है। इसमें युद्ध का चित्रण करने के अलावा मारे गये सैनिकों के नाम लिखे गये हैं। ठीक इसी जगह से शुरु होती है, पेरिस की सबसे महत्वपूर्ण स्ट्रीट ‘चेम्पस एली’ जिसमे दुनिया के सारे बड़े ब्रांड वाले सामानों से भरे स्टोर, सिनेमा, शापिंग माल, काफी हाउस, रेस्टोरेंट हैं। इसके दोनों ओर उगे हुए हार्स चेस्ट नट के पेड़, इस स्ट्रीट की शान में चार चांद लगा देते हैं। इस स्ट्रीट में क्रिस्टीना के हाथ में हाथ डालकर घूमने का आनन्द भी लिया।

लूव्र म्यूजियम जो लूव्र पेलेस में स्थित है, जहाँ बना हुआ भव्य ग्लास पिरामिड अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षीत कर लेता है। इसी म्यूजियम में लियोनार्डो डी विन्ची की “मोनालिसा” व माईकेल एन्जेलो की “डाईंग स्लेव” आम जनता के देखने के लिये रखी गई है। इस म्यूजियम को देखने में दिन भर लग गया क्योंकि यहाँ दस लाख से भी ज्यादा दुनिया भर से लाये गये सामानों को प्रदर्शित किया गया है।

फिर एक दिन हम डिस्नीलैंड देखने भी गये, हालांकि मैंने अमेरिका का डिज्नीलेंड देखा हुआ था, उसके मुकाबले में यह छोटा है पर फिर भी इसे देखने में मजा आया।

इसके अलावा हम पेरिस के दो महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन गारे दु नार्ड व गारे दि लिस्ट जो दोनों अगल-बगल में ही स्थित है, के आसपास वाले इलाके में भी घूमने गये क्योंकि इससे पहले मैं हर बार इसी इलाके में ठहरा हूँ। यहाँ हिन्दुस्तानियों, पाकिस्तानी व बंगलादेशियों की अनेको दुकानें व रेस्टोरेंट है, जिसके कारण मुझे आभास होता है कि मैं अपने घर आ गया हूँ। इस इलाके में हिन्दी-पंजाबी बोलने वाले ढेरों की तादाद में मिल जायेंगे।

इस पुराने पेरिस की तंग गलियों में बहुत ट्रैफिक होता है, वहाँ कार से जाना व पार्किंग की जगह मिलना बहुत मुश्किल है। अतः ऐसी जगहों पर हम या तो मेट्रो से जाते या कहीं पार्किंग देखकर कार पार्क कर फिर सायकल से घूमते। यहाँ सरकार ने जगह जगह साईकल स्टेण्ड बना रखे है, जहाँ से आप साइकल निःशुल्क ले सकते है, फिर अपना काम होने के बाद शहर के किसी भी सायकल स्टेण्ड पर छोड़ सकते हैं। हमें हर जगह साइकल आराम से मिली। मेरे मन में यह विचार आया कि कहीं हमारी सरकार भी इसी प्रकार ट्रायल के बतौर किसी भी महानगर में आवागमन के लिये फ्री साइकल की व्यवस्था करे तो पता चले कि पहले ही दिन, साइकलें तो साइकलें, साइकल स्टैण्ड के ताम-झाम को भी भाई लोग खोल-खुलाकर अपने घर ले जायें।

फिर एक दिन सीन नदी पर स्टीमर से यात्रा करते हुए पेरिस दर्शन किये। फिर एक शनिवार की रात को रात हमने स्टीमर पर बने रेस्टोरेंट में डिनर किया। रात को पेरिस की जगमगाहट को देखते हुए भोजन करना अच्छा लगा। मुझे शम्मी कपूर की प्रसिद्ध फिल्म “एन एवनिंग इन पेरिस” की याद हो आई।

हालांकि उस रात हमें काफी देर हो गई व हम रात दो बजे घर पहुँचे। लेट होने की हमें चिन्ता नहीं थी, क्योंकि अगले दिन रविवार था, व योगा क्लास के लिये हेल्थ क्लब नहीं जाना था। स्टीमर पर खाना खाते समय क्रिस्टीना ने इस्तान्बुल की शिप में हुई चुदाई की बात याद दिला दी। मन रोमांच से भर उठा, पर एक ही बात हर बार नहीं दोहराई जा सकती है।

इस पर क्रिस्टीना ने कहा कि हमारा ट्रेन में चुदाई बाकी है, तो मैंने कहा- यह तो बहुत आसान सी बात है।

यूरोप की ज्यादातर ओवर नाईट ट्रेन में फर्स्टक्लास के कई कूपों में सिर्फ दो यात्रियों के सोने की भी व्यवस्था होती है। भविष्य में कभी भी यह अरमान पूरा कर लेंगे।

यदि हम पेरिस की बात करें व ‘रात्रि जीवन शैली’ यानि नाईट लाईफ Night Life की बात ना करें तो फिर पेरिस की यात्रा अधूरी है। एक शाम को हम पेरिस की जान कहे जाने वाले ‘मौलिन रोग’ नामक विश्व प्रसिद्ध केबरे को देखने गये। हालांकि यह महंगा है, पर फिर भी पेरिस आने वाला सैलानी एक बार तो इस केबरे को देखकर निहाल हो जाना चाहता है। इसी प्रकार एक और केबरे ‘लीडो’ Ledo भी सैलानियों में प्रसिद्ध है। मौलिन रोग के नजदीक ही है एरोटिक म्यूजियम, जिसमें कई नई व पुरानी सेक्स से सम्बन्धित वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं, जैसे एरोटिक पेंटिंग्स, हिस्टोरिकल व कांटेम्पररी एरोटिक आर्ट पीसेस, सेक्स बुक्स, कामिक्स, फेटिश फोटोस, पुराने व नये रंडीखानों के फोटो, अनल ज्वेलरी Anal Jewellary, चेस्टीटी बेल्ट्स व अन्य कई सामान।

पेरिस में कई सेक्स शाप व सेक्स माल भी हैं जिनमें अनेकों अनेक सेक्स के सामान बिकते है जैसे, लिंग व स्तनों के आकार की चाकलेट, लिंगनुमा लिपस्टिक्स, सेक्सी खिलौने जैसे महिलाओं के लिये बेटरी चलित वाईब्रेटर जिसे वे अपनी योनि में प्रविष्ट कराकर संभोग के मजे अकेले ही ले सकती हैं। इसी प्रकार लेस्बियन महिलाओं के लिये एक बेल्ट जिसमें आगे की तरफ एक लंड लगा होता है, जिसे फिर वह अपनी फिमेल पार्टनर की चूत में घुसेड़ कर चुदाई का आनन्द लेती हैं। तरह तरह की उत्तेजना पैदा करने वाली क्रीम, मसाज आईल, वियाग्रा, कामशास्त्र की किताबें, वीडियो, सेक्सी ड्रेसेस, लिंगरी जैसे वस्तुए इन सेक्स शाप्स पर मिलती हैं।

यहाँ एक औरत की गांड का प्लास्टिक का नमूना भी देखा, जिसमें गांड व चूत दोनों होती है। इसमें लंड डालकर सेक्स का मजा लिया जा सकता है। यहाँ सेक्स गुड़ियाँ Sex Dolls भी मिलती हैं जो आदमकद लड़की की ही तरह होती हैं, जिससे आदमी चुदाई का मजा ले सकता है, ये चुदाई करते समय वैसी ही आवाजें निकालती है जैसे की एक जिन्दा लड़की निकालती है।

शायद मैंने पहले भी कहा था कि चुदाई की जो भाषा है वह सारी दुनिया में एक जैसी है। आप दुनिया के किसी भी देश में चले जायें, वहाँ आदमी या औरत चुदाई के समय लगभग एक जैसी ही आवाजें निकालेंगे। इसी प्रकार के अनेकों हैरतअंगेज सामानों से भरी पड़ी हैं यहाँ की ये सेक्स शॉप्स।

इसके अलावा हमने पीप शो, स्ट्रीप शो व लाईव सेक्स शो भी देखे। यहाँ के रेड लाईट एरिया “पिगाले” को देखना भी एक अनुभव है। क्रिस्टीना ने मुझे बताया कि यहाँ ठगी के बहुत केस होते हैं, जिसमें पुलिस की भी मिलीभगत होती हैं। यहाँ अगर आप नये हैं तो बेहतर है कि देर रात को ना जायें। यहाँ घूमने वाले दलाल किसी ना किसी प्रकार आपको फंसा कर लुटवा ही देंगें। हालांकि मेरे साथ वह थी अतः कोई दिक्कत नहीं गई, अन्यथा यहाँ किसी ना किसी प्रकार की ठगी होना आम बात है। इसके अलावा क्रिस्टीना मुझे गे बार भी दिखाने ले गई। जहाँ लौंडेबाज या गाण्डू किस्म के लड़के अपने शिकार का इन्तजार करते हैं। इसी प्रकार लेस्बियन बार में भी लड़कियाँ दूसरी लड़कियों की तलाश करती है।

यहाँ मुझे इन्द्रसभा की अप्सराओं का नजारा दिखा, पर हाय रे दुर्भाग्य ! इन हसीनाओं को किसी लंड की जरुरत नहीं थी। एक बार तो मन हुआ कि जाकर उनसे पूछूँ कि अगर दुनिया की सारी लड़कियाँ अगर तुम्हारी राह पर चल निकलेगी तो फिर हम लंड वाले मर्दों का क्या होगा।

पेरिस में नाईट लाईफ के लिये इतना सब होने के बाद भी मेरा मानना है कि नीदरलैण्ड की राजधानी एमस्टर्डम का रेड लाईट एरिया दुनिया का सबसे अच्छा है। यहाँ खूबसूरत लड़कियाँ जो लाल रंग की रोशनी से सराबोर शीशों की खिड़कियों के पिछे उत्तेजक ड्रेसों में अपने ग्राहकों का इन्तजार करती हैं, वह देखने लायक दृष्य होता है। मुझे भी रेड लाईट देखने जाने के लिये मेरी एमस्टर्डम की होटल की रिसेप्शनलिस्ट ने ही सुझाया था। जब मैंने उसे कहा, कि मेरी बाजारू लड़कियों में कोई रुचि नहीं है, हाँ अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में सोच सकता हूँ।

पहले तो वह हंसी व फिर सीरियस होकर उसने माफी मांगते हुए कहा- मैं पहले से एंगेज्ड हूँ। मेरा एक बायफ्रेंड है, नहीं तो मैं तुम्हारे प्रपोजल पर जरुर विचार करती।

उसके बाद उसने बताया कि एमस्टर्डम का रेड लाईट एरिया, शहर के दर्शनीय स्थल में आता है, व यहाँ घुमाने के लिये गाईडेड टूअर जाते हैं। फिर मैं जब वहाँ गया तो, मैंने पाया कि वह सच कहती थी। खैर यह किस्सा तो फिर कभी, आज तो सिर्फ “दास्तान ए क्रिस्टीना” ही चलने देते हैं।

क्रिस्टीना ने बताया कि मुझे जन्नत की सैर कराने वाली वह क्रीम इन्हीं सेक्स शाप्स से लाई थी। उसने बताया कि वह मेरी पेरिस आगमन की तैयारी पिछले कई समय से कर रही थी। दिल्ली में जो मैंने उसे कामशास्त्र की किताब दी थी व उसके बाद जो मजे हमने प्लेन में व शिप पर किये उससे उसके दिमाग में यह बात बैठी हुई थी कि मैं कामशास्त्र का गुरु हूँ। इसलिये वह मेरे सामने अपने आपको नीचे नहीं दिखाना चाहती थी, अतः उसने मेरी पेरिस ट्रिप को यादगार बनाने के लिये पहले से तैयारी की थी। इन्हीं सेक्स शाप्स से कई सामान खरीदे, जैसे एरोटिक बाडी लोशन, ब्रा-पेंटी, नाईटी, कई सेक्सी पोशाकें इत्यादि।

वह कुछ किताबें भी लाई थी, उसी में से देखकर उसने हर रोज मुझे नये तरीके से चुदाई का अनुभव दिया। जैसे एक दिन उसने मेरे सीने व चेहरे पर चाकलेट मल दी व फिर अपनी जीभ से चाटते हुई उत्तेजना फैलाते हुए चुदाई का आनन्द दिया। इसी प्रकार एक दिन उसने मेरे शरीर पर शहद, फिर एक दिन बर्फ, अगले दिन आईसक्रीम मलकर स्वर्ग का आनन्द दिया। सच कहूँ पेरिस जाने से पहले मैंने कई ख्याली पुलाव पकाये थे कि मैं क्रिस्टीना को ऐसे चोदूँगा या फिर इस तरह से मजा दूँगा, जैसे कि अपनी पिछली मुलाकात में दिया था, ताकि वह जिन्दगी भर याद रख सके किन्तु मैं विनम्रता पूर्वक स्वीकार करता हूँ कि मेरी इस पेरिस यात्रा में क्रिस्टीना ही मुझ पर भारी रही। उसके नित नये रोमांचकारी फोर प्ले, सेक्सी गेम्स व प्राण हर लेने वाले चुदाई के अनुभव के आगे तो मैं नतमस्तक हो ही गया।

सच तो यह है कि मैं चौबे जी से छब्बे जी बनने गया था किन्तु दूबे जी बन कर लौटा।

कहानी जारी रहेगी।

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